scorecardresearch
Thursday, 19 December, 2024
होमदेशगाय के मूत्र और दूध से हो सकता है त्वचा रोगों व सोरायसिस का इलाज- परीक्षा के लिए मोदी सरकार की एजेंसी के दस्तावेज़...

गाय के मूत्र और दूध से हो सकता है त्वचा रोगों व सोरायसिस का इलाज- परीक्षा के लिए मोदी सरकार की एजेंसी के दस्तावेज़ में दावा

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के सुझाव, पहली गौ विज्ञान संवर्धन परीक्षा के पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं, जो छात्रों तथा आम लोगों के बीच ऑनलाइन कराई जाएगी.

Text Size:

नई दिल्ली: सोरायसिस, त्वचा रोग, एक्ज़ीमा, गठिया, सूजन तथा कुष्ठ रोग जैसी बहुत सी बीमारियों का इलाज, पंचगव्य उत्पाद से किया जा सकता हैं, जिसमें गाय का दूध और उससे बनी चीज़ें तथा गौ-मूत्र व गोबर आदि शामिल होते हैं-ऐसा मानना है भारतीय गाय आयोग का.

ये आयोग, जिसे राष्ट्रीय कामधेनु आयोग (आरकेए) कहा जाता है, पशुपालन एवं मत्स्य पालन मंत्रालय अंतर्गत आता है. 2019 में गठित इस आयोग का लक्ष्य गायों व उनके बच्चों के संरक्षण, सुरक्षा, बचाव तथा विकास को सुनिश्चित करना है, और साथ ही इसका काम मवेशी विकास कार्यक्रमों को दिशा देना है.

बीमारियों के इलाज के आरकेए के सुझाव, पहली गौ विज्ञान संवर्धन परीक्षा की संदर्भ सामग्री के हिस्से के तौर पर दिए गए हैं, जो 25 फरवरी को देशभर के स्कूलों व कॉलेज छात्रों, तथा आम लोगों के लिए, ऑनलाइन आयोजित कराई जाएगी.

54 पन्नों के दस्तावेज़ के अनुसार, गौ-मूत्र बलग़म, पेट, आंख, मूत्राशय की बीमारियों, तथा अन्य बीमारियों के अलावा कमर, सांस की समस्या, सूजन और लिवर की बीमारियों से मुक्ति दिलाएगा. इसमें विस्तार से बताया गया है कि किस तरह अच्छी सेहत के लिए पंचगव्य का सेवन किया जा सकता है.

परीक्षा के लिए संदर्भ सामग्री में, जो दिप्रिंट के हाथ लगी है कहा गया है, ‘रोज़ाना पंचगव्य का सेवन करने से, व्यक्ति स्वस्थ और बलवान बना रह सकता है. पंचगव्य का उपभोग करने से सोरायसिस जैसी ख़तरनाक बीमारियां, त्वचा रोग, एक्ज़ीम और खुले घाव, बहुत जल्द ठीक हो जाते हैं’.

उसमें कहा गया है, ‘कोई भी व्यक्ति पंचगव्य को इस तरीक़े से खा सकता है. 50 या 60 एमएल पंचगव्य को, एक ग्लास पानी, फलों के रस या नारियल पानी में मिलाकर पीने से, हर कोई सभी तरह की बीमारियों से बचा रह सकता है’.

ये परीक्षा स्वैच्छिक होगी, लेकिन आरकेए अध्यक्ष वल्लभ भाई कथीरिया के अनुसार, आयोग ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों तथा शिक्षा मंत्रियों से, परीक्षा आयोजित कराने का अनुरोध किया है.

पैनल ने कहा है कि उसने बहुत सारी संदर्भ सामग्री जुटाई है, जो परीक्षा के लिए इस्तेमाल की जा सकती है. ये सामग्री बहुत सारे विशेषज्ञों से ली गई जानकारी से एकत्र की गई है, और आने वाले कुछ दिनों में, इसमें और सामग्री जोड़ी जाएगी


यह भी पढे़ं: ‘सेक्युलर’ शिवराज ने ‘लव जिहाद’, गाय और दूसरे मुद्दों पर क्यों अपना लिया है आक्रामक हिंदुत्व


औषधीय मूल्य

दस्तावेज़ में भारतीय गायों के दूध के औषधीय मूल्य पर प्रकाश डाला गया है, और कहा गया है कि ये ‘दिमाग़ की ताक़त’ और ‘इम्यूनिटी’ को बढ़ाता है.

उसमें कहा गया है, ‘उनके दूध के अंदर मौजूद सेरेब्रोसाइड दिमाग़ की ताक़त बढ़ाता है, और स्ट्रोंटियम शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाता है, तथा इंसानी शरीर को हानिकारक रेडिएशंस से बचाता है. सिर्फ दूध ही नहीं, भारतीय गाय का पेशाब, गोबर, घी, दही के अंदर भी बहुमूल्य औषधीय गुण होते हैं. बहुत सी हानिकारक बीमारियों को ठीक करने के लिए, पंचगव्य चिकित्सा में गाय के उत्पादों का प्रयोग किया जाता है’.

आयोग ने ये भी कहा कि पंचगव्य के बहुत से चिकित्सकीय सूत्र, जैसे आदि पंचगव्य घृत, अमृतासर, घानावटी, क्षारावटी, तथा नेत्रसार, आयुर्वेद प्रणाली में बहुमूल्य औषधियां हैं.

गौ-मूत्र को मानवता के लिए एक दुर्लभ उपहार बताते हुए, दस्तावेज़ में कहा गया है, ‘आयुर्वेद में यदि कोई ‘संजीवनी’ है, तो वो गौ-मूत्र है. गौ-मूत्र एक महान अमृत, सही भोजन, दिल को भाने वाला, मानसिक व शारीरिक शक्ति देने वाला, और दीर्घायु देने वाला है. ये रक्त से सभी अशुद्धियों को निकाल देता है’.

इसमें आगे कहा गया है, ‘गौ-मूत्र बलग़म, पेट की बीमारियों, आंख की बीमारियों, मूत्राशय की बीमारियों, पीठ, सांस की समस्याओं, सूजन तथा जिगर की बीमारियों को दूर करने का काम करता है’.

उसके अलावा इसमें ये भी दावा किया गया है कि गौ-मूत्र ‘बहुत सी पुरानी और लाइलाज बीमारियों में अत्यंत उपयोगी है’.

उसमें ये भी कहा गया है कि ‘यूरिया मूत्रवर्धक रोगाणु-नाशी होते हैं. पोटैशियम से भूख खुलती है, और रक्तचाप नियंत्रित होता है. सोडियम फ्लूइड की मात्रा और नर्वस पावर को नियमित करता है. मैगनीशियम और कैल्शियम ह्रदय गति को नियमित करते हैं. गौमाता का मूत्र गैस की बीमारियां दूर करता है; आंव, पित्त और गैस से जुड़ी बीमारियों को दूर करता है; तेज़ाबियत और पेट की बीमारियों में सहायता करता है और कुष्ठ रोग तथा त्वचा की दूसरी बीमारियों को दूर करता है’.

संदर्भ सामग्री में ये भी तर्क दिया गया है कि गौ-मूत्र गंगाजल जैसा पवित्र होता है, हिंदुओं के लिए पवित्र जल जिसका इस्तेमाल पूरे साल सभी त्यौहारों या उत्सवों पर किया जाता है. उसमें कहा गया है कि ‘गंगा जल तथा गौ-मूत्र में पाए जाने वाले तत्व काफी कुछ समान होते हैं. किसी और जानवर या इंसान के मूत्र में, इतने अधिक तत्व नहीं होते जितने हमारी गौमाता में होते हैं’.

उसमें आगे कहा गया है कि ‘गौमूत्र को उबालने पर हमें खोया मिलता है, जो खनिज तत्वों और विटामिन्स से भरपूर होता है, जिसका बहुत सी बीमारियों में उपयोग किया जा सकता है. खोए की इन गेलियों को लेने से इंसान स्वस्थ बना रहता है. शुद्ध किया गया गौ-मूत्र, जिसे आमतौर पर अर्क़ कहा जाता है, फ्लू, गठिया, बेक्टीरियल रोगों, फूड प्वॉयज़निंग, बदहज़्मी, सूजन, तथा कुष्ठ रोग के इलाज में उपयोगी होता है’.

देसी और विदेशी गायें

आयोग के दस्तावेज़ में ‘देसी’ और ‘विदेशी’ गायों के अंतर पर भी प्रकाश डाला गया है.

मिसाल के तौर पर, इसमें कहा गया है कि ‘गौमाता’ के दूध को, ए-2 दूध कहा जाता है, और जर्सी गाय के दूध को ए-1 दूध कहा जाता है.

उसमें कहा गया है कि, ‘गौमाता ए2 बीटा-केसेन पैदा करती है, जो प्रोलीन जैसे एमीनो-एसिड का एक जिनेरिक वेरिएंट होता है, और एक दूसरे एमीनो एसिड आईसोल्युसीन के साथ मिला होता है, जो बहुत सी बीमारियों से लड़ने में प्रभावी होता है, जैसे मोटापा, जोड़ों का दर्द, दमा, मानसिक बीमारियां आदि. जर्सी गाय के दूध को ए1 दूध कहा जाता है’.

उसमें आगे कहा गया, ‘जर्सी और एचएफ जैसी गायें ए1 दूध देती हैं, जिनमें बीटा-केसीन का ये जिनेटिक वेरिएंट नहीं पाया जाता. दूसरी ओर, उनके दूध में कैसोमॉरफीन नामक एक विषैला रसायन होता है, जिसकी वजह से उसे डायबिटीज़, कैंसर, दिल की बीमारियों तथा दमा आदि के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है’.

इसमें ये भी कहा गया है कि ‘गौमाता के दूध में’, कुछ ‘चिकित्सकीय गुण होते हैं और डॉक्टर्स गर्भवती महिलाओं, बच्चों, और डायबिटीज़ तथा दिल के मरीज़ों को, इसका सेवन करने के लिए कहते हैं’. लेकिन साथ में ये भी कहा गया है कि विदेशी गायों का दूध ‘नहीं पीना चाहिए और ये ए2 दूध के पास भी नहीं है’.

इसमें कहा गया है, ‘गाय का मूत्र तथा गोबर पंचगव्य के रूप में उपयोग किया जाता है. बाहर की गाय का गोबर या मूत्र, कुछ भी उपभोग के लायक़ नहीं है’.

दस्तावेज़ में कहा गया है कि देसी गायों का गोबर, खेती में प्रयोग किए जाने पर अच्छे और त्वरित परिणाम देता है, जैसा कि ‘विदेशी’ गायों के साथ नहीं है. दस्तावेज़ में कहा गया है कि दूध का रंग हल्का पीला होता हैं, चूंकि इसमें सोने के निशान होते हैं. विदेशी गाय में ऐसा नहीं होता’.

भावनाएं और सफाई

संदर्भ सामग्री के अनुसार, भारतीय नस्ल की गायों (ज़ेबू) के कंधों पर सूर्यकेतु नाड़ी होती है. ऐसा माना जाता है कि ये सूर्य की किरणों को सोखती है, और उन्हें गाय के दूध में भेज देती है.

उसमें कहा गया है, ‘यही एक कारण है कि भारतीय गायों के दूध में विटामिन-डी होता है. जर्सी और एचएफ गायों में सूर्यकेतु नाड़ी नहीं होती.

विदेशी गायों के विपरीत, देसी गायें भावनाएं भी दिखाती हैं. उसमें ये भी कहा गया है, ‘जैस ही कोई अंजान व्यक्ति देसी गाय के पास आता है, वो फौरन खड़ी हो जाती है. विदेशी गायें ऐसी कोई भावनाएं नहीं दिखातीं’.

दस्तावेज़ में ये भी कहा गया कि इसके अलावा, भारतीय गायें सफाई भी रखती हैं, और ‘इतनी चालाक होती हैं कि वो गंदी जगहों पर नहीं बैठतीं.

उसमें ये भी कहा गया है, ‘ये जलवायु के हिसाब से अपने आपको ढाल लेती हैं, और कठोर मौसम को भी झेल सकती है. जर्सी-एचएप गायें बहुत सुस्त होती हैं, और बहुत जल्दी बीमार होती हैं. ये भी देखा गया है कि सफाई में न रहने की वजह से वो संक्रमण का शिकार हो जाती हैं’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: आयुर्वेद छात्रों को सर्जरी के प्रशिक्षण पर आपत्ति व्यावसायिक हितों के टकराव का नतीजा है


 

share & View comments