पुणे: पिछले तीन महीनों से देश भर में चरणबद्ध लॉकडाउन के कारण महाराष्ट्र में लगभग साढ़े चार लाख घरेलू कामगार और उनके परिवार दो जून की रोटी के लिए तरस रहे हैं. राज्य के श्रम विभाग के इन आंकड़ों में एक बड़ी संख्या महिलाओं की है.
महाराष्ट्र के श्रम आयुक्त पंकज कुमार बताते हैं, ‘राज्य में करीब साढ़े लाख घरेलू कामगारों की संख्या रजिस्टर्ट की गई है. लॉकडाउन के कारण उन्हें आर्थिक तौर पर होने वाले नुकसान के बारे में सरकार सजग है. उन्हें वित्तीय मदद देने के लिए राज्य सरकार ने एक समिति भी बनाई है. समिति की सिफारिश आने के बाद ही शासन स्तर पर कोई निर्णय लिया जा सकता है.’
साथ ही, श्रम आयुक्त पंकज कुमार आश्वासन देते हुए यह भी कहते हैं कि घरेलू कामगारों की आर्थिक सहायता को ध्यान में रखते हुए सरकार जो निर्णय लेगी उसे अच्छी तरह से लागू कराया जाएगा.
हालांकि, यह भी सच है कि राज्य में घरेलू कामगारों के कल्याण के लिए एक कानून के अस्तित्व में होने के बावजूद सरकार ने अभी तक उन्हें ऐसी आपात स्थितियों में कोई राहत नहीं दी है.
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मुंबई और पुणे जैसे महानगरों में महिला कामगारों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो आवास परिसर में कपड़े व बर्तन धोने और फ्लैट या बंगलों आदि में साफ-सफाई करके अपना तथा अपने परिवार का जीवनयापन करती हैं. लेकिन, सामाजिक कार्यकर्ता वाल्मीकि निकालजे का कहना है, ‘लॉकडाउन और आम जनता में व्याप्त कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे के कारण पिछले महीनों में इन कामगारों को बड़ी संख्या में अपने रोजमर्रा के कामों से हाथ धोना पड़ा है. पर, सरकार की तरफ से इस तबके को ध्यान में रखते हुए अब तक राहत पैकेज को लेकर कोई घोषणा नहीं हुई.’
अहम बात है कि यह स्थिति राज्य में श्रमिक कल्याण और संरक्षण के लिए बने सशक्त कानून के बाद है.
दरअसल, राज्य सरकार ने घरेलू श्रमिकों के कल्याण के लिए 2008 में विधान-सभा में एक विधेयक पारित किया था. इस अधिनियम का नाम है- ‘महाराष्ट्र घरेलू कामगार कल्याण बोर्ड अधिनियम, 2008’. यह राज्यपाल की मंजूरी के बाद 2009 में अस्तित्व में आया.
इस अधिनियम में राज्य और जिला स्तर पर घरेलू कामगारों के लिए कल्याण बोर्ड की स्थापना का प्रावधान है. बोर्ड को अपने कार्य-क्षेत्र में घरेलू कामगारों को पंजीकृत करने और उन्हें पहचान-पत्र जारी करना होता है. इसके तहत राज्य में घरेलू कामगारों के कल्याण के लिए सरकार को अपने बजट में एक निश्चित राशि आवंटित करनी होती है.
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वहीं, इसके तहत घरेलू कामगारों से भी मामूली सदस्यता-शुल्क लिए जाने का प्रावधान है.
इस तरह, राज्य सरकार के अनुदान, लाभार्थियों की सदस्यता-शुल्क और बोर्ड द्वारा एकत्रित धन का उपयोग इन कामगारों की राहत के लिए किए जाने का प्रावधान है.
इस अधिनियम में यह उल्लेख किया गया है कि बोर्ड समय-समय पर कामगारों की दुर्घटना, आपातकालीन सहायता, चिकित्सीय उपचार और बीमारी की स्थिति में उनके आश्रितों को वित्तीय सहायता देगी.
इसके अलावा, इसके तहत सरकार कामगारों के उन बच्चों की शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर सकती है जिन्हें छंटनी के कारण अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा है.
लेकिन, बीते तीन महीनों के दौरान विशेष रूप से कामगारों के सामने आजीविका को लेकर विपरीत परिस्थितियां बनी रहने के बावजूद सरकारी स्तर पर इस दिशा में अभी तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है. एक घरेलू महिला कामगार गौरा कहती हैं, ‘मैं मार्च के दूसरे हफ्ते से खाली हाथ हूं. मुझे नहीं पता कि सरकार हमारे बारे में क्या सोचती है. लेकिन, अब तक हमारी मदद के लिए कोई आगे नहीं आया है.’
महाराष्ट्र के श्रम विभाग के अनुसार राज्य में 4.5 लाख पंजीकृत घरेलू कामगार हैं. राज्य के वरिष्ठ अधिकारी भी यह मानते हैं कि राज्य सरकार ने उनकी आर्थिक मदद करने के लिए एक समिति का गठन किया है. कारण, लॉकडाउन के चलते बड़ी संख्या में कामगारों ने अपनी नौकरी गंवाई है. हालांकि, अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि इस बारे में सरकार कब निर्णय लेगी.