scorecardresearch
Thursday, 19 December, 2024
होमदेशप्रदर्शन, नाकाम वार्ताओं का दौर, हिंसा, मौतें—कृषि कानूनों पर मोदी सरकार के यू-टर्न से क्या-क्या हुआ

प्रदर्शन, नाकाम वार्ताओं का दौर, हिंसा, मौतें—कृषि कानूनों पर मोदी सरकार के यू-टर्न से क्या-क्या हुआ

कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों से घर लौटने की अपील की और कहा कि सरकार सभी मुद्दों के समाधान के लिए वैज्ञानिकों, किसान संगठनों और अधिकारियों की समिति गठित करेगी.

Text Size:

नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में घोषणा कर दी कि उनकी सरकार पिछले साल पारित तीनों कृषि कानूनों को रद्द कर देगी. गौरतलब है कि इन विवादास्पद कृषि कानूनों की वजह से देश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन का दौर शुरू हुआ और इसके विरोध में हजारों की संख्या में किसानों, खासकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के, ने राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर पिछले एक साल से डेरा डाल रखा है.

प्रधानमंत्री मोदी ने इन कानूनों को रद्द करने का ऐलान करते हुए आंदोलनकारी किसानों से अपने घरों को लौटने की अपील की. उन्होंने यह भी कहा कि उनकी सरकार किसानों को नुकसान पहुंचाने वाले सभी मुद्दों के समाधान के लिए एक समिति का गठन करेगी. समिति में वैज्ञानिकों, किसान संगठनों, राज्य और केंद्र सरकार के अधिकारियों को शामिल किया जाएगा.

दिप्रिंट आपको बता रहा है कि इन कृषि कानूनों के सफर से लेकर सितंबर 2020 में इनके अमल में आने के बाद शुरू हुए प्रदर्शनों के दौर तक आखिर क्या-क्या हुआ…

5 जून 2020: मोदी सरकार ने तीन नए कृषि बिल जारी किए—किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, 2020; कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020; और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020.

14 जून के बाद: तीनों नए कृषि कानूनों के खिलाफ पंजाब के विभिन्न हिस्सों में छिटपुट विरोध प्रदर्शन शुरू.

14 सितंबर: संसद में अध्यादेश लाया गया.

17 सितंबर: लोकसभा में बिल पास होने के बाद एनडीए सहयोगी अकाली दल की हरसिमरत कौर बादल ने मोदी कैबिनेट में मंत्री पद से इस्तीफा दिया.

20 सितंबर: भारी हंगामे के बीच राज्यसभा ने ध्वनिमत से इन विधेयकों को पारित कर दिया.

24 सितंबर: पंजाब के किसानों का तीन दिवसीय ‘रेल रोको’ आंदोलन शुरू.

25 सितंबर: किसानों के एक संयुक्त मोर्चे अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने तीनों प्रस्तावित कानूनों के खिलाफ देशभर में सड़क पर उतर विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान किया.

26 सितंबर: शिरोमणि अकाली दल ने भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार से समर्थन वापस लिया.

27 सितंबर: राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने कानून को अपनी सहमति दी, जिसके बाद इन्हें भारत के गजट में अधिसूचित किया गया और कानून अमल में आ गए.

3 नवंबर: पंजाब और हरियाणा में किसान संगठनों ने देशभर में सड़कें जाम करने का आह्वान किया.

25 नवंबर: पंजाब और हरियाणा में किसान संगठनों ने ‘दिल्ली चलो’ आंदोलन का आह्वान किया. दिल्ली पुलिस ने कोविड-19 प्रोटोकॉल का हवाला देते हुए उन्हें शहर में प्रवेश की अनुमति देने से इनकार कर दिया.

26 नवंबर: बड़े समूहों के तौर पर पंजाब और हरियाणा के किसानों के इन कानूनों के विरोध में राष्ट्रीय राजधानी की ओर मार्च किया और तमाम जगहों पर पुलिस-प्रशासन की तरफ से पानी की बौछारों का सामना किया. दिल्ली पुलिस बाद में उन्हें शहर के उत्तरी हिस्से में निरंकारी मैदान में प्रवेश की अनुमति दे दी.

27 नवंबर: किसान दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर पहुंच गए और शहर की घेरेबंदी कर लगे, अपने शिविर लगा लिए.

28 नवंबर: गृह मंत्री अमित शाह ने इस शर्त पर वार्ता की पेशकश की कि किसान दिल्ली की सीमाओं को खाली कर दें और बुराड़ी में प्रदर्शन के लिए निर्धारित एक जगह पर चले जाएं. किसानों ने प्रस्ताव को ठुकराया, और मांग की कि उन्हें जंतर-मंतर पर धरना देने की अनुमति मिले.

29 नवंबर: प्रधानमंत्री मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में कहा कि सभी राजनीतिक दल किसानों से वादे करते रहे हैं लेकिन सिर्फ उनकी सरकार ने ही उन्हें पूरा किया.

3-8 दिसंबर: सरकार और किसानों के बीच कई दौर की बातचीत हुई, लेकिन कोई बात नहीं बनी. किसानों ने भारत बंद का आह्वान किया.

9 दिसंबर: किसान नेताओं ने तीन विवादास्पद कानूनों में संशोधन के मोदी सरकार के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और घोषणा की कि आंदोलन को और तेज करेंगे. किसान संघों के नेताओं ने उद्योगपति गौतम अडानी और मुकेश अंबानी की तरफ से दी जाने वाली सेवाओं के बहिष्कार करते हुए कहा कि नए कृषि कानून बड़े कॉरपोरेट घरानों के पक्ष में हैं.


यह भी पढ़े: PM मोदी ने 3 कृषि कानूनों को वापस लेने का किया ऐलान, कहा- हम कुछ किसानों को समझा नहीं सके


11 दिसंबर: भारतीय किसान संघ ने तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

13 दिसंबर: केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने आरोप लगाया कि किसान आंदोलन के पीछे ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का हाथ है, जबकि सरकार बातचीत के लिए तैयार है.

16 दिसंबर: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह गतिरोध तोड़ने के लिए सरकार और किसान संघों के प्रतिनिधियों के साथ एक समिति गठित कर सकता है. इसने केंद्र सरकार को नए कृषि कानूनों को फिलहाल लंबित रखने का सुझाव भी दिया.

30 दिसंबर 2020-4 जनवरी 2021: किसानों और सरकार के बीच कई दौर की बातचीत हुई लेकिन बेनतीजा रही.

2 जनवरी 2021: किसानों ने गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली के रिंग रोड पर ट्रैक्टर रैली निकालने का ऐलान किया.

4 जनवरी: रिलायंस इंडस्ट्रीज ने स्पष्ट किया कि वह कभी भी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में प्रवेश नहीं करेगी.

11 जनवरी: सुप्रीम कोर्ट ने किसान आंदोलन से निपटने में नाकाम रहने पर केंद्र सरकार की खिंचाई की.

12 जनवरी: सुप्रीम कोर्ट ने तीन कृषि कानूनों पर अमल रोक दिया और कानूनों में किसी भी संभावित बदलाव के मूल्यांकन के लिए दो माह की समयसीमा तय करने के साथ चार सदस्यीय समिति का गठन किया.

20 जनवरी: वार्ता के एक नए दौर के तहत सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को डेढ़ साल के लिए निलंबित करने और कानून पर चर्चा के लिए एक संयुक्त समिति के गठन का प्रस्ताव रखा. किसान ने प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया और कानूनों को रद्द करने की अपनी मांग पर अड़े रहे.

24 जनवरी: दिल्ली पुलिस ने किसानों को उनके आंदोलन के दो माह पूरे होने के मौके पर राष्ट्रीय राजधानी में ट्रैक्टर रैली निकालने की अनुमति दे दी. अनुमति शहर के मध्य में एक निर्धारित मार्ग तक सीमित थी.

26 जनवरी: दिल्ली में किसान ट्रैक्टर रैली के दौरान कुछ प्रदर्शनकारियों के अपना रास्ता बदल लेने से अराजकता और हिंसा फैल गई. पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और लाठीचार्ज किया. कुछ प्रदर्शनकारी लाल किले में दीवारों और खंभों पर चढ़ गए हैं और निशान साहिब फहरा दिया. हंगामे के दौरान एक प्रदर्शनकारी की मौत भी हो गई. संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम), जो आंदोलनकारी किसान संघों की संयुक्त इकाई है, के नेताओं ने हिंसा की घटनाओं से खुद को अलग कर लिया और दावा किया कि रैली में ‘असामाजिक तत्वों’ ने घुसपैठ की है.

27 जनवरी: गणतंत्र दिवस पर हिंसा के सिलसिले में दिल्ली पुलिस ने किसान नेता राकेश टिकैत और अन्य के खिलाफ 22 एफआईआर दर्ज कीं.

28 जनवरी: एसकेएम ने 1 फरवरी को संसद तक प्रस्तावित मार्च वापस लिया. कुछ किसान संघों ने अपना प्रदर्शन खत्म किया और आंदोलन से खुद को अलग कर लिया. यूपी के गाजियाबाद जिले से सटे दिल्ली के गाजीपुर इलाके में प्रशासन की तरफ से आंदोलनकारी किसानों को रात में ही बॉर्डर खाली करने का आदेश जारी किए जाने के बाद तनाव बढ़ गया. राकेश टिकैत और उनके समर्थकों ने फैसला मानने से साफ इंकार कर दिया.

4 फरवरी: पॉप आइकन रिहाना, किशोर जलवायु कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग और वकील-लेखक मीना हैरिस—अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भतीजी—आदि ने किसान आंदोलन के पक्ष में आवाज उठाई.

5 फरवरी: दिल्ली पुलिस की साइबर क्राइम सेल ने देशद्रोह, आपराधिक साजिश और नफरत फैलाने के आरोप में कुछ लोगों पर एफआईआर दर्ज की, जिसके बारे में उनका कहना था कि उन्होंने किसान आंदोलन पर ‘टूलकिट’ बनाया था जिसे ग्रेटा थनबर्ग ने शेयर किया था.

9 फरवरी: गणतंत्र दिवस हिंसा मामले में आरोपी बनाए गए पंजाबी एक्टर से एक्टिविस्ट बने दीप सिंधु को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने गिरफ्तार किया.

14 फरवरी: दिल्ली पुलिस ने 21 वर्षीय जलवायु कार्यकर्ता दिशा रवि को थनबर्ग द्वारा साझा किए गए टूलकिट को कथित तौर पर ‘एडिट’ करने के आरोप में गिरफ्तार किया.

5 मार्च: पंजाब विधानसभा ने किसानों और पंजाब के हित में कृषि कानूनों को बिना शर्त वापस लेने और खाद्यान्नों की एमएसपी आधारित सरकारी खरीद की मौजूदा प्रणाली को जारी रखने की मांग के साथ एक प्रस्ताव पारित किया.

6 मार्च: दिल्ली की सीमा पर किसानों के धरने के 100 दिन पूरे हुए.

15 अप्रैल: हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर आंदोलनकारी किसानों के साथ बातचीत फिर से शुरू करने का आग्रह किया.

27 मई: किसानों ने विरोध के छह महीने पूरे होने पर ‘काला दिवस’ मनाया.

5 जून: किसानों ने कृषि कानूनों की घोषणा का एक साल पूरे होने के अवसर पर संपूर्ण क्रांतिकारी दिवस मनाया.

जुलाई: किसानों ने संसद भवन के पास किसान संसद के नाम से एक समानांतर ‘मानसून सत्र’ शुरू किया.

7 अगस्त: 14 विपक्षी दलों के नेता संसद भवन में मिले और दिल्ली के जंतर-मंतर पर जारी किसान संसद में जाने का फैसला किया.

28 अगस्त: हरियाणा पुलिस ने करनाल में किसानों पर हिंसक कार्रवाई की. मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की अध्यक्षता में भाजपा की बैठक के दौरान प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज में कई किसान घायल हुए. इस घटना के दौरान के एक वीडियो में 2018 बैच के आईएएस अधिकारी आयुष सिन्हा को पुलिसकर्मियों को किसानों पर हमले का निर्देश देते और यह कहते साफ सुना जा सकता है कि सुरक्षा घेरा तोड़ने की कोशिश करने वालों का ‘सिर तोड़ दें.’

5 सितंबर: यूपी चुनाव का वक्त नजदीक आने के मद्देनजर किसानों ने किसान नेता राकेश टिकैत के गृह क्षेत्र मुजफ्फरनगर में किसान महापंचायत का आयोजन किया.

17 सितंबर: कानून पारित होने का एक साल पूरा होने के मौके पर किसान संघों ने भारत बंद का आयोजन किया.

3 अक्टूबर: उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में जारी प्रदर्शन के बीच तीन वाहनों, जिसमें एक कथित तौर पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा का था, के काफिले ने किसानों के एक समूह को कुचल दिया, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई. इसके बाद भड़की हिंसा में भाजपा के दो कार्यकर्ताओं, एक वाहन के चालक और एक पत्रकार की भी जान चली गई.

9 अक्टूबर: उक्त घटना के आरोप में आशीष मिश्रा को गिरफ्तार कर लिया गया.

22 अक्टूबर: सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रदर्शनकारी सार्वजनिक सड़कों को अनिश्चितकाल के लिए अवरुद्ध नहीं कर सकते, हालांकि साथ ही कहा कि वह न्यायाधीन होने वाले मामलों तक में लोगों के प्रदर्शन के अधिकार के खिलाफ नहीं है.

29 अक्टूबर: दिल्ली पुलिस ने दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर बैरिकेड्स और अन्य अवरोधक हटाने शुरू कर दिए, जहां किसान विरोध कर रहे थे.

19 नवंबर: प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में तीनों विवादित कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा की.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़े: कृषि कानूनों की वापसी पर राहुल, अखिलेश, ममता का मोदी पर निशाना, कहा- चुनावी हार के डर से लिया फैसला


 

share & View comments