रीवा (मध्य प्रदेश): 31 वर्षीय रीता साकेत खून से सने कपड़ों से भरा बैग खोलकर दिखाते हुए रोने लगी जिन्हें उसके पति 37 वर्षीय मजदूर अशोक कुमार साकेत ने पिछले शनिवार को उस समय पहन रखा था, जब कथित तौर पर वेतन विवाद के बाद उसके मालिक ने उसका हाथ काट दिया था.
मध्य प्रदेश के रीवा जिले स्थित संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल के आईसीयू वार्ड में भर्ती अशोक अभी भी बेहोश है, जहां अपनी दैनिक मजदूरी की परवाह न करते हुए उसके तमाम परेशान रिश्तेदार जुटे हैं.
बेहद हताश नजर आ रही रीता ने दिप्रिंट से कहा, ‘अपने काम का रुपया ही तो मांगा था. लॉकडाउन के बाद जो काम मिला उसपर ही आस लगा कर बैठे थे 5-6 महीने से.’
रीता ने बताया कि अशोक के नियोक्ता गणेश मिश्रा, जो एक उच्च जाति से आते हैं, ने शनिवार को उसे फोन करके बुलाया था. यह कहते हुए कि फोन सुनकर वह काफी खुश हो गया था, रीता ने बताया, ‘गणेश मिश्रा पर लगभग 15,000 रुपये बकाया थे, लेकिन कई महीनों से वे भुगतान नहीं कर रहे थे. हम गरीब लोग हैं, अपना पेट पालने के लिए मजदूरी पर निर्भर हैं. उस दिन, मिश्रा ने फोन किया और कहा, आओ और अपने पैसे ले लो.’
उस दोपहर, अशोक और सत्येंद्र साकेत नामक एक अन्य मजदूर मिश्रा से बकाया भुगतान हासिल करने वहां पहुंचे.
हालांकि, मिश्रा ने कुछ और ही सोच रखा था. पुलिस का कहना है कि उसने अशोक को पैसे देने की बजाये उस पर तलवार से हमला कर दिया और उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया. रीवा के पुलिस अधीक्षक (एसपी) नवनीत भसीन ने दिप्रिंट को बताया कि हमले के सिलसिले में गणेश मिश्रा और उनके भाइयों रत्नेश और कृष्ण कुमार सहित तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, और आईपीसी की धारा 307 (हत्या का प्रयास) और शस्त्र अधिनियम की धारा 20 के साथ ही अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज कर ली गई है.
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क्या हुआ था उस दिन?
दिप्रिंट ने 20 नवंबर की दोपहर को हुई इस घटना के सिलसिले में एकमात्र प्रत्यक्षदर्शी सत्येंद्र से बात की.
सत्येंद्र ने बताया, ‘जब हम वहां पहुंचे तो उसने हमें बैठने को कहा और कहा कि वह नकद लेने जा रहा है. हम पैसे मिलने की आशा में खुश थे. आशान्वित थे. पैसों की बजाये, वह हाथ में तलवार लेकर लौटा और अशोक की गर्दन पर वार कर दिया. अशोक ने खुद को बचाने के लिए हाथ उठाया…लेकिन कुछ ही सेकंड में उसका हाथ कटकर सामने जमीन पर गिर गया.’
सत्येंद्र ने बताया, ‘मैं बाइक स्टार्ट करने के लिए तेजी से उठा और अशोक भी मेरी ओर भागा. उसका कटा हाथ जमीन पर ही पड़ा था. वह बाइक पर मेरे पीछे बैठ गया और एम्बुलेंस और पुलिस को फोन किया. हम बमुश्किल ही कुछ दूर पहुंचे थे कि वह बेहोश हो गया.’
घटना के बाद से ही सत्येंद्र लगातार दहशत में जी रहे हैं. जिस दिन दिप्रिंट उससे मिला उसी दिन सिरमौर पुलिस थाने के दो पुलिसकर्मी उसके घर आए थे, लेकिन किसी से कोई भी बात करने से बचने के लिए वह खेतों की ओर भाग गया.
रीवा के एसपी भसीन ने कहा कि पुलिस ने पीड़ित की मदद के लिए त्वरित कार्रवाई की.
भसीन ने कहा, ‘जब मुझे फोन आया कि ऐसी घटना हुई है और वह व्यक्ति गंभीर रूप से घायल है, तो हमने तुरंत संजय गांधी अस्पताल के डीन से संपर्क किया. डॉक्टरों की एक टीम समय बर्बाद किए बिना हाथ दोबारा जोड़ने के लिए सर्जरी को तैयार थी.’
उन्होंने बताया, ‘उस समय एक थाने को अशोक को अस्पताल लाने के जिम्मेदारी दी गई. दूसरे थाने को उसके हाथ का कटा हिस्सा लेकर आने का काम सौंपा गया था. टीम के साथ एक एम्बुलेंस को भी लगाया गया ताकि इसे जल्द से जल्द लाया जा सके.’
भसीन ने बताया कि एक पुलिस टीम ने मिश्रा और उसके दो भाइयों को ‘तीन घंटे के भीतर’ गिरफ्तार करने में सफलता हासिल की.
एसपी ने बताया, ‘जब उसने अशोक का हाथ काट डाला और दोनों (मजदूर) वहां से भागने में सफल रहे, तो मिश्रा डर गया और अपने भाइयों को बुलाया. उन्होंने खून से सने कपड़ों हटाने में उसकी मदद की और उनके लिए दूसरे कपड़ों की व्यवस्था की. उन लोगों ने कटे हुए हाथ को छिपाने के लिए उसे खेतों में फेंक दिया. तलवार भी छिपा दी. मिश्रा घटनास्थल से बाइक पर फरार हो गया.’
मामले ने राजनीतिक स्तर पर ध्यान आकृष्ट किया
मामले की जांच इस समय रीवा के पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) पुन्नू सिंह परस्ते कर रहे हैं जो इस मामले को ‘चिह्नित अपराध’ योजना की श्रेणी में लाने की कोशिश कर रहे हैं—जिसका उद्देश्य व्यापक सामाजिक असर वाले गंभीर अपराधों पर अदालती कार्यवाही को फास्ट ट्रैक पर लाना है.
एसपी भसीन ने बताया, ‘हम जाति प्रमाणपत्र और प्राथमिकी की पुष्टि के बाद एससी/एसटी एक्ट के तहत पीड़ितों के लिए अनिवार्य मुआवजे की प्रक्रिया भी शुरू करेंगे.’
दलित मजदूर पर हमले की घटना ने राजनीतिक स्तर पर भी ध्यान आकृष्ट किया है. घटना के दो दिन के भीतर ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पीड़ित को दो लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की. भीम आर्मी के जोनल चीफ एडवोकेट मधुकर राज सूर्यवंशी और आजाद समाज पार्टी के कार्यकर्ताओं सहित कई दलित अधिकार कार्यकर्ता अब तक परिवार से मिलने पहुंच चुके हैं और उसे न्याय दिलाने का आश्वासन दे रहे हैं.
घटना वाले दिन बहुजन समाज पार्टी के जिलाध्यक्ष अमित करनाल भी परिवार से मिलने पहुंचे थे.
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गहरा जाति विभाजन
इस घटना की जड़ें क्षेत्र में व्याप्त गहरे जाति विभाजन से जुड़ी हैं.
अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाला अशोक साकेत रीवा जिले के पादरी गांव का रहने वाला है. हालांकि, वह, उसकी पत्नी रीता और तीन बच्चे दलितों की मुख्य बस्ती से लगभग तीन किलोमीटर दूर रहते हैं. यह बस्ती बंजर सरकारी भूमि पर स्थित है और इसकी कोई पक्की सड़क नहीं है. अधिकांश लोग कच्चे घरों में अत्यधिक गरीबी में रहते हैं, जिनमें से ज्यादातर में शौचालय तक नहीं है.
आरोपी गणेश मिश्रा दलित बस्ती से करीब 10 किमी दूर डोलमौ नामक गांव में रहता है. नाम न छापने की शर्त पर उसकी बहन ने दिप्रिंट को बताया कि सरकार की तरफ से शुरू की गई प्रमुख आवास योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिले पैसों से उनका परिवार खेतों में घर बना रहा था. उसने कहा कि उसे लगता है कि उसके भाई ने यह काम आत्मरक्षा में किया है.
उसने बताया, ‘मैं शहर (40 किमी दूर) में रहती हूं और घटना के समय वहां मौजूद नहीं थी. लेकिन, आसपास हर कोई कह रहा है कि अशोक साकेत ने (गणेश मिश्रा पर) हमले की कोशिश की थी. मेरा भाई खुद को बचाने की कोशिश कर रहा था.’
हालांकि, क्षेत्र के भूमिहीन दलित समुदाय का मानना है कि अगर किसी को खतरा है, तो वह उन्हीं लोगों को है.
एक मजदूर का बेटा रविंदर साकेत सरकारी रीवा टी.आर.एस. कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई कर रहा है. उसने कहा, ‘हम कुछ बोलेंगे तो हमें ही काम मिलना बंद होगा. सारी ज़मीन उनके पास है.’
दलित समुदाय में आक्रोश और गुस्से की भावना है. पीड़ित के 26 वर्षीय पड़ोसी संजय साकेत ने दिप्रिंट को बताया कि सरकारी योजनाएं भी अमीर ऊंची जातियों के पक्ष में होती हैं.
संजय ने कहा, ‘हम गरीब लोगों के पास बाथरूम तक नहीं है, लेकिन अमीर लोग पीएम आवास योजना के तहत घर बना सकते हैं. हम उनके खेत में मजदूर करेंगे और उनके घर बनाएंगे और खुद कच्चे घरों में सोएंगे.’
अशोक साकेत के एक रिश्तेदार ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा कि स्थिति को लेकर आक्रोशित होने का कोई मतलब नहीं है. परिजन ने कहा, ‘गुस्सा करब तो क्या करब (गुस्सा करके क्या कर लेंगे)? हम केवल यही चाहते हैं कि परिवार को आर्थिक मदद मिले और एक सरकारी नौकरी दी जाए क्योंकि अशोक हाथ कटने के बाद अपने बच्चों का पेट भी नहीं पाल पाएगा.’
क्षेत्र में दलितों के लिए न्याय की वकालत करने वाले भीम आर्मी के मधुकर राज सूर्यवंशी ने दावा किया कि पिछले कुछ वर्षों में दलितों के खिलाफ अपराध बढ़े हैं. उन्होंने कहा, ‘हम व्हाट्सएप और फेसबुक के माध्यम से मामलों को ट्रैक करते हैं और उन (दलित पीड़ितों) तक पहुंचते हैं. हाल ही में बिरसा मुंडा जयंती पर उच्च जाति के कुछ लोगों ने एक कार्यक्रम में तोड़फोड़ की थी. हमने मामले को आगे बढ़ाया और प्राथमिकी दर्ज कराने में कामयाब रहे.’
दिप्रिंट ने जिले में अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों के खिलाफ अपराधों पर पुलिस के आंकड़े हासिल किए. 2019 में पुलिस ने 168 ऐसे मामले दर्ज किए, लेकिन 2020 में यह संख्या बढ़कर 353 हो गई. इस साल 22 नवंबर तक, एससी/एसटी एक्ट के तहत 221 मामले दर्ज किए गए हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, 2019 और 2020 के बीच एससी-एसटी समुदायों के खिलाफ अपराधों में 9 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है.
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