नई दिल्ली: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उस व्यक्ति को जमानत देने से इनकार कर दिया जो अपनी प्रेमिका के कथित तौर पर यौन उत्पीड़न और फिर दो अन्य लोगों द्वारा उसका बलात्कार किए जाने के दौरान मूकदर्शक बनकर खड़े रहने का आरोपी है.
जस्टिस राहुल चतुर्वेदी की एकल पीठ ने 21 अक्टूबर को जारी अपने आदेश में आरोपी राजू की तरफ से बचाव की इस दलील को खारिज कर दिया कि पीड़िता उसकी प्रेमिका है और दोनों ने सहमति से यौन संबंध बनाए थे. न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि किसी बालिग लड़की के साथ सहमति से यौन संबंध बनाना कानून के तहत अपराध नहीं है लेकिन ‘अनैतिक, दुराचार और भारत की स्थापित मान्यताओं के खिलाफ है.’
यही नहीं, न्यायाधीश ने इसके साथ ही कथित तौर पर सह-आरोपी द्वारा यौन उत्पीड़न के दौरान अपनी प्रेमिका की रक्षा करने की जिम्मेदारी न निभाने के लिए भी राजू को फटकार लगाई.
कोर्ट ने राजू की इस दलील को मानने से इनकार कर दिया कि वह दो अन्य आरोपियों से जुड़ा नहीं है. कोर्ट ने कहा कि इस पर कोई निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी.
राजू पर पोक्सो एक्ट और भारतीय दंड संहिता की धारा 376-डी (पीड़िता के बलात्कार के लिए अपनी स्थिति का लाभ उठाना), 392 (डकैती की सजा), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाने की सजा), 504 (जानबूझकर अपमान करना और किसी भी व्यक्ति को अपराध करने के लिए उकसाना) और 506 (आपराधिक धमकी) के तहत आरोप लगाए गए थे.
जांच के बाद पुलिस ने आईपीसी की धारा 376-डी और पोक्सो के प्रावधानों को छोड़कर सभी धाराओं को हटा दिया.
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‘अनैतिक और दुराचार’
अभियोजन पक्ष के अनुसार, पीड़िता 19 फरवरी को सुबह आठ बजे कौशांबी में सिलाई के प्रशिक्षण के लिए घर से निकली थी. उसने राजू से फोन पर बात की और दोनों के मिलने की योजना बनी. कक्षा समाप्त होने के बाद वह लगभग 11 बजे राजू से मिली और उसकी मोटरसाइकिल पर बैठकर चली गई. दोनों जब एक सुनसान जगह, एक स्थानीय नदी की पुलिया पर पहुंचे तो आरोपी ने पीड़िता के साथ यौन संबंध बनाने की इच्छा जताई. पीड़िता की तरफ से कड़े प्रतिरोध के बावजूद आरोपी ने उसे विवश कर दिया.
इसी बीच, मौके पर पहुंचे तीन लोगों ने राजू के साथ गाली-गलौज और मारपीट की, उसका मोबाइल छीन लिया और पीड़िता के साथ दुष्कर्म किया. कथित अपराध को अंजाम देने के दौरान उन्होंने एक-दूसरे के नाम लिए, जिससे पीड़िता के लिए उन्हें पहचान पाना संभव हुआ.
रिकॉर्ड में रखे गए साक्ष्यों और प्राथमिकी के कंटेंट को देखते हुए कोर्ट ने राजू के व्यवहार को निंदनीय और ‘एक प्रेमी के लिहाज से अशोभनीय’ करार दिया.
न्यायाधीश ने अपने आदेश में कहा, ‘जब आवेदक यह कहता है कि पीड़ित उसकी प्रेमिका है तो ऐसे में तो प्रेमिका की गरिमा, सम्मान और प्रतिष्ठा की रक्षा करना उसका परम कर्तव्य था. यदि कोई लड़की बालिग हो तो उसकी सहमति से यौन संबंध बनाना कोई अपराध नहीं है. लेकिन निश्चित रूप से यह अनैतिक और दुराचार जरूर है और भारतीय समाज की स्थापित सामाजिक मान्यताओं के अनुरूप भी नहीं है.’
अदालत ने कहा कि राजू उस समय मूकदर्शक बना रहा जब सह-आरोपी ‘उसके सामने उसकी प्रेमिका’ के साथ बर्बरता कर रहे थे. उसने इन भूखे भेड़ियों से पीड़िता के ‘मन-प्राण’ की रक्षा के लिए कड़े प्रतिरोध जैसा कोई प्रयास नहीं किया.
अदालत ने टिप्पणी की कि उसने एक ‘अच्छे प्रेमी’ के तौर पर एकमात्र इतना कर्तव्य ही निभाया कि पीड़िता के साथ प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए पुलिस स्टेशन पहुंचा.
अदालत के समक्ष आरोपी ने तर्क दिया कि प्राथमिकी देर से दर्ज हुई थी, क्योंकि इसे कथित घटना के एक दिन बाद ही दर्ज कराया गया था. इस बीच मिले समय ने पीड़िता को आरोपी को झूठा फंसाने के लिए एक काल्पनिक कहानी गढ़ने का मौका दे दिया.
आरोपी ने कोर्ट के समक्ष सीआरपीसी की धारा 161 (पुलिस को दिए बयान) और 164 (मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज बयान) के तहत पीड़िता की तरफ से दर्ज कराए गए बयानों का हवाला भी दिया जिसमें उसने स्वीकार किया है कि राजू उसका प्रेमी था और दोनों ने सहमति से यौन संबंध बनाए थे.
सह-आरोपियों को न जानने की राजू की दलील पर न्यायाधीश ने कहा कि इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता कि आवेदक का उनके साथ कोई संबंध था या नहीं.
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