नई दिल्ली: दिल्ली दंगों पर गुरूवार को राज्य सभा में हुई बहस कमोबेश राजनीतिक ही रही. इस दौरान गुजरात दंगों के साथ-साथ 1984 में हुए दंगों का भी जिक्र किया गया. सभी पार्टियों के नेता शेरो-शायरी करते नज़र आए. विपक्षी पार्टियों ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाए कि दंगों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने पर्याप्त कदम नहीं उठाए. टीएमसी सांसद ब्राइन ने कहा कि इन दंगों के लिए प्रधानमंत्री और गृह मंत्री को जिम्मेदारी लेनी चाहिए.
भाजपा सांसद विजय गोयल ने कहा कि अगर शाहीन बाग नहीं होता तो दिल्ली में दंगे भी नहीं होते. उन्होंने केजरीवाल और मनीष सिसोदिया पर भी निशाना साधा.
कांग्रेस सांसद कपिल सिब्बल ने दिल्ली पुलिस पर सवाल खड़े किए. उन्होंने कहा, ‘यह स्पष्ट है कि पुलिस ने उन लोगों की मदद की जो हिंसा कर रहे थे जिसकी वजह से निर्दोष लोगों की जान गई है. जिनका दंगों से कोई लेना-देना नहीं था.’
आनंद शर्मा ने कहा, ‘देश और समाज को धार्मिक तौर पर बांटने की लंबे समय से कोशिश हो रही है. धर्म और राजनीति का मिश्रण खतरनाक है. जो कुछ हुआ वो भारतीय प्रजातंत्र पर कलंक है. दिल्ली दंगे जैसे नफरत के समय में भी मानवता नहीं मरी. हिंदू-मुस्लिमों ने इसकी कई मिसालें दी हैं.’ संसद में दिल्ली दंगों पर चर्चा होने में काफी देरी हुई है
उन्होंने कहा कि दंगों पर न्यायिक कमीशन के जरिए जांच कराई जानी चाहिए.
यह भी पढ़ें: कांग्रेस अपने ऐतिहासिक कर्तव्य में विफल हो रही है वहीं भाजपा को हराने के रास्ते में भी अड़चन बनकर खड़ी है
बता दें कि विपक्षी पार्टियां संसद में दिल्ली दंगों पर होली से पहले चर्चा करना चाहती थी लेकिन सरकार इसपर राज़ी नहीं थी.
गौरतलब है कि अमित शाह ने बुधवार को लोकसभा में दिल्ली पुलिस की तारीफ की थी और कहा था कि पुलिस ने इन दंगों पर 36 घंटे के भीतर ही काबू कर लिया था. ब्राइन ने अमित शाह से सवाल किया कि अगर दिल्ली पुलिस ने अच्छा काम किया तो एनएसए को क्यों भेजना पड़ा?
आम आदमी पार्टी सांसद संजय सिंह ने कहा, ‘तीन दिन तक दिल्ली जलती रही फिर भी गृह मंत्री सोते रहे. दिल्ली के मुख्यमंत्री ने गृह मंत्री से एक्शन लेने को कहा लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया.’
आनंद शर्मा ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि इतनी बड़ी संख्या में पुलिस के होते हुए भी अगर दंगे हुए फिर तो जवाबदेही तय होनी चाहिए. दुनिया में देश की छवि धूमिल हुई है.
सिब्बल ने कहा, ‘ये हिंसा वायरस की वजह से हुई है जो कि सांप्रदायिक वायरस है. जो भाषण देने वाले लोग फैला रहे हैं. मैं गृह मंत्री से पूछना चाहता हूं कि जिन लोगों ने ऐसे भाषण दिए थे उनपर कोई एफआईआर क्यों नहीं हुई है.’
विपक्षी पार्टियों द्वारा उठाए जा रहे सवाल पर भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि ये दंगे एक आंदोलन के बाद हुए हैं. उन्होंने कहा कि ये एक ऐसा आंदोलन था जिसमें कोई प्रतिनिधि नहीं था और न ही कोई मांग थी. ऐसी दशा में संदेह उत्पन्न होता है.
यह भी पढ़ें: दिल्ली हिंसा पर विपक्ष ने एकसुर में मांगा अमित शाह से इस्तीफ़ा, भाजपा ने दिलाई कांग्रेस काल में हुए दंगों की याद
नरसंहार को एक प्रक्रिया बताते हुए डेरेक ब्राइन ने कहा कि ये भड़काऊ बयानों और नारों से शुरू होती है. केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि इस सरकार की बड़ी उपलब्धियों में बेरोज़गारी, दंगे, लिंचिंग शामिल है.
केरल से सीपीआई(एम) के सांसद एलमाराम करीम ने दिल्ली दंगों का मुख्य दोषी गृह मंत्री को बताया और कहा कि पुलिस ने अपना काम पूरे तरीके से नहीं किया. नरेंद्र मोदी और अमित शाह पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि गुजरात दंगों के दौरान जो दो मुख्य चेहरे थे वो दिल्ली दंगों के दौरान आज केंद्र सरकार में हैं.
डीएमके सांसद त्रिरुची शिवा ने दिल्ली दंगों पर सुप्रीम कोर्ट के जज के नेतृत्व में जांच करवाने की मांग की.
अकाली दल से सांसद नरेश गुजराल ने कहा कि आरोप-प्रत्यारोप से हमें बचना चाहिए. सौहार्द और शांति देश में बनी रहनी चाहिए. उन्होंने कहा, ‘दिल्ली के इतिहास में 23 फरवरी एक काला दिन है. इसने मुझे 1984 की याद दिला दी जिसमें दिल्ली की सड़कों पर 300 निर्दोष लोग मारे गए थे. निष्पक्ष जांच ही सच को सामने ला सकती है.’