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Friday, 3 January, 2025
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कासगंज तिरंगा यात्रा और सांप्रदायिक झड़प: कोर्ट में 28 लोग दोषी करार, आखिर क्या था चंदन गुप्ता हत्याकांड

कोर्ट ने उन्हें 2018 में गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान दंगा करने और शांति भंग करने के लिए जानबूझकर अपमान करने सहित अन्य आरोपों में दोषी पाया. सज़ा शुक्रवार को घोषित की जाएगी.

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लखनऊ: राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की अदालत ने कासगंज में 2018 में हुए कुख्यात चंदन गुप्ता हत्याकांड में 28 लोगों को दोषी ठहराया है. इस हत्याकांड की वजह से इलाके में सांप्रदायिक दंगे और राजनीतिक तनाव फैल गया था.

22-वर्षीय गुप्ता की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जब वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और अन्य हिंदू संगठनों द्वारा गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित तिरंगा यात्रा में भाग ले रहे थे. यह घटना बड्डू नगर इलाके में दो समूहों के बीच झड़प के बाद हुई, जब एक समूह ने बाइक सवार प्रतिभागियों द्वारा लगाए जा रहे राष्ट्रवादी नारे पर आपत्ति जताई.

कासगंज पुलिस ने तब कहा था कि झड़प तब हुई जब विरोधी समूह के किसी व्यक्ति ने रैली में शामिल एक प्रतिभागी को कथित तौर पर थप्पड़ मारा.

अतिरिक्त सरकारी वकील (आपराधिक) मिथिलेश कुमार सिंह ने दिप्रिंट को बताया कि हत्या के मामले में 30 आरोपियों में से 28 को दंगा, हत्या का प्रयास, हत्या, शांति भंग करने के लिए जानबूझकर अपमान, आपराधिक धमकी और गैरकानूनी तरीके से इकट्ठा होने सहित विभिन्न आरोपों के तहत दोषी ठहराया गया है.

दोषी पाए गए 28 लोगों में से दो — सलीम और मुनाजिर रफी — अदालत में मौजूद नहीं थे.

सलीम गुरुवार को अदालत में पेश नहीं हुआ और उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया गया, जबकि रफी जेल में था.

सिंह ने बताया कि अदालत कक्ष में मौजूद 26 लोगों को तुरंत न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

इनमें वसीम, नसीम, ​​मोहम्मद जाहिद, आसिफ, असलम, अकरम, तौफीक, खिल्लन, शवाब, राहत, सलमान, मोहसिन, आसिफ जिमवाला, साकिब, बबलू, नीशू, वसीफ, इमरान, शमशाद, जफर, साकिर, खालिद, फैजान, इमरान सैफी, साकिर और मोहम्मद आमिर शामिल हैं.

दो लोगों — असीम कुरैशी और नसीरुद्दीन को अदालत ने बरी कर दिया.


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क्या था मामला?

26 जनवरी, 2018 को एबीवीपी, विश्व हिंदू परिषद और हिंदू युवा वाहिनी कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में तिरंगा यात्रा के दौरान दो समूहों के बीच झड़प के दौरान गुप्ता की हत्या कर दी गई थी.

प्रशासन द्वारा कार्यक्रम की अनुमति न दिए जाने के बावजूद सैकड़ों बाइक सवार तिरंगा और भगवा झंडा लेकर रैली में शामिल हुए, जिसमें चंदन गुप्ता भी शामिल थे.

जब प्रतिभागियों ने बड्डू नगर से गुज़रने पर जोर दिया, जहां निवासी पहले से ही जश्न मना रहे थे, तो नारेबाजी शुरू हो गई और दोनों तरफ से पथराव शुरू हो गया. जैसे ही गोलियां चलीं, उनमें से एक चंदन को लग गई.

गुप्ता को स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वे बच नहीं सके. मौत की खबर वायरल होने पर इलाके में दंगे भड़क उठे और कम से कम एक हफ्ते तक स्थिति तनावपूर्ण रही.

स्थिति बिगड़ने पर दुकानें बंद करनी पड़ीं और तत्कालीन सांसद राजवीर सिंह और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मौके पर पहुंचे और प्रदर्शनकारियों को आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दिया.

पोस्टमार्टम के बाद गुप्ता का शव उनके घर पहुंचने के बाद पूरे शहर में तनाव फैल गया और प्रांतीय सशस्त्र बल (पीएसी) को तैनात कर दिया गया.

20 लोगों को आरोपी बनाकर एफआईआर दर्ज की गई, जिनमें से तीन भाइयों — सलीम, नसीम और वसीम को मुख्य आरोपी बनाया गया.

अन्य आरोपियों में जाहिद उर्फ ​​जग्गा, आसिफ कुरैली उर्फ ​​हिटलर, असलम कुरैशी, असीम कुरैशी, नसीरुद्दीन, अकरन, तौसीफ, खिल्लन, शवाब, राहत, सलमान, मोहसिन, आसिफ उर्फ ​​जिमवाला, साकिब, बबलू, नीशू और वासिफ तथा मुस्लिम समुदाय के अज्ञात सदस्य शामिल हैं.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से फोन पर बात करने के बाद ही गुप्ता के परिवार ने शव का अंतिम संस्कार करने पर सहमति जताई.

इस बीच, हिंसा बढ़ गई क्योंकि कुछ लोगों ने पुरानी चुंगी इलाके में वाहनों को नुकसान पहुंचाया और बारहद्वारी इलाके में दुकानों को जला दिया. जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई, तो शहर में रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) को तैनात करना पड़ा और इंटरनेट बंद कर दिया गया, लेकिन हिंसा फिर भी जारी रही.

पुलिस ने दिसंबर 2018 में चार्जशीट दाखिल की और 2019 में मुकदमा शुरू हुआ. मुख्य आरोपी — वसीम और नसीम को 2020 में ज़मानत पर रिहा कर दिया गया और नवंबर 2021 में मामला लखनऊ की एनआईए अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया.

आरोपी की अपील के बाद इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा एनआईए अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने के बाद, गुप्ता के पिता गांधी प्रतिमा के बगल में धरने पर बैठ गए और कहा कि जब तक उन्हें न्याय नहीं मिल जाता, वो वहां से नहीं हटेंगे. पुलिस के आश्वासन के बाद ही उन्होंने जगह खाली की.

गुप्ता के पिता सुशील गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया कि आरोपियों ने हाई कोर्ट को गुमराह किया है. उन्होंने कहा, “उन्होंने एनआईए कोर्ट में बयान दर्ज किए जाने के दौरान ही कोर्ट को गुमराह करके लखनऊ बेंच में रिट याचिका दायर की थी. सत्य की हमेशा जीत होती है.”

सुशील गुप्ता ने कहा कि किसी भी समुदाय को तिरंगा थामने या ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम’ जैसे नारे लगाने पर आपत्ति नहीं होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि उनका बेटा हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर रैलियों में भाग लेता था.

उन्होंने कहा, “मेरा बेटा अपने गालों पर तिरंगा रंगे हुए और उसी उम्र के युवाओं के साथ जोश और उत्साह के साथ झंडे थामे रैलियों में भाग लेता था. वह ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम’ के नारे लगाते थे.”

उस दिन भी चंदन अपने दोस्तों के साथ सुबह-सुबह अपने गालों पर तिरंगा रंगे हुए निकले थे. वे तहसील रोड पर पहुंचे, लेकिन उनका रास्ता रोक दिया गया. वे बी.कॉम फाइनल ईयर में थे और बाकी सभी छात्र थे.

सुशील ने आगे कहा कि वह युवाओं को यह संदेश देना चाहते थे कि ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम’ जैसे नारे लगाना गलत नहीं है और अपने देश के प्रति प्रेम से बड़ा कोई प्रेम नहीं है.

उन्होंने कहा, “चाहे कुछ भी हो जाए, राष्ट्रीय ध्वज को झुकाया नहीं जाना चाहिए और इसे ऊंचा रखना हमारा कर्तव्य है. चंदन के मामले में आया फैसला सभी के लिए एक उदाहरण बनेगा. ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम’ के नारे धर्म से ऊपर हैं और भारत में रहने वाले सभी समुदायों के लोग हमारे भाई हैं, जिन्हें हिंदुओं से धर्मांतरित किया गया है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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