scorecardresearch
Monday, 18 November, 2024
होमदेश'अदालतें सुनिश्चित करें कि तुच्छ मामले कानून की पवित्र प्रकृति को दूषित न करें' - सुप्रीम कोर्ट

‘अदालतें सुनिश्चित करें कि तुच्छ मामले कानून की पवित्र प्रकृति को दूषित न करें’ – सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी चेन्नई की एक अदालत में दो लोगों के खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के बाद आई है.

Text Size:

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ‘कानून पवित्र इकाई है’ जो न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मौजूद है और अदालतों को हमेशा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तुच्छ मामले कानून की पवित्र प्रकृति को दूषित न करें.

अदालत ने यह भी कहा कि कानून निर्दोषों की रक्षा के लिए हैं, न कि किसी को डराने के लिए तलवार के रूप में इस्तेमाल करने के लिए. जस्टिस कृष्णा मुरारी और जस्टिस एस रवींद्र भट की पीठ ने कहा कि हालांकि यह सच है कि एक आपराधिक शिकायत को केवल दुर्लभ मामलों में ही खारिज किया जाना चाहिए, फिर भी यह हाई कोर्ट का कर्तव्य है कि वह ‘न्याय के निष्फलता को रोकने के लिए’ प्रत्येक मामले को बड़े विस्तार के साथ देखे.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा ‘कानून एक पवित्र इकाई है जो न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मौजूद है, और अदालतों को, कानून के रक्षक और कानून के सेवक के रूप में, हमेशा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तुच्छ मामले कानून की पवित्र प्रकृति को विकृत नहीं हो.’

कोर्ट ने आगे कहा, ‘पुनरावृत्ति की कीमत पर, हम फिर से कहते हैं कि शिकायत दर्ज करने और आपराधिक कार्यवाही शुरू करने का उद्देश्य पूरी तरह से न्याय के सिरों को पूरा करने के लिए मौजूद होना चाहिए, और कानून को आरोपी को परेशान करने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए. कानून निर्दोषों की रक्षा के लिए एक ढाल के रूप में मौजूद है, न कि उन्हें डराने के लिए तलवार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.’

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी चेन्नई की एक अदालत में दो लोगों के खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के बाद आई है.

यह फैसला मद्रास हाई कोर्ट के पिछले साल अगस्त के फैसले के खिलाफ एक अपील पर आया था, जिसमें ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 के प्रावधान के कथित उल्लंघन के संबंध में एक आपराधिक शिकायत को रद्द करने की मांग वाली याचिका खारिज कर दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रारंभिक जांच और शिकायत दर्ज करने के बीच चार साल से अधिक का अंतर था, और पर्याप्त समय बीत जाने के बाद भी, शिकायत में दावों को बनाए रखने के लिए कोई सबूत नहीं दिया गया था.

बेंच ने कहा कि प्रारंभिक स्थल निरीक्षण, कारण बताओ नोटिस और शिकायत के बीच चार साल से अधिक की असाधारण देरी के लिए जांच प्राधिकरण ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘हालांकि अपने आप में अत्यधिक देरी एक आपराधिक शिकायत को रद्द करने का आधार नहीं हो सकती है. इतनी देर की अस्पष्ट देरी को इसे रद्द करने के आधार के रूप में एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारक के रूप में माना जाना चाहिए.’


यह भी पढे़ं: नीतीश की ‘जो पिएगा वो मरेगा’ टिप्पणी से और भी जिंदगियों को खतरे में डालेगी शराबबंदी, गहराएगा संकट


share & View comments