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Wednesday, 1 May, 2024
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जाति, सुरक्षा और पैसा- हाई-सिक्योरिटी वाला तिहाड़ जेल, हाई-प्रोफाइल हत्याओं को रोकने में क्यों नाकाम है

एक महीने के भीतर हुई तेवतिया और ताजपुरिया की हत्या दिल्ली के तिहाड़ जेल की सुरक्षा खामियों को उजागर करती हैं. दोनों की हत्या कथित तौर पर साथी कैदियों ने कर दी थी.

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नई दिल्ली: दशकों से, तिहाड़ ने खुद को भारत की सबसे अच्छी जेलों में से एक के रूप में पेश किया है. यह न केवल दक्षिण एशिया का सबसे बड़ा जेल है, लेकिन यह अपनी मज़बूत पहरेदारी के लिए भी जाना जाता हैं. जिसमे 400 एकड़ क्षेत्र को कवर करने के लिए 900 से अधिक सीसीटीवी कैमरों के साथ एक विशाल पुलिस बल हमेशा तैनात रहती हैं. यहां योग जैसी मनोरंजक गतिविधियों के माध्यम से कैदियों के पुनर्वास का प्रयास भी किया जाता है.

तिहाड़ न केवल नीरज बवाना, काला जठेड़ी, दीपक ‘बॉक्सर’, मंजीत महल और हाशिम बाबा जैसे खूंखार गैंगस्टरों का घर है. यह वीआईपी कैदियों के एक प्रेरक समूह को भी रखता है, या अतीत में रखा गया है- रैनबैक्सी के पूर्व प्रमोटर मालविंदर, शिविंदर सिंह, राजनेता सत्येंद्र जैन, मनीष सिसोदिया और कार्यकर्ता उमर खालिद से लेकर ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार तक.

लेकिन एक महीने के भीतर तिहाड़ में बंद गैंगस्टर प्रिंस तेवतिया और सुनील उर्फ ​​टिल्लू ताजपुरिया की हत्या ने जेल के एक अलग ही पहलू को दिखाया हैं, जिसमें भ्रष्टाचार, जाति की राजनीति, गिरोह की प्रतिद्वंद्विता और कानून के प्रति पूर्ण अवहेलना सामने आई है.

दो हत्याएं – 14 अप्रैल को तेवतिया और 2 मई को ताजपुरिया, दोनों कथित तौर पर साथी कैदियों द्वारा किया गया, जिसने जेल की सुरक्षा व्यवस्था में बड़ी खामियों को उजागर किया है.

तिहाड़ के पूर्व अधिकारियों के अनुसार, नियमों के बावजूद कैदी अतीत में फोन, शराब, हार्ड कैश और यहां तक ​​कि हथियार तक जेल में पहुंचने में कामयाब रहे हैं.

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उनका कहना है कि इसका कारण खराब सुरक्षा जांच है.

अपना नाम न बताने की शर्त पर जेल के एक पूर्व महानिदेशक ने दिप्रिंट को बताया कि यहां केवल सरसरी जांच होती हैं. सभी कैदियों को बैरक से नहीं निकाला जाता है और हर समय मेटल डिटेक्टर का उपयोग भी नहीं किया जाता है. अधिक बार, कड़ी जांच नहीं होती हैं जैसा कि होना चाहिए, यही कारण है कि हत्या की साजिशों की योजना और निष्पादन होता है.

पूर्व अधिकारी के अनुसार, भारत की सबसे सुरक्षित जेलों में से एक मानी जाने वाली जेलों में सुरक्षा खामियों के पीछे कई कारकों का एक परस्पर प्रभाव है – संचार की कमी, कर्तव्य की अवहेलना, पुलिस और कैदी के बीच सांठगांठ, पैसा-पावर और भ्रष्टाचार.


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जेल में हत्या की बढ़ती घटनाएं

राष्ट्रीय राजधानी में तीन जेलें हैं – तिहाड़, मंडोली और रोहिणी – और उन्हें कुल 16 जेलों में विभाजित किया गया है, जिन्हें जेल नंबर 1 से 16 तक चिह्नित किया गया है. जेल 1-9 तिहाड़ में हैं, जेल नंबर 10 रोहिणी में है, और जेल 11-16 मंडोली जेल में हैं.

कथित तौर पर तिहाड़ जेल के एक उच्च-सुरक्षा सेल के अंदर, एक प्रतिद्वंद्वी गिरोह के सभी सदस्यों द्वारा 14 अप्रैल को गैंगस्टर तेवतिया को कम से कम आठ बार चाकू मारा गया था.

ठीक एक हफ्ते बाद, ताजपुरिया को चार साथी कैदियों द्वारा कथित तौर पर इसी तरह के हमले में मार दिया गया था. उस पर 100 से ज्यादा बार चाकुओं से हमला किया गया था.

ताजपुरिया की हत्या के बाद, 99 जेल अधिकारियों को स्थानांतरित कर दिया गया और घटना के समय ड्यूटी पर तैनात तमिलनाडु कैडर के सात पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया था साथ ही उन्हें उनके गृह राज्य वापस भेज दिया गया.

जेल ने दिप्रिंट को बताया कि इन दो घटनाओं के बाद उठने वाले सवालों के बावजूद, यह जेल में अपनी तरह की पहली घटना नहीं है – पिछले कुछ वर्षों में तिहाड़ की चारदीवारी के अंदर, पूर्व अधिकारियों की हत्या और हत्या की साजिश की कई घटनाएं देखी गई हैं.

यह हमेशा बंदूक और चाकू जैसे नियमित हथियार नहीं होते हैं, जिनका उपयोग जेल की दीवारों के अंदर किया जाता है. अधिकारियों के अनुसार, छुरा घोंपने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले “हथियार” अक्सर रोजमर्रा की वस्तुओं से बने होते हैं – नुकीले एल्यूमीनियम के चम्मच, प्लेट और यहां तक ​​कि पंखे और टीवी में इस्तेमाल होने वाली लोहे की वस्तु.

अधिकारियों के अनुसार, इसमें से कोई भी काम जेल गार्ड के मदद के बिना नहीं किया जा सकता है. वो ये मदद या सहयोग कैसे भी कर सकते हैं या तो सक्रिय रूप से या जैसा कि ताजपुरिया मामले में आरोप लगाया गया है, हस्तक्षेप से परहेज करके.

घटना के वायरल वीडियो में तमिलनाडु विशेष पुलिस कर्मियों ने कथित चार संदिग्धों जिन्हें प्रतिद्वंद्वी गिरोह के सदस्य कहा जाता है – को ताजपुरिया पर हमला करते और छुरा घोंपते हुए चुपचाप देखा.

पूर्व अधिकारियों ने कहा कि ऐसी घटनाएं इसलिए होती हैं क्योंकि तमिलनाडु के पुलिसकर्मी गैंगवार में शामिल होने से हिचकते हैं, क्योंकि दिल्ली में उनकी पोस्टिंग अस्थायी है.

द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, तमिलनाडु पुलिस कर्मियों को नियमित रूप से 1976 से तिहाड़ जेल में तैनात किया गया है, जब एक बड़ी जेलब्रेक में संभावित पुलिस मिलीभगत का पता चला था.

पूर्व कानून अधिकारी और तिहाड़ के प्रवक्ता सुनील गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया कि तमिलनाडु विशेष पुलिस के कर्मी केवल जेल के उच्च सुरक्षा वाले वार्डों की रखवाली करते हैं. यह इस उम्मीद में किया गया था कि भाषा की बाधा किसी भी पुलिस-कैदी की सांठगांठ को रोकने में मदद करेगी. उन्होंने कहा, लेकिन समय के साथ, इस कदम को सुरक्षा से समझौता करते हुए देखा गया.

उन्होंने कहा, “इसके अलावा, TN विशेष पुलिस का भी कुछ वर्षों में तबादला हो जाता है, और इसलिए वे वास्तव में इन गिरोह युद्धों में शामिल नहीं होना चाहते हैं. वे डीजी जेल को भी रिपोर्ट नहीं करते हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई केवल तमिलनाडु पुलिस ही कर सकती है. कुछ मामलों में, वे शामिल होने से भी डरते हैं.”

एक अन्य अधिकारी, जो दिल्ली में डीजी जेल के रूप में तैनात थे, ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि तमिलनाडु पुलिस के नए बैच के अधिकारी जो तिहाड़ में तैनात हैं, उन्हें कई बार पर्याप्त रूप से ब्रीफ नहीं किया जाता है.

उनके सामने भाषा एक बाधा बन जाती है जिससे चीज़े बोलने और समझने में दिक्कत होती हैं और निर्देश अक्सर अनुवाद में खो जाते हैं.

उन्होंने (अधिकारियों ने) कहा कि उन्हें नहीं पता कि क्या करना है. उन्होंने कोई एक्शन नहीं लिया और अपने सीनियर्स के निर्देश का इंतजार करते रहे. लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि उनकी तरफ से लापरवाही हुई है. अगर चार आदमी दूसरे कैदी को चाकू मार रहे हैं, और आप, सुरक्षाकर्मी के रूप में, वहीं खड़े हैं, तो यह और कुछ नहीं बल्कि सिर्फ लापरवाही है और सेवा के लिए प्रतिबद्ध नहीं होना है.


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‘जाति संरक्षण और पैसा’

तिहाड़ के अंदर जाति को एक प्रमुख कारक कहा जाता है. एक पूर्व जेल अधिकारी के अनुसार, जेल कर्मचारी अपनी जाति के सदस्यों के साथ सहयोग करते हैं – न केवल पैसे के लिए बल्कि सुरक्षा के लिए भी.

पूर्व जेल अधिकारी ने कहा, “जाति हर जगह एक भूमिका निभाती है और दिल्ली की जेलें भी इससे अलग नहीं हैं. कभी-कभी वे सिर्फ पैसे और अन्य उपहारों के लिए उनके साथ रहना चाहते हैं.” उन्होंने कहा कि अतीत में ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां जेल कर्मचारियों ने एक विशेष गिरोह के प्रति अपनी निष्ठा साबित करने के लिए एक ही सरनेम रखा. उनमें से कुछ सिर्फ इसलिए शामिल नहीं होना चाहते हैं क्योंकि उन्हें अपने जीवन का डर था.

पैसा एक अन्य कारक है जिसे जेल पदानुक्रम में एक भूमिका निभाने के लिए माना जाता है – कैदी जितना अमीर होता है, उसे जेल के भीतर उतनी ही अधिक विलासिता मिलती है. यह शराब, फोन और मालिश जैसी चीज़े हासिल कर जेल के अंदर अपना ऑफिस तक बना सकते है.

दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, पैसे से किसी को कहीं भी कुछ भी मिल सकता हैं, यहां तक ​​कि जेलों में भी. एक कैदी के पास जितनी अधिक शक्ति और पैसा होता है, जेल में उसका उतना ही अधिक प्रभुत्व होता है. “इसके अलावा, चाहे जेल के अंदर हो या डिजिटल मीडिया पर, गैंगस्टरों की बहुत बड़ी फैन फॉलोइंग है. कभी-कभी जेल के कर्मचारी भी इसका हिस्सा बन जाते हैं.”

यहां अन्य समस्याएं भी हैं – जैसे अनियंत्रित पहुंच जिस कारण कुछ कैदियों को अपने इस्तेमाल के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स सामान तक मिल जाता है. गुप्ता के अनुसार, हाई सिक्योरिटी वाले दो कमरों को केवल बरामत की गई फ़ोन को रखने के लिए किया जाता हैं.

हालांकि जेल के कैदियों को इन तक पहुंच की अनुमति नहीं है, गुप्ता कहते हैं, भ्रष्टाचार इतना हैं कि कैदी यहां से जो चाहें प्राप्त कर सकते हैं.

उन्होंने कहा, अधिकारियों के मुताबिक, इन सबका नतीजा यह होता है कि कुछ कैदी कुछ भी लेकर भाग जाते हैं. वास्तव में, कैदियों के जबरन वसूली का रैकेट चलाने और यहां तक ​​कि जेल के अंदर से हिट ऑर्डर करने के उदाहरण सामने आए हैं.

इनमें सबसे महत्वपूर्ण पंजाबी गायक और कांग्रेस नेता सिद्धू मोसे वाला की हत्या थी, जिनकी 29 मई 2022 को पंजाब के मनसा जिले में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, “गोली मारने” का आदेश कथित तौर पर कनाडा स्थित गैंगस्टर गोल्डी बराड़ और उसके सहयोगी लॉरेंस बिश्नोई ने दिया था, जो उस समय तिहाड़ जेल में थे.

इसी तरह, “कॉनमैन” सुकेश चंद्रशेखर ने कथित तौर पर रोहिणी जेल के अंदर से जबरन वसूली का रैकेट चलाया.

‘दंडमुक्ति’

पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली की जेलों के भीतर हत्याओं और हत्या की साजिशों के कई उदाहरण देखे गए हैं.

2020 में, तिहाड़ के एक कैदी ने एक रिश्तेदार के बलात्कार का कथित बदला लेने के लिए दूसरे कैदी की हत्या कर दी. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आरोपी ने कथित तौर पर दूसरे कैदी को चाकू मारने के लिए तात्कालिक हथियार का इस्तेमाल किया था.

2021 में गैंगस्टर अंकित गुर्जर जेल परिसर के अंदर मृत पाया गया था. सीबीआई ने बाद में तिहाड़ के पूर्व जेल उपाधीक्षक नरेंद्र मीना पर गैर इरादतन हत्या का आरोप लगाया जिसे हत्या नहीं माना जाता. गुर्जर को दूसरे वार्ड में स्थानांतरित करने का विरोध करने पर जेल कर्मचारियों ने कथित तौर पर पीट-पीट कर मार डाला था. मीना पर कथित तौर पर पैसे के लिए गैंगस्टर को परेशान करने का भी आरोप लगाया गया था.

मार्च 2021 में, एक मुस्लिम अपराधी ने कथित रूप से 2020 के दिल्ली दंगों का बदला लेने के लिए ताड़का में पारे का उपयोग करके दो हिंदू कैदियों को मारने की योजना बनाई थी.

सितंबर 2021 में प्रतिद्वंद्वी टिल्लू गिरोह द्वारा मंडोली जेल परिसर के अंदर एक सुनवाई के दौरान रोहिणी अदालत परिसर के अंदर गोली मारकर हत्या करने वाले गैंगस्टर जितेंद्र गोगी की हत्या की कथित रूप से योजना बनाई गई थी. कुछ महीने बाद, जांच में कथित तौर पर खुलासा हुआ कि शेखर ताजपुरिया के सहयोगी राणा उर्फ सन्नाटा की तिहाड़ जेल परिसर में एक साजिश रचने के बाद हत्या कर दी गई थी.

जेलों में चौबीसों घंटे सुरक्षा के बावजूद ये हत्याएं हुईं.

गुप्ता ने कहा, “तिहाड़ में इन झगड़ों से ऐसा लगता है कि यह जेल नहीं बल्कि एक छात्रावास है. सीसीटीवी फुटेज (ऐसी हत्याओं का) कैदियों की दंडमुक्ति और सुरक्षाकर्मियों की ओर से बड़ी चूक को दर्शाता है.”

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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