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Tuesday, 5 November, 2024
होमदेशकॉमनवेल्थ गेम्स: पान की दुकान, मजदूरी की, लकड़ी बीनकर सपना किया पूरा, देश को दिलाए मेडल्स

कॉमनवेल्थ गेम्स: पान की दुकान, मजदूरी की, लकड़ी बीनकर सपना किया पूरा, देश को दिलाए मेडल्स

अंचित ने बड़े भाई को देखकर ही वेटलिफ्टिंग की शुरुआत की थी. लेकिन मां पूर्णिमा के लिए दोनों के डाइट के लिए पैसे का इंतजाम करना मुश्किल था. तब आलोक ने अपने छोटे भाई के लिए अपने करिअर को छोड़ने का फैसला किया.

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नई दिल्ली: बर्मिंघम में भारत के लिए गोल्ड और बाकी मेडल लाने वाले भारतीय कोई इलीट घरों के नहीं बल्कि सामान्य परिवारों से आगे बढ़कर देश का मान दुनिया में बढ़ाया है. चाहे वह संकेत सरगर हों, अंचित शुली, मीराबाई चानू, गुरुराज पुजारी लगभग सभी साधारण और गरीब परिवारों से आते हैं.

मीराबाई चानू

मीराबाई चानू शनिवार को देश को पहला गोल्ड दिलाय था. वह भी बेहद ही गरीब परिवार से आती हैं. वह बचपन में लकड़ी बिनती थीं. और लकड़ी का गट्ठर बनाकर घर लाती थीं जिससे शुरू में ही उन्हें वजन उठाने की आदत पड़ गई थी. मीरा के भाई सौखोम ने एक इंटरव्यू में कहा था कि वह एक बार लकड़ी का गट्ठर नहीं उठा पाए लेकिन मीरा ने उसे आसानी से उठा लिया था और दो किमी चलकर घर आई थी. तब वह 12 साल की थी.

अंचित शुली

बर्मिंघम में रविवार को अंचित शुली ने 73 किग्रा भार वर्ग में वजन उठाकर भारत को तीसरा गोल्ड दिलाया. उनके संघर्ष की कहानी गरीबी से लड़कर आगे बढ़ने की है. एक रिपोर्ट के मुताबिक अंचित खुद मजदूरी करते थे और उनके भाई भी 16-16 घंटे काम करके अपना पेट पालते हैं. अंचित ने अपनी सफलता का श्रेय मां पूर्णिमा, भाई आलोक और कोच को दिया है. उनके बड़े भाई ने छोटे भाई के सपने पूरे करने के लिए बीच में ही ट्रेनिंग छोड़ दी.

अंचित ने बड़े भाई को देखकर ही वेटलिफ्टिंग की शुरुआत की थी. लेकिन मां पूर्णिमा के लिए दोनों के डाइट के लिए पैसे का इंतजाम करना मुश्किल था. तब आलोक ने अपने छोटे भाई के लिए अपना करिअर बीच में ही छोड़ दिया.

अलोक ने बताया है कि पिता के गुजर जने के बाद हम एक-एक अंडा और एक किलो मांस के लिए खेतों में मजदूरी करते थे.

आलोक ने बताया कि अंचित का पुणे के आर्मी इंस्टीट्यूट में चयन हो गया. वहां डाइट का खर्च ज्यादा आता था. उसकी डाइट पूरी नहीं हो पा रही थी इसलिए मैंने और ज्यादा काम करना शुरू कर दिया. सुबह 7 बजे से शाम 6 बजे तक लोडिंग का काम करता था और शाम को 5 घंटे की पार्ट टाइम जॉब करने लगा था, साथ ही एग्जाम की तैयारी भी.

अंंचित ने कहा कि बंगाल से मैंने नेशनल और इंटरनेशनल स्तर तक टूर्नामेंट जीते. ऐसे खिलाड़ियों को राज्य सरकारों से मदद मिलती है लेकिन उन्हें बंगाल सरकार से कोई मदद नहीं मिली.

गौरतलब है कि बर्मिंघम में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में अंचित ने भारत को रविवार को तीसरा गोल्ड दिलाया इसके साथ ही भारत की झोली में अब तक कुल 6 मेडल्स आ चुके हैं.


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संकेत सरगर

संकेत सरगर के संघर्ष की कहानी भी अंचित शुली से मिलती-जुलती है. वह सुबह साढ़े 5 बजे उठकर ग्राहकों के लिये चाय बनाने के बाद ट्रेनिंग, फिर पढ़ाई और शाम को फिर दुकान से फारिग होकर व्यायामशाला जाना, करीब सात साल तक संकेत की यही दिनचर्या हुआ करती थी.

संकेत सरगर ने 22वें राष्ट्रमंडल खेलों में पुरुषों की 55 किलोग्राम भारोत्तोलन स्पर्धा में 248 किलोग्राम वजन उठाकर रजत पदक जीता. वह स्वर्ण पदक से महज एक किलोग्राम से चूक गए, क्योंकि क्लीन एंड जर्क वर्ग में दूसरे प्रयास के दौरान चोटिल हो गए थे.

उनके बचपन के कोच मयूर सिंहासने ने बताया, ‘संकेत ने अपना पूरा बचपन कुर्बान कर दिया. सुबह साढ़े 5 बजे उठकर चाय बनाने से रात को व्यायामशाला में अभ्यास तक उसने एक ही सपना देखा था कि भारोत्तोलन में देश का नाम रोशन करे और अपने परिवार को अच्छा जीवन दे. अब उसका सपना सच हो रहा है.’

सांगली की जिस ‘दिग्विजय व्यायामशाला’ में संकेत ने भारोत्तोलन का ककहरा सीखा था, उसके छात्रों और उनके माता-पिता ने बड़ी स्क्रीन पर संकेत की प्रतिस्पर्धा देखी. यह पदक जीतकर संकेत निर्धन परिवारों से आने वाले कई बच्चों के लिये प्रेरणास्रोत बन गए.

सिंहासने ने कहा, ‘उसके पास टॉप्स में शामिल होने से पहले ना तो कोई प्रायोजक था और ना ही आर्थिक रूप से वह संपन्न था. उसके पिता उधार लेकर उसके खेल का खर्च उठाते और हम उसकी खुराक और अभ्यास का पूरा खयाल रखते. कभी उसके पिता हमें पैसे दे पाते, तो कभी नहीं, लेकिन हमने संकेत के प्रशिक्षण में कभी इसे बाधा नहीं बनने दिया.’

उन्होंने कहा, ‘मेरे पिता नाना सिंहासने ने 2013 से 2015 तक उसे ट्रेनिंग दी और 2017 से 2021 तक मैंने राष्ट्रमंडल खेल 2022 को लक्ष्य करके ही उसे ट्रेनिंग दी. मुझे पता था कि वह इसमें पदक जरूर जीत सकता है. हमारे यहां गरीब घरों के प्रतिभाशाली बच्चे ही आते हैं और उनमें भी वह विलक्षण प्रतिभाशाली था.’

गुरुराज पुजारी

गुरुराज पुजारी एक ट्रक ड्राइवर के बेटे हैं जिन्होंने शनिवार को भारत को दूसरा मेडल दिलाया था. उन्होंने 61 किलो भारवर्ग में 269 किलोग्राम का वजन उठाकर भारत को मेडल दिलाया.

कर्नाटक के कुंडापुर के रहने वाले गुरुराज पुजारी एक गरीब परिवार से आते हैं. उनके घर में कुल 8 सदस्य और पांच भाई हैं. वह रेसलर सुशील कुमार से प्रेरित हुए थे. पहले उन्होंने कुश्ती के लिए प्रयास किया, लेकिन उन्हें वेटलिफ्टिंग की सलाह दी गई जिसके बाद वह वेटलिफ्टिंग के करिअर में आए.

पिता महाबाला पुजारी की कमाई इतनी नहीं कि उनकी डाइट पूरी कर सकें. गुरुराजा को वेटलिफ्टिंग में धीरे-धीरे खूब नाम कमाना शुरू कर दिया. इस दौरान वह जो भी इनाम जीते खुद की डाइट पर खर्च करते गए. वह नौकरी की तलाश में सेना में भार्ती होना चाहते थे लेकिन कद छोटा होने के नाते नहीं जा सके. तब वह निराश हो गए. लेकिन किसी से पता चला कि वह एयरफोर्स में कद को लेकर रियायत मिलती है, इसके बाद उन्होंने एयरफोर्स ज्वाइन कर लिया. तब से वह वेटलिफ्टिंग में देश का नाम रोशन करते आ रहे हैं.


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