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Friday, 22 November, 2024
होमदेशमोदी सरकार ने मंत्रालयों से कहा- ‘मरती हुई’ सिविल सेवाओं की समीक्षा जल्दी पूरी करें, ताकि हम उसे काट-छांट सकें

मोदी सरकार ने मंत्रालयों से कहा- ‘मरती हुई’ सिविल सेवाओं की समीक्षा जल्दी पूरी करें, ताकि हम उसे काट-छांट सकें

काडर समीक्षाएं, हालांकि नियमित रूप से होती हैं, लेकिन नौकरशाही में कांट-छांट करने, अनावश्यक सेवाओं को हटाने, और जहां संभव हो वहां उनका विलय करने के लिए, लाज़िमी होती हैं.

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नई दिल्ली : कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने काडर समीक्षा नहीं करने के लिए, काडर नियंत्रित करने वाली अथॉरिटीज़ (सीसीए) की खिंचाई की है. ये अथॉरिटीज़ वो मंत्रालय होते हैं, जिन पर आईपीएस, आईएफएस, आईआरएस आदि सेवाओं को संभालने का ज़िम्मा होता है. काडर समीक्षा होने से सरकार कुछ बदलाव कर सकती है, जैसे ‘मरती हुई’ सेवाओं को ख़त्म करना, काडर्स में नए पद जोड़ना या कुछ काडर्स का आपस में विलय करना.

12 फरवरी के ऑफिस ज्ञापन (ओएम) में, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, डीओपीटी ने सभी सीसीएज़ से कहा है कि वो एक संयुक्त सचिव स्तर के नोडल अधिकारी नियुक्त करें, और सुनिश्चित करें कि काडर समीक्षा का काम तेज़ी से हो.

ओएम में कहा गया है, ‘देखा गया है कि बार बार याद दिलाने और सीसीएज़ के साथ नियमित बैठकें करने के बावजूद, काडर समीक्षा की निर्धारित आवधिकता का पालन नहीं किया जा रहा है’.

काडर रिव्यू की क़वायद हालांकि सामान्य रूप से होती है, लेकिन नौकरशाही में कांट-छांट करने, अनावश्यक सेवाओं को हटाने और जहां संभव हो, वहां उनका विलय करने के लिए ये लाज़िमी होती हैं. काडर रिव्यू में, संबंधित अधिकारी अपने अपने काडर की जनशक्ति पर फिर से विचार करते हैं, उन्हें युक्तिसंगत करते हैं और आगे की भर्ती योजना बनाते हैं.

एक डीओपीटी अधिकारी ने समझाया, ‘काडर रिव्यू का मुख्य उद्देश्य, किसी काडर को इस तरह पुनर्गठित करना है कि वो ख़ामियां दूर हो जाएं, जो किसी सेवा के गठन के समय से ही मौजूद हो सकती हैं या बाद में पैदा हो सकती हैं. साथ ही ये भी सुनिश्चित करना होता है कि काडर स्ट्रक्चर कार्यात्मक, संरचनात्मक और कार्मिक लिहाज़ से संतुष्ट करता हो’.

अधिकारी ने आगे कहा, ‘काडर रिव्यू एक मौक़ा देता है कि आप बहुत से अवरोधों को पार कर सकें, मौजूदा विकृतियां दूर कर सकें और काडर स्ट्रक्चर को युक्तिसंगत बना सकें, ताकि काडर अधिकारियों की कार्यक्षमता और मनोबल को बढ़ाया जा सके और जिन उद्देश्यों के लिए सेवा का गठन किया गया है उन्हें पूरा करने में उसकी प्रभावकारिता में इज़ाफा किया सके.

ओएम के अनुसार, उद्देश्य ये है कि ‘सभी सेवाओं के लिए 5 साल में एक बार काडर समीक्षा का काम पूरा कर लिया जाए, जिसे पूरा करने के लिए विभाग ने कड़ाई से अनुपालन के लिए 2018 और 2019 में एक कैलेंडर जारी किया’.

उसमें ये भी कहा गया है, ‘विभिन्न सीसीएज़ ने कोई न कोई कारण बताकर (जिसमें कोविड महामारी भी शामिल है), कैलेंडर में दी गई निर्धारित समय सीमा का पालन नहीं किया है’.

दिप्रिंट ने एक टेक्स्ट मैसेज और कॉल के ज़रिए, डीओपीटी प्रवक्ता से एक टिप्पणी लेने के लिए संपर्क किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.

डीओपीटी का पत्र ऐसे समय आया है, जबकि सभी सरकारी सेवाओं में भारी संख्या में रिक्तियां हैं, कई सेवाओं के अधिकारी प्रमोशन में देरी की शिकायत कर रहे हैं और सरकार एक दुबली नौकरशाही के विचार को समर्थन देती दिख रही है.


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DoPT पहले भी सेवाओं की संख्या घटाना चाहता था

2022 में नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरी बार सत्ता में आने के बाद तैयार किए गए अपने विज़न डॉक्युमेंट में, डीओपीटी ने सुझाव दिया था कि देश में 60 से अधिक सिविल सेवाओं को ‘युक्तिसंगत’ बनाने के लिए, उनकी संख्या घटाकर मुठ्ठीभर कर देनी चाहिए. अपने पंचवर्षीय दस्तावेज़ में डीओपीटी ने सेवाओं की संख्या काफी कम करने की बात कही थी, जिससे कि सरकारी मशीनरी सौहार्दपूर्वक तरीक़े से काम कर सके.

डीओपीटी के ताज़ा ओएम में कहा गया है, ‘कुछ सेवाएं ऐसी हैं जिन्हें मृतप्राय घोषित कर दिया गया है या जहां बहुत कम पद बचे हैं’. उसमें आगे कहा गया कि ‘ऐसी सेवाओं की अवस्था और लंबित मुद्दे, संबंधित सीसीए द्वारा तुरंत इस विभाग के संज्ञान में लाए जा सकते हैं…इन सेवाओं में शामिल हैं भारतीय आपूर्ति सेवा, भारतीय निरीक्षण सेवा, भारतीय ब्रॉडकास्ट इंजीनियरिंग सेवा तथा भारतीय ब्रॉडकास्ट प्रोग्राम सेवा’.

ऊपर उल्लिखित सभी चार सेवाओं की भर्तियां, केंद्रीय लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के ज़रिए की जाती हैं.

डीओपीटी के साथ जुड़े एक अधिकारी ने कहा, ‘कुछ सेवाएं ऐसी हैं जो समय के साथ अनावश्यक हो गई हैं. अब उनकी ज़रूरत पर फिर से विचार करने की ज़रूरत है’. अधिकारी ने, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, आगे कहा, ‘समय के साथ उनमें भर्तियां वैसे ही कम हो गईं हैं, क्योंकि उनके लिए कोई पद या काम उपलब्ध नहीं है. इसलिए इस सरकार के मन में चल रहा है कि क्या उनके मौजूद रहने की ज़रूरत है’.

दिप्रिंट ने पहले ख़बर दी थी कि यूपीएससी तथा अन्य आयोगों द्वारा की जा रही भर्तियों में, पिछले पांच सालों में तक़रीबन 30 प्रतिशत कमी आ गई है.

ऑफिस ज्ञापन में कहा गया कि ऐसा संभव है कि कुछ सीसीएज़ को लग सकता है कि किसी काडर बदलाव की ज़रूरत नहीं है या कुछ क़ानूनी मामले काडर समीक्षा में देरी कर सकते हैं. सीसीएज़ को ऐसे मामलों को निर्धारित समय-सीमा के अंदर, डीओपीटी के संज्ञान में लाना चाहिए.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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