नई दिल्ली: हालिया वर्षों में भारत में इंटरनेट ऑफ थिंग्स (आईओटी) और स्मार्ट प्रोडक्ट जैसी एडवांस्ड टेक्नोलॉजी अपनाने में बहुत ज्यादा तेजी आई है. हालांकि, इस तरह की चीजें रोजमर्रा की जिंदगी को आसान बनाती नजर आती हैं लेकिन उनका इस्तेमाल कम जोखिम भरा भी नहीं हैं. खासकर उन्हें हैक किए जाने और चीन में डेटा लीक होने का खतरा बना हुआ है.
इसका असर भारत के सैन्य और असैन्य दोनों ही क्षेत्रों में पड़ रहा है.
एक इजरायली साइबर फर्म टोका कथित तौर पर ऐसी तकनीक बेच रही है जो डिजिटल रियल्टीज को एकदम बदल सकती है. इसमें ऐसे उत्पाद शामिल हैं जो सर्विलांस कैमरों को न केवल हैक कर सकते हैं बल्कि उनका फीड भी पूरी तरह बदल सकते हैं.
चीनी वीडियो और सर्विलांस टेक्नोलॉजी और हार्डवेयर को अमेरिका की तरफ से उनकी डिजाइन संबंधी खामियों के कारण प्रतिबंधित किया जा रहा है क्योंकि इसमें डेटा हासिल करने की अनुमति दी जाती है.
इस तरह की साइबर टेक्नोलॉजी का विकास भारत के लिए एक बड़ा खतरा है. आईओटी को लेकर व्यापक स्तर पर इजरायल और चीन दोनों की टेक्नोलॉजी और हार्डवेयर का दबदबा है, जिसमें स्मार्ट सर्विलांस कैमरे, स्मार्ट फ्रिज, स्मार्ट एयर कंडीशनर और स्मार्ट लाइट्स जैसे उत्पाद शामिल हैं जो आवासीय और आधिकारिक स्थानों में इस्तेमाल किए जाते हैं.
साइबरपीस फाउंडेशन के संस्थापक विनीत कुमार बताते हैं, ‘आईओटी उत्पाद दरअसल भौतिक वस्तुओं का एक नेटवर्क है जो इलेक्ट्रॉनिक्स, सॉफ्टवेयर, सेंसर और कनेक्टिविटी के साथ एम्बेडेड हैं. वे दक्षता और उत्पादकता में सुधार के लिए एक-दूसरे के साथ डेटा कलेक्ट कर सकते हैं और उसे एक्सचेंज भी कर सकते हैं.’
इसके अलावा, ये सारी प्रौद्योगिकी रिमोटली कनेक्टेड डेटा सेंसर और वाईफाई के माध्यम से जुड़ी होती है और उसी से संचालित होती हैं.
भारत के लिए क्या हैं खतरे
चार घटनाक्रम बताते हैं कि ये आईओटी उत्पाद भारत के लिए खतरा क्यों हैं.
सबसे पहली बात, पिछले एक दशक के दौरान देश में आईओटी उत्पादों में तेजी से वृद्धि हुई है. एक हालिया रिपोर्ट में बताया गया है कि 2022 की दूसरी तिमाही में भारत का आईओटी बाजार 264 प्रतिशत बढ़ा है.
दूसरे, इस वृद्धि के साथ भारत में साइबर हमलों में खासी तेजी आई है. पिछले कुछ सालों में भारत के डिजिटल बुनियादी ढांचे और आईओटी उत्पादों दोनों पर साइबर हमले काफी तेजी से बढ़े हैं. हाल ही में माइक्रोसॉफ्ट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आईओटी उत्पादों पर मालवेयर हमलों के मामले में भारत शीर्ष तीन देशों में से एक है.
तीसरा, रोजमर्रा की जिंदगी में बढ़ते इस्तेमाल के मद्देनजर आईओटी उत्पाद भारत के लिए सैन्य स्तर पर खतरा बन सकते हैं. यद्यपि सशस्त्र बलों ने चीनी सॉफ्टवेयर पर प्रतिबंध लगाने जैसे कदम उठाए हैं जिनके खतरा साबित होने की आशंका रही है. लेकिन हार्डवेयर और आईओटी के बीच संबंध में एक अस्पष्टता बनी हुई है.
चौथा, एक जटिल चीनी लिंक है जो भारत के लिए समस्या को और अधिक गंभीर बनाता है.
चीन की तरफ से साइबर हमले के दो तरीके
खासकर, चीन की तरफ से साइबर और मालवेयर हमले भारत के लिए एक गंभीर खतरा हैं, जैसा नई दिल्ली स्थित सबसे महत्वपूर्ण अस्पताल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के डिजिटल बुनियादी ढांचे पर हालिया हमले से जाहिर है. इसने राजधानी के स्वास्थ्य देखभाल के पूरे ढांचे को ही पंगु बनाकर रख दिया था.
पिछले साल चीनी हैकरों ने लद्दाख के उत्तरी क्षेत्र में भारत के पावर ग्रिड पर भी हमला किया था.
ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सीनियर फेलो समीर पाटिल ने दिप्रिंट को बताया, ‘भारत में चीनी साइबर हमलों के लिए दो मुख्य तरीके हैं. एक टार्गेट बिजली ग्रिड और डिजिटल नेटवर्क जैसे महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे हैं. दूसरा हार्डवेयर के जरिये किया जा सकता है.’
पाटिल ने बताया कि आईओटी कैटेगरी में आने वाले तमाम उत्पादों सहित अधिकांश टेक प्रोडक्ट में इस्तेमाल होने वाले हार्डवेयर चीन निर्मित ही होते हैं, भले ही ये प्रोडक्ट पश्चिमी सॉफ़्टवेयर पर काम करते हों. इन चीनी हार्डवेयर में इस्तेमाल तकनीक संभावित बैकडोर बनाती हैं, जिससे ये उत्पाद हैकिंग और संवेदनशील डेटा की चोरी में इस्तेमाल में सक्षम हो सकते हैं और यह एक गंभीर खतरा है.
उन्होंने कहा, ‘निश्चित तौर पर इन बैकडोर के कारण इन उत्पादों का डेटा चीनी सर्वर तक पहुंच सकता है.’
सबसे गंभीर स्थिति यह है कि चीन भारत के स्मार्ट उत्पादों के बाजार का एक केंद्रीय आधार भी है.
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भारत में आईओटी और स्मार्ट उत्पादों पर चीनी नियंत्रण
भारत में आईओटी बाजार तेजी से बढ़ने के बीच, डेटा बताता है कि 2023 में इस क्षेत्र का कारोबार 1.1 बिलियन डॉलर से ऊपर पहुंच सकता है. आईओटी से होने वाली कमाई का एक बड़ा हिस्सा स्मार्ट उत्पादों की श्रेणी से जुड़ा होगा. अभी, स्मार्ट प्रोडक्ट भारत के आईओटी बाजार में सबसे बड़ा सेगमेंट हैं.
साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ कनिष्क गौड़ ने बताया, ‘भारत में स्मार्ट लाइट, स्मार्ट कैमरे और स्मार्ट एयर कंडीशनर जैसी अधिकांश स्मार्ट डिवाइस में डेटा-ट्रांसमिटिंग सेंसर का उपयोग किया जाता है जो कि भारत-निर्मित नहीं हैं.’
डेटा-ट्रांसमिटिंग सेंसर वाईफाई नेटवर्क से जुड़ते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि स्मार्ट उत्पाद को किसी दूसरी जगह से ऑपरेट किया जा सके.
गौड़ ने कहा, ‘डेटा सेंसर ही वह जगह है जहां चीन तस्वीर में आता है. इनमें से अधिकांश सेंसर भारत में निर्मित नहीं होते हैं और चीन में बने होते हैं और इनकी आपूर्ति में चीन का लगभग एकाधिकार है.’
एक अन्य साइबर सुरक्षा पेशेवर ने बताया कि यहां तक कि डेटा स्टोरेज के मामले में भी चीनी कंपनियां ही सबसे आगे हैं.
गौड़ ने कहा, ‘सभी डेटा सेंसर के लिए बैकएंड सिस्टम, सर्वर और सॉफ्टवेयर अपग्रेड मैकेनिज्म चीन से संचालित होते हैं. इन स्मार्ट उत्पादों का सारा डेटा फिर बैकडोर या लिसनिंग चैनलों के जरिये चीन के पास पहुंच सकता है. इस तरह से यह भारत की सुरक्षा में सेंध लगने का एक बड़ा खतरा बना हुआ है.’
साइबर सुरक्षा पेशेवर ने बताया कि ‘चीन पर निर्भरता को घटाने के लिए भारत को स्वदेशी स्तर पर डेटा सेंसर बनाने की क्षमता विकसित करने में निवेश करने की आवश्यकता है. यद्यपि स्वदेशी उत्पादन में कुछ समय लग सकता है, लेकिन जोखिम को घटाने के लिए ताइवान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ साझेदारी की जा सकती है.’
उन्होंने आगे कहा कि स्वदेशी उत्पादन के संदर्भ में कैपिटल-इंटेंसिव से ज्यादा अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) पर खास जोर देने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इसके लिए अभी समय है.
इस क्षेत्र में चीन के वर्चस्व और आईओटी उत्पादों में निहित जोखिमों को देखते हुए भारत को सशस्त्र सेना जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में खतरे झेलने पड़ सकते हैं.
भारत के रक्षा बल और स्मार्ट टेक्नोलॉजी
चीन पर निर्भर स्मार्ट तकनीक के कारण किसी भी तरह की हैकिंग और डेटा चोरी की आशंकाएं दूर करने के लिए ही सशस्त्र बल टेक्निकल और ऑपरेशनल मामलों में स्मार्ट डिवाइस का इस्तेमाल नहीं करते हैं. रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने बताया कि अधिकृत क्षेत्रो में केवल आधिकारिक लैपटॉप के उपयोग की अनुमति है, निजी लैपटॉप इस्तेमाल नहीं किए जा सकते.
इसके अलावा, किसी नए सॉफ़्टवेयर और नेटवर्क का इस्तेमाल करने से पहले इस बात की अच्छी तरह जांच होती है कि कहीं इससे डेटा चोरी या हैकिंग की गुंजाइश तो नहीं है.
एक सूत्र ने कहा, सैन्य कैंटीन में अवांछित विक्रेताओं और ठेकेदारों की कोई संदिग्ध टेक्नोलॉजी या स्मार्ट उत्पाद नहीं रखे जाते हैं.
लेकिन सैन्य कर्मियों के निजी घरों में स्मार्ट उत्पादों को लेकर कोई विशेष आदेश नहीं है, जो कि एक संभावित खतरा बना हुआ है.
नाम न छापने की शर्त पर एक रक्षा विशेषज्ञ ने कहा, ‘सैन्य कैंटीन में स्मार्ट उत्पादों की व्यापक जांच करने की क्षमता जटिलता भरी है.’
आपूर्तिकर्ता, स्पेयर पार्ट्स और कंपोनेंट किसी भी उत्पाद की सप्लाई चेन का हिस्सा हैं. उन्होंने कहा कि किसी वैश्वीकृत प्रोडक्शन चेन में चीनी कनेक्शन का पूरा सीक्वेंस पता लगाना लगभग असंभव है.
बहरहाल, रक्षा एवं सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े एक अन्य स्रोत ने बताया कि चीनी सॉफ्टवेयर और एप्लीकेशन से बढ़ते खतरे के बीच भारतीय सेना ने उन एप्लीकेशन की एक सूची बनाई है जिसका इस्तेमाल सैन्य कर्मियों के लिए प्रतिबंधित है.
खासकर, ऐसे 89 ऐप हैं जिन्हें प्रतिबंधित किया गया है जिनका उपयोग विदेशी खुफिया एजेंसियों या नॉन-स्टेट एक्टर्स की तरफ से जानकारियां हासिल करने के लिए किया जा सकता है.
चीन की तरफ से किसी तरह की हैकिंग या डेटा चोरी को रोकने के लिए टिकटॉक, वीचैट, शेयरइट, जूम, पबजी और चीन से जुड़े सभी टेनसेंट गेमिंग ऐप जैसे तमाम ऐप के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाया गया है. सूत्र ने बताया कि सभी डेटिंग ऐप्स पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है.
अमेरिका ने चीनी वीडियो और संचार तकनीक पर प्रतिबंध लगाया
अमेरिका के फेडरल कम्युनिकेशंस कमीशन ने नवंबर 2022 में राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा साबित होने वाले संचार उपकरणों की खरीद पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी थी.
खासकर ऐसी सारी वीडियो या टेलीकम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी को प्रतिबंधित कर दिया गया जो चीन में हुआवेई और जेडटीई जैसे समूहों की तरफ से निर्मित की जाती है, साथ ही स्मार्ट टेक्नोलॉजी और आईओटी उत्पादों को भी पाबंदी के दायरे में लाया गया.
प्रतिबंध अन्य चीनी निर्माताओं जैसे सर्विलांस उपकरण निर्माता दहुआ प्रौद्योगिकी, वीडियो सर्विलांस कंपनी हांग्जो हिकविजन डिजिटल टेक्नोलॉजी और दूरसंचार फर्म हाइटेरा कम्युनिकेशंस पर भी लागू किया गया है.
यद्यपि भारत ने अमेरिका की तरह सीधे तौर पर चीनी सर्विलांस प्रोडक्ट और प्रौद्योगिकी पर प्रतिबंध लगाने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया है, लेकिन रक्षा और साइबर विशेषज्ञों का सुझाव है कि राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के मद्देनजर नई दिल्ली को इस बारे में सोचना पड़ सकता है.
सबसे बड़ी बात यह है कि भारत की साइबर सुरक्षा नीति और डेटा सुरक्षा नीति पर सालों से काम जारी है और अभी तक इसे कानून नहीं बनाया गया है. इन पर गंभीरता से कोई कदम उठाना चीन निर्मित स्मार्ट टेक्नोलॉजी के कारण उत्पन्न होने वाले खतरों को कम करने में मददगार हो सकता है.
(अनुवाद: रावी द्विवेदी | संपादन: ऋषभ राज)
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