मुंबई: पुणे में सोमवार को पत्रकार एक घर के बाहर जमा थे. अंदर महाराष्ट्र के पूर्व शाही परिवारों के दो सदस्यों—सतारा के उदयनराजे भोसले और कोल्हापुर के संभाजीराजे छत्रपति की बैठक चल रही थी.
दोनों छत्रपति शिवाजी के वंशज हैं. दोनों भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राज्यसभा सदस्य हैं. पिछले महीने मराठा आरक्षण खत्म करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दोनों सरकारी नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण पाने के लिए मराठा समुदाय के संघर्ष का चेहरा बनने की कोशिश कर रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि दोनों ही आरक्षण के लिए मराठा समुदाय का प्रतिनिधित्व करने के भाजपा के प्रयासों का हिस्सा नहीं रहे हैं.
पिछले एक महीने में आरक्षण के मुद्दे पर संभाजीराजे और उदयनराजे का रुख पार्टी के लिहाज से ठीक नहीं रहा है. उदयनराजे ने जहां आरक्षण खत्म होने के लिए नेताओं, किसी पार्टी से संबद्धता के आधार पर नहीं, को जिम्मेदार ठहराया है, वहीं संभाजीराजे ने इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी (एमवीए) और भाजपा दोनों की आलोचना की है. खासकर संभाजीराजे के बयानों ने पार्टी को नाराज कर दिया है.
इस बीच, संभाजीराजे ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पूरे महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के मौन विरोध का आह्वान किया है जिसकी शुरुआत बुधवार को उनके गृह क्षेत्र कोल्हापुर से होगी. सोमवार की बैठक में उनकी ही तरह शाही परिवार के दूसरे वंशज उदयनराजे ने इस मौन प्रदर्शन को अपना समर्थन दिया.
यह एक महत्वपूर्ण संकेत हैं क्योंकि दोनों के बीच रिश्तों में कभी कोई खासी गर्मजोशी नहीं रही है—इसकी वजहें ऐतिहासिक घटनाक्रम के अलावा दोनों में स्वभावगत अंतर भी है.
इन दोनों में से उदयनराजे का व्यवहार ज्यादा तड़क-भड़क वाला और आक्रामक हैं—और उन्हें जनता के बीच ‘दबंग सांसद’ के रूप में जाना जाता है—और संभाजीराजे की छवि एक ‘शालीन’ व्यक्ति वाली है.
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तनातनी का लंबा इतिहास
इतिहास पर नजर डालें तो तो कोल्हापुर और सतारा के शाही परिवारों के बीच संबंध कभी बहुत मधुर नहीं रहे हैं, और संभाजीराजे और उदयनराजे के बीच कभी खुले तौर पर तो कोई टकराव नहीं दिखा लेकिन कभी सौहार्दपूर्ण रिश्ते भी नजर नहीं आए. उनके बीच पुणे की यह बैठक दुर्लभ ही मानी जा रही है.
छत्रपति शिवाजी के दो पुत्र थे—संभाजी और राजाराम. सतारा का शाही परिवार संभाजी का वंशज है, जबकि कोल्हापुर राजघराने के लोग राजाराम के वंशज हैं.
1680 में शिवाजी की मृत्यु के बाद संभाजी ने मराठा साम्राज्य की बागडोर संभाली और मुगल सम्राट औरंगजेब के वर्चस्व के खिलाफ जंग जारी रखी. 1689 में जब औरंगजेब की सेना ने संभाजी की हत्या कर दी तो छोटे बेटे राजाराम ने छत्रपति की भूमिका संभाल ली. राजाराम की मृत्यु के बाद, उनकी विधवा ताराबाई ने साम्राज्य की कमान अपने हाथों में ले ली.
सात साल बाद 1707 में औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगलों ने संभाजी के बेटे शाहू—जिन्हें बंदी बनाकर रखा गया था—को महाराष्ट्र लौटने की अनुमति दे दी. शाहू सतारा में आकर बस गए और यहीं से ताराबाई के साथ सत्ता संघर्ष शुरू हुआ.
आखिरकार, ‘वरना संधि’ के तहत कोल्हापुर और सतारा दो अलग-अलग साम्राज्य बने, जिससे 1731 में दोनों गुटों के बीच संघर्ष विराम हो सका.
राजनीतिक टिप्पणीकार हेमंत देसाई ने दिप्रिंट को बताया कि यद्यपि ‘दोनों नेता भाजपा के साथ हैं, लेकिन वे परस्पर बराबरी को लेकर सहज नहीं हैं. उनके बीच इस पर रस्साकशी चलती रहती है कि कोल्हापुर सीट सतारा की सीट से बेहतर है या फिर सतारा की सीट कोल्हापुर से ज्यादा मायने रखती है. इसलिए, दोनों व्यक्तिगत स्तर पर अपनी राजनीतिक पूंजी बनाने-बचाने की कवायद में लगे रहते हैं.’
लेकिन मराठा समुदाय के एक नेता ने कहा कि केवल ऐतिहासिक मतभेद ही भाजपा के दो सांसदों को एक-दूसरे से अलग नहीं करते हैं.
नेता ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘वे दोनों अपने स्वभाव, अपनी जीवनशैली और अपनी कार्यशैली में एकदम भिन्न हैं. कोल्हापुर राजपरिवार सामाजिक सरोकारों से अधिक जुड़ा है, जबकि उदयनराजे अधिक तड़क-भड़क पसंद और आक्रामक हैं.’
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‘दबंग सांसद’
इस साल जनवरी में उदयनराजे ने सतारा में एक सड़क को सरकारी अधिकारियों की तरफ से औपचारिक उद्घाटन की योजना बनाने से पहले ही सार्वजनिक उपयोग के लिए खोल दिया था.
इस दौरान उनके समर्थक जहां पैदल चल रहे थे, वहीं वे अपनी खुली कार में सवारी कर रहे थे.
जोरदारी से हो रही जयकार के बीच सांसद ने अपनी शर्ट का कॉलर खड़ा किया, और जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि लोग इस सड़क पर कब से चल सकेंगे, उन्होंने अभिनेता सलमान खान के अंदाज में हावभाव दिखाते हुए जवाब दिया, ‘अभी के अभिच (अभी के अभी).’
अपने कॉलर खड़ा करते हुए—जैसा कि वह बार-बार कर रहे थे—उन्होंने कहा, ‘कोई और मेरी तारीफ करे या न करे, मुझे खुद अपनी तारीफ करने का अधिकार है. और यह मेरी स्टाइल है.’
यही उदयनराजे की चिरपरिचित शैली है, जिन्हें तेज कार चलाने के शौक, शर्ट की कॉलर खड़ी करने और प्रेस कांफ्रेंस और सार्वजनिक सभाओं में बॉलीवुड फिल्मों के डॉयलाग का इस्तेमाल करने की आदत के कारण स्थानीय स्तर पर ‘दबंग सांसद’ के रूप में जाना जाता है. वह एक खुशमिजाज इंसान हैं और हिन्दी फिल्मों की लाइनें दोहराने के अलावा अंग्रेजी के वाक्यांशों का भी खूब इस्तेमाल करते हैं.
2019 के लोकसभा चुनावों से पहले सतारा के कराड शहर में एक सार्वजनिक रैली के दौरान तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार ने सबको हैरत में डालते हुए खुद उदयनराजे की शर्ट का कॉलर खड़ा किया था. उदयनराजे तब एनसीपी के सदस्य थे.
शिवाजी का यह वंशज पिछले कुछ सालों में कई बार विवादों में भी घिरा है.
वह 2009 में एक प्रेस कांफ्रेंस में नशे में धुत होकर पहुंच गए थे और फिर अपनी ही पार्टी (एनसीपी) की आलोचना कर डाली थी. 2014 में अपनी सुरक्षा से जुड़े एक पुलिस इंस्पेक्टर की सर्विस रिवॉल्वर के साथ फोटो खिंचवाई थी, और, 1990 के दशक के अंत में हत्या के एक मामले में सलाखों के पीछे भी कुछ वक्त बिता चुके है, हालांकि इस केस में बाद में उन्हें बरी कर दिया गया था.
भाजपा में शामिल होने और 1995-99 में महाराष्ट्र की शिवसेना-भाजपा सरकार में राज्य मंत्री के तौर पर कार्य करने से पहले इन भाजपा सांसद का राजनीतिक जीवन 1991 में एक स्थानीय पार्षद के तौर पर शुरू हुआ था. 2008 में वह कुछ समय के लिए कांग्रेस में शामिल हुए. 2009 में एनसीपी में चले गए और इस पार्टी से दो बार लोकसभा सांसद रहे. 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने के तुरंत बाद उन्होंने पार्टी के साथ कुछ मतभेद होने पर एनसीपी का साथ छोड़ दिया और भाजपा में शामिल हो गए. भाजपा की तरफ से उन्हें राज्यसभा सांसद के रूप में नामित किया गया.
जबसे सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण रद्द करने का फैसला सुनाया है, उदयनराजे निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को, किसी पार्टी का जिक्र किए बिना, जिम्मेदार ठहराने में जुटे हैं.
संभाजीराजे की ही तरह उदयनराजे भी भाजपा नेताओं की उस टीम का हिस्सा नहीं हैं, जिसे पार्टी नेतृत्व की तरफ से महाराष्ट्र के जिलों का दौरा करने, स्थानीय मराठा नेताओं से बात करने और समुदाय को आरक्षण मुद्दे पर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार के खिलाफ खड़ा करने की जिम्मेदारी दी गई है.
उदयनराजे ने सोमवार को संभाजीराजे के साथ संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में इस मुद्दे पर भाजपा के प्रयासों के बारे में सवालों के जवाब देने से परहेज किया और इसके बजाय मराठा आरक्षण पर चर्चा के लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की मांग की. उन्होंने एमवीए को भी निशाना बनाया, साथ ही कहा कि वह इस मामले पर समुदाय का आक्रोश भड़कने से पहले सक्रियता से उपयुक्त कदम उठाए.
राजनीतिक विश्लेषक प्रकाश बल का कहना है, ‘उदयनराजे का भाजपा के भीतर ज्यादा महत्व नहीं मिल रहा है. पार्टी के स्तर पर यह तो अच्छा लगता है कि शिवाजी के वंशज उनके साथ है. लेकिन न तो उन्हें और न ही संभाजीराजे को पार्टी मामलों में कोई खास अहमियत मिलती है और न ही उन्होंने पार्टी के लिए कुछ खास किया है.’
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‘एक शालीन व्यक्ति’
उदयनराजे के ही अपने शब्दों में उनके ‘भाई’ संभाजीराजे उनसे बहुत अलग हैं. सांसद ने सोमवार को कहा, ‘वह एक शालीन व्यक्ति हैं.’
दोनों नेताओं के चुनावी हलफनामों के मुताबिक उदयनराजे ने हायर सेकेंडरी तक पढ़ाई की है, जबकि संभाजीराजे ने बैचलर ऑफ आर्ट्स की पढ़ाई पूरी की है और एमबीए की डिग्री भी ली है.
संभाजीराजे कोल्हापुर के छत्रपति शाहू महाराज के वंशजों की पांचवी पीढ़ी में आते हैं, जो 1902 में सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों, मुसलमानों समेत, के लिए आरक्षण नीति लागू करने वाले पहले भारतीय राजा थे. आरक्षण की लड़ाई में मराठों के प्रतिनिधित्व के सवाल पर संभाजीराजे अक्सर इस विरासत का हवाला देते हैं.
शाही परिवार के वंशज, जिनसे भाजपा ने 2016 में राज्यसभा के लिए राष्ट्रपति की तरफ से नामित किए जाने के लिए संपर्क किया था, के पिछले महीने से अपनी पार्टी के साथ कुछ मतभेद चल रहे हैं.
संभाजीराजे ने शीर्ष अदालत के फैसले के बाद मई का अधिकांश समय खुद महाराष्ट्र का दौरा करने में बिताया है, और उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, एनसीपी प्रमुख शरद पवार के अलावा वंचित बहुजन अघाड़ी के प्रकाश अंबेडकर जैसे कई प्रमुख नेताओं से मुलाकात भी की है.
सांसद ने भी कहा है कि उन्होंने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की कोशिश की, लेकिन उन्हें समय नहीं दिया गया, और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक-दूसरे पर आरोप मढ़ने के लिए एमवीए और भाजपा की आलोचना की.
मई के अंत में उन्होंने मराठा समुदाय की मांगों पर उपयुक्त कदम उठाने के लिए एमवीए सरकार को अल्टीमेटम भी दिया और राज्य से सुप्रीम कोर्ट में एक समीक्षा याचिका या एक क्यूरेटिव दायर करने का आग्रह किया.
संभाजीराजे के बयान और इस तरह स्वतंत्र विचार रखना भाजपा नेताओं को भाया नहीं है. राज्य भाजपा अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने संभाजीराजे से मराठा आरक्षण पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा है, जबकि भाजपा के ही राज्यसभा सांसद नारायण राणे ने कहा है कि हालांकि संभाजीराजे प्रिंस हैं, लेकिन वह जनता की जरूरतों को नहीं समझते हैं.
भाजपा एमएलसी प्रसाद लाड ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘कोई भी व्यक्ति मराठा समुदाय का अगुआ होने का दावा नहीं कर सकता है. कहा जाता है कि संभाजीराजे हों या उदयनराजे, वे हमारे आदर्श हैं. हम पार्टी कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर कार्य करेंगे. जब व्यापक नीति पर योजना बनाने की बात आएगी तो हम उनसे बात करेंगे और उनका मार्गदर्शन लेंगे.’
दो शाही परिवारों के वंशजों के बीच सोमवार की बैठक एक-दूसरे से गले मिलने के साथ समाप्त हुई, जिसके विजुअल वायरल हुए हैं.
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि जरूरी नहीं कि एक-दूसरे के साथ होने का यह प्रदर्शन मराठा समुदाय की व्यापक लामबंदी में तब्दील हो, जिसकी महाराष्ट्र की आबादी में लगभग 32 प्रतिशत की हिस्सेदारी है.
आरक्षण पर रिसर्च स्कॉलर डॉ. बालासाहेब सारठे दिप्रिंट से बातचीत में कहते हैं, ‘वे हमारे राजा के उत्तराधिकारी हैं. उस परिवार में हमारी काफी आस्था है और लोग उनका सम्मान करते हैं. लेकिन, राजनीतिक रूप से मराठा इस तरह किसी के पीछे नहीं चलते हैं.’
उन्होंने आगे कहा, ‘पिछली बार प्रदर्शनों के दौरान (2016 और 2018 के बीच) व्यापक एकजुटता और एक सिस्टम दिखा था, क्योंकि तब कोई व्यक्तिवाद हावी नहीं था. जब आप इसे व्यक्तिवाद के तौर पर आगे बढ़ाने है तो यह जन आंदोलन नहीं बन पाता है.
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