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Thursday, 31 October, 2024
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दिल्ली दंगा मामले में हिदायत के साथ दिल्ली HC ने JNU की नताशा, देवांगना और जामिया के आसिफ को दी जमानत

अदालत ने पिंजड़ा तोड़ कार्यकर्ताओं नताशा नरवाल, देवांगना कालिता और तन्हा को अपने-अपने पासपोर्ट जमा करने, गवाहों को प्रभावित न करने और सबूतों के साथ छेड़खानी न करने का निर्देश भी दिया.

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नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने उत्तर-पूर्व दिल्ली दंगे के एक मामले में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय की छात्राओं नताशा नरवाल, देवांगना कालिता और जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को मंगलवार को जमानत दे दी. इन लोगों को पिछले साल फरवरी में दंगों से जुड़े एक मामले में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था.

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति एजे भंभानी की पीठ ने निचली अदालत के इन्हें जमानत ना देने के आदेश को खारिज करते हुए तीनों को नियमित जमानत दे दी.

अदालत ने पिंजड़ा तोड़ कार्यकर्ताओं नताशा नरवाल, देवांगना कालिता और तन्हा को अपने-अपने पासपोर्ट जमा करने, गवाहों को प्रभावित न करने और सबूतों के साथ छेड़खानी न करने का निर्देश भी दिया. साथ ही सभी को 50,000 रुपये के मुचलके और दो लोगों की सिक्योरिटी दिए जाने की बात कही है.

न्यायालय ने माना है कि प्रथम दृष्टया, तीनों के खिलाफ वर्तमान मामले में रिकॉर्ड के आधार पर धारा 15, 17 या 18 यूएपीए के तहत कोई अपराध नहीं बनता है.

बता दें आसिफ इकबाल तन्हा जामिया मिल्लिया इस्लामिया में बीए ऑनर्स में परसियन कार्यक्रम के साथ पढ़ाई कर रहे हैं. वह दिल्ली दंगे के दौरान यूएपीए के अंतगर्त मई 2020 में गिरफ्तार किए गए थे. दबकि नताशा नरवाल और देवांगना कलिता जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रही है और पिंजड़ा तोड़ संस्था से जुड़ी हुई है. ये दोनों भी मई 2020 से ही हिरासत में है.

उच्च न्यायालय ने कहा कि तीनों आरोपी किसी भी गैर-कानूनी गतिविधी में हिस्सा ना लें और कारागार रिकॉर्ड में दर्ज पते पर ही रहें.

निचली अदालत ने की थी जमानत याचिका खारिज

तन्हा ने एक निचली अदालत के 26 अक्टूबर, 2020 के उसे आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें अदालत ने इस आधार पर उसकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी कि आरोपी ने पूरी साजिश में कथित रूप से सक्रिय भूमिका निभाई थी और इस आरोप को स्वीकार करने के लिए पर्याप्त आधार है कि आरोप प्रथम दृष्टया सच प्रतीत होते हैं.

नरवाल और कालिता ने निचली अदालत के 28 अक्टूबर के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें, अदालत ने यह कहते हुए उनकी याचिका को खारिज कर दिया था कि उनके खिलाफ लगे आरोप प्रथम दृष्टया सही प्रतीत होते हैं और आतंकवाद विरोधी कानून के प्रावधानों को वर्तमान मामले में सही तरीके से लागू किया गया है.

उन्होंने दंगों से संबंधित गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के एक मामले में अपनी जमानत याचिका खारिज करने के निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए अपनी अपील दायर की थी.

गौरतलब है कि 24 फरवरी 2020 को उत्तर-पूर्व दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा भड़क गई थी, जिसने सांप्रदायिक टकराव का रूप ले लिया था. हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी तथा करीब 200 लोग घायल हो गए थे.


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