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Friday, 10 May, 2024
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आजादी के तीन दशक पहले ही पिंगली वेंकैया ने देश के लिए झंडा बनाने का काम शुरु कर दिया था

1921 में पिंगली वेंकैया ने विजयवाड़ा में पहली बार महात्मा गांधी को राष्ट्रीय ध्वज का पहला प्रारुप पेश किया.

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भारत का झंडा देश की संप्रभुता, इसके इतिहास और संस्कृति का प्रतीक है. लेकिन, अभी तक हमें उस व्यक्ति के बारे में बहुत ही कम जानकारी है. जिसने तिरंगे को डिज़ाइन किया था. जिस व्यक्ति को इसका श्रेय दिया जाता है. उनका नाम पिंगली वेंकैया है.

भारत के 73वें स्वतंत्रता दिवस के मौके पर दिप्रिंट पिंगली वेंकैया के जीवन पर एक नज़र डाल रहा है और देश के प्रति उनके योगदान को याद कर रहा है.

महात्मा गांधी से म़ुलाकात

पिंगली वेंकैया का जन्म 2 अगस्त 1878 को आंध्रप्रदेश में हुआ था. उनकी शिक्षा केंब्रिज में हुई और भूविज्ञान, कृषि, शिक्षा और भाषा समेत उन्हें कई विषयों में रुचि थी.

द्वितीय बोअर युद्ध के दौरान दक्षिण अफ्रीका में वेंकैया की पहली बार महात्मा गांधी से मुलाकात हुई. उस समय पिंगली ब्रिटिश सेना में शामिल थे. भारत लौटने के बाद उन्होंने अपना सारा समय देश के राष्ट्र ध्वज को बनाने में लगा दिया. 1916 में उन्होंने एक बुकलेट प्रकाशित की जिसमें कई देशों के झंडे थे और कई झंडों के नमूने थे.

1921 में वेंकैया ने विजयवाड़ा में महात्मा गांधी से मुलाकात की और झंडे का प्रारंभिक स्वरुप उन्हें दिखाया. इस झंडे में दो रंग शामिल था. लाल और हरा जो हिंदू और मुसलमानों का प्रतीक था.

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लाला हसरंज की सलाह पर गांधी जी ने झंडे के प्रारंभिक स्वरूप में कुछ बदलाव किए. झंडे में सफेद रंग जो शांति का प्रतीक है, उसे जोड़ने को कहा और ध्वज के बीच में चरखा शामिल करने को कहा. गांधी चरखे को आत्मनिर्भरता से जोड़कर देखते थे.

एक रिपोर्ट के अनुसार गांधी अपने जर्नल यंग इंडिया में लिखा, ‘हमें देश के राष्ट्र ध्वज के लिए बलिदान को तैयार रहना चाहिए. पिंगली वेंकैया जो आंध्र नेशनल कॉलेज मछलीपट्टनम में काम करते थे. उन्होंने एक किताब प्रकशित की है जिसमें कई देशों के झंडे हैं और झंडों के कई नमूने भी हैं. राष्ट्र ध्वज को मान्यता दिलाने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सत्र के दौरान मैं उनके किए संघर्ष की सराहना करता हूं.’

जाने-माने इतिहासकार रामचन्द्र गुहा लिखते हैं, ‘कांग्रेस की एक समिति ने 1931 में झंडे में कई बदलाव किए. लाल रंग की जगह भगवा रंग को जोड़ा गया. भगवा रंग को सबसे ऊपर जगह दी गयी, सफेद रंग को बीच में रखा गया और हरे रंग को सबसे नीचे. चरखे को झंडे के मध्य में जगह दी गयी.’

इन बदलावों की सराहना करते हुए महात्मा गांधी ने कहा कि वो राष्ट्रीय ध्वज को अहिंसा और देश की एकता का प्रतीक मानते हैं. गांधी ने लिखा, ‘तिरंगा सभी धर्मों का प्रतिनिधित्व करता है.’

अशोक चक्र ने चरखे की जगह कैसे ली

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने कुछ बदलावों के साथ झंडे को स्वीकार कर लिया. आज़ादी मिलने के बाद राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय ध्वज समिति बनाई गई. इस समिति ने वेंकैया द्वारा प्रस्तुत तिरंगे को स्वीकृति दी लेकिन चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली. इस बदलाव को करने के लिये किसने सलाह दी थी ये अभी तक अस्पष्ट ही है.

हालांकि, लैला तैयाब जी लिखते हैं कि उनके अभिभावक बदरुद्दीन और सुरैया तैयाब जी ने अशोक चक्र के बारे में सलाह दी थी.

बहुमुखी वेंकैया के कई उपनाम थे

एक रोचक तथ्य ये है कि वेंकैया के कई उपनाम थे. राष्ट्रीय ध्वज की रचना करने के लिए उन्हें झंडा वेंकैया नाम दिया गया. जापानी भाषा का ज्ञान होने के नाते उन्हें जापानी वेंकैया का नाम भी दिया गया.

एक रिपोर्ट के अनुसार सूती कपड़े को लेकर वो लगातार शोध करते थे, जिस कारण उन्हें पट्टी वेंकैया या कॉटन वेंकैया भी कहा जाता था. उन्होंने कम्बोडियन कॉटन पर भी विस्तृत शोध किया था.

वेंकैया की विरासत को भुला दिया गया

आजादी के बाद पिंगली वेंकैया का देश के प्रति योगदान और राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण में उनके योगदान को इतिहास के कोने में भुला दिया गया. वेंकैया के पोते घंटशाला गोपी कृष्ण कहते हैं कि उनके दादा सच्चे देशभक्त थे. लेकिन आजादी के बाद उनके योगदान को भुला दिया गया. 4 जुलाई 1963 को बड़ी दयनीय हालत में वेंकैया का निधन हो गया.

वेंकैया की विरासत को 1992 में आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री एनटी रामाराव ने पुनर्जीवित किया. उन्होंने वेंकैया की मूर्ति को राज्य के 31 मुख्य प्रतिमाओं में शामिल किया जो हैदराबाद में स्थित है.

2009 में उनके नाम से डाक टिकट जारी किया. आंध्र प्रदेश सरकार ने 2014 में भारत रत्न के लिए उनके नाम की सिफारिश की थी. लेकिन, उस साल सरकार ने क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और वैज्ञानिक सीएनआर राव को भारत रत्न दे दिया था.

2015 में तत्कालीन शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने विजयवाड़ा के आकाशवाणी केंद्र का नाम बदलकर पिंगली वेंकैया के नाम पर रख दिया और उनकी एक मूर्ति भी स्थापित की.

वेंकैया का मानना था कि झंडे के प्रति सभी लोग अपना समर्पण दिखाए, उसका आदर करें. उनके अनुसार देश के लिए यह जरूरी है कि उसका एक झंडा हो जिसके तले पूरा राष्ट्र एक हो जाए जो त्याग, शांति ओर एकता का प्रतीक हो.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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