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Monday, 6 January, 2025
होमदेशअपराधबेहतर ज़िंदगी की तलाश में ‘डंकी रूट’ पर निकले 4 रोहिंग्या मुसलमानों के तस्करों के जाल में फंसने की कहानी

बेहतर ज़िंदगी की तलाश में ‘डंकी रूट’ पर निकले 4 रोहिंग्या मुसलमानों के तस्करों के जाल में फंसने की कहानी

उन्हें कड़ाके की सर्दी में कपड़े उतारने, पेट के बल ज़मीन पर लेटने और रात भर बीच-बीच में कोड़े खाने के लिए मजबूर किया जाता. वह रास्तों से बचा हुआ खाना उठाते, यहां तक कि मृतकों की जेबों से भी हाथ साफ करते.

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नई दिल्ली: “हर जगह लाशें. बदबू बहुत ज़्यादा थी. भूख और ठंड से मौत करीब लग रही थी”…हर दिन जब वह लोग बेलारूस से लातविया जाने की कोशिश करते, तो बॉर्डर पुलिस उन्हें पकड़ लेती थी.

उन्हें कड़ाके की सर्दी में कपड़े उतारने, पेट के बल ज़मीन पर लेटने और रात भर बीच-बीच में कोड़े खाने के लिए मजबूर किया जाता. तस्करी ‘डंकी एजेंट’ सिर्फ चेतावनी भर से कोड़ों की मार से बच जाया करते थे.

वह रास्तों से बचा हुआ खाना उठाते, यहां तक कि मृतकों की जेबों से भी हाथ साफ करते. सड़ी-गली लाशों की बदबू और पिटाई से बेहोश हो जाते और खचाखच भरी कार में एक-दूसरे के ऊपर पड़े हुए होश में आते.

पुरुषों के इस समूह ने 18 दिनों तक यह भयानक यात्रा की. कभी-कभी बेलारूस पुलिस उन्हें टैक्सी स्टैंड पर छोड़ देती थी और ‘डंकी एजेंट’ से उन्हें हटाने के लिए कहती और दूसरी ओर, लातविया पुलिस भी यही करती थी.

उनके जैसे रोहिंग्या मुसलमानों के लिए म्यांमार के हिंसाग्रस्त रखाइन राज्य में अपने घरों से भागकर पड़ोसी बांग्लादेश में प्रतिबंधित शरणार्थी कैंपों में जाना कोई मामूल बात नहीं. हालांकि, ‘डंकी रूट’ से जर्मनी काफी दूर नज़र आता है. इस सपने को जगाने वाली चीज़ बांग्लादेश में राज्यविहीन होने की चिंता है.

यह रोहिंग्या मुसलमानों अनवर सिद्दीकी, राबिया बीबी, उनके पति अब्दुल गफ्फार और नूरुल आलम की कहानी है, जिन्होंने अक्टूबर 2023 में एक दुर्भाग्यपूर्ण यात्रा शुरू की थी.

पहला कदम: त्रिपुरा बॉर्डर के ज़रिए से बांग्लादेश से भारत में प्रवेश करना.

त्रिपुरा से वह फरवरी 2024 में जाली पहचान के बूते नई दिल्ली से रूस के लिए उड़ान भरने से पहले पश्चिम बंगाल गए.

रूसी इमिग्रेशन ने तुरंत अनवर सिद्दीकी और राबिया बीबी को डिपोर्ट कर दिया. दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट (आईजीआई) पहुंचने पर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और ज़मानत मिलने से पहले लगभग एक महीने तिहाड़ जेल में बिताना पड़ा.

गफ्फार और नूरुल आलम, रूसी इमिग्रेशन से मंजूरी मिलने के बाद, अब बेलारूस-लातविया के ‘डंकी रूट’ पर थे, यह वो कहानी है जिसे वह बताने के लिए ज़िंदा रहे.

दिप्रिंट आपको बता रहा है कि अवैध इमिग्रेशन कारोबार कैसे चलता है और इसे दिखाने के लिए चार रोहिंग्या मुसलमानों की यात्रा को ट्रैक कर रहा है.

रास्ते और मंज़िले बदलते रहेंगे लेकिन ‘डंकी रूट’ का कारोबार कभी भी बंद नहीं होगा. यह फलता-फूलता व्यवसाय है जिसे सिंडिकेट द्वारा चलाया जाता है, जो एक-दूसरे से जाल की तरह जुड़े हुए हैं. राज्य की एजेंसियां केवल हर बार बड़ी मछलियों के पीछे जाकर उनके संचालन को बाधित करने का प्रयास करती हैं, लेकिन इस धंधे को जड़ से उखाड़ना मुश्किल है.

एक सूत्र ने बताया, “यह करोड़ों की इंडस्ट्री है, जो पूरी दुनिया में फैली है. दूरदराज के इलाकों के गांवों से लेकर बड़े शहरों तक, एजेंट हर जगह हैं और जुड़े हुए हैं.”

कनाडा के मैनिटोबा में गांधीनगर के एक गुजराती परिवार की ठंड से मौत का 2022 का मामला फिर से चर्चा में आया, जब अमेरिका की एक अदालत ने दो ‘डंकी एजेंट्स’ को दोषी ठहराया, जिनमें एक भारतीय नागरिक भी शामिल था, जिसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था.

2023 में भारत के नाबालिगों सहित 276 यात्रियों के साथ एक ‘डंकी चार्टर्ड फ्लाइट’ पेरिस में फंस गई और उसे वापस मुंबई भेज दिया गया.

नई ज़िंदगी की तलाश

अनवर सिद्दीकी, राबिया बीबी और उनके पति अब्दुल गफ्फार 2017 की हिंसा के बाद रखाइन से भागकर बांग्लादेश चले गए. नूरुल आलम का जन्म कॉक्स बाज़ार के कुटुपलोंग शरणार्थी कैंप में हुआ — जो दुनिया का सबसे बड़ा शरणार्थी शिविर है — जब उनके माता-पिता 1991 में म्यांमार में हिंसा से बचकर यहां आए थे.

2023 की एक सुबह, 25-वर्षीय सिद्दीकी कुटुपलोंग में 30-वर्षीय आलम की पान की दुकान पर बैठा था. सिद्दीकी ने कहा, “आलम ने उसे बताया कि उसके परिवार को शरणार्थी शिविर में पान की दुकान चलाकर (खुद का) भरण-पोषण करना पड़ता है. हमें बाहर काम करने की अनुमति नहीं है.”

आलम ने सिद्दीकी से कहा कि उसे अपनी बाकी ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए यहां से चले जाना चाहिए. भारतीय जांचकर्ताओं को संदेह है कि उसने सिद्दीकी से 10 लाख टका का इंतज़ाम करने के लिए कहा था, यह दावा करते हुए कि वह किसी ऐसे व्यक्ति को जानता है जो उन्हें धोखा नहीं देगा.

योजना से सहमत होकर सिद्दीकी ने अपनी मां और बहन के गहने बेच दिए और कुछ और पैसे जो छोटे-मोटे काम करके कमाए थे, उसे आलम को दे दिया. जाली दस्तावेज़ की मदद से सिद्दीकी को भारत से रूस जाने की तैयारी के लिए एक हफ्ते की मोहलत दी गई.

16 अक्टूबर 2023 को आलम और सिद्दीकी अपनी यात्रा पर निकल पड़े.

वह मौलवी बाज़ार जिले में पहुंचे, पैदल चलकर जंगल पार किया और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर कंटीले तारों के नीचे रेंगते हुए अगरतला से भारत में प्रवेश किया. 19 अक्टूबर को वह सियालदह के लिए ट्रेन में चढ़े, जहां दोनों ने यात्रा के खतरनाक हिस्से के लिए चार महीने लंबी तैयारी शुरू की.

पूछताछ के दौरान सिद्दीकी ने बताया कि दोनों एक होटल में रुके थे, जहां पहली बार उनकी मुलाकात 21-वर्षीय राबिया बीबी और उसके 38-वर्षीय पति अब्दुल गफ्फार से हुई. फिर एक दिन आलम उन सभी को कार में लेकर पासपोर्ट बनवाने के लिए उनके होटल से सात घंटे दूर एक जगह पर गए.

सिद्दीकी को पासपोर्ट मिला, जिसमें उसकी पहचान संदेशखाली निवासी रतन दास के बेटे सोबोजीत दास के रूप में हुई. राबिया को बबीता रॉय नाम से पासपोर्ट मिला, आलम को सौरव रॉय नाम से दूसरा पासपोर्ट मिला और गफ्फार के पासपोर्ट में उसकी पहचान अकरार रॉय के रूप में हुई. दो दिन बाद उन्हें अपना आधार कार्ड, वोटर आईडी और पैन कार्ड भी मिल गया.

सिद्दीकी ने पुलिस को दिए अपने बयान में कहा कि आलम ने बाकी लोगों को अधिकारियों के सवालों से निपटने के तरीके बताए. सूत्रों ने बताया कि 11 फरवरी 2024 को चारों दिल्ली पहुंचे और महिपालपुर के एक होटल में रुके. इसके बाद आलम ने बाकी लोगों से कहा कि उनके वीज़ा ईमेल से भेजे जाएंगे.

सिद्दीकी ने कहा कि आलम दो लोगों जोगी और हरि के संपर्क में था, जिन्होंने उन्हें इमिग्रेशन को आसानी से पार करने के तरीके के बारे में बताया.

20 फरवरी को जब चारों रूस के लिए रवाना हुए, तब यह योजना बनाई गई. हालांकि, राबिया और सिद्दीकी रूसी इमिग्रेशन को पास नहीं कर पाए और दो दिन बाद उन्हें दिल्ली के आईजीआई एयरपोर्ट पर वापस भेज दिया गया.

डिस्कलोज़र में विस्तार से बताया गया कि किस प्रकार गफ्फार और आलम, जो अब गंदे कमरों और कारों में फंसे हुए हैं, भूख, कड़ाके की ठंड तथा बेलारूस और लातविया पुलिस की पिटाई के बीच मुश्किल से ज़िंदा रह रहे हैं, जिन्होंने उनके फोन भी तोड़ दिए थे.

‘पुलिस ने नंगा करके पीटा’

रूसी इमिग्रेशन क्लियर करने के बाद, आलम और गफ्फार दो रातों के लिए एक होटल में रुके, उसके बाद रूस का एक व्यक्ति उन्हें और दो अन्य लोगों को अपने साथ ले गया. शाम 7 बजे जब वह लोग मिन्स्क शहर पहुंचे, वहां बेलारूस के एक व्यक्ति ने उनका स्वागत किया और उन्हें एक फ्लैट में ले गया.

वह वहां 30-35 अन्य लोगों के साथ 16 दिनों तक रहे. आलम को वहां पाकिस्तान के एक एजेंट अहमद ने बताया कि समूह पाकिस्तान और अफगानिस्तान के दो अन्य एजेंटों की देखरेख में लातविया के लिए ‘डंकी रूट’ अपनाएगा.

समूह जंगल से होते हुए खाइयों में घुटने तक पानी में चलकर लातविया पहुंचा, लेकिन बेलारूस पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया, उनकी पिटाई की और उनके फोन तोड़ दिए. फिर, उनमें से 16 लोगों को एक कार में ठूंस दिया गया और ‘डंकी एजेंट’ उन्हें लातविया ले गया. लातवियाई पुलिस ने उन्हें एक टैक्सी स्टैंड के पास छोड़ दिया, उनकी पिटाई की और उन्हें वापस बेलारूस भेज दिया.

बॉर्डर पर स्थित खाइयों में उन्होंने जमे हुए शव देखे. कुछ सड़ चुके थे और बदबू बहुत ज़्यादा थी. हर रात उन्हें लगता था कि मौत उनके पीछे पड़ी है.

गफ्फार ने पुलिस को बताया, “हम भूख से मर रहे थे. हमारे घाव सड़ रहे थे और ठंड की वजह से हालत और खराब हो रही थी. पुलिस हमें नंगा करके पीटती थी.”

यह सब 18 दिनों तक चलता रहा. हर दिन, रात भर की यातना के बाद ‘डंकी एजेंट’ उन्हें नए वादे करते हुए मिन्स्क के फ्लैट में वापस ले आता था.

उनके कपड़े और पांच दिन का खाना खत्म हो गया था. 18 दिनों के बाद, एजेंट ने आखिरकार उनके लिए कुछ कपड़े, खाना और दवाइयों का इंतज़ाम किया और उन्हें ‘डंकी रूट’ पर दोबारा जाने से पहले ठीक होने के लिए कहा. आलम और गफ्फार ने उससे कहा कि वह उन्हें बेलारूस में मुख्य एजेंट से बात करवाए, लेकिन एजेंट ने उन्हें बताया कि मुख्य एजेंट ने दूसरों को उसका नंबर शेयर नहीं करने का निर्देश दिया है.

बहुत मिन्नतें करने और मनाने के बाद, गफ्फार ने उधार के फोन से राबिया को कॉल किया. उसने उससे 1,000 अमेरिकी डॉलर का इंतज़ाम करने को कहा. राबिया तब तक ज़मानत पर रिहा हो चुकी थी और उसने मनीग्राम के ज़रिए पैसे भेजे. इससे आलम और गफ्फार बेलारूस एयरपोर्ट पहुंचे और 27 अप्रैल 2024 को हैदराबाद के लिए उड़ान भरी. उन्होंने मिन्स्क में एयरपोर्ट अधिकारियों को बताया कि वह भारत से हैं, लेकिन उनके पास वीज़ा नहीं है.

आईजीआई पहुंचने पर पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और वह 25 दिन तक जेल में रहे.

चार रोहिंग्या मुसलमानों के अलावा आईजीआई पुलिस यूनिट की जांच में पश्चिम बंगाल के शेख आरिफ अली का पता चला, जिसकी पहचान सीसीटीवी फुटेज के आधार पर हुई. अली ने चारों के आधार कार्ड बनाए थे. दिल्ली के साबिर सिंह, जो अब अग्रिम ज़मानत पर बाहर है और जांच में शामिल है, उस पर यात्रा के लिए कागज़ भेजने, होटल बुक करने और पैसे बदलने में मदद करने का आरोप है.

जांचकर्ताओं के अनुसार, ग्रीस में रहने वाले एक भारतीय नागरिक को भी बुलाया गया है और वह भी जांच में शामिल हो गया है. अन्य प्रमुख खिलाड़ियों में जोगी की पहचान पाकिस्तान स्थित एजेंट के रूप में हुई है, जबकि हरि की पहचान नहीं हो पाई है.

पीड़ित या ‘पीड़ित से एजेंट’?

भारतीय जांचकर्ताओं का दावा है कि आलम सिंडिकेट में एक प्रमुख ‘डंकी एजेंट’ है, जो संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) के साथ शरणार्थी के रूप में पंजीकृत है, उसकी कहानी थोड़ी अलग है.

उसका कहना है कि वह भी एक पीड़ित है.

आलम ने कहा कि उसने अपनी मां, पत्नी और तीन बच्चों को शरणार्थी शिविर में छोड़ दिया और शिविर के बाहर एक दवा की दुकान पर सिद्दीकी से मिला. सूत्र ने कहा, “आलम ने कहा कि रूहुल अमीन नामक व्यक्ति ने उसे बताया कि वह पाकिस्तान में एक एजेंट को जानता है, जिसने अहमद का ज़िक्र किया और अहमद ही आलम को जर्मनी ले जाएगा.”

आलम ने यह भी बताया कि अमीन ने उसे 12 लाख टका का इंतज़ाम करने को कहा और वादा किया कि पासपोर्ट के बिना भी सब कुछ व्यवस्थित हो जाएगा. अमीन ने पैसे लेने के लिए शरणार्थी शिविर में उसके कमरे पर एक आदमी को भेजा, जो आलम ने कहा कि उसे अपनी पत्नी और मां के गहने बेचने और कुछ दोस्तों से उधार लेने के बाद मिले थे.

आलम ने कहा कि वह सिद्दीकी और अन्य लोगों से केवल भारत की यात्रा के दौरान मिला और सभी कोलकाता में तीन से चार दिन तक रुके थे.

सूत्र ने बताया, “आलम, गफ्फार और राबिया ने जांच में सहयोग नहीं किया. उनके पास थोड़ी अलग कहानियां थी. हालांकि, जांच से पता चला है कि आलम इस मामले में एक महत्वपूर्ण तत्व है.”

अपने बयान में आलम ने बताया कि उसने ‘डंकी रूट’ के ज़रिए जर्मनी जाने से इनकार कर दिया, लेकिन अहमद ने उसे मजबूर किया, यह कहते हुए कि यह उनका एकमात्र विकल्प था.

जांचकर्ताओं के अनुसार, पीड़ित से एजेंट बनने की कहानी मामूली नहीं है. एक अलग मामले में, 10 साल पहले ‘अमेरिकी सपने’ के नाम पर ठगा गया एक व्यक्ति नकली वीज़ा बेचने वाला एजेंट बन गया था.

इसके अलावा, सूत्रों ने कहा कि कुछ एजेंट खुद अवैध रूप से विदेशों में रहते हैं और अपने देश में दूसरों के लिए ‘डंकी रूट’ की व्यवस्था करने का काम करते हैं. अमेरिकी जांचकर्ताओं के अनुसार, गुजराती परिवार की मौत के मामले में गिरफ्तार हर्षकुमार रमनलाल पटेल या ‘डर्टी हैरी’ को कम से कम पांच बार अमेरिका ने वीज़ा देने से मना किया और वह अवैध रूप से देश में रह रहा था.

एक अन्य सूत्र ने कहा, “सरगना करोड़ों में कमाते हैं. इस रास्ते से जाने वाला हर व्यक्ति उन्हें लाखों रुपये देता है और जिस देश में यात्रा करता है, उसके हिसाब से पैसे बढ़ते हैं. इसके अलावा टैक्सी का किराया, फ्लाइट का किराया, डॉक्यूमेंटेशन फीस, ठहरने, खाने और सुरक्षा का खर्च भी होता है. जब कोई कार्रवाई होती है, तो एजेंट रेस्टोरेंट में नौकरी दिलाने में मदद करते हैं. कभी-कभी, वह छापेमारी में पकड़े जाते हैं और डिपोर्ट कर दिए जाते हैं. कुछ मामलों में वह अधिकारियों से कहते हैं कि भारत में उनकी जान को खतरा है, शरण लेने के लिए अपना पासपोर्ट फाड़ देते हैं.”

कई सरगना, एजेंटों का जाल

‘डंकी रूट’ के कारोबार में कई दलाल हैं और नशीले पदार्थों की तरह ही, कई लोग दूसरे डीलरों के जन्म के नाम नहीं जानते हैं.

किसी भी पीड़ित के लिए संपर्क का पहला बिंदु, अक्सर कोई ट्रैवल एजेंट, प्रिंटिंग दुकानदार या होटल कर्मचारी होता है. अन्य मामलों में पीड़ित कोई ऐसा व्यक्ति हो सकता है जिसका वीज़ा कई बार अस्वीकार किया गया हो और वह अपने वीज़ा एजेंट के माध्यम से किसी ‘डंकी एजेंट’ से टकराता है. यहां तक ​​कि फेसबुक जैसे सोशल मीडिया ऐप के ज़रिए से स्कैन करने पर भी कोई व्यक्ति ‘डंकी एजेंट’ से जुड़ सकता है, जो लोगों को उनके द्वारा चुने गए देश में ‘परेशानी-मुक्त’ प्रवेश का वादा करके लुभाता है.

ऐसे पड़ोसी या दोस्तों के दोस्त भी हैं, जिनके पास विदेश में बड़ा मुकाम हासिल करने की कहानियां हैं, जो अमेरिकी या यूरोपीय सपने का मिथक बनाते हैं.

जांचकर्ताओं के अनुसार, ‘डंकी सिंडिकेट’ न केवल बहुआयामी हैं, बल्कि संगठित भी हैं. एक सूत्र ने कहा, “कई सरगना भी हो सकते हैं. उनका देशों में एक बहुत बड़ा मजबूत नेटवर्क है. एक एजेंट दुनिया भर में एक पीड़ित को कई एजेंटों से जोड़ सकता है.” एक प्रमुख खिलाड़ी पीड़ित की पसंद के देश में स्थित होगा और अन्य भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में दक्षिण-पूर्व एशिया के सभी यात्रियों की सूची तैयार करेंगे.

एक बार जब पैसा ट्रांसफर हो जाता है, तो महीनों तक व्यवस्था की जाती है, जिसमें पीड़ितों को अलग-अलग मोर्चों पर तैयार किया जाता है — कपड़े ले जाने के लिए, इमिग्रेशन में क्या कहना है, पकड़े जाने पर क्या कहना है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर कोई योजना को छोड़कर बीच में ही वापस लौटने का फैसला करता है तो कोई पैसा वापस नहीं किया जाएगा.

‘डंकी एजेंट’ उन लोगों को भी ‘डंकी रूट’ अपनाने के लिए कहते हैं, जब तक कि वह गैंगस्टर न हों, जैसे कि दीपक पहल उर्फ ​​बॉक्सर, जिस पर गोगी गिरोह के संचालन का आरोप है और अनमोल बिश्नोई, जेल में बंद भारतीय गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई का भाई, जो भारतीय पुलिस से भाग गया था और नवंबर 2024 में अमेरिका में अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार किया गया था.

जबकि भारत से बाहर के लोगों और भारतीय न्याय प्रणाली से भागने की कोशिश करने वालों को जाली पासपोर्ट दिए जाते हैं, दूसरे देश में अवैध रूप से प्रवेश करने की कोशिश करने वाले भारतीयों को उनके मूल पासपोर्ट पर विदेश ले जाया जा सकता है.

सूत्रों के अनुसार, इस जाल में कई हितधारक शामिल हैं. इनमें मंजूरी में मदद करने के लिए मिलीभगत वाले इमिग्रेशन और एयरलाइन कर्मचारी, सुरक्षा कर्मचारी, आधार कार्ड और पैन कार्ड एजेंट, संदर्भ पत्र प्राप्त करने वाले एजेंट और पैसे या जाली पासपोर्ट और अन्य दस्तावेज़ को स्थानांतरित करने के लिए जाली बैंक खातों की व्यवस्था करने वाले लोग शामिल हैं.

एक अन्य सूत्र ने कहा, “ये सिंडिकेट हर कदम पर दलालों के बिना काम नहीं कर सकते. इस प्रक्रिया में कुछ लोग शामिल हैं — जो इन एजेंटों को धोखा देने में मदद करते हैं.”

उदाहरण के लिए 2022 में पंजाबी कलाकार सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद, बिश्नोई के छोटे भाई अनमोल और एक रिश्तेदार और करीबी सहयोगी सचिन थप्पन जाली दस्तावेज़ पर भारत से भाग गए. दिल्ली क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय ने हत्या से पहले उनके पासपोर्ट जारी किए थे.

इमिग्रेशन के दौरान जांच ने अवैध इमिग्रेशन पर अधिक प्रभावी ढंग से नकेल कसी है. उदाहरण के लिए सूत्रों ने कहा, जाली दस्तावेज़ पर उड़ान भरने वालों की पहचान करने में इमिग्रेशन एजेंटों द्वारा उच्चारण का पता लगाना महत्वपूर्ण है. एक सूत्र ने कहा, “जांचकर्ताओं का एजेंडा एजेंटों को पकड़ना होना चाहिए. अगर हर सिंडिकेट में 5-6 एजेंट पकड़े जाते हैं, तो इससे न केवल एक खास गठजोड़ की रीढ़ टूट जाती है, बल्कि पूरा जाल भी टूट जाता है. कमांड की चेन बाधित हो जाती है.”

देश के बाहर के एजेंटों के लिए भारतीय एजेंसियां ​​लुक — आउट सर्कुलर जारी करती हैं. इसके अलावा, म्युचुअल लीगल असिस्टेंस ट्रीटी (एमएलएटी) जैसे दूसरे तरीके भी हैं, लेकिन इन प्रक्रियाओं के बावजूद, भारत में घुसपैठ करने वाले भारतीय और विदेशी ‘डंकी रूट’ के ज़रिए देश छोड़कर भाग रहे हैं.

एक सूत्र ने कहा, “इन पीड़ितों के लिए मंज़िल यात्रा से बड़ी है. ऐसे लोग हैं जो कई बार असफल होने के बाद भी ‘डंकी रूट’ को आज़माते हैं. उनके दिमाग में, यह एक बेहतर दुनिया है जो उनका इंतज़ार कर रही है और एजेंट उन्हें सफलता की कहानियां बेचते हैं. पंजाब और गुजरात के छोटे गांवों में शाम की चाय पर चर्चा होती है कि कैसे पड़ोस के एक व्यक्ति ने अवैध रूप से विदेशी देश में प्रवेश करने के बाद घर और कार खरीदी है.”

ज़मानत पर बाहर, चार रोहिंग्या मुसलमान अब न्याय के इंतज़ार में हैं. उनके पास अब कोई सपने या बचत नहीं है, लेकिन कोई यह तय नहीं कर सकता कि वह बेहतर ज़िंदगी की तलाश में फिर से ‘डंकी रूट’ से भागने की कोशिश नहीं करेंगे. उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है, बस पाने के लिए जीने लायक ज़िंदगी है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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