नई दिल्ली: कोरोना संकट ने सुप्रीम कोर्ट को संस्थान में प्रशासनिक सुधारों में तेजी करने की तरफ आगे बढ़ाया है जिससे मामलों का निपटारा, रिकॉर्ड्स का डिजिटाइजेशन और कोर्ट पेपरलेस हो सके.
ई-कोर्ट मॉड्यूल का अनावरण के लिए आयोजित एक ऑनलाइन सेमिनार में, भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने स्वीकार किया कि लॉकडाउन काफी बदलाव लेकर आया है.
विशेषज्ञों का कहना है कि बहुप्रतीक्षित सुधार न्यायिक व्यवस्था में बदलाव लाएंगे जिससे वादियों को आसानी होगी.
वीडियो-कॉन्फ्रेंस से सुनवाई
24 मार्च को हुए लॉकडाउन से एक दिन पहले ही शीर्ष अदालत ने जरूरी मुद्दों पर सुनवाई डिजिटल माध्यम से करनी शुरू की थी. इस तरह काम करने का एक मात्र मकसद ये था कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो सके और कोर्ट में भीड़ में कमी आए.
अपारदर्शिता में काम करने वाली एक संस्था के रूप में सुप्रीम कोर्ट ने प्रौद्योगिकी को अपनाया और वीडियो-कॉन्फ्रेंस के जरिए सुनवाई करनी शुरू की. सार्वजनिक प्लेटफार्म्स का मुश्किल से ही इस्तेमाल करने वाले जजों ने अपने घरों से ही ऑनलाइन सुनवाई शुरू की जिसमें वकीलों ने अपने दफ्तर से या घर से दलीलें दीं.
शुरुआत में अदालत दो बेंच से शुरू हुई जो धीरे-धीरे बढ़कर 10 बेंच हो गई. बेंचों के पास आने वाले मामलों में भी तेजी आई.
शीर्ष अदालत ने सभी उच्च न्यायालयों और ट्रायल अदालतों को आभासी सुनवाई करने की अनुमति दी और कहा कि वे सभी उनके दिशानिर्देशों के आधार पर काम शुरू करें.
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मामलों की लाइव सुनवाई के लिए वीडियो कांफ्रेंस एक शुरुआत हो सकती है जो कि वकीलों और कानून के छात्रों की लंबे समय से मांग रही है. सितंबर 2018 में तीन जजों की बेंच ने महत्वपूर्ण संवैधानिक मामलों की सुरक्षित तरीके से लाइव सुनवाई का सुझाव दिया था. ये प्रस्ताव सीजीआई के पास अभी विचाराधीन है.
सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा की अतिरिक्त एडवोकेट जनरल रुचि कोहली ने कहा कि डिजिटल सुनवाई एक सकारात्मक बदलाव है. हालांकि ये पुरानी व्यवस्था की जगह नहीं ले सकता है. उनके अनुसार आने वाले भविष्य में सुनवाईयां कोर्ट रुम और वर्चुअली दोनों तरीके से होंगी.
कोहली ने कहा कि नई प्रणाली ने एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड (एओआर) को एक पहचान दी है, जो पहले केवल मामले दर्ज करते थे और सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकीलों की परछाई बनकर रहते थे.
उन्होंने कहा, ‘हर मामले के एओआर को अब कोर्ट के सामने पेश होना आवश्यक है. सुनवाई से पहले जज एओआर से पता करते हैं कि मामला किस बात से संबंधित हैं चाहे वरिष्ठ वकील मौजूद हो या नहीं.’
मामलों की ई-फाइलिंग
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की ई-कमिटी ने 24×7 के आधार पर शीर्ष अदालत में मामलों को दायर करने के लिए वकीलों और वादियों के लिए एक इंटरैक्टिव मंच डिजाइन करने के लिए मौजूदा ई-फाइलिंग प्रणाली को संशोधित किया है. अब सप्ताह के दिनों में 10 से 5 बजे के बीच मामले दर्ज होते हैं और शनिवार को दोपहर से पहले.
कमिटी ने वकीलों को पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी दी और इसे शुरू करने से पहले उनसे सुझाव मांगे. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ये मॉडल कॉस्ट-इफैक्टिव है जिसमें याचिका की बहुत सी कॉपियों से छूट मिलेगी और फाइल्स को पोर्टल पर अपलोड किया जा सकता है. अदालत के रिकॉर्ड को डिजिटल बनाने के लिए 2005 में शुरू की गई ई-कोर्ट परियोजना को आगे बढ़ाया जाएगा. 2017 में, सुप्रीम कोर्ट को पेपरलेस बनाने का प्रयास किया गया था, लेकिन एक कुशल ई-फाइलिंग प्रणाली के अभाव में यह विफल हो गया.
नई सुविधा में ऑनलाइन कोर्ट शुल्क भुगतान, डिजिटल हस्ताक्षरों का उपयोग और याचिकाओं में दोषों और आपत्तियों की पहचान करने के लिए डिजिटल जांच प्रणाली शामिल है.
सभी दस्तावेज दाखिल करने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर के साथ फाइलिंग पोर्टल पर अपलोड किए जाएंगे. एक चरण-दर-चरण मार्गदर्शिका यह बताने के लिए पोर्टल पर उपलब्ध है कि डिजिटल हस्ताक्षर कैसे तैयार किए जा सकते हैं और फाइलिंग के लिए उपयोग किए जा सकते हैं. यह ई-साइन सुविधा निशुल्क है, खासकर वादियों और वकीलों के लिए, जिनके पास डिजिटल हस्ताक्षर टोकन नहीं है या वे इसे खरीद नहीं सकते.
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स्टॉक होल्डिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के माध्यम से अदालती शुल्क और संबद्ध शुल्क के लिए ऑनलाइन भुगतान किया जा सकता है. एटम बैंक के माध्यम से डेबिट कार्ड, क्रेडिट कार्ड, यूपीआई या नेट बैंकिंग द्वारा अदालत के शुल्क का भुगतान कर सकता है. ऐसे व्यक्ति जो व्यक्तिगत रूप से प्रकट होना चाहते हैं, वे पोर्टल पर पंजीकरण कर सकते हैं, अपने ग्राहक को जानिए (केवाईसी) मोड को आधार विवरण देकर.
सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील ऐश्वर्या भाटी ने इसे सकारात्मक पहल बताया.
भाटी ने कहा, ‘ई-फाइलिंग के लिए लगभग दो दशकों से मांग थी. आपको एक विचार के साथ दो दशकों तक खेलने की आवश्यकता नहीं है. महामारी ने हमें चुनौती दी है, और संस्था ने इस अवसर का उपयोग प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने और इसका उपयोग करने के लिए किया है.’
स्थानांतरण याचिकाओं, जमानत मामलों की सुनवाई के लिए एकल पीठ
सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को अपने नियमों में बदलाव कर एकल पीठ को स्थानांतरण संबंधी मामलों के साथ जमानती और एंटी-सिपेटरी बेल की सुनवाई करने की अनुमति दी जिसके तहत सात साल तक की सजा होती है. ऐसे मामलों की सुनवाई हर रोज तीन कोर्ट करती है.
शीर्ष अदालत की शुरुआत के बाद से ये पहली बार हो रहा है कि एकल पीठ ऐसे मामलों की सुनवाई कर रही है. अब तक, किसी भी मामले की सुनवाई के लिए दो जजों की बेंच होती थी. कोर्ट नंबर 1 में सीजीआई के नेतृत्व में कभी-कभी तीन जज भी होते थे. ऐसे मामले जहां संवैधानिक प्रश्न खड़ा हो जाता था, तब पांच जजों की बेंच मामले की सुनवाई करती थी.
बेंचों को बांटना जिससे शीर्ष अदालत में ज्यादा मामलों की सुनवाई हो सके, ये इस बात को ध्यान में रखकर किया गया है कि अदालत में 60 हजार से ज्यादा मामलों की अभी सुनवाई होनी बाकी है. लॉकडाउन ने वैसे भी सुनवाई की गति को धीमा किया है.
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ट्रांसफर से जुड़ी याचिकाएं दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत दायर होती है, जो सुप्रीम कोर्ट को आपराधिक मामलों और अपील को एक राज्य से दूसरे राज्य में स्थानांतरित करने की अनुमति देता है.
सुप्रीम कोर्ट की वकील ऐश्वर्या सिन्हा ने एकल पीठ के विचार का सर्मथन किया.
सिन्हा ने कहा, ‘ट्रांसफर याचिकाओं में शादी से जुड़े मामलों की बड़ी संख्या है. उन्हें किसी भी प्रकार के कानूनी अड़चन की आवश्यकता नहीं है. आम तौर पर, एक हस्तांतरण याचिका छह महीने में तय की जाती है. लेकिन इस व्यवस्था के साथ, जहां एक एकल न्यायाधीश लंबी अवधि के लिए बैठ सकता है, इन याचिकाओं को एक महीने के भीतर निपटाया जा सकता है.’
हालांकि, सिन्हा ने जघन्य आपराधिक मामलों में इस तरह की प्रथा का पालन करने के खिलाफ चेतावनी दी, जहां राज्य की पुलिस की अखंडता पर सवाल उठाया जाता है, और इस आधार पर स्थानांतरण का अनुरोध किया जाता है कि निष्पक्ष जांच संभव नहीं है.
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