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Saturday, 16 November, 2024
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IAS अधिकारियों के अप्रेजल का अधिकार चाहने वाले धामी के मंत्री का दावा- आदेशों की अनदेखी की जाती है

उत्तराखंड के मंत्री सतपाल महाराज का कहना है कि सिविल सेवकों का एसीआर लिखना और संशोधित करना ‘मंत्री का अधिकार’ है. मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव से उन राज्यों की व्यवस्था का आकलन करने को कहा है जहां पर मंत्री इस प्रक्रिया में शामिल होते हैं.

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देहरादून: पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली उत्तराखंड कैबिनेट में शामिल ऐसे मंत्रियों की संख्या बढ़ती जा रही है जो अपने अधीन काम कर रहे सिविल सेवकों के वार्षिक मूल्यांकन-जिसे वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) कहा जाता है—में अपनी राय रखने का अधिकार चाहते हैं. इस कदम को सरकार में अपना अधिकार मजबूत करने की कोशिश माना जा रहा है.

राज्य में यह मांग सबसे पहले मंत्री सतपाल महाराज ने उठाई थी. दो मंत्रियों ने जहां अपने सबसे वरिष्ठ कैबिनेट सहयोगी महाराज की मांग का समर्थन करने की पुष्टि की, वहीं एक तीसरे मंत्री ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि ‘इस मुद्दे पर सभी मंत्री एकमत हैं.’ मंत्री ने कहा, ‘कुछ मंत्री इस मुद्दे पर सार्वजनिक तौर पर बोलने को तैयार है, जबकि कुछ अन्य जो इसके लिए तैयार नहीं है, वे भी उचित मंच पर अपनी राय रखेंगे.’

मंत्री चाहते हैं कि मुख्यमंत्री धामी उन्हें अपने अधीन विभागों में काम कर रहे सचिवों और भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अन्य शीर्ष अधिकारियों की एसीआर लिखने या उसमें संशोधन करने का अधिकार प्रदान करने का रास्ता निकालें.

कुछ मंत्रियों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि यदि मुख्यमंत्री उन्हें एसीआर को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में शामिल करने में विफल रहते हैं, तो वे अपनी मांग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के सामने रख सकते हैं. साथ ही जोड़ा कि अगर जरूरत हो तो सरकार को इस संबंध में कानून में संशोधन करना चाहिए.

राज्य सचिवालय के अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि उत्तराखंड (जिसे 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग करके राज्य बनाया गया था) के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री और दिवंगत कांग्रेस नेता एन.डी. तिवारी के कार्यकाल में 2007 तक यही व्यवस्था थी कि सिविल सेवकों के एसीआर के लिए संबंधित मंत्री ही एकमात्र स्वीकृति प्राधिकारी (निर्णायक अधिकारी) होता था.

हालांकि, तिवारी के बाद सत्ता में आए भाजपा नेता बी.सी. खंडूरी अखिल भारतीय सेवा (प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट) नियम, 2007 के तहत 2008 में एक सरकारी आदेश (जीओ) लाए कि विभागीय सचिवों और उच्च पदासीन अधिकारियों की एसीआर सीधे तौर पर मुख्यमंत्री की निगरानी में तैयार होगी. अधिकारियों ने बताया कि आज भी यही व्यवस्था चल रही है.

2007 के नियमों की संकल्पना केंद्र ने अखिल भारतीय सेवा अधिनियम, 1951 के तहत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राज्य सरकारों के परामर्श से की थी.

धामी ने 31 मार्च को राज्य के मुख्य सचिव एस.एस. संधू को निर्देश दिया कि अन्य राज्यों के बारे में जानकारी एकत्र करें, कहां मंत्रियों को सिविल सेवकों के वार्षिक मूल्यांकन का अधिकार मिला हुआ है, और किन कानूनों के तहत.

दिप्रिंट ने फोन कॉल और मैसेज के जरिये इस मुद्दे पर संधू की प्रतिक्रिया हासिल करने की कोशिश की लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है.

क्या होती है एसीआर, और प्रक्रिया क्या है?

एसीआर सिविल सेवकों के कामकाज की वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट होती है.

उत्तराखंड सरकार के कार्मिक विभाग में अतिरिक्त सचिव एस.एस. वाल्डिया ने दिप्रिंट को बताया कि ‘आईएएस अधिकारियों, खासकर सचिवों का वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन चार चरणों की पूरी प्रक्रिया है.’

वाल्डिया ने बताया, ‘यह प्रक्रिया संबंधित अधिकारियों की स्व-मूल्यांकन रिपोर्ट के साथ शुरू होती है. इसके बाद, प्रमुख सचिव की तरफ से इसकी समीक्षा जाती है, जो विभागीय सचिवों के रिपोर्टिंग अधिकारी होते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इसके बाद, समीक्षा अधिकारी के तौर पर अतिरिक्त मुख्य सचिव या सीधे मुख्य सचिव द्वारा एसीआर की जांच की जाती है. फिर यह रिपोर्ट मुख्यमंत्री तक पहुंचती है, जो इसे स्वीकृति देने वाले अधिकृत प्राधिकारी है.’

वाल्डिया ने कहा, ‘प्रमुख सचिवों के मामले में भी इसी तरह की प्रक्रिया अपनाई जाती है, जिनके रिपोर्टिंग अधिकारी अतिरिक्त मुख्य सचिव होते हैं, जबकि समीक्षा अधिकारी मुख्य सचिव होते हैं और सीएम स्वीकृति देने वाले प्राधिकारी होते हैं.’

‘यह मंत्रियों का अधिकार है’

राज्य के पर्यटन और पीडब्ल्यूडी मंत्री सतपाल महाराज ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि सचिवों और अन्य शीर्ष आईएएस अफसरों की एसीआर लिखना और संशोधित करना ‘एक मंत्री का अधिकार है, लेकिन उत्तराखंड में यह प्रक्रिया नहीं अपनाई जा रही है.’

उन्होंने कहा, ‘यही वजह है कि जब हमारी तरफ से सुझाए गए विचार और योजनाओं को लागू करने की बात आती है तो नौकरशाह अक्सर अपने मंत्रियों की अनदेखी कर देते हैं. दिवंगत मुख्यमंत्री एन.डी. तिवारी के शासनकाल में यह व्यवस्था लागू रही थी लेकिन बाद में इसे खत्म कर दिया गया, यह राज्य में नौकरशाही के दबदबे के कारण हुआ.’

महाराज ने कहा कि मंत्री ‘अपने अधिकारियों के प्रदर्शन के बारे में किसी और से बेहतर जानते हैं.’

सतपाल महाराज के मुताबिक, कई अन्य राज्यों में मंत्री ही सचिवों की एसीआर लिखते हैं.

इसी तरह की राय धामी कैबिनेट की एक अन्य वरिष्ठ मंत्री रेखा आर्य ने भी जताई.

उन्होंने कहा, ‘सतपाल महाराज ने जो कहा, मैं उससे पूरी तरह सहमत हूं. पता नहीं क्यों उत्तराखंड के मंत्री ही अपने अधीन काम करने वाले अधिकारियों की एसीआर न तो लिख पाते हैं और न ही उसमें कोई संशोधन कर पाते हैं.

उन्होंने कहा, ‘इस मुद्दे पर उनकी मांग और राय जायज है. आज, मंत्रियों को इस प्रक्रिया से बाहर रखा जाता है जबकि अधिकारियों के प्रदर्शन का आकलन उनसे बेहतर कोई नहीं कर सकता. मुख्यमंत्री इस मुद्दे से पूरी तरह अवगत हैं और इस पर उनका फैसला ही अंतिम होगा.

महिला अधिकारिता और बाल विकास मंत्री ने दिप्रिंट को आगे बताया, ‘अगर ऐसा होता है, तो नौकरशाही राज्य के विकास के लिए बेहतर तरीके से काम करेगी क्योंकि उन्हें मंत्रियों की तरफ से प्रतिकूल प्रतिक्रिया का डर बना रहेगा.’

समाज कल्याण, अल्पसंख्यक, परिवहन और एमएसएमई मंत्री चंदन राम दास भी चाहते हैं कि राज्य के कैबिनेट मंत्रियों को एसीआर पर टिप्पणी करने और संशोधित करने का अधिकार मिले.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘एसीआर मुद्दे पर महाराज ने जो कहा, मैं उसका समर्थन करता हूं. वह सबसे वरिष्ठ मंत्री हैं और उनके पास अच्छा-खासा अनुभव भी है. मंत्री लगातार सचिवों के संपर्क में रहते हैं और कोई भी उनसे बेहतर ढंग से उनके कामकाज का आकलन नहीं कर सकता.’

हालांकि, मंत्री धन सिंह रावत ने इस मुद्दे पर टिप्पणी से इनकार कर दिया. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मंत्रियों को पास अपने विवेकाधीन सभी अधिकार हैं, लेकिन एसीआर मुद्दे पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूंगा क्योंकि इस पर कुछ भी मुख्यमंत्री को ही तय करना है.’

नाम न छापने की शर्त पर एक मंत्री ने कहा कि एसीआर का मुद्दा एक ‘गंभीर मसला है क्योंकि यह राज्य के विकास में एक बाधा साबित होता है.’

मंत्री ने कहा, ‘आज सभी नौकरशाह, खासकर आईएएस अधिकारी मुख्यमंत्री की गुड बुक में रहना चाहते हैं और आसानी से अपना वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन या एसीआर करा लेते हैं. नतीजतन, वे अपने मंत्रियों की बात सुनने की जहमत तक नहीं उठाते. पिछले कार्यकाल में हमारी सरकार ने मंत्रियों को पूरी तरह दरकिनार करने वाले बाबुओं को खुली छूट दे रखी थी.’

‘मंत्रियों ने अधिकार गंवाया’

डिप्टी सेक्रेटरी-रैंक के एक अधिकारी ने अपना नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को समझाया कि कैसे कुछ मामलों में सचिवों और अन्य वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों की एसीआर में ‘मंत्रियों को अपनी टिप्पणी लिखने का अधिकार नहीं रहता’ है, खासकर शीर्ष अधिकारियों के मामले में, इन अधिकारियों के पास एक से अधिक विभागों की जिम्मेदारी होती है.

अधिकारी ने कहा, ‘इन अधिकारियों के तहत आने वाले एक या एक से अधिक विभाग मुख्यमंत्री के भी अधीन होते हैं. इस तरह, तकनीकी तौर पर वे मुख्यमंत्री के साथ-साथ मंत्रियों के दोहरे नेतृत्व में काम करते हैं. ऐसे में सभी सचिवों की एसीआर को मुख्यमंत्री की तरफ से लिखी जाती है.’

अपना नाम न छापने की ही शर्त पर बात करने वाले कार्मिक विभाग में कार्यरत एक अधिकारी ने कहा, ‘मंत्रियों को या तो उनके संबंधित सचिवों और प्रमुख सचिवों के स्वीकृति अधिकारी या समीक्षा अधिकारियों के तौर पर प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जा सकता है, जो उन्हें एसीआर में कोई संशोधन करने या अपनी टिप्पणी लिखने में सक्षम बनाएगा.’

हालांकि, सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) में संयुक्त सचिव ओंकार सिंह ने कहा कि इस व्यवस्था के लिए ‘एक नया कानून लाने या पिछले कानून में संशोधन की आवश्यकता होगी जिसे 2008-09 में बदल दिया गया था.’

सरकार के सूत्रों ने बताया कि पिछली कैबिनेट बैठक में एसीआर मुद्दे पर चर्चा हुई थी, जिसके बाद मुख्यमंत्री धामी ने मुख्य सचिव एस.एस. संधू ने उन राज्यों से कानूनी पहलुओं से जुड़ा ब्योरा जुटाने को कहा, जहां मंत्रियों को सिविल सेवकों की एसीआर की प्रक्रिया में शामिल रहने का अधिकार मिला हुआ है.

सतपाल महाराज ने कहा, ‘मुख्यमंत्री अन्य राज्यों के ऐसे सभी कानूनों के अध्ययन पर सहमत हो गए हैं, जहां सचिवों के एसीआर लिखने की प्रक्रिया में मंत्रियों की भी भूमिका होती है. इन कानूनों की गहन समीक्षा के बाद यह मसला हमेशा के लिए सुलझाने के लिए एक नया कानूनी ढांचा तैयार किया जाएगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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