नई दिल्ली: अहमदाबाद में 67 वर्षीय मृत कपड़ा मजदूर के परिवार ने शासन पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया है, मज़दूर को छुट्टी देने के एक दिन बाद, उसका शव शुक्रवार को सिविल अस्पताल से लगभग 10 किलोमीटर दूर एक बस स्टॉप पर मिला था.
गणपत मकवाना को अस्पताल के अधिकारियों द्वारा छुट्टी दे दी गई थी, जबकि वह गंभीर हालत में थे. उनके बेटे कीर्ति ने आरोप लगाया कि उनके लक्षण माइल्ड नहीं थे और उन्हें अच्छी चिकित्सा सुविधा की आवश्यकता थी.
कीर्ति ने कहा, वह कुछ नहीं खा रहे थे. उनकी स्थिति राज्य अस्पताल में भर्ती होने के वक्त काफी खराब थी. वे एक गंभीर मरीज को कैसे जाने दे सकते हैं?
खांसी और चक्कर आने के बाद वह 10 मई को सिविल अस्पताल पहुंचे थे, उन्हें कोरोनावायरस के लिए भर्ती कराया गया और उनका परीक्षण किया गया. तीन दिन बाद, उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी.
कीर्ति ने दिप्रिंट को बताया, ‘भर्ती होने के 3-4 दिन पहले लक्षण सामने आये थे. अस्पताल में रहने के दौरान हमारा उनसे कोई संपर्क नहीं था और हमें यह भी पता नहीं था कि उन्हें छुट्टी दे दी गई थी. 15 मई को, हमें पुलिस से फोन आया कि हम उनके शव को ले जाएं, तो हम चौंक गए.
सिविल अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात डॉ. एमएम प्रभाकर के अनुसार, गणपत को 14 मई को छुट्टी दे दी गई थी और हलके लक्षण पाए जाने के बाद से उन्हें घर में रहने के लिए कहा गया था.
डॉ. प्रभाकर ने कहा, ‘उनके लक्षण हलके थे और नए दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रोटोकॉल उनके घर जाने के लिए था, इसलिए हमने होम क्वारेंटाइन की सलाह दी. उन्हें नगर निगम की गाड़ी से ले जाया गया और अपने घर के पास बस स्टॉप पर छोड़ा गया था. हमें नहीं पता कि उसके बाद क्या हुआ, इस पर गौर किया जा रहा है.’
रविवार को, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने गणपत की मौत के कारण का पता लगाने के लिए एक विस्तृत जांच करने को कहा है.
‘आकस्मिक मृत्यु’, पवार के बाकी लोगों का परीक्षण नहीं किया गया
गणपत मकवाना कोरोना हॉस्पॉट अहमदाबाद में घनी आबादी वाले दानलीमडा में रहते थे.
पुलिस उपायुक्त (जोन 6) बिपिन अहिरे के अनुसार, गणपत को बस स्टॉप के करीब जाने दिया गया. दानलीमडा पुलिस थाने में आकस्मिक मौत का मामला दर्ज किया गया है.
अहिरे ने दिप्रिंट को बताया, ‘सीसीटीवी फुटेज से संकेत मिलता है कि वह उस स्थान से चलते हुए बस स्टॉप पर आए थे, जहां उन्हें छोड़ा गया था. कीर्ति के अनुसार उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं था और एक समय में 100-150 मीटर से अधिक नहीं चल सकते थे. उनके शव को लगभग 3 बजे एक सुरक्षा गार्ड ने बरामद किया था. हम पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं.’
गणपत अपनी पत्नी के साथ रहते थे, जबकि कीर्ति अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ लगभग 100 मीटर दूरी पर रहते हैं. परिवार ने कहा कि गणपत के डायग्नोसिस और उनकी मृत्यु के बाद, परिवार के किसी शख्स का टेस्ट नहीं किया गया है.
कीर्ति ने कहा, हमें पुलिस द्वारा वीएस अस्पताल बुलाया गया जहां पोस्टमार्टम कराया गया था. मेडिक्स ने हमें बताया कि शव को हम खुद श्मशान घाट तक पहुंचाएं, भले ही हमारे पास कोई सुरक्षात्मक गियर नहीं है, इसलिए हमने वही किया जो हो सका.
सिविल अस्पताल में ‘लापरवाही’
इस घटना से वडगाम के विधायक जिग्नेश मेवाणी सहित अन्य लोगों में आक्रोश फैल गया है. मेवाणी ने कहा ‘इस प्रकार की लापरवाही, उदासीनता देश में कहीं भी नहीं देखी गई है.’ उन्होंने ‘गुजरात मॉडल’ पर भी सवाल उठाया, जिसे एक प्रभावी स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली होने के लिए प्रचारित किया जाता है.
इससे पहले अप्रैल में, सिविल अस्पताल की आलोचना की गई थी, क्योंकि 25 कोरोना पॉजिटिव रोगियों को 4 घंटे से अधिक समय तक अस्पताल में बेड के लिए बाहर इंतजार करना पड़ा था. सिविल अस्पताल अहमदाबाद में कोरोना रोगियों के लिए नोडल सुविधा है.
गुजरात में कोरोनावायरस से सबसे अधिक मृत्यु दर्ज की गई है और भारत में संक्रमण की दूसरी सबसे बड़ी संख्या. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, सोमवार सुबह तक, इसमें 11,379 सक्रिय मामले और 659 मौतें दर्ज की गई हैं.
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