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Friday, 1 November, 2024
होमदेशकर्नल काजी जहीर, पद्मश्री से सम्मानित 1971 के हीरो के नाम आज भी पाकिस्तानी सेना का वारंट जारी है

कर्नल काजी जहीर, पद्मश्री से सम्मानित 1971 के हीरो के नाम आज भी पाकिस्तानी सेना का वारंट जारी है

कर्नल काजी सज्जाद अली जहीर 1969 में पाकिस्तानी सेना में शामिल हुए थे. लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों के बारे में सुनकर वह देश छोड़कर भारत पहुंच गए.

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नई दिल्ली: 1971 की लिबरेशन वॉर के नायक कर्नल काजी सज्जाद अली जहीर (सेवानिवृत्त) बताते हैं, ‘मैं पाकिस्तान की युद्ध संबंधी योजनाओं पर जो कुछ जुटा सकता था, उसके साथ जेब में 20 रुपये लेकर और सिर्फ पैंट-शर्ट पहनकर भाग आया था.’ वह पाकिस्तानी सेना में अधिकारी बनने से लेकर पूर्वी पाकिस्तान को आजाद कराने में शामिल एक प्रमुख व्यक्ति के तौर पर अपने सफर को याद कर रहे थे.

70 वर्षीय कर्नल जहीर को वर्ष 2021 के लिए भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक पद्मश्री से सम्मानित किया गया है.

उन्होंने ढाका से दिप्रिंट को बताया, ‘हर पुरस्कार मील का एक पत्थर होता है. लेकिन पद्मश्री मेरे लिए खास है क्योंकि यह बांग्लादेश मुक्ति संग्राम की भावना को बरकरार रखता है.’

कर्नल जहीर 1969 के अंत में पाकिस्तानी सेना में शामिल हुए थे और उन्हें आर्टिलरी कोर में नियुक्ति मिली थी. हालांकि, पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के बारे में सुनकर, वह देश छोड़कर भारत पहुंच गए.

उन्होंने बताया, ‘मैं विशिष्ट 14 पैरा ब्रिगेड का हिस्सा था लेकिन पूर्वी पाकिस्तान में हो रहे अत्याचारों ने मुझे हिला दिया. मैंने उसे छोड़कर भागने का फैसला किया और सांबा बार्डर के रास्ते जम्मू-कश्मीर पहुंच गया. मेरे पास 20 रुपये थे और कपड़ों के नाम पर बस वही पैंट-शर्ट था जो मैंने पहन रखा था. लेकिन मैं पाकिस्तान की युद्ध योजनाओं पर जो कुछ जुटा सकता था उसे साथ ले आया और भारतीय सेना से संपर्क स्थापित किया.

पाकिस्तानी सेना ने उनके खिलाफ मौत की सजा का वारंट जारी किया था, जो उनके नाम से अभी तक जारी है.

उनके खिलाफ पाकिस्तान सेना द्वारा मृत्युदंड जारी किया गया था, एक वह अभी भी उनके नाम के खिलाफ किया जाता है.

उन्होंने बताया, ‘यह मेरे लिए सम्मान की बात है कि मेरे खिलाफ पाकिस्तानी सेना की तरफ से मौत की सजा का वारंट जारी किया गया है. मेरे परिवार को पाकिस्तान की वजह से बहुत कुछ झेलना पड़ा है. ढाका में मेरे पिता का छोटा-सा घर जल गया था. मेरी मां और बहन का पाकिस्तानी सैनिकों ने घर से निकलने के बाद तब तक पीछा किया जब उन्हें सुरक्षित शरण नहीं मिल गई.’


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‘मुझे लगता है कि मैंने अच्छी तरह जंग लड़ी’

भारत के साथ हाथ मिलाने के बाद कर्नल जहीर ने मुक्ति बाहिनी के प्रशिक्षण में अहम भूमिका निभाई, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान की स्वतंत्रता के लिए आंदोलन छेड़ने वाले बांग्लादेशी सैनिक, अर्धसैनिक और अन्य नागरिक शामिल थे.

उन्होंने सिलहट क्षेत्र में दूसरे तोपखाने की व्यवस्था भी की. छह 105 मिमी आर्टिलरी के साथ एक फील्ड आर्टिलरी बैटरी बनाई गई जो भारत ने मुक्ति बाहिनी को दी थी. इसमें कर्नल जहीर सह-कप्तान थे.

द डेली स्टार के अनुसार, अक्टूबर 1971 से शुरू हुई बैटरी ने तोपखाने के जरिये गोलाबारी करके ग्रेटर सिलहट क्षेत्र में मुक्ति बाहिनी की जेड फोर्स को मदद दी.

1971 की जंग से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर बात करते हुए कर्नल जहीर ने कहा, ‘मुझे लगता है कि मैंने जंग अच्छी तरह लड़ी थी.’

उन्होंने 1971 के युद्ध में बांग्लादेशी और भारतीय, नागरिकों और सैन्य कर्मियों दोनों के योगदान पर दस्तावेज तैयार करने में भी अग्रणी भूमिका निभाई है. उन्होंने 54 किताबें लिखी हैं और उन्हें 2013 में बांग्लादेश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार स्वाधीनता पदक से सम्मानित किया गया था.

भारतीय सेना के थिंक टैंक का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘भारत के पूर्व सैनिकों के साथ मिलकर हमने दो किताबें लिखी हैं और अब तीसरी को संकलित कर रहा हूं जिसका शीर्षक द वार वी फॉट टुगेदर है. मेरी किताबें क्लास (CLAWS) ने भी प्रकाशित की हैं.’

कर्नल जहीर अब उन बांग्लादेशी भारतीयों के परिवारों को सम्मानित करने के बांग्लादेश सरकार के प्रयासों की अगुआई कर रहे हैं जिन्होंने 13 दिनों तक चले 1971 के उस युद्ध में सर्वोच्च बलिदान दिया था जिसके बाद बांग्लादेश बना था.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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