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Friday, 26 April, 2024
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20 महीने की बच्ची ने बचाई 5 लोगों की जिंदगी, बनी सबसे कम उम्र की अंगदाता

20 महीने की बच्ची धनिष्ठा भारत की सबसे युवा कैडेवर अंग दाता है. उसका दिल, जिगर, दोनों गुर्दे और दोनों कॉर्निया को अन्य रोगियों को ट्रांसप्लांट किया गया है.

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नई दिल्ली: करीब एक हफ्ते पहले तक, बबीता गुप्ता यह सोच रही थीं कि वह 1 मई को अपनी बेटी का दूसरा जन्मदिन कैसे मनाएंगी. धनिष्ठा का पहला जन्मदिन कोविड लॉकडाउन के दौरान आया जिस दौरान कोई बड़ा उत्सव नहीं हो पाया. 32 वर्षीय उस मां ने शायद सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उन्हें अब बेटी के अंतिम संस्कार की तैयारी करनी होगी.

दो कमरों के उनके मकान में सामने प्रवेश करते ही गुलाब और गेंदे के फूलों की सजावट के बीच धनिष्ठा की एक तस्वीर रखी है. जब भी बबीता अपनी बेटी की वीडियो और तस्वीरों को देखती हैं तो उनकी आंखों में नमीं आ जाती है. लेकिन साथ ही चेहरे पर एक हल्की मुस्कुराहट भी है. आखिर उनकी बेटी ने पांच लोगों की जान बचाने में मदद की.

20 महीने की यह बच्ची भारत की सबसे युवा कैडेवर अंगदाता है. उसका दिल, जिगर, दोनों गुर्दे और दोनों कॉर्निया को अन्य रोगियों को ट्रांसप्लांट किया गया है.

कैडेवर डोनर वह होता है जो ब्रेन डेड होता है. आमतौर पर, ऐसे दाताओं से हृदय, फेफड़े, गुर्दे, यकृत और अग्न्याशय इत्यादि ट्रांसप्लांट किया जा सकता है.

धनिष्ठा 8 जनवरी को खेलते समय पहली मंजिल पर स्थित अपने घर की बालकनी से गिर गई थी. बेहोश होने पर उसे अस्पताल ले जाया गया. चार दिन बाद, 11 जनवरी को दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में डॉक्टरों ने उसके मस्तिष्क को मृत घोषित कर दिया. यानी उसके सभी अंग अच्छी तरह से काम करने के बावजूद, इसका मतलब था कि वह कभी नहीं जागेगी.

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उनके माता-पिता बबीता और आशीष गुप्ता ने कहा कि उनका ये फैसला उनके खुद के लिए हैरान कर देने वाला था, जब उन्होंने बच्ची के अंगों को दान करने का फैसला किया.

आशीष ने कहा, ‘जब हम अस्पताल में रह रहे थे, तो हमने कई मरीजों को देखा जिन्हें अंगों की सख्त जरूरत थी. हमारी बेटी को ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया था लेकिन हमने सोचा कि हम उसके अंगों को दान करके उसे दूसरों के ज़रिए जीवित रख सकते हैं.’

सर गंगा राम अस्पताल के चेयरमैन डॉ डीएस राणा ने कहा कि परिवार का फैसला महान और प्रशंसनीय है और इस से दूसरों को भी इसी तरह अंग दान करने के लिए प्रेरणा मिलेगी.

उन्होंने कहा, ‘प्रति मिलियन पर 0.26 आंकड़े के साथ भारत में अंग दान की दर सबसे कम है. औसतन 5 लाख भारतीय हर साल अंगों की कमी के कारण मर जाते हैं.’


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‘कठिन निर्णय लेकिन सही लगा’

अंग दान के लिए किसी व्यक्ति की मृत्यु के समय चिकित्सा उपयुक्तता तय की जाती है. स्वस्थ अंगों को जल्द से जल्द प्रत्यारोपित किया जाता है और प्रत्येक अंग का एक अलग जीवन होता है.

धनिष्ठा के माता-पिता के लिए यह निर्णय आसान नहीं था. आशीष का कहना है कि उसकी मौत से परिवार को पहले ही काफी मानसिक आघात लगा था.

‘यह एक कठिन निर्णय था लेकिन हमें यह सही लगा.’

एक प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका बबीता ने कहा कि वह शुरू में पोस्टमार्टम के बारे में सोचकर डर गई थीं लेकिन अंततः उन्होंने अपने डर पर काबू पा लिया.

‘जब मुझे बताया गया कि मेरी बेटी का पोस्टमार्टम किया जाएगा, तो मैं तड़प उठी. मेरी बेटी के शरीर पर एक खरोंच लगने की कल्पना से ही में डर गई. मैं डॉक्टरों से पोस्टमार्टम नहीं करने की विनती कर रही थी.’

बबीता ने बताया कि हालांकि उनकी बेटी पहली मंजिल से गिरी थी लेकिन उसे कोई बाहरी चोट नहीं थी. ‘मैं चाहती थी कि मैं उसे अंतिम संस्कार के दौरान उसकी पसंदीदा पोशाक पहनाऊं.’

तब उन्होंने अस्पताल में अन्य माता-पिता को रोते बिलखते देखा तो यह सोचते देर नहीं लगी कि कैसे धनिष्ठा उनके जीवन में एक उम्मीद की नई किरण बन सकती है.

‘मैंने एक मां को देखा, जिसके पांच साल के बच्चे का दिल फेल हो गया था. वह दर्द में थी और रो रही थी. मैंने खुद को उसकी जगह पाया. तभी मुझे एहसास हुआ कि भले ही मैं दर्द में थी लेकिन मैं नहीं चाहती थी कि कोई और मां मेरे जैसी स्थिति में हो.’

अब, हालांकि धनिष्ठा शारीरिक रूप से मौजूद नहीं है लेकिन बबीता ने कहा कि उन्हें ऐसा महसूस होता है कि वह उन लोगों के माध्यम से जीवित है जिनको उसने अंग दान करके जीवन दिया है.


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कॉउंसलिंग से हमें मदद मिली

धनिष्ठा के परिवार में अंग दान का यह पहला मामला है. परिवार में किसी के अंगों का दान नहीं किया गया था और न ही उन्हें ऐसे किसी के बारे में पता था.

आशीष ने कहा, ‘मैंने अंग दान के बारे में सुना था लेकिन इससे अनजान था. इससे पहले मैंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया क्योंकि हम ऐसे समाज में रहते हैं जहां अंग दान अभी भी वर्जित समझा जाता है.’

‘लेकिन सही तरह की काउंसलिंग के माध्यम से, हम इसके महत्व और लाभों को समझने में सक्षम थे. हमने सुनिश्चित किया कि इस प्रक्रिया में पूरी पारदर्शिता हो.’

धनिष्ठा के दादाजी मथुरा प्रसाद गुप्ता ने कहा कि वह अंधविश्वासों के कारण अंग दान के खिलाफ थे लेकिन उनके बेटे और बहू के फैसले और साहस ने उनके मन को बदल दिया.

उन्होंने कहा, ‘मैं मानता था कि यदि कोई विशेष अंग दान करता है, तो अगले जन्म चक्र में, वे उस अंग से वंचित रह जाते हैं या कुछ शिथिलता के साथ पैदा होते हैं. लेकिन काउंसलिंग के बाद और अपने बच्चों के विश्वास को देखते हुए, मैंने भी इस परमार्थ के कार्य का महत्व समझा.’

‘हमारे कई रिश्तेदार भी थे जिन्होंने सवाल उठाए और अपनी शंका जाहिर की. कुछ ने यह भी कहा कि हम पैसे के लिए ऐसा कर रहे हैं, जिस तरह से लोग पैसे के लिए किडनी बेचते हैं. लेकिन हमने किसी की राय नहीं सुनी.’

परिवार सबसे यही अपील करता है कि लोग रूढ़िवादी विचारों से ऊपर उठें और अंगदान के लिए आगे आएं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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