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शनिवार, 26 अप्रैल, 2025
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लॉकडाउन के चलते कोई ग्राहक नहीं, दिल्ली की सेक्स वर्कर सरकार के फ्री राशन के इंतजार में

दिल्ली के जीबी रोड पर रहने वाली हज़ारों सेक्स वर्कर कोरोनावायरस के चलते हुए देशव्यापी लॉकडाउन में संघर्षमय जीवन बिताने को मजबूर हैं, उनके पास न तो एनजीओ पहुंच रहा है और ना ही सरकार की कोई फ्री राशन वाली योजना.

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नई दिल्ली: दिल्ली की हज़ारों सेक्स वर्कर कोरोना वायरस के चलते हुए देशव्यापी लॉकडाउन में संघर्षमय जीवन बिता रही हैं. जीबी रोड पर रहने वाली सेक्स वर्कर कहती हैं, ‘हम तक ना ही कोई एनजीओ पहुंच रहा है और ना ही सरकार की कोई फ्री राशन वाली योजना. हम हर किसी की लिस्ट में सबसे आखिरी में आते हैं. जब नेता चुनाव में वोट मांगने तक नहीं आते तो इस महामारी में हम तक कोई कैसे पहुंचेगा?’

30 मार्च की दोपहर को जीबी रोड पर कुछ रिक्शावाले और ड्यूटी पर तैनात पुलिस वाले जरूर नजर आ जाते हैं. एक तीन मंज़िला मकान की जाली से एक सेक्स वर्कर बाहर देख रही हैं. मेरा पहचान कार्ड दिखाने के बाद मुझे वो ऊपर आने के लिए कहती हैं. तंग सीढ़ियों से चढ़ते हुए जब उनके घर में प्रवेश करते हैं तो तीन-चार और सेक्स वर्कर लॉकडाउन के चलते हो रही परेशानियों की लंबी फेहरिस्त लिए बैठी रहती हैं.

राजस्थान की रहने वाली रमा (परिवर्तित नाम) कहती हैं, ‘मोदी जी के जनता कर्फ्यू लगाने से पहले कई सेक्स वर्कर अपने गांव चली गई. कोरोना की खबरों के चलते हमारे पास काम आना भी कम हो गया था. देशव्यापी लॉकडाउन के बाद से कोई काम नहीं है. हम खुद भी अपनी सुरक्षा के चलते किसी को नहीं आने दे रहे हैं. हमारे छोटे-छोटे बच्चे हैं. इनके लिए भी चिंता हो रही है.’

उनके पास बैठीं 25 वर्षीय रवीना के बच्चे तो नहीं हैं लेकिन उन्हें खुद की चिंता ज़रूर सता रही है. वो बताती हैं, ‘राशन कार्ड नहीं है तो फ्री का राशन कहां से मिलेगा?’ मैंने उन्हें दिल्ली सरकार की उस घोषणा के बारे में बताया जहां बिना राशन कार्ड वालों को भी फ्री राशन दिया जाएगा. फिलहाल दिल्ली सरकार प्रति व्यक्ति छह किलो गेहूं और डेढ किलो चावल मुहैया करा रही है. लेकिन रवीना कहती हैं कि उनको इस बात की जानकारी नहीं है.

अपने घर से बाहर झांकती एक सेक्स वर्कर| तस्वीर- ज्योति यादव

जीबी रोड पर तैनात पुलिस वालों से बातचीत करने पर पता चलता है कि बहुत सारी महिलाएं लॉकडाउन की खबर सुनकर अपने-अपने घरों के लिए निकल गईं. जो बच गई हैं उनतक कभी-कभार कोई पुलिसकर्मी खाना पहुंचा देता है.

लेकिन आंध्रप्रदेश की रहने वाली एक साठ वर्षीय सेक्स वर्कर घर नहीं जा सकती. वो दिप्रिंट से हुई बातचीत में कहती हैं, ‘मेरे गांव तक पहुंचने में चार-पांच दिन का समय लगता है. मैं कैसे जाती? दवाइयां टाइम से मिल जाती तो अच्छा रहता. मेरी मदद करने वाला भी कोई नहीं है.’

किसी को दवा और राशन की चिंता है तो कई सेक्स वर्कर इस चिंता में डूबी हैं कि कहीं अपने काम के चलते वो कोरोना जैसे वायरस का शिकार ना हो गई हों. एक युवा महिला सेक्स वर्कर कहती हैं, अभी तक हमारी कोई टेस्टिंग नहीं हुई है. लेकिन हमें क्या पता हमारे पास आने वालों में कौन विदेश से आया हो? काम तो एक हफ्ते पहले ही बंद हुआ है लेकिन वायरस तो एक महीने पहले से आ रहा है. सरकार कोई मेडिकल सुविधा भी उपलब्ध नहीं करा रही.

एक छत पर सूख रहे कपड़े| तस्वीर- ज्योति यादव

घर में खेल रहे बच्चों को मास्क पहनाया हुआ है और खुद चुन्नी लपेटे अपनी छोटी सी कोठरी में बैठी हैं. सेक्स वर्कर्स ने बताया कि अपनी बचत से उन्होंने बच्चों के लिए मास्क मंगवा दिया है लेकिन बचत भी इतनी नहीं होती है. इसलिए खाना कम ही कर दिया है.

इस दौरान जीबी रोड से ही निकले एक सेक्स वर्कर के बेटे से भी मुलाकात हुई. नाम ना छापने की शर्त पर वो बताते हैं, ‘यहां 4000 हजार से भी ज्यादा दीदियां रह रही हैं और 70 कोठे चालू हैं. यहां ज्यादातर औरतें ट्रैफिकिंग के ज़रिए लाई गई हैं. इनमें से बहुत सी महिलाओं के लिए गांव में कोई जगह नहीं है. कोई स्वीकार नहीं करेगा. मैं एक एनजीओ की मदद से अपनी बिल्डिंग और आस पास की महिलाओं को राशन पहुंचा रहा हूं. जितने दिन हो सकेगा. बाकी भगवान भरोसे पर छोड़ दिया है.’

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