बेंगलुरु: राज्यसभा सांसद और धर्मस्थल मंदिर के धर्माधिकारी वीरेंद्र हेगड़े के खिलाफ कोई भी खबर प्रकाशित करने पर रोक लगाने वाला आदेश देने वाले जज ने “सामूहिक दफन” से जुड़े मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया है.
यह फैसला तब लिया गया जब एक प्रतिवादी, जो मीडिया प्रोफेशनल हैं, ने जज विजय कुमार राय बी के याचिकाकर्ता हर्षेंद्र कुमार के परिवार से संबंधों पर सवाल उठाया.
बेंगलुरु की 10वीं अतिरिक्त सिटी और सिविल सेशंस कोर्ट के जज विजय कुमार राय बी ने वीरेंद्र हेगड़े के भाई हर्षेंद्र कुमार द्वारा दायर मामले को आवश्यक आदेश के लिए प्रिंसिपल सिटी सिविल सेशंस जज के पास भेज दिया है. यह जानकारी दिप्रिंट द्वारा एक्सेस किए गए कोर्ट दस्तावेज़ों से मिली है.
वरिष्ठ पत्रकार नवीन सूरांजे, जिन्होंने व्यक्तिगत स्तर पर कोर्ट का रुख किया, ने बताया कि विजय कुमार 1995 से 1998 के बीच धर्मस्थल मैनेजमेंट द्वारा संचालित एसडीएम लॉ कॉलेज के छात्र थे. अपने वकील को लिखे पत्र में पत्रकार ने यह भी बताया कि जज ने एक वरिष्ठ वकील के अधीन वकालत की थी, जो याचिकाकर्ता के परिवार की ओर से पेश हुए थे.
“मेमो और उसके साथ संलग्न पत्र के गुण-दोष पर कुछ कहे बिना, यह तथ्य है कि लगभग 25 साल पहले इस अदालत के प्रेसीडिंग ऑफिसर, वादी के परिवार द्वारा संचालित एसडीएम लॉ कॉलेज के छात्र थे,” जज विजय कुमार ने अपने दैनिक आदेशों में कहा.
शहर सिविल कोर्ट के प्रेसीडिंग ऑफिसर ने कहा, “उन्होंने कभी वादी को न देखा है, न ही उनसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी समय बात की है.” जज ने आगे कहा कि उनका कोई व्यक्तिगत हित नहीं है.
अगली सुनवाई 5 अगस्त को होगी.
ऐसे कई मामले हैं जो मीडिया प्लेटफॉर्म और अन्य लोगों ने दायर किए हैं, जिन्होंने जुलाई में हर्षेंद्र कुमार को दिए गए निषेधाज्ञा आदेश को चुनौती दी है. यह आदेश सामूहिक दफन, हत्या और बलात्कार के आरोप सामने आने के बाद जारी किया गया था.
जुलाई में, एक आदेश पारित हुआ जिसमें 300 से अधिक मीडिया चैनल, कार्यकर्ता और अन्य लोगों को धर्मस्थल कस्बे में कथित सामूहिक दफन, बलात्कार और हत्या की खबरों से जुड़े करीब 9,000 लिंक हटाने का आदेश दिया गया था. प्रतिवादियों ने राहत के लिए पहले सुप्रीम कोर्ट और फिर कर्नाटक हाईकोर्ट का रुख किया.
शुक्रवार को, कर्नाटक हाईकोर्ट ने कुडला रैंपेज नामक एक यूट्यूब चैनल पर लगी पाबंदी हटाकर एकतरफा आदेश को आंशिक रूप से रद्द कर दिया.
जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा दिया गया आदेश “एक व्यापक अनिवार्य निषेधाज्ञा” था. 1 अगस्त को दिए गए आदेश में जस्टिस नागप्रसन्ना ने कहा कि ‘जॉन डो/अशोक कुमार’ आदेश का इस्तेमाल “बहुत सावधानी और विवेकपूर्ण दृष्टिकोण” के साथ किया जाना चाहिए.
“आदेश में मानहानिपूर्ण बयानों पर रोक की बात की गई है. अदालत ने किस तरह के बयानों को मानहानिपूर्ण माना है, इस बारे में आदेश में एक शब्द भी नहीं है. जो अंतिम राहत दी गई है, उसके लिए कोई ठोस कारण नहीं दिया गया है,” आदेश में कहा गया है.