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Sunday, 22 December, 2024
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कैसी होती थी डायनासोर मां- MP में मिले टाइटेनोसॉर के अंडे क्रेटेशियस पैरेंटिंग का करेंगे खुलासा

शोधकर्ताओं की एक टीम ने मध्यप्रदेश में पृथ्वी पर घूमने वाले सबसे बड़े डायनासोरों में से एक टाइटनोसॉरस के 92 नेस्टिंग साइट को खोज निकाला है.

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नई दिल्ली: मध्य प्रदेश के धार जिले में एक फॉसिल हैचरी से खोजे गए 250 से ज्यादा डायनासोर के अंडों से टाइटनोसॉर के बारे में काफी रोमांचक जानकारी सामने आई हैं. टाइटनोसॉर विलुप्त होने से ठीक पहले कभी नर्मदा घाटी में घूमा करते थे.

दिल्ली यूनिवर्सिटी (डीयू) और भोपाल में भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आईआईएसईआर) के शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा किए गए इस अध्ययन को पीयर-रिव्यूड साइंटिफिक जर्नल PLOS One में बुधवार में प्रकाशित किया गया था. यह खोज न सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप में टाइटनोसॉरस के जीवन के बारे में बल्कि आसपास के परिदृश्य की विशेषताओं के बारे में भी नई जानकारी का खुलासा कर रही है.

शोधकर्ताओं ने नर्मदा घाटी के लामेटा फॉर्मेशन में अपना फील्ड वर्क को अंजाम दिया था. इस दौरान उन्हें टाइटनोसॉरस से संबंधित कुल 256 जीवाश्म अंडों वाले 92 नेस्टिंग साइट पता चला. आपको बता दें कि टाइटनोसॉरस ग्रह पर घूमने वाले सबसे बड़े डायनासोरों में से थे.

लामेटा फॉर्मेशन मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र में एक तलछटी भूगर्भीय बेल्ट है. इस क्षेत्र को लगभग 101 से 66 मिलियन वर्ष पूर्व तक फैले लेट क्रेटेशियस पीरियड के जीवाश्म प्राप्त करने के लिए जाना जाता है.

अनुसंधान दल ने मध्य प्रदेश के धार जिले में दिसंबर 2017, जनवरी 2018 और मार्च 2020 में बड़े स्तर पर फील्ड वर्क किया था. उन्होंने अपने शोध से जुड़े आकड़ों को अखाड़ा, ढोलिया रायपुरिया, झाबुआ, जमनियापुरा और पाडल्या से इक्ट्ठा किया.

लेकिन उनका ये सफर इतना आसान नहीं था. इस दौरान शोधकर्ताओं को कई चुनौतियों से भी जूझना पड़ा. इसमें अखाड़ा के रहने वाले लोगों का विरोध भी शामिल था, जो टीम को अपना फील्ड वर्क पूरा नहीं करने दे रहे थे.

टीम ने इन पांच इलाकों से कुल 92 अंडों के क्लच को खोज निकाला और छह अलग-अलग ओएसिसिस (oospecies)अंडे-प्रजातियों की पहचान की. इससे पता चला कि इस क्षेत्र में पाए गए कंकाल अवशेषों से अब तक जो भी अनुमान लगाया गया था, वह अपने आप में काफी सीमित था. इस इलाके में टाइटनोसॉरस की कई प्रजातियां मौजूद थीं.

दिल्ली विश्वविद्यालय की एक शोधकर्ता हर्षा धीमान ने दिप्रिंट को बताया, ‘संख्या के लिहाज से देखा जाए तो यह अंडों का एक बड़ा गुच्छा है. सिर्फ पांच इलाकों से हमें 256 अंडों के अवशेषों वाले 92 घोंसले मिले हैं. ’ यह शोध धीमान के पीएचडी का हिस्सा था.

खोज के पीछे शोधकर्ताओं की टीम | फोटोः हर्ष धीमान

ये फॉसिल नेस्ट इतिहास के कुछ सबसे बड़े डायनासोरों के बारे में डेटा का एक बड़ा खजाना लेकर आए हैं. हो सकता है कि अब डायनासोर की प्रजनन आदतों का पता लगाना थोड़ा मुश्किल हो जाए. आंकड़े लगभग 65 मिलियन वर्ष पहले डायनासोरों के लुप्त होने से कुछ समय पहले के हैं.


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‘दुनिया की सबसे बड़ी डायनासोर हैचरी में से एक’

घोंसलों के लेआउट के आधार पर धीमान ने अनुमान लगाया कि डायनासोर अपने अंडे उथले गड्ढों में दबा दिया करते थे. ठीक ऐसा ही आधुनिक मगरमच्छ किया करते है.

कुल मिलाकर टीम ने इस क्षेत्र में पाए गए तीन अलग-अलग प्रकार के अंडे के गुच्छों (क्लच) का दस्तावेजीकरण करने में सफलता पाई है.

सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण क्लच का आकार गोला था, जिसमें लगभग चार से छह अंडे बेतरतीब ढंग से एक गड्ढे में रखे गए थे. इनके बीच काफी जगह थी.

लेखकों ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि इस तरह के क्लच की पहचान पहले स्पेन, अर्जेंटीना और फ्रांस में की गई थी.

दूसरा क्लच की किस्म को एक कंबीनेशन टाइप कहा जा सकता है. इसमें अंडे उथले गड्ढों में काफी पास-पास रखे गए थे. तीसरा एक लिनियर टआइप था, जिसमें अंडे एक पंक्ति में एक दूसरे के करीब स्थित थे.

एक ही क्षेत्र में कई घोंसलों के होने से पता चलता है कि डायनासोरों अपना नेस्ट बनाने के लिए कई आधुनिक पक्षियों की तरह व्यवहार किया करते थे.

शोधकर्ताओं ने नोट किया कि घोंसलों का इतना पास-पास होना वयस्क डायनासोर के लिए बहुत कम जगह छोड़ता है. लेकिन उन्हें इस क्षेत्र में वयस्कों या किशोर डायनासोर के जीवाश्म अवशेष नहीं मिले थे. ये दोनों निष्कर्ष इस विचार का समर्थन करते हैं कि डायनासोर ने अंडो को खुद से सेने के लिए छोड़ दिया था, जो कि कुछ उभयचरों में देखा जाने वाला व्यवहार है.

शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में लिखा है कि यह भी संभव है कि डायनासोर की हड्डियां कहीं दबी पड़ी हो और किसी दिन उन्हें खोज लिया जाए.

शोधकर्ताओं को ऐसे कई अंडे भी मिले जिनकी ऊपरी सतह गायब थी. संभावना है कि इस जगह से बच्चा इस कवच से बाहर निकला हो.

अपने इस शोध में शोधकर्ताओं को ‘अंडे में अंडे’ का एक दुर्लभ मामला भी मिला है. अंडों में पाई जाने वाली पैथोलोजी इस बात की ओर इशारा करती है कि टिटानोसॉर सरूपोड्स में एक प्रजनन शरीर विज्ञान था जो पक्षियों के समानांतर था. उन्होंने संभवतः अपने अंडे क्रमबद्ध तरीके से रखे जैसा कि आधुनिक पक्षियों में देखा जाता है.

हैच करने के लिए रखे गए कुछ अंडे काफी गहराई में भी दबे हुए मिले थे. चट्टानों पर किए गए आगे के अध्ययनों के आधार पर शोधकर्ताओं का कहना है कि हो सकता है कि इस क्षेत्र में पुराने समय में एक नदी बहती हो.

कुछ अंडे तलछट में भी दिए गए थे. इस जगह को देखने में ऐसे लगता है जैसे यह कभी छोटा तालाब या झील रही होगी. कभी-कभी, कुछ अंडे इन जल निकायों में पूरी तरह से डूब गए होंगे जिसकी वजह से अंडो की हैचिंग नहीं हो पाई.

धीमान के पीएचडी गाइड और रिसर्च टीम के लीडर गुंटुपल्ली वी.आर. प्रसाद ने कहा, ‘पूर्व में ऊपरी नर्मदा घाटी में जबलपुर से डायनासोर के नेस्ट और पश्चिम में बालासिनोर (गुजरात) के साथ मध्य प्रदेश में धार जिले से नए नेस्ट साइट लगभग 1,000 किमी के पूर्व-पश्चिम खंड को कवर करते हैं. यह दुनिया में सबसे बड़ी डायनासोर हैचरी में से एक है.’

धीमान ने कहा कि वह आने वाले समय में इन इलाकों के अपने अध्ययन में वयस्क डायनासोर की हड्डियों या दांतों को खोजने की उम्मीद कर रही हैं. इससे उन्हें उन डायनासोर उन प्रजातियों की पहचान करने में मदद मिलेगी जिन्होंने संभवतः इन अंडों को दिया होगा.

धीमान ने कहा ,‘चूंकि यह मेरा पीएचडी का काम था. मेरे पास पूरे अंडों का सीटी स्कैन करने के लिए संसाधन नहीं थे,’. उन्हें उम्मीद है कि भविष्य में अंडों के सीटी स्कैन से भारत में टाइटनोसॉरस के बारे में और जानने में मदद मिलेगी.

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादनःआशा शाह)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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