नई दिल्ली: जब पांचवें मुग़ल सम्राट शाहजहां अपनी राजधानी आगरा से उठाकर शाहजहांबाद लाए- जो अब पुरानी दिल्ली है- तो उन्होंने उसकी मुख्य सड़क और बाज़ार चांदनी चौक की योजना तैयार करने का काम, अपनी बेटी जहांआरा की कल्पना पर छोड़ दिया.
क़रीब 400 साल से इस चहल-पहल वाले बाज़ार की – जो उत्तर भारत का एक प्रमुख व्यापार केंद्र है- की रौनक़ में कोई कमी नहीं आई है, लेकिन समय के साथ-साथ इसके ऊपर उपेक्षा और अराजकता की परतें चढ़ती चली गईं.
एक ख़ूबसूरत व्यापार केंद्र और एक जीवंत सांस्कृतिक स्थान से, चांदनी चौक शहरी योजनाकारों और सार्वजनिक प्रशासकों के लिए, एक बुरा सपना बनकर रह गया था.
लेकिन अगले महीने से ये सब बदलने जा रहा है, जब दिल्ली सरकार लगभग तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद, इस ऐतिहासिक स्थल के एक नए रूप का अनावरण करेगी.
परियोजना के पहले चरण में, जो पूरा हो गया है- लाल क़िले के लाहौरी गेट से फतेहपुरी मस्जिद तक के 1.3 किलोमीटर के हिस्से के सुंदरीकरण पर ध्यान दिया गया है- जो 17वीं सदी से इस ऐतिहासिक केंद्र का मुख्य रास्ता बना हुआ है.
इस सड़क से मोटर गाड़ियों का ख़तरा ख़त्म हो गया है, चूंकि अब केवल हाथ से चलने वाले रिक्शों की अनुमति है. सड़क को सुंदर भी बनाया गया है- टाइल्स बदली गई हैं, पौधों के गमले रखे गए हैं, और पैदल चलने के अनुभव को बेहतर बनाने के लिए फुटपाथ चौड़े किए गए हैं. ऊपर खंभों से उलझे हुए तार भी हटा दिए गए हैं.
इस काम को, जो दिसंबर 2018 में शुरू हुआ था, शाहजहांनाबाद पुनर्विकास निगम (एसआरडीसी) और दिल्ली के सार्वजनिक निर्माण विभाग (पीडब्लूडी) ने अंजाम दिया है.
लेकिन, ऐतिहासिक स्थलों को फिर से डिज़ाइन करने के दूसरे प्रयासों की तरह, चांदनी चौक के संरक्षण की भी ख़ूब आलोचनाएं हुई हैं. एक्सपर्ट का कहना था कि संरक्षण एकतरफा मार्ग होता है, इसमें वापस लौटने का विकल्प नहीं होता.
इसलिए इस बात पर सुगबुगाहट शुरू हो गई है, कि क्या केंद्रीय कगार के ऊपर टाइलें बिछाने से, ‘सदियों की गतिशीलता ख़ामोश हो गई है’.
इस पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं, कि इस भीड़-भाड़ वाले क्षेत्र के बाक़ी हिस्सों का कायाकल्प कब होगा, क्योंकि कोविड और अन्य मसलों के चलते पहले दौर की समय सीमा कई बार मिस हुई थी.
और स्थायी हितधारक क्या कहा रहे हैं- वो लोग जिनकी जीविका इस मुख्य मार्ग के कारोबार पर चलती है.
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पहला चरण: नया रूप
जैसे ही आप चांदनी चौक में दाखिल होते हैं, लोहे के दरवाज़ों पर लगे पोस्टर चेतावनी देते हैं कि अगर मोटर गाड़ियां सुबह 9 बजे से रात 9 बजे के बीच, लाल क़िले के सामने मरम्मत की गई सड़क पर चढ़ती हैं, तो उनपर 20,000 रुपए जुर्माना किया जाएगा.
चांदनी चौक की सड़क पर लाल बलुआ पत्थर की नई टाइलें लगाई गई हैं, किनारों पर रखे गए रंग-बिरंगे गमले रखे हैं, और बीच बीच में थके हुए पांवों को आराम देने के लिए बेंचें हैं. ऊपर लटके उलझे तार और नीचे लटके लूप्स ज़मीन के नीचे कर दिए गए हैं. यहां के बहुत से निवासियों को लगता है, कि ये सड़क अब पर्यटकों की खुशी, और ख़रीददारों का ठिकाना बन गई है.
पानी की पुरानी पाइपलाइन को बदलकर नया कर दिया गया है, जबकि मौजूदा सीवरेज नेटवर्क को साफ करके, उसकी अंदरूनी सतह फिर से बनाई गई है. सड़क किनारे आग बुझाने वाले नल्कों तक पानी पहुंचाने के लिए, पानी की एक समर्पित लाइन डाली गई है, क्योंकि ये इलाक़ा बार-बार आग लगने के लिए कुख्यात है.
परियोजना के नोडल अधिकारी नितिन पाणिग्रही ने कहा: ‘चूंकि चांदनी चौक बिल्कुल स्ट्रीट फूड की रसोई की तरह है, इसलिए पूरे हिस्से में गैस पाइप लाइनें बिछाई गई हैं, जिससे कि इन भीड़-भाड़ भरे भोजनालयों को सुरक्षित बनाया जा सके.’
उन्होंने आगे कहा: ‘इस हिस्से में वेंडिंग ज़ोन्स बनाने की कोई योजना नहीं है, क्योंकि कई अदालतों ने यहां फेरी लगाने पर पाबंदी लगाई हुई है’.
सबसे बड़ी बात ये है कि बाज़ार में पुनर्विकास कार्य चलने के दौरान भी चहल-पहल बंद नहीं हुई- सिवाय कोविड लॉकडाउन के.
हितधारकों की मिली-जुली प्रतिक्रिया
इलाक़े के स्थाई हितधारक- नियमित यात्री, दुकानदार, रिक्शा चालक, निवासी, और सड़क के फेरी वाले- जिनकी आजीविका और विरासत मुख्य सड़क से जुड़ी हैं, या तो ख़ुश हैं या सतर्क हैं.
गाड़ियों के सीन से ग़ायब होने से रिक्शा चालकों का काम बढ़ गया है. 10 साल से इस काम में लगे 32 वर्षीय इब्राहिम ने कहा: ‘ग्राहकों को अब रिक्शा से ही जाना पड़ता है, पर लाइसेंस होना चाहिए’.
लेकिन उसका बैटरी रिक्शा चलाने वाला उसका दोस्त राजदीप ख़ुश नहीं है, चूंकि उसके दाख़िले पर पाबंदी है.
हालांकि यात्री प्रमोद कुमार को झुंझलाहट है कि इलाक़ा रिक्शों से भर गया है, जिससे पास के चावड़ी बाज़ार में घुसना मुश्किल हो गया है. उसने कहा कि ज़्यादा भीड़भाड़ को कम करने के लिए, पुलिस को कभी कभी टायरों की हवा निकालनी पड़ती है.
व्यापारी भी पुनर्विकास को लेकर बंटे हुए हैं. चांदनी चौक सर्व व्यापार मंडल के अध्यक्ष संजय भार्गव ने कहा कि इलाके में कारोबार बढ़ गया है, और महामारी के चले जाने के बाद कारोबार में और सुधार होगा. उन्होंने कहा: ‘यहां आने वालों की संख्या में 60 प्रतिशत वृद्धि की अपेक्षा है, क्योंकि अब कोई ट्रैफिक जाम नहीं लगते’.
भार्गव ने ये भी कहा कि इलाक़े में हवा की क्वालिटी में भी सुधार हुआ है.
लाल स्टोर्स पर तीसरी पीढ़ी के एक दुकानदार जसरूप सिंह इस बात से नाख़ुश हैं कि दिन के समय गाड़ियों के सड़क पर आने पर पाबंदी लगा दी गई है. ‘हालांकि अब सोशल डिस्टेंसिंग संभव हो गई है, लेकिन बूढ़े लोगों को किन्हीं ख़ास दुकानों तक आने के लिए कारों की ज़रूरत पड़ती है. ये भी आसान नहीं होता कि आप सुबह 9 बजे से पहले, और रात 9 बजे के बाद दुकान में सामान भर लें. स्टाफ के लिए मुश्किल होती है’.
30 वर्षीय महक डोगरा के लिए, जो चांदनी चौक आने वाली एक नियमित ख़रीददार हैं, ये अनुभव अब ज़्यादा व्यावहारिक है. ‘अब आपको ट्रैफिक जाम की बिल्कुल चिंता नहीं करनी पड़ती’.
लेकिन एक 65 वर्षीय निवासी मनोहर लाल कहते हैं, कि बेहतर होता अगर घर मालिकों के लिए इलाके में आने और जाने की बेहतर गाइडलाइन्स होतीं. उन्होंने कहा, ‘हमें नियमों का पालन करने में कोई परेशानी नहीं है, लेकिन यहां के निवासियों के लिए कोई मिकैनिज़म होना चाहिए’.
बीजेपी नेता विजय गोयल ने, जो लोकसभा में दिल्ली सदर का एक बार, और चांदनी चौक का दो बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं, सिर्फ एक सड़क का पुनर्विकास करने के लिए, आम आदमी पार्टी सरकार (आप) की आलोचना की.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा: ‘एक अच्छी सड़क से क्या हो जाएगा? ट्रैफिक का पूरा बोझ दूसरे मोहल्लों और छोड़ी सड़कों पर पहुंच जाएगा’.
गोयल अविकसित चांदनी चौक में एक मरम्मत की गई हवेली के मालिक हैं. धरमपुर हवेली नाम की इस प्रॉपर्टी में पर्यटकों को पांच सितारा सुविधाएं मिलती हैं. 2019 में युनेस्को ने भी इसकी सराहना की थी.
हालांकि आजकल ये हवेली महामारी की वजह से बंद है, लेकिन गोयल का मानना है कि अगर पूरे क्षेत्र पर ध्यान दिया जाए, तो होटल पर्यटकों से भर जाएगा.
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क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
‘इलाक़े के ऐतिसाहिक गौरव को बहाल करने’ की आप सरकार की योजना में, अभी तक केवल मुख्य मार्ग को फिर से विकसित करने पर ज़ोर दिया गया है, जबकि चांदनी चौक के बाक़ी हिस्से- इसकी गलियां, इमारतें, ड्रेन्स- पर ध्यान दिए जाने की सख़्त ज़रूरत है.
इतिहासकार और इंटैक (कला और सांस्कृतिक विरासत के लिए भारतीय राष्ट्रीय न्यास) की संयोजक स्वपना लिडिल ने, चांदनी चौक में सेवाओं में सुधार और लटके हुए तारों के ग़ायब होने की सराहना की, लेकिन साथ ही ये भी कहा कि क्षेत्र बाक़ी हिस्सों को भी विकसित करने की ज़रूरत है. ‘मसला ख़राब प्रबंधन का था, और इस प्रोजेक्ट के ज़रिए हम प्रबंधन की समस्या के लिए विकास का समाधान तलाश रहे हैं’.
लिडिल ने, जो चांदनी चौक: ‘दि मुग़ल सिटी ऑफ ओल्ड डेल्ही’ की लेखिका भी हैं, आगे कहा: ‘एक सड़क को वाहन मुक्त और पैदल चलने वालों के अनुकूल कर देने का मतलब है अवरोधों को शिफ्ट कर देना, क्योंकि मुख्य मार्ग पर ख़राब ट्रैफिक प्रबंधन जारी रहता है’.
लिडिल ने इस ओर भी ध्यान आकर्षित किया, कि इमारतों को छोड़कर केवल सड़क के विकास पर ज़ोर देना, कोई दार्घ-कालिक समाधान नहीं है, ख़ासकर ऐसे में जब कारोबार इन्हीं इमारतों की दुकानों और भोजनालयों से आता है.
जानी-मानी संरक्षणकर्त्ता और वर्ल्ड मॉन्युमेंट फंड इंडिया की कार्यकारी निदेशक, अमिता बेग ने कहा कि व्यापारी नाख़ुश हैं, क्योंकि परियोजना को लागू करने से पहले, उनके समुदाय से सलाह मश्विरा नहीं किया गया.
उन्होंने कहा, ‘मेरे विचार में ये एक दूसरा दिल्ली हाट है. हमें ये भी समझना होगा कि भारत कोई लंदन या पैरिस नहीं है, जहां लोग इतना चलने को तैयार रहते हैं. 44 डिग्री सेल्सियस में ये एक यातना होगी’.
आर्किटेक्ट और शहरी योजनाकार प्रोफेसर एजीके मेनन को लगता है कि विकास का मतलब मुखौटे को सुंदर कर देने से ज़्यादा होता है. ‘ये कोई विकास परियोजना नहीं बल्कि सुंदरीकरण परियोजना है’.
उन्होंने कहा: ‘सुंदरीकरण किसी विरासत स्थल के विकास का एक हिस्सा होता है, लेकिन सिर्फ यही एक काम नहीं होता. चांदनी चौक जैसी जगह के विकास के लिए हमें उसकी प्रासंगिकता को समझना होगा, और उसके लिए अलग से उप-नियम बनाने होंगे, जैसे इटली में हैं’. उन्होंने आगे कहा कि मिलान, फ्लोरेंस, और वेनिस के नियम एक दूसरे से अलग हैं.
मेनन ने, जो इंटैक के सदस्य हैं, कहा कि विरासत वाले शहरों को संरक्षित रखने की बजाय, सरकारें हमेशा नए शहर विकसित करने पर ज़्यादा ज़ोर देती हैं.
चांदनी चौक के संरक्षण की ज़रूरत पर, अधिकारियों के साथ हुए एक झगड़े को याद करते हुए मेनन ने कहा: ‘एक बार हमने आईएएस अधिकारियों के एक पैनल से सिफारिश की थी, कि शाहजहांनाबाद को विश्व विरासत स्थल के तौर पर शामिल किया जाना चाहिए. उन्होंने हंसते हुए कहा था कि क्या हम पागल हैं, जो एक स्लम की पैरवी करके भारत की विरासत का अपमान कर रहे हैं’.
कैसे हुई शुरूआत
परियोजना की परिकल्पना 2006 में कांग्रेस सरकार ने की थी. एसआरडीसी ने पहला व्यापक प्रस्ताव 2015 में तैयार किया था.
लेकिन उस पर काम 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बाद जाकर शुरू हो सका. उसी दिसंबर में दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीश सिसोदिया ने परियोजना की आधारशिला रखी.
परियोजना के पहले चरण में, बिजली और अन्य सेवाओं के तारों को ज़मीन के नीचे किया गया, और बिना मोटर के वाहनों तथा पैदल यात्रियों के लिए समर्पित लेन्स बनाई गईं. शौचालय, एटीएम, और बेंचें जैसी सुविधाएं भी मुहैया कराई गईं.
पुनर्विकास परियोजना की नोडल एजेंसी –एसआरडीसी की योजना दूसरे चरण में बाहरी हिस्से को सुधारने की है. अभी तक इस परियोजना में दिल्ली मेट्रो रेल कॉरपोरेशन, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, दिल्ली जल बोर्ड, और दिल्ली ट्रैफिक पुलिस आदि को हितधारक मान गया है.
महामारी और अतिक्रमण हटाने में आई क़ानूनी बाधाओं के कारण, परियोजना को मार्च 2020 की मूल समय सीमा में पूरा नहीं किया जा सका.
चुनौतियों की व्याख्या करते हुए, प्रोजेक्ट के नोडल अधिकारी नितिन पाणिग्रही ने कहा कि इतने बड़े व्यवसायिक इलाक़े में कारों को प्रतिबंधित करने को लेकर, उन्हें ‘धारणा की लड़ाई’ लड़नी पड़ी. उन्होंने कहा कि व्यापारियों को लगता था, कि इसकी वजह से व्यापार में भारी नुक़सान होगा.
पाणिग्रही ने दिप्रिंट से कहा: ‘बेबुनियाद आशंकाओं को दूर करने के लिए, हमने उन्हें अनुभव पर आधारित सबूत और उदाहरण दिए. हम उन्हें समझाने में कामयाब हो गए कि जब तक मोटर वाहों पर पाबंदी नहीं लगेगी, तब तक सड़कों से भीड़ कम नहीं की जा सकती’.
उन्होंने आगे कहा कि परियोजना में अभी तक 99 करोड़ रुपए ख़र्च किए जा चुके हैं.
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