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Friday, 22 November, 2024
होमदेशक्या ज्यादा लोगों को डायबिटीज होना और जांच में देरी है अहमदाबाद में सबसे ज्यादा कोविड मृत्युदर की वजह

क्या ज्यादा लोगों को डायबिटीज होना और जांच में देरी है अहमदाबाद में सबसे ज्यादा कोविड मृत्युदर की वजह

अहमदाबाद में संक्रमण के मामलों में मृत्युदर 7.1 फीसदी यानी राष्ट्रीय औसत 2.8 फीसदी से दोगुनी ज्यादा है और यहां प्रति दस लाख पर 128 मौतों का आंकड़ा भी देश में सबसे भयावह है.

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अहमदाबाद/दिल्ली: अहमदाबाद के जुहापुरा इलाके निवासी बिल्डर समीर खान ने 4 जून को अपने डायबिटीज पीड़ित 75 वर्षीय पिता के लिए अस्पताल के चक्कर लगाने शुरू किया जिनके कोविड पॉजिटिव होने का संदेह था.

अहमदाबाद में चार सरकारी अस्पतालों से लौटाए जाने के बाद खान अंतत: गुजरात कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट में अपने पिता के लिए एक बेड पाने में सफल रहे.

लेकिन दो दिन बाद ही 6 जून की रात को खान के पिता, जो शुरुआती जांच में कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए थे, की संक्रमण के कारण मौत हो गई. बिल्डर ने इलाज में देरी को जिम्मेदार बताया क्योंकि उन्हें अपने पिता को लेकर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल के बीच चक्कर लगाते रहना पड़ा था.

खान को जो दिक्कतें झेलनी पड़ीं, वो दर्शाती हैं कि देश में सर्वाधिक प्रभावित शहर अहमदाबाद में कोविड-19 महामारी किस स्तर पर पहुंच चुकी है जहां संक्रमण के बढ़ते मामलों के कारण मरीजों को कोविड अस्पतालों में बेड पाने के लिए जूझना पड़ रहा है.

खान के पिता को 3 जून को एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था लेकिन वहां के प्रबंधन ने बाद में उन्हें वहां रखने से हाथ खड़े कर दिए क्योंकि उनका ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल काफी गिर गया था और वह कोविड-19 के संदिग्ध मरीज थे.

बिल्डर ने बताया कि चार सरकारी अस्पतालों-द असरवा गवर्नमेंट हॉस्पिटल, सोला सिविल हॉस्पिटल, द अहमदाबाद सिविल हॉस्पिटल और सरदार वल्लभभाई पटेल (एसवीपी) इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइसेंसेज-में कोई भी बेड उपलब्ध नहीं था.

उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि एसवीपी में तो प्रभारी डॉक्टर ने उनसे एक डॉक्यूमेंट पर हस्ताक्षर करने को भी कहा जिसमें लिखा था कि अस्पताल में वेंटिलेटर की कमी है इसलिए वह उनके पिता के स्वास्थ्य को लेकर कोई गारंटी नहीं ले सकते. खान के मुताबिक उन्होंने इस पर हस्ताक्षर से इनकार कर दिया था.

दिप्रिंट ने एसवीपी हॉस्पिटल के सुपरिटेंडेंट डॉ. एसटी मल्हान से फोन और एसएमएस के जरिये संपर्क साधने की कोशिश की लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

बेड की कमी, कई मरीजों का एक साथ डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों से पीड़ित होना और बीमारी के गंभीर चरण में पहुंचने के बाद ही कई मरीजों का अस्पताल की ओर रुख करना आदि वजहों से ही अहमदाबाद को देश में अन्य राज्यों की तुलना में उच्च मृत्युदर का सामना करना पड़ रहा है.


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एक जानलेवा शहर

कोरोना संक्रमण के कुल मामलों की सूची में महाराष्ट्र, तमिलनाडु और दिल्ली के बाद चौथे स्थान पर आने वाले गुजरात के अहमदाबाद शहर में 12 जून को कुल पुष्ट मामलों की संख्या 22,032 हो गई थी.

लेकिन अहमदाबाद के मामले में सबसे ज्यादा परेशान करने वाला आंकड़ा मृत्यु दर का है.

देशभर में गुजरात का मृत्युदर आंकड़ा सबसे ज्यादा 6.2 फीसदी है जो राष्ट्रीय औसत 2.8 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुना है.

लेकिन गुजरात में हुई कुल 1385 मौतों में से ज्यादातर अहमदाबाद में हुई है. इस शहर में 1117 मौतें दर्ज की गईं है जो राज्य की कुल मौतों में से करीब 80 फीसदी हैं.

यहां पर संक्रमण के कारण मृत्युदर और ज्यादा 7.1 फीसदी है.

सबसे चिंताजनक स्थिति यह है कि शहर में प्रति दस लाख आबादी के लिहाज से मृत्युदर भी देश में सबसे ज्यादा है. 6 जून तक अहमदाबाद में प्रति दस लाख आबादी पर मौत का आंकड़ा 128 था जो दूसरे स्थान पर रहने वाले मुंबई शहर से काफी ज्यादा है. वहां संक्रमण के मामले सबसे ज्यादा हैं पर प्रति दस लाख आबादी पर मौत का आंकड़ा 113 है.

यही वजह है कि गुजरात सरकार के इस आपदा से निपटने के तौर-तरीके, खासकर अहमदाबाद को लेकर, सुर्खियों में बने हुए हैं.

आलोचकों और विशेषज्ञों के साथ-साथ राज्य हाई कोर्ट की तरफ से भी शहर में कंटेनमेंट व्यवस्था को लेकर सवाल उठाए जा चुके हैं. थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के एक विश्लेषण के मुताबिक अहमदाबाद बेसिक कंटेनमेंट पॉलिसी पर अमल में नाकाम रहा है और सिविल अथॉरिटी की अधूरी तैयारियों ने समस्या को और बढ़ाकर इससे निपटने में राज्य की प्रतिक्रिया को कमजोर किया है.

गुजरात हाई कोर्ट ने तो 24 मई को सबसे ज्यादा केस लोड वाले सरकार संचालित अस्पताल अहमदाबाद सिटी हॉस्पिटल को ‘कालकोठरी’ तक करार दे डाला था.

अस्पताल इसके अलावा समय-समय पर 900 गैर-प्रमाणित वेंटिलेटर की खरीद, बेड को लेकर कुप्रबंधन और मरीजों और उनके परिजनों को सही सूचनाएं उपलब्ध न कराने जैसी बातों को लेकर विवादों में घिरा रहा है.

लेकिन अहमदाबाद सिटी हॉस्पिटल के ऑफिसर ऑन स्पेशन ड्यूटी डॉ. एम.एम. प्रभाकरन अस्पताल के आंकड़ों की वजह यहां आने वाले मामलों की प्रकृति को बताते है.

Dr. M.M. Prabhakaran, officer on special duty, Ahmedabad Civil Hospital | Photo: Swagata Yadavar | ThePrint

डॉ. प्रभाकरन कहते हैं, ‘हम उन गंभीर मरीजों का भी इलाज कर रहे हैं जिन्हें कहीं और भर्ती नहीं किया जा रहा, इसलिए हमारे यहां केस और मौत के आंकड़े ज्यादा हैं.’ साथ ही यह भी कहते हैं कि अस्पताल के पास अपने सभी मरीजों की देखभाल के लिए पर्याप्त स्टाफ और सुविधाएं हैं.


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देरी से पता लगने और बीमारी बढ़ने के बाद आ रहे मरीज

राज्य में इसके उच्च मृत्युदर के कारणों का पता लगाने की कोशिशें लगातार चल रही हैं.

उच्च मृत्युदर के कारणों का पता लगाने के लिए सरकार की तरफ से गठित विशेषज्ञ समिति ने 7 जून को एक प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि मौत के आंकड़ा इतना ज्यादा होने का कोई स्पष्ट कारण नजर नहीं आता है.

लेकिन इसी प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद गुजरात की स्वास्थ्य सचिव जयंती रवि ने कहा कि मौत के 84 फीसदी मामले हाई रिस्क कैटेगरी वाले थे, जो 60 साल से ज्यादा या 10 साल से कम उम्र के मरीजों के थे. इसके अलावा बड़ी संख्या में ऐसे मरीज भी शामिल थे जो एक साथ डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर की बीमारी से जूझ रहे थे. अस्पताल में भर्ती होने में देरी को भी उन्होंने मौत का आंकड़ा बढ़ने का एक बड़ा कारण बताया.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ (आईआईपीएच) के निदेशक और राज्य की कोविड-19 टास्क फोर्स के एक सदस्य डॉ. दिलीप मालवंकर भी उनकी इस राय से सहमत हैं.

डॉ. मालवंकर कहते हैं, ‘अन्य क्षेत्रों के मुकाबले गुजरात में मोटापे, डायबिटीज, हाइपरटेंशन और एनीमिया के मामले ज्यादा हैं.’

इससे पहले अधिकारियों ने चीन के वुहान की तरह ही गुजरात में भी मुख्य तौर पर पाए गए कोरोना वायरस के एल स्ट्रेन को उच्च मृत्युदर की वजह बताया था. हालांकि, इसका कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं है कि अलग-अलग स्ट्रेन का संक्रमण के कारण होने वाली मौत से कोई सीधा संबंध है.

राज्य पर मामलों को दबाने के लिए लीपापोती करने, खासकर 18 मई को म्यूनिसिपल कमिश्नर विजय नेहरा के अचानक तबादले के बाद, का आरोप भी लग रहा है.

शहर की अल्पसंख्यक समन्वय समिति के संयोजक मुजाहिद नफीस कहते हैं कि तबादले के बाद से बहुत सीमित सूचनाएं ही सार्वजनिक तौर पर सामने आ पा रही हैं.

नफीस के मुताबिक, वार्ड स्तर पर आंकड़े जारी करना बंद हो चुका है और अब तो हर दिन के बुलेटिन में मामलों की कुल संख्या भी नहीं बताई जाती. उन्होंने कहा, अब केवल कुल एक्टिव केस की संख्या बताई जाती है और नियमित प्रेस कांफ्रेंस भी बंद हो चुकी है.


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जांच में देरी एक बड़ी बाधा

जांच के आंकड़ों ने समस्या को और जटिल बना दिया है.

गुजरात में 10 जून तक 2.61 लाख सैंपल का टेस्ट हुआ जो प्रति दस लाख आबादी पर 3802 है. यह तीन अन्य सर्वाधिक प्रभावित राज्यों महाराष्ट्र (4702), दिल्ली (12989) और तमिलनाडु (8173) के लिहाज से काफी कम है.

गुजरात में पॉजिटिव केस की दर 8 फीसदी यानी भारत की दर के मुकाबले दोगुनी है, जो यह बताती है कि केवल ज्यादा लक्षण वाले मामलों में ही टेस्ट हो रहा है.

मालवंकर कहते हैं कि जांच की संख्या 30 फीसदी तक भी बढ़ा दिए जाने पर कोई बड़ा अंतर आने वाला नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि इसका मतलब यह होगा कि हम संक्रमण के मामूली मामलों में भी जांच करने लगेंगे जो मरीज बाद में ठीक भी हो जाएंगे और तब मृत्युदर के आंकड़े कम नजर आने लगेंगे लेकिन राष्ट्रीय औसत के लिहाज से इसमें कोई बहुत बड़ा बदलाव नहीं आने वाला है.

एक अन्य पहलू जो अब सवालों के घेरे में आ गया है, वह है राज्य में टेस्टिंग से जुड़े दिशा-निर्देश.

मई में गुजरात के स्वास्थ्य विभाग ने निजी लैब को ऐसे मरीजों का टेस्ट करने की अनुमति तो दे दी जिनका इलाज चल रहा है लेकिन इसके साथ ही एक शर्त जोड़ दी गई कि किसी भी मरीज के टेस्ट से पहले लैब को चीफ डिस्ट्रिक हेल्थ ऑफिसर या स्वास्थ्य विभाग के मेडिकल ऑफिसर की अनुमति लेना जरूरी होगा.

अहमदाबाद में इसका मतलब था सोला सिविल हॉस्पिटल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट की अनुमति लेना.

29 मई को गुजरात हाई कोर्ट ने एक पीआईएल पर स्वत: संज्ञान लेते हुए आदेश दिया कि डॉक्टरों को अधिकारियों से अनुमति लेने की जरूरत नहीं है और उन्हें केवल इसकी सूचना देनी होगी.

अहमदाबाद हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. भारत गांधवी कहते हैं, ‘किससे अनुमति लेनी इसको लेकर भ्रम की स्थिति और अनुमति मिलने में देरी के कारण यह आशंका रहती थी कि संक्रमित मरीज के परिजन सुपर स्प्रेडर बन जाएंगे.’

बैकलॉग के कारण उन रोगियों के लिए तमाम मुश्किलें खड़ी हो गईं जो सर्जरी और इलाज का इंतजार कर रहे थे.

ऑन्कोलॉजी सर्जन डॉ. वीरेन शाह कहते हैं, ‘कैंसर के मरीज की प्रतिरोधक क्षमता तो वैसे ही कम हो जाती है और उनके कोविड-19 के परीक्षण की जरूरत पड़ती है. अगर वह पॉजिटिव पाए गए तो बीमारी और मृत्यु की आशंका 20-30 फीसदी बढ़ जाती है.’

इसके अलावा कोविड-19 के स्थिति के बारे में जानकारी न होने पर स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए भी खतरा बना रहता है. शहर में करीब दो सौ डॉक्टर पॉजिटिव पाए गए हैं और चार की मौत भी हो चुकी है.

इस क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि कोर्ट के आदेश ने स्थिति में थोड़ा सुधार किया है.

एक निजी कोविड-19 अस्पताल के निदेशक ने कहा ‘कोर्ट के आदेश के बाद स्थितियां कुछ बदली हैं. पहले हमें कोरोना के लक्षण वाले किसी मरीज के टेस्ट की अनुमति लेने में 3-4 दिन लगते थे. अब हमें अनुमति की जरूरत नहीं होती केवल एक मेल लिखना होता है.’

‘पिछले तीन दिन में हमने 15-20 मरीजों का टेस्ट किया जो पहले की स्थिति में एक हफ्ते से पहले नहीं हो पाता.’

अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के स्पेशल ऑफिसर ऑन ड्यूटी डॉ. मनीष कुमार ने कहा, यह भी बिना चेतावनी नहीं हुआ कि अगर कोई सिम्पटमैटिक मरीज अगर टेस्ट कराना चाहता है तो निजी अस्पताल में भर्ती हो जाए और फिर उसका टेस्ट हो जाए जैसा उन लोगों के मामले में होता है जिन्हें सरकारी अस्पतालों की तरफ से टेस्ट के लिए रेफर किया जाता है और रिपोर्ट आने तक उन्हें कोविड संदिग्ध वार्ड में रखा जाता है.

निजी भागीदारी बढ़ाने में देरी

राज्य सरकार ने निजी अस्पतालों, खासकर अहमदाबाद में, की मदद लेने में काफी सुस्ती दिखाई थी. 15 मई के बाद ही जाकर अहमदाबाद म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने 42 निजी अस्पतालों को कोविड-19 मरीजों के इलाज के लिए सूचीबद्ध किया था. यह आंकड़ा अब बढ़कर 60 हो गया है.

अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के स्पेशल ऑफिसर ऑन ड्यूटी कुमार ने बताया कि इन अस्पतालों ने 50 फीसदी बेड ऐसे मरीजों के लिए आरक्षित कर दिए हैं जो सिविक बॉडी की तरफ से रिफर किए जाएंगे. इसके साथ ही बेड की कुल क्षमता पहले के 1000 के मुकाबले बढ़कर 3000 हो गई है.

कुमार ने दिप्रिंट को बताया, इन निजी अस्पतालों में अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन के लिए निर्धारित बेड में 750 मरीजों का इलाज हो रहा है.

लेकिन मामले बढ़ रहे हैं और इससे निजी अस्पतालों के लिए भी चुनौतियां बढ़ रही हैं.

एक जून को जब दिप्रिंट जुहापुरा के एक निजी अस्पताल, जिसे हाल ही में कोविड अस्पताल बनाया गया था, में पहुंचा तो पाया कि इसके सभी 50 बेड भर चुके थे.

अस्पताल के बाहर दिप्रिंट ने पाया कि 60 वर्षीय एक बुजुर्ग एक टेम्पो में पीछे लेटी थी, उसे सांस लेने में दिक्कत हो रही थी और उसके परिजन आसपास खड़े थे. उसके एक परिजन ने कहा, हम एक घंटे से इंतजार कर रहे हैं लेकिन अस्पताल में कोई बेड नहीं है.

अस्पताल के सीईओ ने द प्रिंट को बताया कि उनके पास मरीजों को लौटाने के अलावा कोई चारा नहीं है. सीईओ ने कहा, ‘हर दिन यहां पर 2-3 मरीजों की मौत हो रही है, ज्यादातर में कारण यह है कि उनका ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल पहले से ही बहुत कम है और उन्हें बचाया नहीं जा सकता.’

जुहापुरा के कांग्रेस पार्षद मिर्जा हाजी असरार बेग, जिनके पास बेड का इंतजाम कराने के लिए लोगों के फोन आते रहते हैं, कहते हैं कि अस्पतालों से मरीजों को लौटाया जाना आम बात है.

उन्होंने बताया, स्पष्ट रूप से और बेड की जरूरत होने के बावजूद प्रशासन ने अब तक 700 बेड क्षमता वाले वी.एस. हॉस्पिटल, जो एसवीपी हॉस्पिटल के ही कैंपस में है, को नहीं खोला है, जबकि गुजरात हाई कोर्ट भी इस बारे में विचार करने का सुझाव दे चुका है.

अहमदाबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन का कहना है कि उसके पास इस अस्पताल को संचालित करने के लिए पर्याप्त स्टाफ नहीं है.

बेड की कमी का ही नतीजा है कि अहमदाबाद से 40 किलोमीटर दूर स्थित ढोलका के लोगों को इलाज के लिए बड़ौदा का रुख करना पड़ रहा है जो वहां से 114 किलोमीटर दूर है. क्षेत्र के कांग्रेस पार्षद हनीफ खान मुंशी कहते हैं कि बड़ौदा में बेड उपलब्ध हैं और इलाज की सुविधा भी बेहतर है लेकिन मरीजों के सामने एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल का चक्कर लगाने की मजबूरी नहीं होनी चाहिए.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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