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Sunday, 14 April, 2024
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अंतर-धार्मिक विवाह के लिए 30 दिन का नोटिस अब जरूरी नहीं: इलाहाबाद HC

1954 का अधिनियम अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक विवाह से संबंधित है, और लोगों को अपने धर्म को त्यागने के बिना शादी करने की अनुमति देता है.

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नई दिल्ली: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मंगलवार को अपने फैसले में कहा कि विशेष विवाह अधिनियम 1954 के अंतर्गत अब शादी करने वाले जोड़े यह तय कर सकते हैं कि वो 30 दिन वाले नोटिस को प्रकाशित करावाएंगे या नहीं, जो कानून के तहत निर्धारित है.

जस्टिस विवेक चौधरी ने पाया कि अगर नोटिस छपवाने का प्रावधान बरकरार रहता है तो ये ‘मौलिक अधिकारों और निजता के अधिकार में हस्तक्षेप होगा’.

1954 का अधिनियम अंतर-जातीय और अंतर-धार्मिक विवाह से संबंधित है, और लोगों को अपने धर्म को त्यागने के बिना शादी करने की अनुमति देता है.

न्यायमूर्ति चौधरी ने हालांकि, विवाह अधिकारी को किसी भी विवाह की पुष्टि करने के लिए जोड़े की पहचान, उम्र और वैध सहमति को सत्यापित करने के लिए रास्ता खुला रखा है.

अदालत अभिषेक कुमार पांडे द्वारा दायर एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसकी पत्नी के पिता ने उसे उसके साथ रहने से रोक दिया है. उनकी पत्नी ने पांडे से शादी करने के लिए इस्लाम धर्म से हिंदू धर्म अपना लिया था.

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जब महिला और उसके पिता ने शादी को स्वीकार करने के बाद मामला सुलझा लिया था, दंपति ने अदालत को सूचित किया कि 30-दिन की नोटिस अवधि के कारण उनकी निजता का अतिक्रमण हो रहा है और इससे उनकी शादी के संबंध में ‘उनके सामाजिक चयन में अनावश्यक सामाजिक दबाव/ हस्तक्षेप’ पैदा होगा.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि भारत में विवाह व्यक्तिगत कानूनों के तहत किए जा सकते हैं, जिसमें किसी विवाह के खिलाफ किसी नोटिस या आपत्ति के प्रकाशन की आवश्यकता नहीं होती है.

अदालत ने कहा, ‘बदली हुई सामाजिक परिस्थितियों और कानूनों में प्रगति के मद्देनज़र… यह वर्तमान पीढ़ी को मजबूर करने के लिए क्रूर और अनैतिक होगा… अपनी सामाजिक आवश्यकताओं और परिस्थितियों के लिए लगभग 150 साल पहले रहने वाली पीढ़ी द्वारा अपनाई गई रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करना, जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है.’

(अपूर्वा मंधानी के इनपुट के साथ)


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