नई दिल्ली: दिल्ली निवासी रघुवीर सिंह को पिछले महीने उस समय कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा जब उन्होंने अपनी 15 साल की बेटी को सीने में दर्द और सांस लेने में तकलीफ होने की शिकायत के बाद राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल में भर्ती कराने की कोशिश की.
रघुवीर सिंह ने बताया कि किशोरी को तीन सप्ताह पहले 6 जून को कोरोनावायरस की जांच में पॉजिटिव पाया गया था, लेकिन अस्पताल में डॉक्टरों ने कुछ दवाएं लिखने के बाद तीन लोगों के परिवार को होम क्वारेंटाइन में जाने को कहा था.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हम हिंदू राव अस्पताल और जीटीबी अस्पताल का चक्कर लगाने के बाद आरएमएल पहुंचे थे. हमें वहां (जीटीबी) से आरएमएल रेफर किया गया था.’ परिवार को किशोरी को आखिरकार फिर जीटीबी में ही ले जाने को बाध्य होना पड़ा, जहां उसे भर्ती कराया गया और बाद में वह ठीक भी हो गई.
आरएमएल में इस तरह की मुश्किल का सामना करने वाले रघुवीर अकेले नहीं है. इसके एक प्रवक्ता के मुताबिक यह सरकारी अस्पताल देश में पहला ऐसा संस्थान था जिसने विदेश से वापस आने वाले लोगों की स्क्रीनिंग शुरू की और मार्च में राजधानी में कोविड-19 का इलाज शुरू करने में भी अग्रणी था.
खुद अपनी ही वजह से यह अस्पताल स्टाफ की कमी की समस्या से जूझ रहा है क्योंकि यह कोविड और गैर-कोविड दोनों ही तरह के मरीजों का इलाज करते रहना चाहता है.
अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक मीनाक्षी भारद्वाज ने बताया कि इस अस्पताल में डॉक्टरों की सख्त जरूरत है. डॉक्टरों की भर्ती करने की तमाम कोशिशों के बावजूद अब तक सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिल रही है.
उन्होंने कहा, ‘हमारे पास सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर के लिए 72 पद खाली हैं और विज्ञापन निकाले जाने के बावजूद केवल 10 ही साक्षात्कार के लिए आए.’
यह भी पढ़ें: युवा नेताओं के साथ कांग्रेस का 1970 वाला बर्ताव नहीं चलेगा, भाजपा से ली जा सकती है सीख
अस्पताल और थके हुए डॉक्टर
आरएमएल अस्पताल में कोविड-19 रोगियों के लिए आईसीयू सुविधा वाले 162 बेड आरक्षित हैं, बाकी के 1,258 बेड गैर-कोविड मरीजों के लिए हैं. इसके अलावा अस्पताल में 85 बेड संदिग्ध कोविड मरीजों और श्वास के गंभीर संक्रमण (एसएआरआई) पीड़ितों के लिए हैं.
यहां 953 डॉक्टर और 1,195 नर्स हैं, जिनमें से 183 डॉक्टरों और 246 नर्सों को रोटेशन के आधार पर कोविड ड्यूटी पर लगाया गया है. अधिकारियों ने कहा कि अस्पताल अपनी पूरी क्षमता से काम कर सके इसके लिए 1,061 डॉक्टरों और 1,523 नर्सों की आवश्यकता है लेकिन मौजूदा समय में 108 डॉक्टरों और 328 नर्सों की कमी है.
भर्ती के लिए निकाले गए विज्ञापनों पर उपयुक्त प्रतिक्रिया न आने के बारे में टिप्पणी करते हुए चिकित्सा अधीक्षक भारद्वाज ने ‘कोविड-19 की चपेट में आने के डर’ को जिम्मेदार ठहराया.
अब तक 184 स्वास्थ्यकर्मी पॉजिटिव पाए गए हैं और तीन की मौत हुई है.
भय ने सुरक्षा जैसा जिम्मा संभाल रहे संविदा कर्मियों के कामकाज पर भी प्रतिकूल असर डाला है. दिप्रिंट से बातचीत में एक गार्ड ने बताया कि वह कोविड-19 की चपेट में आ गया था और ठीक हो गया है. ठीक होने के बाद उसने काम पर लौटने का फैसला किया लेकिन साथ ही दावा किया कि उसके कई साथी महामारी के मद्देनज़र काम छोड़कर अपने घर चले गए हैं.
उसने आगे बताया, ‘ठीक होने के बाद मैंने अपने गांव जाने के बजाय ड्यूटी पर लौटने का फैसला किया. हर दिन हम सुनते हैं कि कोई न कोई गार्ड टेस्ट में पॉजिटिव पाया गया. लेकिन क्या कर सकते हैं, हमारा काम ही ऐसा है.’
भारद्वाज ने भी इस बात की पुष्टि की. उन्होंने कहा, ‘हम बड़ी संख्या में संविदा कर्मियों की कमी का सामना कर रहे हैं. उनमें से ज्यादातर कोविड के डर से यहां काम नहीं करना चाहते.’
स्टाफ की कमी डॉक्टरों को थका दे रही और वह जरूरत से ज्यादा काम होने की शिकायत कर रहे हैं. एक रेजिडेंट डॉक्टर ने कहा, ‘रेजिडेंट डॉक्टर का पहला पूल कोविड वार्ड में अपनी दूसरी या तीसरी रोटेशन ड्यूटी पर हैं. कई डॉक्टर जो संक्रमित हो गए थे, ठीक होने के बाद कोविड वार्ड में काम पर वापस लौट आए हैं.’
डॉक्टरों का कहना है कि उनकी शिफ्ट आधिकारिक तौर पर आठ घंटे की होती है लेकिन अक्सर यह लंबे समय तक खिंच जाती है. जो कोविड ड्यूटी पर हैं, वे 14 दिन काम करते हैं और अगले 14 के लिए क्वारेंटाइन में भेजे जाते हैं.
उपरोक्त डॉक्टर ने बताया कि डॉक्टरों के सभी आकस्मिक अवकाश रद्द कर दिए गए हैं और पिछले तीन-चार महीनों में किसी ने भी छुट्टी नहीं ली है. उन्होंने कहा, ‘यह मानसिक और शारीरिक रूप से थका देने वाला है.’
उन्होंने बताया कि रेजिडेंट डॉक्टरों का मौजूदा बैच इस माह के अंत में जूनियर रेजिडेंट के नए पूल के इस टीम में शामिल होने का बेसब्री से इंतजार कर रहा है ताकि काम का बोझ कुछ कम हो सके.
यह भी पढ़ें: प्रधानमंत्री मोदी चीन के साथ विवाद में अपनी छवि बचाने का प्रयास कर रहे हैं: राहुल गांधी
मरीजों को वापस भेजना
अस्पताल के लिए कर्मचारियों की कमी तो सिर्फ एक चुनौती है क्योंकि यह महामारी से जूझ रहा है जिसमें कमी आने का कोई संकेत नहीं मिल रहा है. डॉक्टर कहते हैं वे अक्सर मरीजों को लौटाने के लिए मजबूर हो जाते हैं क्योंकि उनके पास खाली बेड ही नहीं हैं.
अस्पताल के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘हम एक दिन में 300-400 टेस्ट करते हैं. अस्पताल में हमारे पास आने वाले कोविड मरीजों की तादाद काफी ज्यादा है लेकिन बेड की सीमित संख्या के कारण हम उन्हें एम्स और सफदरजंग जैसे अन्य विशेष कोविड अस्पतालों में रेफर कर रहे हैं.’
प्रवक्ता ने आगे कहा, नए मरीज को केवल तभी भर्ती किया जाता है जब किसी मरीज को छुट्टी दे दी जाती है.
ऊपर उल्लिखित डॉक्टर का कहना था, अस्पताल ‘पूरी क्षमता से चल रहा है’. कोविड से पहले मरीज आपात स्थिति के दौरान बेड साझा कर सकते थे. लेकिन महामारी के कारण मरीज बेड साझा नहीं कर सकते. मंत्रालय के दिशानिर्देशों के तहत यदि हमारे बेड खाली नहीं हैं तो हमें कोविड मरीजों को निर्धारित कोविड अस्पतालों में भेजना होगा.’
यह भी पढ़ें: पायलट की बगावत से राजस्थान में छिड़ी सिंधिया बनाम सिंधिया और राजे बनाम भाजपा की शाही जंग
गैर-कोविड मरीज नज़रअंदाज हो रहे हैं
अस्पताल में कर्मचारियों की कमी सिर्फ कोविड वार्ड में ही महसूस नहीं की जा रही. अन्य बीमारियों और कारणों से अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों का कहना है कि उन्हें डॉक्टरों से मिलने और समय पर मदद प्राप्त करने में खासी परेशानी हो रही है.
शगुफ्ता खान ने दिप्रिंट को बताया कि उसे अपने पांच साल के भतीजे को डॉक्टरों को दिखाने के लिए घंटों इंतजार करना पड़ा, जिसके सिर और हड्डियों में एक हादसे के कारण गहरी चोट लगी थी. पिछले हफ्ते उसने बताया, ‘12 घंटे से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद डॉक्टरों ने केवल एक सीटी स्कैन किया है. अभी तक कोई डॉक्टर परामर्श देने तक नहीं आया है.’
23 साल का बबलेश कुमार चार साल पहले रीढ़ की हड्डी में लगी एक चोट के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती था, जिसने उसे चलने-फिरने या पैर हिलाने में असमर्थ कर दिया और उसे इसके लिए नियमित उपचार की जरूरत पड़ी.
वार्ड में एक युवा लड़की के कोविड-19 पॉजिटिव निकलने के बाद 19 जून को उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई थी. बबलेश ने कहा, ‘मैं समझ सकता हूं कि अस्पताल ने मेरे पूरे वार्ड को डिस्चार्ज कर दिया है और हमें अपनी सुरक्षा के लिए क्वारेंटाइन में रहने को कहा है….कोविड-19 की वजह से काम का बोझ बढ़ने से डॉक्टर बहुत परेशान हैं, हमारे जैसे लंबित मामलों में भी कुछ नहीं हो सकता.’
कामकाज में हर दिन सामने आने वाली मुश्किलों के बारे में बताते हुए एक रेजिडेंट डॉक्टर ने कहा, ‘हमने चुनिंदा सर्जरी शुरू नहीं की है लेकिन हम अब भी इमरजेंसी और ओपीडी में केस ले रहे हैं…पहले हमारे पास सिर्फ एक ब्लॉक कोविड को समर्पित था लेकिन मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए इसे अब तीन ब्लॉक तक बढ़ा दिया गया है.’
चिकित्सा अधीक्षक भारद्वाज ने बताया कि अस्पताल प्रतिदिन 2,500-3,000 गैर-कोविड मामले देख रहा है. उन्होंने कहा, ‘यद्यपि कोविड पूर्व के महीनों से तुलना करें तो ये संख्या काफी कम है, लॉकडाउन के दौरान तो मरीजों की संख्या 300-350 तक ही रह गई थी. लेकिन इसे और महामारी को ध्यान में रखकर देखे तो यह एक बड़ी संख्या है.’
यह भी पढ़ें: छत्तीसगढ़ सरकार की गोधन न्याय योजना की तारीफ के बाद अब आरएसएस के नेता देना चाहते हैं कंसल्टेंसी
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)