उत्तरकाशी: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में 10 दिन पहले निर्माणाधीन सिल्क्यारा सुरंग के एक हिस्से के ढहने से उसमें फंसे 41 मज़दूरों को निकालने के लिए युद्ध स्तर पर जारी है.
हालांकि, विभिन्न बाधाओं के बीच रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है, फंसे हुए लोगों तक खिचड़ी और दाल जैसी खाने-पीने की चीज़ें भेजी जा रही हैं.
सिल्क्यारा सुरंग उत्तरकाशी और यमुनोत्री को जोड़ने वाली केंद्र की महत्वाकांक्षी चार धाम परियोजना का हिस्सा है.
बचाव स्थल पर सोमवार को दिप्रिंट से विशेष रूप से बातचीत करते हुए, उत्तरकाशी के जिला मजिस्ट्रेट अभिषेक रुहेला ने कहा कि सुरंग ढहने के कारण के बारे में कुछ भी कहना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन उन्होंने कहा, “गलतियां किसी से भी हो सकती हैं.”
उन्होंने सुरंग में संभावित खराबी, हिमालय क्षेत्र में काम करने की चुनौतियों और रेस्क्यू ऑपरेशन के बारे में बात की.
सुरंग के ढहने का मुख्य कारण क्या हो सकता है?
अभी के लिए ऐसा कोई विशेष कारण नहीं है क्योंकि जांच पड़ताल अभी की जा रही है. राज्य की पूरी मशीनरी का ध्यान रेस्क्यू ऑपरेशन पर है. जब तक हम मिशन पूरा नहीं कर लेते, बाद की चीज़ों पर कुछ भी कहना मुश्किल होगा.
रेस्क्यू ऑपरेशन की वर्तमान स्थिति क्या है?
12 नवंबर को घटना होने के तुरंत बाद जिला प्रशासन को सूचना मिलते ही रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हो गया था. एक घंटे के अंदर हमारी पूरी मशीनरी, राज्य आपदा मोचन बल (एसडीआरएफ), राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ), पुलिस और जिला प्रशासन सभी यहां पहुंच गए थे. तभी से ये रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है. लगातार अलग-अलग समाधान ढूंढे जा रहे हैं. काम चुनौतीपूर्ण है और शुरुआती दौर में हमें सफलता नहीं भी मिली, लेकिन अब हमने विशेषज्ञों की राय से कुछ ऑप्शन शॉर्टलिस्ट किए हैं और उन पर काम किया जा रहा है.
क्या कंपनी (सुरंग का निर्माण कार्य) या अन्य स्टेकहॉल्डर्स की ओर से कोई चूक हुई थी?
मैं अभी किसी भी तरह का कोई बयान नहीं दे सकता क्योंकि जांच अभी पूरी नहीं हुई है. मैं फिर से कह रहा हूं कि हम अंदर फंसे लोगों को बचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है और हम एक टीम के रूप में काम कर रहे हैं और इस ऑपरेशन में न केवल NHIDCL (राष्ट्रीय राजमार्ग और बुनियादी ढांचा विकास निगम) बल्कि अन्य एजेंसियां भी शामिल हैं. वे अपना इनपुट दे रहे हैं और रेस्क्यू में भी मदद कर रहे हैं.
गढ़वाल हिमालय की भूभौतिकीयता बरकरार रहे यह सुनिश्चित करने के लिए क्या सावधानियां बरती गई हैं?
गढ़वाल और हिमालयी क्षेत्र संवेदनशील भूभाग वाले हैं. मिट्टी और पत्थरों के स्तर में भिन्नताएं होती हैं, जिससे चुनौतियां आती हैं. कहीं न कहीं हमें यह स्वीकार करना होगा कि यह पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र है और परियोजनाओं के दौरान इन सभी कारकों को ध्यान में रखा जाता है. जब ऐसे मेगा प्रोजेक्टस शुरू किए जाते हैं, तो जियोलॉजिकल जांच की जाती है और सेफगार्ड्स लगाए जाते हैं, लेकिन कभी-कभी दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं. हम ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए यहां मुस्तैद हैं और हम इस मिशन के लिए आवश्यक सभी विशेषज्ञों को यहां ला रहे हैं. संसाधनों की मूवमेंट हो रही है और बहुत सारा सामान एयरलिफ्ट भी करवाया गया है. सरकार कहीं कोई कसर नहीं छोड़ रही है. सीएम (पुष्कर सिंह धामी) भी स्थिति की निगरानी कर रहे हैं और उन्होंने इस काम को जल्द तकनीकी और सुरक्षित तरीके से करने के निर्देश दिए हैं. वरिष्ठ अधिकारियों और रैंक स्तर के अधिकारियों ने यहां का दौरा किया है और सचिव स्तर के अधिकारी यहां तैनात हैं.
नौ दिन हो गए हैं और हमारे पास बहुत सारी एजेंसियां और अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ हैं, लेकिन फिर भी मज़दूरों को बचाने में इतना समय क्यों लग रहा है?
किसी भी प्रकार की आपदा से उबरने में कितना समय लगेगा यह पहले से पता नहीं होता है. हम केवल रिस्पांस टाइम को कम करने की कोशिश कर सकते हैं. दूसरा, हमें तुरंत रिस्पांस के लिए आवश्यक संसाधन या उपकरण लाने होंगे और सबसे अच्छी सलाह को मानना होगा. हम उम्मीद कर रहे हैं कि ये सभी चीज़ें जल्द ही होंगी, ताकि हम मज़दूरों को जल्दी से निकाल सकें और उन्हें उनके परिवारों से मिला सकें.
क्या मज़ूदरों के परिवारों का दबाव है? उन्हें कैसे संभाला जा रहा है?
सबसे पहले राज्य और केंद्र सरकार की ओर से उनके परिवारों से संपर्क किया गया. पहले दिन सभी के नंबर उपलब्ध नहीं थे और प्रशासन से संपर्क कर नंबर लेने में समय लग गया. अच्छी बात यह रही कि सभी राज्यों ने अपने यहां नोडल अधिकारी नियुक्त किए थे, जिनमें से कुछ ने यहां का दौरा भी किया था और उन्होंने मज़दूरों से स्थानीय भाषा में बात की, जिससे हमें बहुत मदद मिली, जिससे उनका मनोबल बढ़ा. उनकी कुशलता का संदेश उनके परिजनों तक पहुंच गया है.
जिला प्रशासन ने यहां आए परिवारों से संपर्क करने के लिए अधिकारियों को तैनात किया है. मैंने स्वंय भी उनसे मुलाकात की है. राज्य सचिव ने भी उनसे बात की है और उनकी सभी ज़रूरतों का ध्यान रखा जा रहा है. हम उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि उन्हें दृढ रहना है और उनके आत्मविश्वास से अंदर फंसे लोगों को मज़बूती मिलेगी.
अंदर फंसे 41 मज़दूरों की हेल्थ कैसी है?
यहां एक अस्थायी क्लिनिक है. रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे लोगों को भी सेवाएं दी जा रही हैं और हम मज़दूरों की भी यहां तैनात डॉक्टरों से बात कराते हैं. आवश्यकतानुसार चिकित्सकों को भी बुलाया जाता है, यदि कोई बीमारी की सूचना मिलती है तो मज़दूरों को मेडिकल मदद और गाइडेंस दिया जाता है.
चारधाम प्रोजेक्ट इतना ज़रूरी क्यों है? पर्यावरणविद और भूवैज्ञानिकों ने बार-बार इस पर सवाल उठाए हैं और फिर भी यह काम लगातार जारी है. आमतौर पर हर सुरंग में जो एक्जिट गेट्स मौजूद होते हैं क्या वो यहां थे?
यह फैसला डिज़ाइनरों को लेना है. तकनीकी फैसले काफी स्टडीज़ के बाद लिए जाते हैं. इसमें विशेषज्ञ भी शामिल हैं. कभी-कभी कुछ आपदाओं के कारण विकास के कार्य नहीं रुक सकते हैं और यहां के लोगों की भी अपनी ज़रूरतें हैं. सीमावर्ती (चीन का) जिला होने के कारण उत्तरकाशी की अपनी चुनौतियां हैं. इसलिए, इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए, फैसले बहुत उच्च स्तर पर लिए जाते हैं और मुझे नहीं लगता कि हम इतने बुद्धिमान हैं कि उन पर सवाल उठा सकें.
(संपादन: अलमिना खातून)
(इस इंटरव्यू को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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