नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश में भूस्खलन की हालिया घटनाओं के मद्देनजर राजमार्ग मंत्रालय की ओर से गठित किए गए विशेषज्ञों के एक दल ने सिफारिश की है कि राज्य में राजमार्गों के विभिन्न हिस्सों के प्रस्तावित चौड़ीकरण की अनुमति तब तक नहीं दी जानी चाहिए जब तक राजमार्गों से जुड़े पहाड़ी और घाटी दोनों ही क्षेत्रों में स्लोप स्टडी और उनकी स्थिरता का विश्लेषण न हो जाए.
राज्य में भूस्खलन वाली जगहों का विश्लेषण करने के बाद तैयार की गई इस रिपोर्ट में टीम ने कहा है कि रोड डेवलपर्स के लिए भी ये निर्धारित करना आवश्यक है कि सड़कों पर मानवजनित (मानवीय) गतिविधियों का क्या असर पड़ रहा है.
पिछले हफ्ते रोड सेक्रेटरी गिरिधर अरमाने को सौंपी गई रिपोर्ट—जो दिप्रिंट के पास मौजूद है—में पहाड़ी इलाके के सभी राष्ट्रीय राजमार्गों (एनएच) का भूस्खलन का जोखिम घटाने के उद्देश्य के साथ ऑडिट कराने का आह्वान किया गया है और इसके साथ ही बचाव संबंधी उपायों को मौजूदा अनुबंधों के दायरे में लाने में सिफारिश भी की गई है.
टीम ने यह भी कहा कि विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) में ढलान संरक्षण उपायों और निर्माण पद्धति को भी शामिल किया जाना चाहिए. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) में निश्चित तौर पर पहाड़ को काटे जाने से पहले और बाद में निर्माण का तरीका क्या होगा इसकी विस्तृत जानकारी होनी चाहिए.’
इसमें कहा गया है, ‘भूस्खलन की घटना के बाद उठाए जाने वाले कदमों को निर्धारित करने वाली मानक संचालन प्रक्रिया तैयार की जा सकती है और इसे ईपीसी दस्तावेज का हिस्सा भी बनाया जा सकता है ताकि उस जगह पर काम करने वाली एजेंसी भूस्खलन की स्थिति में नुकसान कम करने के लिए तत्काल उपाय कर सके.’ ईपीसी दस्तावेज इंजीनियरिंग प्रॉकरमेंट कंस्ट्रक्शन मोड संबंधी कांट्रैक्ट डॉक्यूमेंट होता है जो उन प्रोजेक्ट में किया जाता है जहां सरकार परियोजना का 100 फीसदी वित्त पोषण कर रही होती है.
टीम ने आगे यह भी कहा कि भूस्खलन के खतरों पर भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और डीआरडीओ के रक्षा भू-सूचना विज्ञान अनुसंधान प्रतिष्ठान (डीजीआरई) की तरफ से किए गए अध्ययन के आधार पर हिमाचल प्रदेश में प्रत्येक राजमार्ग पर संवेदनशील स्थलों की पहचान की जानी चाहिए और सड़क मंत्रालय के क्षेत्रीय अधिकारियों को त्रैमासिक आधार पर ऐसी सभी स्थलों का निरीक्षण करना चाहिए.
निरीक्षण दल, जिसमें सड़क मंत्रालय, लोक निर्माण विभाग, हिमाचल प्रदेश के इंजीनियर और डीजीआरई के एक वैज्ञानिक शामिल थे, ने राज्य में उन दोनों जगहों का दौरा किया था, जहां हाल में बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ था.
पहली जगह शिमला को भारत-चीन सीमा पर शिपकी ला से जोड़ने वाले एनएच-5 पर स्थित थी, जहां 11 अगस्त को हुए भूस्खलन में 30 लोगों की मौत हो गई थी.
भूस्खलन की दूसरी घटना 30 जुलाई को एनएच-707 पर हुई थी जो पोंटा साहिब को हथकोटी से जोड़ता है. हाईवे पर 100 मीटर लंबी सड़क ढह गई, जिसे टू-लेन रोड में परिवर्तित किया जा रहा था.
सड़क मंत्रालय के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि निरीक्षण दल ने ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए तात्कालिक, मध्यम अवधि के और दीर्घकालिक उपाय किए जाने की सिफारिश की. अधिकारी ने कहा, ‘मंत्रालय कोई कदम उठाने से पहले रिपोर्ट में शामिल उन बिंदुओं का गहराई से अध्ययन कर रहा, जिन्हें अपनाया जा सकता है.’
तत्कालिक उपायों में भूस्खलन के जोखिम वाले स्थानों के आसपास चेतावनी संकेतक लगाना और ऐसी जगहों पर किसी भूस्खलन की स्थिति में कम नुकसान सुनिश्चित करने के लिए यात्रियों को पहले से आगाह करने के लिए 24 घंटे निगरानी की व्यवस्था करना शामिल है.
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संवेदनशील स्थानों का डेटाबेस तैयार करने की जरूरत
हालांकि, टीम ने सीधे तौर पर भूस्खलन के लिए सड़क निर्माण संबंधी गतिविधियों को जिम्मेदार तो नहीं ठहराया, लेकिन पाया कि ऐसे स्थानों के भूस्खलन की चपेट में आने का खतरा बना हुआ है.
इसमें माना गया है कि एनएच-5 पर मानवजनित गतिविधियां देखी गई थीं, जहां 11 अगस्त को भूस्खलन हुआ.
रिपोर्ट में बताया गया है, ‘भूस्खलन वाली जगह के शीर्ष स्थल से सटे क्षेत्र में मानवजनित गतिविधियां देखी गई थीं. शीर्ष से 30 मीटर की दूरी पर 60 डिग्री के झुकाव के साथ एक इलेक्ट्रिसिटी ट्रांसमिशन टावर नजर आया और 75 डिग्री के झुकाव पर एक छोटा-सा घर स्थित है.
रिपोर्ट के मुताबिक, इस तरह के भूस्खलन ने राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क पर भूस्खलन की आशंका वाले स्थानों से जुड़े अध्ययनों के आधार पर एक डेटाबेस तैयार करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है ताकि संभावित जोखिम वाली जगहों की पहचान और निगरानी की जा सके.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘संभावित मानव और संपत्तियों के नुकसान/क्षति के आकलन के साथ यातायात की आधिक्यता, कनेक्टिविटी की अहमियत आदि को ध्यान में रखकर ग्रेडेड एटलस तैयार किया जा सकता है और प्राथमिकता के आधार पर बचाव संबंधी उपायों के तहत सभी जगहों पर आवश्यक सुधार किए जा सकते हैं.’
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