नई दिल्ली: वह तीन बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में हार गए. 80 साल की उम्र में वही मल्लिकार्जुन खड़गे अपने जीवन की शायद सबसे बड़ी चुनावी लड़ाई – कांग्रेस का अध्यक्ष पद चुनाव- में एक दिग्गज के रूप में उतर रहे हैं.
शुक्रवार को खड़गे ने 17 अक्टूबर के हाई-प्रोफाइल चुनाव के लिए अपने सहयोगियों शशि थरूर और केएन त्रिपाठी के साथ अपना नामांकन दाखिल किया. नौ बार के विधायक और दो बार के लोकसभा सांसद ने बाद में कहा कि वह पार्टी में ‘बड़े बदलाव’ के लिए इस लड़ाई में उतरे हैं.
एक छात्र संघ नेता के रूप में शुरुआत करने और मजदूरों के बीच एक प्रभावशाली नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाने के बाद, खड़गे ने कर्नाटक की राजनीति में अपने कदम रखे और आगे बढ़ते चले गए. भले ही उन्हें जमीनी स्तर के नेता के रूप में पहचाना गया और चुनाव दर चुनाव जीतते रहे, लेकिन जब मुख्यमंत्री बनने की बारी आई तो उस पद के लिए एसएम कृष्णा, एन. धर्म सिंह और सिद्धारमैया को चुनते हुए भी उन्होंने देखा.
सबसे पहले कृष्णा 1999 में सीएम बने. फिर 2004 में जब कांग्रेस के पास पर्याप्त संख्या बल नहीं था, तो पार्टी ने जनता दल (सेक्युलर) के साथ गठबंधन किया. तब धर्म सिंह को शीर्ष पद के लिए चुना गया. कहा जाता है कि खड़गे नाराज थे लेकिन उन्होंने चुपचाप पार्टी के फैसले को स्वीकार कर लिया. 2009 में उन्हें सिद्धारमैया के लिए रास्ता बनाने के लिए दिल्ली भेजा गया था. उन्होंने फिर बिना कुछ कहे आलाकमान के इस निर्णय पर अपनी सहमति जता दी थी.
शायद यही कारण है कि कांग्रेस के कई नेता पार्टी के प्रति उनकी अटूट निष्ठा का सम्मान करते हैं. कांग्रेस प्रवक्ता और कर्नाटक के पूर्व सांसद राजीव गौड़ा ने कहा ‘उन्होंने कांग्रेस के साथ अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की और इन सभी वर्षों में संगठन के प्रति अविश्वसनीय रूप से भरोसेमंद रहे हैं. पार्टी ने भी उनकी इस मेहनत और प्रयासों को मान्यता दी है.’
खड़गे का जन्म 1942 में वरवट्टी में एक सीधे-सादे दलित परिवार में हुआ था. उन्होंने वकील बनने की शिक्षा ली थी. 1969 में कांग्रेस में शामिल होने के बाद खड़गे 1972 में गुरमितकल सीट से पहली बार विधायक चुने गए. खड़गे के लिए यह एक शुरुआत थी. इसके बाद वह लगातार 2009 तक विधायक रहे.
उसी साल उन्हें लोकसभा के लिए चुना गया और उन्हें लेबर मंत्री पदभार सौंपा गया. उसके बाद यूपीए सरकार में रेलवे और सामाजिक न्याय और अधिकारिता का प्रभार भी संभाला.
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गांधी परिवार के भरोसेममंद
खड़गे ने मार्च में कहा था, ‘कोई भी कांग्रेस या सोनिया गांधी को कमजोर नहीं कर सकता.’
उनके बयान से कोई हैरान नहीं हुआ. पिछले साल फरवरी में उन्हें गुलाम नबी आजाद की जगह राज्यसभा में विपक्ष का नेता बनाया गया. गांधी के भरोसेमंद खड़गे को यह उनकी ‘वफादारी और प्रतिबद्धता’ का इनाम था.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री आर गुंडू राव के बेटे दिनेश गुंडू राव ने कहा, ‘वह अपनी प्रशासनिक क्षमता के साथ-साथ अपने राजनीतिक अनुभव के लिए कांग्रेस अध्यक्ष पद के बहुत मजबूत दावेदार हैं. अगर पिछले चुनाव को छोड़ दें, तो उनका चुनाव जीतने का एक बेहतरीन ट्रैक रिकॉर्ड रहा है और उन्होंने अतीत में कई वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं के साथ काम किया है.’
खड़गे का चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड एक जमीनी नेता की उनकी छवि का समर्थन करता है. 2014 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के दिग्गज ने देश में भारी मोदी लहर के बावजूद गुलबर्गा से जीत हासिल की थी.
2019 में खड़गे को अपनी पहली चुनावी हार का सामना करना पड़ा जब वह भाजपा उम्मीदवार उमेश जाधव से हार गए. हालांकि पार्टी ने उन्हें 2020 में राज्यसभा भेजकर इसकी भरपाई कर दी.
राजीव गौड़ा ने दिप्रिंट को बताया, ‘जब वह लोकसभा में विपक्ष के नेता बने तो मैंने उनके साथ काम किया था. कांग्रेस अनुसंधान विभाग के प्रमुख के रूप में मेरा काम उन्हें और बाकी सांसदों का समर्थन करना था. उनकी कार्यशैली के बारे में जो बात मुझे प्रभावित करती है, वह यह है कि अपनी इस उम्र में भी अविश्वसनीय रूप से मेहनती, काम पर फोकस रखने वाले और काफी जानकार हैं.’ उन्होंने आगे कहा, ‘वह बहुत जल्दी मुद्दों के राजनीतिक आयामों को तेज तरीके से पकड़ने में माहिर हैं. वह अपने काम को बेहद ईमानदारी के साथ करते हैं.’
बौद्ध धर्म के अनुयायी खड़गे अक्सर समाज सुधारक बी आर अंबेडकर के प्रति अपना आदर व्यक्त करते रहे है. कांग्रेस नेता अपनी दलित पृष्ठभूमि से पहचाने जाने को तरजीह देते हैं. उन्होंने कहा था, ‘मैं एक दलित हूं. यह सच है. लेकिन मैं अपनी काबिलियत और मेहनत के दम पर यहां तक पहुंचा हूं. हर जाति और धर्म के लोगों ने मेरा साथ दिया है. मैं सिर्फ एक दलित नेता नहीं हूं. मुझे कांग्रेस का नेता कहें, या जनता का नेता.’
गौड़ा ने भी दिग्गज नेता की धर्मनिरपेक्ष साख की पुष्टि की. उन्होंने कहा, ‘एक चीज जो उन्हें सबसे अलग बनाती है, वह है सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता. बौद्ध धर्म के सच्चे अनुयायी हैं, कट्टर धर्मनिरपेक्षतावादी हैं और जाति व भेदभाव को खारिज करते हैं.’
गुंडू राव ने कहा कि लोग भले ही उनके गुणों से वाकिफ न हों, लेकिन खड़गे को पार्टी लाइन में काफी सम्मान दिया जाता है.
कांग्रेस नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘वह वैचारिक रूप से बहुत मजबूत और एक विद्वान व्यक्ति हैं. वह आपको हमेशा कुछ न कुछ पढ़ते हुए नजर आएंगे. लोग उनकी कई खासियतों को नहीं जानते हैं क्योंकि वह खुद को ज्यादा बढ़ावा नहीं देते है या अपने आपको सुर्खियों में रखने के लिए के लिए कोई सस्ता हथकंडा नहीं अपनाते हैं. पार्टी ने भी उनकी योग्यता के हिसाब से उन्हें हर पद दिया है. लेकिन यह सच है कि पिछले 10 सालों को छोड़ दें तो उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर कम ही एक्सपोजर दिया गया.’
राव ने कहा, ‘हालांकि खड़गे अनुसूचित जाति समुदाय से आते हैं. लेकिन अनुभवी खड़गे ने कभी भी अपनी पृष्ठभूमि का ‘फायदा’ उठाने की कोशिश नहीं की. यहां तक कि संसद में भी वह पूरे सत्र में बैठते हैं. और जब वह बोलते है तो उन्हें सब बड़ी ध्यान से सुनते हैं. सभी दलों के नेता उनका बहुत सम्मान करते हैं.’
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