नई दिल्ली: लाल रंग की हुडी और फ्लिप-फ्लॉप पहने तकरीबन 20 साल की उम्र वाला एक युवक टूटी-फूटी ईंटों वाली एक झोपड़ी से बाहर आता है. वह अपने खड़े बालों को ठीक करता है और फिर चेहरे को गमछे से ढककर वहां से चल पड़ता है. वह ऐसा कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता कि उसके ‘दुश्मन’ पहचान लें.
वह युवक मोहित (बदला हुआ नाम) बताता है कि पिछले कुछ सालों से ‘इसी तरह छिपकर’ रह रहा है. यह गोलीबारी से बचने की एक कोशिश है और दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने भी उस पर कड़ी नजर बना रखी हैं.
दरअसल, राज्य स्तर के पूर्व पहलवान से अपराधी बना युवक दिल्ली के बख्तावरपुर गांव के पास दिप्रिंट से मिलने वाला है. लेकिन यह जगह एकदम एकांत में है, जहां तक नजरें जाती हैं जौ और सरसों के खेत के अलावा कुछ नहीं दिखाई देता.
उसने इस जगह को इसलिए चुना क्योंकि इसे पिछले एक दशक में दिल्ली में गैंगवार का केंद्र बन चुके अलीपुर और ताजपुर के गांवों के बीच एक अपेक्षाकृत ‘सुरक्षित क्षेत्र’ माना जाता है.
बैठक स्थल से कुछ ही मीटर की दूरी पर कुश्ती का एक अखाड़ा है जिसकी मिट्टी दोस्ती के दुश्मनी में बदलने और खूनखराबा होने की गवाही देती है. तमाम लड़के जो कभी यहां कुश्ती से गुर सीखने आते थे, अंततः आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो गए, और गांव के अखाड़ों के लिए यह कोई अनजानी घटना नहीं है.
अलीपुर और ताजपुर के प्रतिद्वंद्वी गिरोहों के बीच खूनखराबा सितंबर 2021 में दिल्ली की रोहिणी अदालत तक पहुंच गया था. उस शुक्रवार की दोपहर वकीलों की तरह कपड़े पहने दो लोगों ने ‘मोस्ट-वांटेड’ गैंगस्टर जितेंद्र मान उर्फ गोगी पर गोलियां दाग दी थीं. एक अन्य कुख्यात अपराधी सुनील ताजपुरिया उर्फ टिल्लू को कथित तौर पर इस हमले का मास्टरमाइंड होने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
गोगी अलीपुर का रहना वाला था और टिल्लू ताजपुर का. उनके बीच दुश्मनी से पहले कभी अच्छी-खासी दोस्ती थी. ताजपुर के मोहित के लिए इस कहानी का नायक टिल्लू है—जो उसकी नजर में ‘भगवान की तरह’ न्याय करने वाला इंसान है और अपनी जान गंवा चुका खलनायक गोगी ‘एक शैतान’ था.
गोगी और टिल्लू गैंग दिल्ली के तमाम आपराधिक गिरोहों में शामिल दो गैंग भर हैं.
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, शहर का अंडरवर्ल्ड आपराधिक गतिविधियों के एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा है जो पूरे उत्तर भारत में सक्रिय है. कई गैंग एक-दूसरे के साथ हाथ मिला लेते हैं और मिलकर काम करते हैं. लेकिन इनके बीच जबर्दस्त प्रतिद्वंद्विता और खूनखराबे की हद तक पहुंचने वाली दुश्मनी भी आम बात है.
जो भी हो, कई युवाओं और किशोरों को इन गिरोहों का ग्लैमर काफी प्रभावित करता है, ये उनके लिए जल्द पैसा कमाने का साधन हैं और यहां तक कि सोशल मीडिया पर भी साख बढ़ाते हैं. चमचमाती कारें, बड़ी-बड़ी बंदूकें, और कभी-कभी मौत की धमकी वाली रीलें ही उनके लिए अपनी पूंजी होती हैं.
समस्या यह है कि इस ‘क्लब’ में प्रवेश करना तो काफी आसान है, लेकिन इससे बाहर आने का रास्ता ढूढ़ना बहुत ही मुश्किल है.
हाशिम बाबा गिरोह से एक तरह बाहर आ चुके सदस्य जाहिद (बदला नाम) के मुताबिक, ‘एक बार जब आप अंडरवर्ल्ड में घुस जाते हैं, तो बाहर आने का कोई रास्ता नहीं होता.’
‘आप इससे छुटकारा नहीं पा सकते’
मोहित जहां थोड़ा डरा हुआ नजर आता है, वहीं जाहिद जो उम्र के चालीसवें दशक के पड़ाव पर है, पहली नजर में अधिक आत्मविश्वास से भरा लगता है.
वह अच्छी तरह से सजे अपने बड़े से घर में दिप्रिंट का स्वागत करता है, लेकिन एक बार अंदर पहुंचने पर उसकी सारी बहादुरी थोड़ी कम नजर आने लगती है. अपने सोफे पर बैठकर वह आठ सीसीटीवी फीड्स के जरिए घर के हर कोने-हर दरवाजे पर नजरें बनाए हुए है.
जाहिद ने बताया कि वह तिहाड़ जेल में अपनी सजा काट रहा था, तभी गैंगस्टर हाशिम बाबा के संपर्क में आया, जिसे हत्या, जबरन वसूली और अपनी सोने की जंजीरों के लिए जाना जाता था. वह बताता है कि यह सब छोड़ने की कोशिश कर रहा है, लेकिन यह आसान नहीं है.
वह बताता है, ‘अगर मैं अपना फोन बंद कर दूं, तो कोई व्यक्ति आकर मुझसे यह कह जाएगा कि ‘बाबा बात करना चाहते हैं.’
उसके मुताबिक, ‘जिंदा रहना है तो बेहतर यही है कि आप उनका काम करते रहे, उन्हें प्रोटेक्शन मनी देते रहे हैं और इस तरह कई सीसीटीवी कैमरों के साथ बैठे.’
यद्यपि मोहित और जाहिद दोनों का दावा है कि वे अब अपने गिरोहों में सक्रिय नहीं हैं, लेकिन दोनों ही अपने-अपने सरगनाओं को आदर्श मानते हैं और गैंग के बारे में हर ताजा खबर पर कड़ी नजर रखते हैं.
जाहिद कहता है, ‘बाबा एक पवित्र आत्मा है. मैं आपको उनकी नवीनतम फोटो दिखाऊंगा.’ उसने काफी गर्व के साथ हाशिम बाबा की एक फोटो भी दिखाई जिसमें वह अरमानी टी-शर्ट पहने और रेड बुल पीते हुए काफी डैपर दिख रहा है.
हालांकि, जाहिद यह भी मानता है कि ‘पवित्र आत्मा’ हाशिम बाबा और अन्य गैंगस्टर्स को कम उम्र के लड़कों को अपनी आपराधिक गतिविधियों का हिस्सा बनाने का कोई पछतावा नहीं है. और पिछले कुछ सालों में तो यह काम और भी आसान हो गया है क्योंकि गानों, फिल्मों और सोशल मीडिया में इस तरह की जीवनशैली का जमकर महिमामंडन किया जाता है.
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युवाओं को कैसे फंसाते हैं जाल में
पुलिस और आम जनता की नजरों में जहां गैंगस्टर खतरनाक अपराधी हैं. वहीं युवाओं के एक वर्ग के लिए स्थानीय माफिया रॉबिन हुड जैसी छवि रखता है, और उन्हें ये ऐसे नायक लगते हैं जो अन्यायपूर्ण व्यवस्था के खिलाफ विद्रोह कर रहे हैं और पीड़ितों का भला करने में जुटे हैं.
कई गैंगस्टर्स भले ही चाहे जैसा जीवन जी रहे हों, लेकिन अपने आसपास एक लार्जर दैन लाइफ इमेज बनाकर रखते हैं, कुछ के सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में फॉलोअर हैं तो कुछ ने अपनी छवि सेलिब्रिटी जैसी बना ली है.
गैंगस्टरों के नाम के ट्रेंडिंग हैशटैग, उनकी गतिविधियों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने वाली रील और फेसबुक फैन पेज लाजिमी हैं. हिंसा, प्रेम और धन के बीच की रेखाएं जहां धुंधली हो जाती हैं और इस सबको आकर्षक गीतों के साथ जोड़ दिया जाता है तो तमाम लोगों के ऐसे कल्चर से प्रभावित होने की पूरी गुंजाइश होती है.
दिप्रिंट ने जब फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम को स्कैन किया तो कई ऐसे वीडियो और रील मिलीं जिसमें लड़के बैकग्राउंड में इस तरह के संगीत के साथ खुद को माचो दर्शाने की कोशिश करते हैं. पिछले साल मई में गैंगवार में मारे गए पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला के गाने तो लोकप्रिय हैं, लेकिन कम चर्चित कलाकारों के ‘गन लेबल’ और ‘पिस्टल’ जैसे गाने भी खासे लोकप्रिय हैं.
न केवल युवाओं को लुभाया जाता है, गिरोह सक्रिय तौर पर नाबालिगों को भर्ती करने की कोशिश भी करते हैं.
मोहित और जाहिद दोनों के मुताबिक, छोटी-मोटी गतिविधियों के लिए आम तौर पर 12 से 16 वर्ष की आयु वर्ग के लड़कों को ज्यादा उपयुक्त माना जाता है. मुख्य कारण कानूनी नियम-कायदों का फायदा उठाना है, क्योंकि जघन्य अपराधों में लिप्त होने पर भी किशोरों को (कुछ अपवाद छोड़ दें तो) कुछ महीनों के लिए जुवेनाइल होम ही भेजा जाता है.
जाहिद के मुताबिक, ‘बच्चों को अपने जाल में फंसाने के लिए गिरोह के सदस्य उन्हें शुरू थोड़े पैसे देते हैं, उनके साथ एक सेल्फी लेते हैं और कभी-कभी उन्हें अपनी कारों में घुमाने भी ले जाते हैं.’
एक बार बच्चों के झांसे में आ जाने के बाद उन्हें ड्रग्स, पैसा और यहां तक कि हथियारों को इधर-उधर पहुंचाने, उन्हें छिपाकर रखने या बिक्री की जिम्मेदारी तक दी जाती है. मोहित के मुताबिक, इसके बदले में उन्हें काम के आधार पर 5,000 से 10,000 रुपये मिलते हैं. और ये लड़के भी ब्रांडेड कपड़े जैसी चीजें खरीद पाने में सक्षम होने के कारण खुश हो जाते हैं.’
इन्हीं में से कुछ लड़के आगे चलकर गिरोह में बड़ी जगह बनाते हैं.
जाहिद ने बताया, ‘सबसे पहले, उन्हें छोटे-मोटे काम करने को कहा जाता है—जैसे यहां ड्रॉप-ऑफ करना है या वहां से पिक-अप करना है. धीरे-धीरे कार्यों का पैमाना और फ्रीक्वेंस बढ़ती जाती है. अंतत: ये लड़के व्यवसाय के छोटे-मोटे हिस्सों को नियंत्रित करना शुरू कर देते हैं. मूलत: छह माह की अवधि में ही वे गिरोह के संचालन का अहम हिस्सा बन जाते हैं.’
इसमें भाड़े के हत्यारों के रूप में काम करना तक शामिल हो सकता है, लेकिन ये बच्चे अंतत: गैंगवार में सिर्फ प्यादे ही होते हैं. पिछले कुछ वर्षों में किशोरों के गिरोहों की आपराधिक गतिविधियों में संलिप्तता के कई मामले सामने आए हैं.
उदाहरण के तौर पर, मई 2018 में एक 17 वर्षीय लड़के ने दिल्ली की तीस हजारी अदालत में हत्यारोपी दिनेश करालिया की गोली मारकर हत्या कर दी था. लड़का टिल्लू गिरोह का सदस्य था और करालिया प्रतिद्वंद्वी गोगी गिरोह का एक सहयोगी था.
सिद्धू मूसेवाला की हत्या में शामिल 19 वर्षीय अंकित सेरसा कथित शूटर्स में से एक था. पंजाब के लॉरेंस बिश्नोई-गोल्डी बरार गिरोह के साथ आने से पहले सेरसा एक दिहाड़ी मजदूर था. उसे दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने जुलाई 2022 में पकड़ा था और फिलहाल वह जेल में है.
पुलिस सूत्रों का कहना है कि सोशल मीडिया भी युवा लड़कों को अपराध की राह पर चलने को काफी ज्यादा प्रेरित करता है. व्यापक स्तर पर बेरोजगारी भी एक बड़ी वजह है.
एक पुलिस सूत्र ने कहा, ‘किशोरों के इस्तेमाल की प्रवृत्ति धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है. हम कह सकते हैं कि यह पिछले 10 वर्षों में काफी बढ़ा है.’ सूत्र ने मोहित और जाहिद की इस बात को भी सहमति जताई कि इसकी वजह किशोरों के अपराध के मामले में सजा की दर कम होना और कोर्ट की तरफ से सजा देते समय नरमी दिखाना भी है.
अंडरवर्ल्ड की राजनीति
कभी खुद एक कुश्ती चैंपियन रहा मोहित बताता है कि गोगी और टिल्लू की कहानी कई अन्य गैंगस्टरों की तरह ही है, जो अपने शुरुआती दिनों में दोस्त हुआ करते थे और मिलजुलकर कुश्ती के दांव-पेच आजमाते थे.
लेकिन गोगी और टिल्लू की यह दोस्ती 2010 के शुरू में गहरी दुश्मनी में बदल गई, और उनके बीच यह प्रतिद्वंद्विता तब शुरू हुई जब उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कॉलेज में छात्रसंघ चुनाव के दौरान विरोधी खेमे के साथ हाथ मिलाया.
दरअसल, ये दोनों ही दिल्ली का सबसे बड़े डॉन बनने की आकांक्षा रखते थे और 2013 में गैंगस्टर नीतू दबोदिया की हत्या और 2015 में एक अन्य अपराधी नीरज बवाना की गिरफ्तारी के बाद बनी जगह को भरना चाहते थे.
मोहित को आज भी याद है कि कैसे आमने-सामने आने पर उन दोनों के चेहरों के भाव एकदम बदल जाते थे.
वह बताता है, ‘एक बार, जब गोगी जेल से बाहर आया, तो उसने और टिल्लू ने अपनी-अपनी कारों को बीच बाजार में एक-दूसरे के सामने खड़ा कर दिया. यह सारा तमाशा घंटों चलता रहा. दोनों में से कोई पीछे हटने को तैयार नहीं था. हालांकि, मुझे याद नहीं कि आखिर में उन दोनों में से कौन जीता.’
जिस रात गोगी को टिल्लू गिरोह के आदमियों ने मार डाला, उस रात अलीपुर और ताजपुर दोनों किले में तब्दील हो गए और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारी पुलिस बल तैनात कर दिया गया.
राजनीति की तरह उत्तरी अंडरवर्ल्ड दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, यूपी और पंजाब तक फैला है और आपस में जुड़े नेटवर्क के जरिये संचालित होता है. कुछ दोस्ती ऐसी हैं जो खेल प्रशिक्षण और छात्र राजनीति के दौरान शुरू हुईं थी, और कुछ गठबंधन जेल में बने ताकि अपने साझे दुश्मन का मुकाबला कर सकें.
उदाहरण के तौर पर, मूसेवाला की हत्या के कथित मास्टरमाइंड लॉरेंस बिश्नोई पंजाब यूनिवर्सिटी में खेल के मैदान पर प्रशिक्षण के दौरान अपने करीबी सहयोगियों संपत नेहरा और काला राणा से संपर्क में आया था. बाद में, जेल में बिश्नोई ने काला जठेड़ी गिरोह के साथ हाथ मिलाया.
इस नेक्सस में अब कपिल सांगवान उर्फ नंदू (जो फरार है) जैसे 700 से अधिक सदस्य और गोल्डी बरार (वर्तमान में अमेरिका में होने का संदेह) जैसे सहयोगी भी शामिल है. पुलिस सूत्रों का कहना है कि इस गठजोड़ में गोगी का भी हाथ था और अपराधी रोहित मोई नया सरगना बनकर उभर रहा है.
अन्य प्रमुख प्रतिद्वंद्वी सिंडिकेट लकी पटियाल-बंबीहा-कौशल का नेक्सस है, जिसमें टिल्लू और नीरज बवाना गिरोह शामिल हैं. पटियाल के जहां अर्मेनिया में होने का संदेह है, वहीं पंजाब के देवेंद्र बंबीहा को 2016 में पुलिस ने गोली मार दी थी. मूसेवाला की हत्या के बाद, इन दोनों गिरोहों ने कथित तौर पर सोशल मीडिया पर एक-दूसरे को धमकी दी थी.
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गैंगस्टर्स के पास कहां से आता है पैसा
गिरोह का पूरा खर्चा-पानी उस पैसे से चलता है जिसे वे ‘फाइनेंस’ कहते हैं, और यह आता है जबरन वसूली, संपत्ति की खरीद-फरोख्त में दलाली, और व्यवसायियों को परेशानी से बचाने के नाम पर हफ्ता वसूली से.
जाहिद बताता है, ‘अगर फाइनेंस न हो तो यह सारी गतिविधियां चलाना मुश्किल हो जाए.’
थोड़ा जोर देने पर वह इस ‘फाइनेंस’ के बारे में विस्तार से बताता है. अधिकांश गिरोहों के लिए, इसका साधन अपने प्रभाव क्षेत्रों में संपत्ति विवाद सुलझाने के लिए मिलने वाला पैसा है. यह वाणिज्यिक, कृषि, या आवासीय उपयोग के लिए भूमि से संबंधित हो सकता है.
वह बताता है, ‘मान लो दो पक्ष जमीन के किसी एक टुकड़े पर दावा जता रहे हैं. और कई सालों से विवाद चल रहा है. ऐसे में हम बीच में आते हैं और मामले सुलझा देते हैं, और फिर इसके बदले में उन पक्षों से कुछ पैसा ले लेते हैं.’
मोहित के मुताबिक, हफ्ता या प्रोटेक्शन मनी आय का एक और साधन है. यदि क्षेत्र में कोई व्यावसायिक घराना चल रहा है, जैसे कोई निर्माण इकाई तो गिरोह हर महीने के अंत या शुरुआत में एक निश्चित राशि वसूल करता है.
इस ‘फाइनेंस’ के अलावा गिरोह सट्टे और जुएं भी निर्भर हते हैं जो खेल आयोजनों के दौरान तो चलता ही है, बुक सिस्टम से भी होता है. बुक सिस्टम एक लॉटरी की तरह है, जिसमें ऑपरेटरों के एक विशाल नेटवर्क में संख्याओं पर दांव लगाने वाले कई अपराधी शामिल होते हैं. वह बताता है कि इसमें अंतिम विजेता और परिणाम एक पक्ष की तरफ से तय किया जाता है.
जाहिद बताता है, ‘क्रिकेट मैच जैसे किसी भी बड़े खेल आयोजन के दौरान, गिरोह भी सट्टेबाजों के माध्यम से सट्टा लगाते हैं.’
सभी गिरोहों और सिंडिकेट के लिए बस पैसा ही भगवान है. एक पुलिस सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, बस यही सबसे ज्यादा मायने रखता है.
एक अन्य पुलिस सूत्र ने कहा, ‘ज्यादातर मामलों में पीड़ित डर के मारे पैसे के लिए उन्हें परेशान करने वाले इन गिरोहों के खिलाफ शिकायत तक नहीं करते.’
अपनी बालकनी से झांकते हुए, जाहिद उन जगहों की ओर दिखाता है जहां ड्रग्स का कारोबार होता है. वह बीच-बीच में फोन के जरिये सीसीटीवी फीड पर भी नजर बनाए हुए है.
शाम ढलने के बीच वह काफी उत्सुकता के साथ एक फोन कॉल का जवाब देता है और अचानक मेन गेट की ओर बढ़ जाता है. और विदा लेते हुए कहता है, ‘मुझे बता देना, क्या आपको किसी गैंगस्टर से मिलना है. मैं मिलवा सकता हूं.’
(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: ऋषभ राज)
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