नई दिल्ली: ‘कोविड- 19 टेस्टिंग के मामले में भारत की तुलना साउथ कोरिया से नहीं की जा सकती है. हमारी आबादी बहुत ज़्यादा है. यहां अगर 5 प्रतिशत लोगों का भी टेस्ट करें तो 7 करोड़ टेस्ट किट लगेंगे. इतने तो पूरी दुनिया के पास नहीं हैं,’ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने दिप्रिंट से ये बातें कहीं.
गुलेरिया ने दिप्रिंट से खास बातचीत में कोरोना संक्रमण, जांच, इलाज और दवा को लेकर कई महत्वपूर्ण जानकारियां तो शेयर की. लॉकडाउन की अहमियत और क्यों इसे धीरे-धीरे खोला जाना चाहिए, एचसीक्यू का इस बीमारी में इस्तेमाल और रैपिड टेस्टिंग किट की समस्याओं पर भी अपना मत बताया.
विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा टेस्टिंग पर ज़ोर और साथ ही भारत में टेस्टिंग कम होने के लगातार लग रहे आरोपों को गुलेरिया सही नहीं मानते, उनका तर्क है, ‘भारत के लिहाज़ से बेस्ट टेस्टिंग नीति पर काम होना चाहिए.’
गुलेरिया ने ये जानकारी भी दी कि हाल में भारत में टेस्टिंग काफ़ी बढ़ी है. लेकिन उस अनुपात में मामले नहीं बढ़े जिससे साफ़ है कि हर किसी को टेस्ट करने की ज़रूरत नहीं. उन्होंने कहा, ‘टेस्टिंग और सर्विलांस के जरिए हम कोविड से लड़ रहे हैं.’
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उनके मुताबिक भारत में टेस्टिंग में काफ़ी बदलाव आया है. पहले विदेश से आने वालों को टेस्ट किया जा रहा था. अब निमोनिया के लक्ष्ण और हॉटस्पॉट में मौजूद लोगों को भी टेस्ट कर रहे हैं. भारत की टेस्टिंग में काफ़ी रफ़्तार आई है और अब रोज़ 30,000 से ज़्यादा टेस्ट हो रहे हैं.
देश में कोविड पॉज़िटिव लोगों की संख्या 20,000 पार कर गई है. लेकिन अच्छी बात ये है कि लोग तेज़ी से ठीक होकर घर भी लौटने लगे हैं. गुलेरिया बताते हैं, ‘भारत के पक्ष में एक बात ये है कि 90 प्रतिशत पॉज़िटिव लोगों में कोविड- 19 के बेहद हल्के लक्षण मिल रहे हैं जिसकी वजह से वेंटिलेटर की ज़रूरत और मृत्यु की दर कम है.’
कोविड के मृतकों की पहचान
बीते दिनों अमेरिका ने न्यूयॉर्क और चीन ने वुहान में कोविड से हुई मौतों की संख्या में सुधार किया है. दोनों देशों ने माना है कि ऐसे कई मृतक हैं जिनमें कोरोना के लक्षण थे लेकिन उनका टेस्ट नहीं हो पाया. ऐसे में उन्हें कोरोना का शिकार माना गया जिससे दोनों शहरों में मृतकों की संख्या बढ़ गई. गुलेरिया की मानें तो भारत के मामले में ऐसा नहीं होगा.
गुलेरिया ने कहा अन्य देशों ने हॉस्पिटल के बाहर जैसे नर्सिंग होम और ओल्ड एज होम में मरने वालों को भी कोविड- 19 से हुई मौतों में जोड़ा है. भारत में नर्सिंग होम और ओल्ड एज होम जैसी व्यवस्था व्यापक स्तर पर नहीं है. ऐसे में भारत में मृतकों का आंकड़ा सुधारने की स्थिति नहीं आएगी.
रैपिड टेस्टिंग के साथ कोई समस्या नहीं
रैपिड टेस्टिंग किट को लेकर कुछ राज्यों ने शंका जताई कि वह परिणाम सही नहीं बता रही है, जिसके बाद इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने दो दिनों पहले राज्यों से कहा था कि उन्हें जो रैपिड टेस्टिंग किट भेजे गए हैं वो उसका इस्तेमाल न करें.
रैपिड टेस्टिंग किट के साथ दिक्कत से जुड़े सवाल पर गुलेरिया ने कहा कि इसके साथ कोई ‘दिक्कत’ नहीं है. गुलेरिया के मुताबिक आईसीएमआर ने रैपिड टेस्टिंग की उपयोगिता समझने को कहा है. उन्होंने कहा, ‘रैपिड टेस्ट और (रिअल टाइम पॉलीमरेज चेन रिएक्शन) आरटीपीसीआर में अंतर ये है कि पहला एंटीबॉडी और दूसरा वायरस का पता लगाता है.’
उनके मुताबिक ये भी अहम है कि फील्ड कंडीशन में एंटीबॉडी टेस्ट कैसे काम करता है. उन्होंने कहा कि इसमें ख़ून के सही अनुपात से लेकर सही तापमान तक, कई बातें मायने रखती हैं. गुलेरिया के मुताबिक जिनका इम्यून (शरीर की रोग प्रतिरोधन क्षमता) ख़राब है उनपर एंटीबॉडी टेस्ट अच्छे से काम नहीं करता.
भारत में हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन का वर्तमान और भविष्य
कोविड के मामले में भारत में मेडिकल स्टाफ को हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन (एसीक्यू) दिए जाने को लेकर गुलेरिया ने कहा कि इस दवा का यहां सालों से इस्तेमाल हो रहा है और इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है. हालांकि, दिल के मरीज़ों को इस दवा से दूर रखा जाना चाहिए.
डॉक्टर गुलेरिया ने कहा, ‘कुछ रिपोर्ट्स से पता चला कि एचसीक्यू दवा वायरस को रेप्लीकेट (प्रसार) करने से रोकती है. ऐसे में वायरस रेप्लीकेशन को रोकने के लिए ये दवा दी जा रही है.’
एक नई रिपोर्ट के मुताबिक एक समूह पर किए गए टेस्ट में जिन्हें एचसीक्यू दिया गया उनमें मौत की दर ज़्यादा होने की जानकारी सामने आई है. गुलेरिया का कहना है कि फिलहाल तो इस दवा का इस्तेमाल जारी है. हालांकि, नई रिपोर्ट्स से इसके इस्तेमाल का भविष्य तय होगा.
लॉकडाउन कब ख़त्म होगा
मौजूदा डेटा का हवाला देते हुए गुलेरिया ने कहा कि लॉकडाउन की वजह से विकसित देशों की तुलना में भारत बेहतर कर रहा है और ‘हम कर्व फ्लैट करने की ओर बढ़ रहे हैं’. यानि की कोरोनावायरस के फैलाव पर कुछ हद तक नियंत्रण लाया जा सका है. उन्होंने कहा, ‘जब लॉकडाउन शुरू हुआ था तब हमारे यहां 4 से 4.5 दिनों में मामले दोगुने हो रहे थे. अब इसमें 7 दिन लगते हैं.’
उन्होंने ये भी कहा कि भारत में एक बार में लॉकडाउन उठाना संभव नहीं होगा. इसके कई ख़तरे हैं. उन्होंने कहा, ‘वायरस हमसे तेज़ है और ये सामूहिक लड़ाई है. अगर हम इसे फ़ैलने से रोक देंगे तो हम जीत जाएंगे.’
गर्मी के मौसम में ये वायरस कमज़ोर होने की बात को उन्होंने नकार दिया. उन्होंने कहा, ‘अभी तापमान 30 डिग्री से ज़्यादा है फिर भी कोविड फ़ैल रहा है. साथ ही ब्राज़ील जैसे गर्म देशों में ये अभी भी फ़ैल रहा है.’
कोमॉर्बिड कंडिशन और व्यापक क्षति
एक बड़े ख़तरे की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि कोमॉर्बिड कंडिशन यानी पहले से शुगर, हार्ट, कमज़ोर फेंफड़े या कमज़ोर इम्युनिटी वालों को कोविड से ज़्यादा ख़तरा है. उन्होंने कहा कि ऐसे मरीज़ों को कोविड से तो बचाना ही है, इनका इलाज भी नहीं रुकना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘कोविड से भारत पर व्यापक क्षति का ख़तरा है. हमें कोविड और गैर कोविड बीमारियों के बीच बैलेंस बिठाना पड़ेगा.’ साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि इस महामारी ने ये सिखाया है कि स्वास्थ्य के मामले में भारत को स्वाबलंबी बनना होगा.
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भारत में दूसरी बीमारी के इलाज में मरीज़ो को दिक्कत आ रही है क्योंकि युद्ध स्तर पर कोविड से निपटने के लिए कई अस्पतालों में कोविड-19 के मरीज़ों को भर्ती किया गया है और सारा स्वास्थ्य महकमा इस के निवारण में जुड़ा है ऐसे में पहले से कई बड़ी बीमारियों से जूझ रहे लोगों को स्वास्थ्य सेवा संबंधी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है और गुलेरिया का इशारा इस ओर है.