नई दिल्ली: दिल्ली में जुलाई के बाद से, कोविड टेस्टिंग की संख्या में, बहुत तेज़ वृद्धि देखी गई है, लेकिन उसकी इस बात को लेकर आलोचना हो रही है, कि स्वर्णमान माने जाने वाले रियल टाइम पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन टेस्ट (आरटी-पीसीआर) की जगह, वो रैपिड एंटीजेन टेस्ट (आरएटी) पर ज़्यादा फोकस कर रही है.
दिप्रिंट ने जिन आंकड़ों का विश्लेषण किया, उनसे पता चलता है कि कोविड से सबसे अधिक प्रभावित पांच राज्यों- महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व उत्तर प्रदेश- की अपेक्षा दिल्ली में आरटी-पीसीआर के मुक़ाबले, एंटिजन टेस्ट अधिक अनुपात में किए जा रहे हैं. कुल संख्या के मामले में, दिल्ली छठे नम्बर पर है.
दिप्रिंट द्वारा किए गए सरकारी स्वास्थ्य बुलेटिंस के विश्लेषण से पता चलता है, कि 30 जून (जब दोनों टेस्टों का डेटा पहली बार मुहैया किया गया) से 20 अगस्त तक, दिल्ली ने आरटी-पीसीआर के मुक़ाबले, दो गुने एंटिजन टेस्ट किए हैं- 3,28,300 आरटी-पीसीआर टेस्टों के मुक़ाबले 6,41, 529 आरएटीज़.
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने 14 जून को, जल्द डायग्नोसिस की सुविधा के लिए, कंटेनमेंट ज़ोन्स और हॉस्पिटल सेटिंग्स में, आरएटी को मंज़ूरी दे दी थी. अगर आरएटी टेस्ट पॉज़िटिव आता है, तो मरीज़ को तुरंत कोविड केस की तरह प्रोसेस किया जाता है. लेकिन लक्षण वाले किसी मरीज़ में, यदि आरएटी टेस्ट निगेटिव आता है, तो आरटी-पीसीआर टेस्ट के ज़रिए, सैम्पल की पुष्टि करानी होती है.
ऐसा इसलिए है कि एंटीजेन टेस्ट की विशिष्टता, 99.3 से 100 प्रतिशत होती है, जबकि इसकी संवेदनशीलता 50.6 से 84 प्रतिशत के बीच होती है.
19 अगस्त को दिल्ली हाईकोर्ट ने इस बात का संज्ञान लिया, कि राजधानी में मामलों की संख्या में, औसतन 1300 का उतार-चढ़ाव हो रहा है, और कहा कि आरएटी टेस्टिंग में तो इज़ाफा हुआ है, लेकिन आरटी-पीसीआर टेस्टों की संख्या नहीं बढ़ी है.
ऐसा उस समय हुआ जब दिल्ली में, जहां जुलाई में कोरोनावायरस मामलों में उत्साहजनक गिरावट आई थी, अगस्त में फिर इज़ाफा देखा गया.
दिप्रिंट ने ख़बर दी थी, कि 5 अगस्त से 11 अगस्त के बीच, मामलों में उछाल आया था, और 4 अगस्त को 674 तक आने के बाद, 1000 से ऊपर बने रहे थे. उसके बाद 12 से 20 के हफ्ते में, दिल्ली में मामलों में लगातार उतार-चढ़ाव देखने को मिला है.
20 अगस्त को, दिल्ली में कुल 1,57,354 मामले दर्ज किए गए, जिनमें 4,257 मौतें हैं और 1,41,826 मरीज़ ठीक हो चुके हैं.
दिप्रिंट ने कॉल्स और व्हाट्सएप संदेशों के ज़रिए, स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक नूतन मुंदेजा, स्वास्थ्य सचिव पदमिनी सिंघला, और स्वास्थ्य मंत्री सत्येंदर जैन से संपर्क करना चाहा, लेकिन इस रिपोर्ट के छपने तक कोई जवाब नहीं मिला था.
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5 सर्वाधिक प्रभावित राज्यों के मुक़ाबले दिल्ली
दिल्ली पांच सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में थी, लेकिन पिछले हफ्ते इसकी जगह उत्तर प्रदेश ने ले ली. दिल्ली में इन राज्यों की अपेक्षा, आरटी-पीसीआर की जगह रैपिड एंटीजन टेस्ट, ज़्यादा संख्या में किए जा रहे हैं.
महाराष्ट्र में, जिसे आसानी से देश की ‘कोविड राजधानी’ कहा जा सकता है, राज्य के कोविड वॉर रूम के अधिकारियों के साझा किए हुए आंकड़ों से पता चला, कि वहां जो कुल टेस्ट किए जा रहे हैं, उनमें आधे भी रैपिड एंटिजेन टेस्ट नहीं हैं.
20 अगस्त को जारी महाराष्ट्र के स्वास्थ्य बुलेटिन के अनुसार, राज्य में अभी तक कुल 34,14,809 टेस्ट किए जा चुके हैं. सात जुलाई को एंटिजेन टेस्टिंग शुरू करने के बाद इनमें केवल 90,548 आरएटी थे.
तमिलनाडु में, जो कुल मामलों में देश में दूसरे नम्बर पर है, रैपिड एंटीजेन टेस्ट बिल्कुल भी नहीं किए जा रहे हैं. जारी किए गए हेल्थ बुलेटिन के अनुसार, 20 अगस्त तक राज्य में 39,88,599 टेस्ट किए जा चुके थे, जो सब आरटी-पीसीआर थे.
पड़ोसी आंध्र प्रदेश में, जो केसलोड के मामले में तीसरे नम्बर पर है, हेल्थ बुलेटिन से पता चला कि 20 अगस्त तक, कुल 55,551 टेस्ट किए जा चुके थे, जिनमें 20,241 रैपिड एंटीजन टेस्ट थे.
कर्नाटक में 20 अगस्त तक किए गए, कुल 22,56,862 टेस्टों में, 6,08,113 रैपिड एंटीजेन टेस्ट थे. बाक़ी टेस्ट आरटी-पीसीआर, सीबीनैट और ट्रूनैट टेस्ट का मिश्रण रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में, जो ऊंचे बोझ वाले राज्यों में, सबसे बड़ा टेस्टर बनकर भरा है, स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साझा किए आंकड़ों से पता चला, कि 20 अगस्त तक किए गए कुल 41,84,690 टेस्टों में, 17,66,287 आरएटीज़ रहे हैं, जबकि बाक़ी टेस्ट आरटी-पीसीआर, सीबीनैट और ट्रूनैट टेस्ट का मिश्रण रहे हैं.
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आरएटी बनाम आरटी-पीसीआर टेस्ट
जुलाई में दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार की आलोचना की थी, कि उसने अपनी आरटी-पीसीआर टेस्टिंग क्षमता का, केवल 50 प्रतिशत इस्तेमाल किया है. कोर्ट में पेश एक सरकारी रिपोर्ट से पता चला, कि बाद के आरटी-पीसीआर टेस्ट के लिए भेजे गए, लगभग 18 प्रतिशत रैपिड एंटिजेन टेस्ट पॉज़िटिव निकले थे. इससे रैपिड एंटिजेन टेस्टों पर सरकार के फोकस को लेकर चिंताएं पैदा हो गईं थीं.
फिर 19 अगस्त को, दिल्ली सरकार की ओर से पेश रिपोर्ट के आधार पर, कोर्ट ने नोट किया कि आरटी-पीसीआर टेस्टों की संख्या, उस अनुपात में नहीं बढ़ी है, जिसमें एंटिजेन टेस्ट बढ़े हैं.
दिप्रिंट के हाथ लगी आदेश की कॉपी के अनुसार, कोर्ट ने कहा कि 31 जुलाई से 17 अगस्त के बीच, रैपिड एंटिजेन टेस्टों की संख्या बढ़कर लगभग दोगुनी हो गई, लेकिन आरटी-पीसीआर टेस्टिंग रोज़ाना 5,000 से कम के औसत पर बनी रही.
अगस्त में मामलों के उतार-चढ़ाव की तरफ शारा करते हुए, कोर्ट ने कहा कि इससे लगता है, कि “दिल्ली में लैब टेस्टिंग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए”.
लेकिन, आम आदमी पार्टी ने ये कहते हुए अपने ‘दिल्ली मॉडल’ की प्रशंसा की है, कि उसकी टेस्टिंग रणनीति की वजह से, आरटी-पीसीआर और आरएटीज़ दोनों की, सकारात्मकता दर में काफी कमी आई थी.
दिप्रिंट ने जिन एक्सपर्ट्स से बात की, उनका कहना था कि रैपिड एंटिजेन टेस्ट, हालांकि आरटी-पीसीआर से पीछे होते हैं, लेकिन महामारी की बेहतर तस्वीर हासिल करने के लिए, टेस्टिंग को बढ़ाना ज़रूरी है.
पब्लिक हेल्थ फाउण्डेशन ऑफ इंडिया में, हेल्थ सिस्टम्स सपोर्ट की वाइस-प्रेसिडेंट, प्रीती कुमार ने कहा, ‘हम आरटी-पीसीआर टेस्ट ज़्यादा कराना पसंद करेंगे, लेकिन दोनों का मिश्रण भी काम करता है, क्योंकि ये एक रणनीतिक फैसला है, कि सिस्टम पर आरटी-पीसीआर टेस्टों का ज़्यादा बोझ न डाला जाए, जिनमें ज़्यादा समय लगता है. अगर हम आरटी-पीसीआर टेस्ट का इंतज़ार करते हैं, तो हम फैसले लेने में महत्वपूर्ण समय गंवा सकते हैं’.
एम्स में कम्यूनिटी मेडिसिन के प्रोफेसर, डॉ संजय राय ने भी कहा, कि हालिया सेरो सर्वे से पता चला है, कि दिल्ली पहले ही एक व्यापक ट्रांसमिशन फेज़ में है, और मिश्रित टेस्टिंग में संसाधनों का ज़्यादा कुशलता से इस्तेमाल हो सकता है.
उन्होंने कहा, ‘मामलों में उतार-चढ़ाव बहुत ज़्यादा नहीं है, इसलिए ये चिंता का विषय नहीं है. रैपिड एंटिजेन टेस्टिंग पर फोकस से अब अच्छा चल रहा है. बहुत ज़्यादा आरटी-पीसीआर टेस्ट करने से, सिर्फ फ़िज़ूल के ख़र्च में इज़ाफा होगा.’
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