नई दिल्ली: दिल्ली में बहुत से कोविड-19 मरीज़ों ने शिकायत की है कि निजी अस्पताल पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) के लिए ‘हद से ज़्यादा’ वसूल रहे हैं, जो उनके डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी पहनते हैं.
27 वर्ष के दिनेश गौड़ को मैक्स अस्पताल साकेत से 9 दिन कोविड वॉर्ड में बिताने के बाद 20 मई को डिस्चार्ज किया गया था. उनका बिल, जो दिप्रिंट के हाथ लगा है जो कि 4,80,000 रुपए का था, जिसमें 70,000 रुपए पीपीई किट्स के दाम थे.
दिनेश के भाई सुरिंदर गौड़ ने दिप्रिंट को बताया कि अस्पताल ने कुछ दिनों के लिए पीपीई के लिए तो 4,300 रुपए वसूल किए और कुछ दिन के लिए 8,900 रुपए लिए, देख कर दिमाग़ चकरा जाता है कि हम इलाज और अतिरिक्त लागत के लिए कितना अधिक पैसा दे रहे हैं.
एक कोविड-19 वॉर्ड में डॉक्टर की शिफ्ट 6 से 8 घंटे की हो सकती है, जो अस्पताल पर निर्भर करता है और शिफ्ट के दौरान डॉक्टर वही एक सूट पहनकर आईसीयू वॉर्ड में जितने भी मरीज़ हैं, उन सबको देख सकता है.
लेकिन, मैक्स अस्पताल ने अपनी पीपीई फीस का बचाव किया और कहा कि ये इंडस्ट्री के मानकों और वैश्विक मानदंडों के हिसाब से है.
एक प्रवक्ता ने दिप्रिंट को बताया, ‘ये सही है कि पीपीई सूट पहनकर डॉक्टर सिर्फ एक ही मरीज़ का इलाज नहीं करता, लेकिन लोग मान लेते हैं कि हम केवल डॉक्टर के पीपीई सूट के लिए फीस वसूल रहे हैं. लेकिन ये नर्सिंग स्टाफ, सफाई और केटरिंग स्टाफ के लिए भी होती है. ये सब पीपीई सूट पहनकर ही वॉर्ड में जा सकते हैं.’
ये समझाते हुए कि अस्पताल के लिए एक पीपीई सूट की क़ीमत 1100 रुपए होती है प्रवक्ता ने कहा, ‘हमारे कोविड आईसीयू वॉर्ड में एक मरीज़ के लिए हर रोज़ औसतन आठ पीपीई सूट इस्तेमाल होते हैं. इसीलिए हम पीपीई किट्स के लिए रोज़ाना 9,000 रुपए तक वसूल रहे हैं.’
दूसरी जगह भी यही कहानी
लेकिन ये समस्या सिर्फ एक अस्पताल तक सीमित नहीं है. एक महिला मरीज़, जिसका जसोला के अपोलो अस्पताल में इलाज हुआ, उसकी भी ऐसी ही कहानी है.
अपना नाम छिपाते हुए उसके पति ने दिप्रिंट को बताया, ‘वो एक कैंसर मरीज़ हैं, इसलिए उनके कीमोथिरेपी इलाज पर, हम वैसे ही बहुत पैसा ख़र्च कर रहे हैं. ऊपर से जब कोविड के लिए उनका इलाज चला तो अस्पताल ने 12 दिन के पीपीई किट्स के लिए, क़रीब 70,000 रुपए वसूल लिए.’
अपोलो अस्पताल के एक प्रवक्ता ने कहा कि एक पीपीई किट की न्यूनतम क़ीमत 600 रुपए है, लेकिन अधिकतम क़ीमत अलग-अलग हो सकती है.
एक दिल्ली वासी जो अपनी पहचान छिपाना चाहती थी, ने बताया कि सर गंगाराम अस्पताल में पीपीई किट्स के लिए, उनके अंकल से 10,000 रुपए रोज़ के हिसाब से वसूले गए. उन्होंने कहा, ‘वो एक महीने वहां रहे और कुल बिल 15 लाख रुपए था. इसमें से 10,000 रुपए रोज़ाना सिर्फ पीपीई किट्स की फीस थी. दिप्रिंट ने बिल देखकर उनके दावों को सही पाया है.
दिप्रिंट ने कॉल्स, मैसेज और ई-मेल के ज़रिए, सर गंगा राम अस्पताल से सम्पर्क किया है और अस्पताल का जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट को अपडेट किया जाएगा.
अस्पतालों ने फिक्की की एक ‘अकाउंटिंग प्रक्रिया’ का भी हवाला दिया है, जिसमें पीपीई किट की औसत क़ीमत, 10,000 रुपए रोजाना रखी गई है.
सरकार ने अस्पतालों को मनमर्ज़ी से चार्ज करने की अनुमति दी
पिछले रविवार, दिल्ली सरकार ने एक आदेश जारी किया कि सभी निजी अस्पतालों को जिनमें 50 से अधिक बेड्स हैं, अपने यहां 20 प्रतिशत बिस्तर, कोविड-19 मरीज़ों के इलाज के लिए अलग रखने होंगे. दिल्ली में 117 अस्पताल इस पैमाने पर पूरा उतरते हैं. जिनमें गंगा राम, अपोलो, मैक्स, फोर्टिस, और बतरा अस्पताल शामिल हैं.
लेकिन सरकार ने कोई कैप नहीं लगाई है कि ये अस्पताल कितना चार्ज कर सकते हैं- बल्कि आदेश में साफ लिखा है, कि वो अपने विवेक के हिसाब से मरीज़ों को बिल कर सकते हैं.
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आदेश में कहा गया है, ‘ये 117 निजी अस्पताल अपनी अपनी दरों की अनुसूचि के हिसाब से कोविड-19 मरीज़ों से बिल वसूलेंगे.’
दिप्रिंट ने कॉल्स, टेक्स्ट, और ईमेल के ज़रिए दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन से सम्पर्क साधने की कोशिश की, लेकिन जवाब नहीं मिला.
‘अनुचित बोझ’
हेल्थकेयर एक्सपर्ट्स ने कहा कि मरीज़ों से पीपीई किट्स के दाम वसूलना, एक ‘अनुचित बोझ’ हो सकता है.
ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की को-कनवीनर, मालिनी आइसोला ने दिप्रिंट से कहा, ‘पीपीई इतनी आवश्यक क्यों हो गई है, इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यही है कि हेल्थकेयर वर्कर्स को सुरक्षित रखा जाए, ताकि बीमारी को फैलने से रोका जा सके.’
‘उन्होंने कहा, फिर मैं सोचती हूं कि कोविड और ग़ैर-कोविड दोनों मरीज़ों पर उस अतिरिक्त लागत का बोझ क्यों डाला जाए, जो एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट के दौरान बरती जा रही, विश्व-व्यापी सावधानियों का सीधा नतीजा हैं.’
एक्सपर्ट्स ने ये भी इशारा किया कि सिर्फ इस अतिरिक्त अदाएगी से बचने के लिए मरीज़ कोविड का इलाज नहीं करा रहे हैं.
पैलिएटिव केयर के सुधार में लगी एक संस्था, पैलियम इंडिया की रीजनल प्रोग्राम ऑफिसर साएमा फ़ुरक़ान ने कहा, ‘निजी अस्पतालों में कोविड-19 का इलाज बेहद महंगा होता है. इसलिए, जब लोग पीपीई किट पेमेंट के अतिरिक्त बोझ की बात सुनते हैं, तो किसी निजी अस्पताल में इलाज कराने की बजाय, वो घर पर मर जाना पसंद कर रहे हैं.’
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