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Thursday, 7 November, 2024
होमदेशएचसीक्यू से कोविड का ख़तरा घटने संबंधी आईसीएमआर के अध्ययन पर एम्स दिल्ली और रायपुर के डॉक्टरों ने उठाए सवाल

एचसीक्यू से कोविड का ख़तरा घटने संबंधी आईसीएमआर के अध्ययन पर एम्स दिल्ली और रायपुर के डॉक्टरों ने उठाए सवाल

एम्स नई दिल्ली और रायपुर के डॉक्टरों ने अलग-अलग भेजे गए दो पत्रों में मई में प्रकाशित आईसीएमआर के अध्ययन में अपनाई गई प्रणाली पर संदेह जताया है.

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नई दिल्ली: एम्स रायपुर और एम्स नई दिल्ली के डॉक्टरों के दो समूहों ने एक अध्ययन के लिए आईसीएमआर की तरफ से अपनाई गई प्रणाली पर सवाल उठाए हैं, जिसमें कहा गया था कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन या एचसीक्यू स्वास्थ्यकर्मियों के कोविड-19 के चपेट में आने का जोखिम घटा सकती है.

इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने मार्च में एचसीक्यू का इस्तेमाल शुरू करने संबंधी परामर्श जारी किया था, लेकिन इसके नॉवेल कोरोनावायरस के खिलाफ फायदेमंद होने के वैज्ञानिक साक्ष्य न होने की वजह से उसकी आलोचना हुई थी. उस समय तक ऐसा कोई अध्ययन सामने नहीं आया था जो साबित करता हो कि मलेरिया-रोधी यह दवा कोविड-19 से बचाने में सक्षम है.

इसके बाद मई में आईसीएमआर ने घोषणा की थी कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का इस्तेमाल करने से कोविड-19 से संक्रमित होने की आशंका घट जाती है. साथ ही इसने नॉवेल कोरोनावायरस के खिलाफ रोग निरोधक के तौर पर एचसीक्यू का इस्तेमाल बढ़ाने की सिफारिश करते हुए एक परामर्श भी जारी किया था. पूरा अध्ययन 20 जून को प्रकाशित हुआ था.

लेकिन अब गत शनिवार को इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईजेएमआर) में प्रकाशित एक पत्राचार में एम्स रायपुर के डॉक्टरों हबीब एम.आर. करीम और गजल अहमद ने अध्ययन की प्रणाली पर सवाल उठाए.

उन्होंने लिखा, ‘अध्ययनकर्ताओं ने केवल सिम्पटमैटिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (एचसीडब्ल्यू) को शामिल किया जिन्हें मामलों में या नियंत्रित तरीके से टेस्ट में पॉजिटिव या निगेटिव पाया गया. चूंकि सार्स-कोव-2 संक्रमण के शिकार होने वालों में बड़ी संख्या एसिम्पटोमैटिक की होती है, इसलिए केवल सिम्पटोमैटिक एचसीडब्ल्यू को शामिल करके रोग निरोधक के तौर पर एचसीक्यू लेने/या नहीं लेने के लिहाज से सभी स्वास्थ्यकर्ताओं का प्रतिनिधित्व दिखाना संभव नहीं है.

दोनों ने यह भी तर्क दिया कि निष्कर्षों का विश्लेषण वर्क एनवायरमेंट और प्रक्रियाओं के संदर्भ में भी किया जाना चाहिए था- अर्थात, क्या इंटेंसिव केयर यूनिट में पुष्ट मरीजों की देखभाल कर रहे और संबंधित प्रक्रियाओं से जुड़े स्वास्थ्यकर्मियों को सामान्य स्वास्थ्यकर्ताओं, जिन्हें एचसीक्यू के साथ कोविड-19 से समान प्रोटेक्शन मिला हुआ है, की तुलना में संक्रमण का खतरा ज्यादा होता है.

उनका तर्क है कि नतीजों की स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए ऐसा डाटा प्रस्तुत किया जाना चाहिए था.

उसी जर्नल में प्रकाशित अपने जवाब में आईसीएमआर के अध्ययन के लेखकों, महामारी विज्ञानी रमन गंगाखेड़कर और शीर्ष अनुसंधान निकाय के महानिदेशक बलराम भार्गव सहित, ने अध्ययन के डिजाइन का बचाव किया और कहा कि अध्ययन में केवल सिम्पटोमैटिक पार्टिसिपेंट को ही शामिल करने से ‘पूर्वाग्रह घटाने’ में मदद मिली. हालांकि उन्होंने इस बारे में विस्तार से कुछ नहीं बताया.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि एचसीक्यू के इस्तेमाल पर आगे कुछ भी तय करने के संदर्भ में बिना क्रम नियंत्रित परीक्षणों (आरसीटी) के नतीजों का इंतजार किया जा रहा है.


यह भी पढे़ं: अध्ययन में दावा- कोरोनावायरस कोविड की दवा रेमडेसिवीर के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर सकता है


एम्स दिल्ली की टीम ने सवाल उठाए

आईजेएमआर में प्रकाशित एक अलग पत्राचार में एम्स, दिल्ली के डॉक्टरों, प्रवीण तिरलांगी, आदिल राशिद खान, देवाशीष देसाई और मनीष सुनेजा ने अध्ययन कुछ और वजहों से सीमित रहने का मसला उठाया.

आईसीएमआर के अध्ययन में उल्लेख था कि एचसीक्यू की 2 या 3 से कम साप्ताहिक खुराक लेने से कोविड-19 के मामले में वृद्धि हुई.

लेखकों ने इसे स्वास्थ्यकर्मियों के व्यवहार में परिवर्तन का जिम्मेदार मानते हुए कहा था कि जिन लोगों ने एचसीक्यू लेना शुरू किया, वे संभवतः सुरक्षा की झूठी भावना के कारण अन्य सावधानियां बरतने में लापरवाह हो गए थे.

हालांकि, तिरलांगी और उनकी टीम ने कहा, ‘जो स्वास्थ्य कार्यकर्ता संक्रमित नहीं हुए हैं, उनके एचसीक्यू रोग निरोधक (बचाव) लंबी अवधि तक लेना जारी रखने की अधिक संभावना है. इस प्रकार लंबे समय तक एचसीक्यू रोग निरोधक का इस्तेमाल और संक्रमण दर में कमी के बीच एक सहज जुड़ाव होता है.’

इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने कहा एचसीक्यू पर कई नकारात्मक अध्ययन सामने आने के साथ-साथ नकारात्मक प्रेस कवरेज को देखते हुए यह मान लेना असंभव है कि एचसीक्यू लेने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ता लापरवाह हो गए थे.

एम्स, दिल्ली की टीम ने पहले एचसीक्यू का पक्ष लिया था

हालांकि, मई में इसी एम्स दिल्ली की टीम ने द लांसेट में प्रकाशित एक अध्ययन में स्वास्थ्यकर्मियों के बीच एचसीक्यू के इस्तेमाल का पक्ष लिया था जिसमें महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज ऑफ महाराष्ट्र और सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली से महामारी विज्ञानियों की एक टीम ने सबूतों की कमी के बावजूद एचसीक्यू के इस्तेमाल की आईसीएमआर की सिफारिश पर सवाल उठाए थे.

नए पत्राचार में तिरलांगी की टीम ने कहा कि पूर्व में सार्स-कोव-एक कोरोनवायरस वायरस जिसने 2002 में महामारी फैलाई थी—के दौरान यह बात सामने आई थी कि अमोनियम क्लोराइड से सार्स-कोव संक्रमित कोशिकाओं के अल्पकालिक इलाज ने विरोधाभासी रूप से संक्रमण का खतरा दो से चार गुना तक बढ़ा दिया था.

उन्होंने लिखा, ‘इस प्रकार, यह जैविक रूप से संभावित है कि एचसीक्यू की अपर्याप्त सांद्रता संक्रमण के खतरे को बढ़ा सकती है.’ टीम ने प्रारंभिक चरण में एचसीक्यू की खुराक बढ़ाने की सिफारिश की है.

टीम ने लिखा, ‘आबादी के एक बड़े हिस्से के लिए एचसीक्यू रोग निरोधक का इस्तेमाल किए जाने से पहले इस तरह के पहलुओं की जांच होनी चाहिए.’

इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए आईसीएमआर के अध्ययन के लेखकों ने कहा कि यह बताने के लिए कम अवधि के लिए एचसीक्यू का इस्तेमाल सार्स-कोव-2 के संक्रमण का क्यों खतरा बढ़ा सकता है, सार्स-कोव पर इन-विट्रो या लैब स्टडीज के नतीजों को विस्तारित करना अनुचित है.

उन्होंने आगे कहा कि एचसीक्यू की खुराक में कोई भी बदलाव केवल उचित प्रयोगशाला अध्ययन करने के बाद ही किया जा सकता है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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