नई दिल्ली : दिल्ली सरकार ने अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर केंद्र सरकार के अध्यादेश पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
दिल्ली सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में फाइल की गई अपील, जिसमें कहा गया है कि केंद्र का अध्यादेश “असंवैधानिक है और इस पर तत्काल स्टे लगाया जाना चाहिए.”
Delhi government approaches Supreme Court regarding Center's ordinance regarding transfer posting of officers pic.twitter.com/uG1fSA3DaR
— ANI (@ANI) June 30, 2023
गौरतलब है कि केंद्र सरकार द्वारा अध्यादेश लाकर दिल्ली सरकार का सेवाओं पर अधिकार छीनने के बाद काफी आलोचना हुई थी. ममता बनर्जी समेत विपक्षी दलों ने केंद्र के फैसले को तानाशाही करार दिया था. इसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के आम आदमी पार्टी के सीएम भगवंत मान ने पूरे देश में कांग्रेस समेत विपक्षी दलों से संसद में इसके खिलाफ वोटिंग की मांग की थी और वह अलग-अलग विपक्षी नेताओं से इसको लेकर निजी तौर पर मुलाकात की थी.
हाल ही में, पटना में नीतीश की ओर से बुलाई गई विपक्षी दलों की मेगा बैठक में भी केजरीवाल ने इस मुद्दे पर बात करने की मांग की थी. केजरीवाल ने कहा था कि वह बैठक में तभी शामिल होंगे जब इस मुद्दे पर चर्चा होगी. हालांकि बाद में केजरीवाल बैठक में शामिल हुए लेकिन वह विपक्षी दलों की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद नहीं थे.
दिल्ली सरकार ने अध्यादेश का कड़ाई से अनुपालन का दिया था निर्देश
दिल्ली सरकार के विधि विभाग ने सभी शीर्ष अधिकारियों को इस महीने की शुरुआत में जारी सेवाओं से संबंधित केंद्र के अध्यादेश का ‘सख्त अनुपालन’ सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था.
विधि विभाग ने 26 मई को सभी अतिरिक्त मुख्य सचिवों, प्रधान सचिवों, सचिवों और विभागों के प्रमुखों को भेजे गए एक पत्र में, केंद्र द्वारा सेवाओं से संबंधित जारी राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार(संशोधन) अध्यादेश, 2023 का ‘सख्त अनुपालन’ करने के लिए कहा था.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने ‘दानिक्स’ कैडर के ‘ग्रुप-ए’ अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए ‘राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण’ गठित करने के उद्देश्य से 19 मई को एक अध्यादेश जारी किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को सौंपे थे अधिकार
अध्यादेश जारी किये जाने से महज एक सप्ताह पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी में पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि को छोड़कर अन्य सभी सेवाओं का नियंत्रण दिल्ली सरकार को सौंप दिया था.
दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) सरकार ने अध्यादेश को ‘असंवैधानिक’ करार दिया था और कहा था कि वह इसे उच्चतम न्यायालय में चुनौती देगी.
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