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Sunday, 17 November, 2024
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गंगा को साफ करने की समयसीमा अगले साल है लेकिन अभी 70 फीसदी काम बाकी

जल शक्ति के आंकड़ों से पता चलता है कि नमामि गंगे के तहत मंजूर किए गए 150 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों में से 31 मई तक केवल 42 ही पूरे हो पाए हैं.

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नई दिल्ली: पिछले पांच सालों में मोदी सरकार ने गंगा सफाई के मुद्दे पर लगातार ध्यान भले दिया है लेकिन आधिकारिक आंकड़ें कुछ और ही तस्वीर बयां कर रहे हैं. नमामि गंगा मिशन के तहत चल रहे सीवरेज इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट का काम 31 मई तक केवल 28 फीसदी ही पूरा हुआ है.

यह सीवरेज इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोग्राम उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और हिमाचल प्रदेश जैसे 8 राज्यों में चल रहा है. ये वो इलाके हैं जहां 2525 किलोमीटर लंबी यह नदी अपनी अविरल धारा से बह रही है. इस प्रोग्राम की डेडलाइन 2020 तक है. सीवरेज इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना इस प्रोग्राम का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है. वर्तमान समय की बात करें तो गंगा किनारे बसे 97 शहर प्रतिदिन 2,953 मिलियन लीटर सीवेज का उत्सर्जन करते हैं. हालांकि, ट्रीटमेंट की उपलब्ध की कुल क्षमता 1974 एमएलडी है.

जो 150 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) अभी तक स्वीकृत किए गए हैं उनकी कीमत 26,169 करोड़ रुपये है. लेकिन जल शक्ति विभाग के आंकड़ों के अनुसार 31 मई तक उसमें से केवल 42 ही अभी तक पूरे हुए हैं. बाकी 60 में अभी काम चल रहा है, वहीं बचे 48 में टेंडरिंग की प्रक्रिया चल रही है. इन 150 एसटीपी प्रोजेक्ट के पूरा होने पर ये 4874 एमएलडी सीवेज का निस्तारण कर सकेंगे.


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कार्यों में हो रही देरी

अगर आंकड़े की मानें तो जिन राज्यों में ये प्रोजेक्ट चल रहा है, उनमें बिहार सबसे पीछे हैं. जहां बिहार में स्वीकृत किए गए 28 प्रोजेक्ट में से एक भी पूरा नहीं हुआ है. जहां पश्चिम बंगाल में दिए गए 22 प्रोजेक्ट में से तीन पूरे हुए हैं वहीं उत्तर प्रदेश जहां गंगा करीब 1,000 किलोमीटर तक का क्षेत्र कवर करती है, वहां लगे 50 प्रोजेक्ट में से केवल 13 ही पूरे हुए हैं.

उत्तराखंड प्रोजेक्ट को पूरा करने के मामले में सबसे आगे है. जहां 34 प्रोजेक्ट में से 22 पूरे हो चुके हैं. हालांकि, जल शक्ति मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों ने कहा है कि कोई देरी नहीं हो रही है. कार्य प्रगति पर है. एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा है, ‘ टेंडर की बोली से लेकर उसके आवंटन की पूरी प्रक्रिया एक लंबा समय लेती है. हमें उम्मीद है कि नदी सफाई के लिए नमामी गंगे के तहत स्वीकृत हुए प्रोजेक्ट 2020 तक पूरे हो जाएंगे.’

नमामि गंगे चुनौती

2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद, गंगा की सफाई इनका मेन एजेंडा बन गई थी. सरकार ने जल संसाधन मंत्रालय के तहत एक विशेष विभाग – ‘राष्ट्रीय गंगा सफाई मिशन’ की स्थापना की और 2015 में 20,000 करोड़ रुपये के बजट आवंटन करने के साथ प्रमुख नदी सफाई कार्यक्रम नमामि गंगे का शुभारंभ किया.

सरकार के जोर देने के बावजूद, नदी की सफाई करना एक बड़ा काम है.

दिसंबर 2018 के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि प्री-मानसून चरण में 41 स्थानों पर किए गए परीक्षण में केवल चार स्थानों पर नदी की जल गुणवत्ता स्वच्छ या थोड़ा प्रदूषित थी (स्नान मानक का या जलीय जीवन का समर्थन कर सकता था) वहीं पोस्ट मानसून के बाद के चरण में 39 स्थानों में से केवल एक ही स्थान मानक के स्तर पर पाया गया है.


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सरकार का जोर

मंत्रालय के एक दूसरे अधिकारी ने कहा कि जब पिछले महीने मंत्रालय का नाम बदल दिया गया था तब ‘गंगा’ का नामकरण से हटा दिया गया था, हालांकि सरकार के एजेंडे में पवित्र नदी की सफाई जारी है.

मोदी सरकार के सत्ता में लौटने के बाद जल संसाधन, नदी विकास और गंगा कायाकल्प मंत्रालय का नाम बदलकर जल शक्ति मंत्रालय कर दिया गया. स्वच्छता मंत्रालय को भी इसके साथ सम्मलित कर दिया गया जोकि पानी से संबंधित सभी मुद्दों से निपटेगा. मंत्रालय ने सुदूर संवेदी प्रौद्योगिकियों सहित नदी की सफाई में तेजी लाने के लिए कई नए उपाय किए हैं.

निजी कंपनियों को सरकार द्वारा एसटीपी स्थापित करने, संचालित करने और उन्हें बनाए रखने के लिए सरकार द्वारा अनुबंधित किया गया है. पहले, सरकार ने हाइब्रिड वार्षिकी मॉडल के तहत निजी कंपनियों को 30 परियोजनाओं दिया, जहां सरकार निर्माण के दौरान पूंजीगत लागत का 40 प्रतिशत भुगतान करती है, जबकि संचालन और रख रखाव सहित शेष पूंजी निवेश लागत का भुगतान 15 साल की अवधि में सरकार तिमाही किस्तों में करती है.

एसटीपी के निर्माण के अलावा, मंत्रालय ने आठ राज्यों में घाटों और शवदाहगृहों सहित रिवरफ्रंट डेवलपमेंट में भी काम किया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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