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Monday, 23 December, 2024
होमदेशभरी हुई जेलें, कठोर PSA के तहत गिरफ्तारी वॉरंट्स पर अमल करने में क्यों जूझ रही है J&K पुलिस

भरी हुई जेलें, कठोर PSA के तहत गिरफ्तारी वॉरंट्स पर अमल करने में क्यों जूझ रही है J&K पुलिस

J&K में 500 से अधिक लोग PSA के तहत जेलों में बंद हैं, जिनमें से 150 गिरफ्तारियां अकेले मार्च-अप्रैल में हुई हैं. PSA के अंतर्गत किसी को मुक़दमा चलाए बिना दो साल हिरासत में रखा जा सकता है- बशर्तेकि हर 6 महीने पर समीक्षा होती रहे.

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श्रीनगर: दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक पिछले दो महीनों में जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए),1978, के अंतर्गत की जा रही कार्रवाई ने स्थानीय जेलों पर दबाव बना दिया है और बहुत से वॉरंट्स पर अमल नहीं किया जा सका है क्योंकि जेलों की क्षमता पूरी हो चुकी है.

इस एक्ट के अंतर्गत उन लोगों को निशाने पर लिया जाता है जो पत्थरबाज़ी के प्रदर्शनों में हिस्सा लेते हैं, या उन दूसरे लोगों को पकड़ा जाता है जो राष्ट्रीय सुरक्षा को नुक़सान पहुंचाने वाली गतिविधियों में शामिल होते हैं.

सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने बताया कि फिलहाल जेएंडके में 500 से अधिक लोगों को पीएसए के तहत जेलों में रखा गया है, जिनमें से 150 गिरफ्तारियां अकेले मार्च-अप्रैल में हुई हैं. ये संख्या उन क़ैदियों से अलग है जिन्हें हत्या और चोरी जैसे अन्य अपराधों में जेल में रखा गया है.

सूत्रों ने बताया कि स्थिति से निपटने के लिए जेएंडके पुलिस ने केंद्र-शासित क्षेत्र के बाहर की जेलों की एक सूची बनाई है और उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के जेल विभागों को लिखकर वो कुछ क़ैदियों को वहां शिफ्ट करना चाहती है, ताकि ज़्यादा पीएसए-अभियुक्तों के लिए जगह बनाई जा सके.

एक सूत्र ने कहा, ‘उन लोगों पर कार्रवाई की वजह से जो पत्थरबाज़ी और दूसरी ऐसी गतिविधियों में लिप्त हैं जो देश की सुरक्षा के लिए हानिकारक हैं, पिछले दो महीनों में पीएसए के तहत बहुत सी गिरफ्तारियां की गई हैं. श्रीनगर की सेंट्रल जेल पूरी भरी हुई है, और यही हाल जम्मू की कोट भलवाल जेल (केंद्र-शासित क्षेत्र की सबसे बड़ी जेल) का है. कश्मीर के ज़िलों की छोटी जेलों में भी कोई जगह नहीं है, इसलिए हम क़ैदियों के आवास के लिए तरीक़े ढूंढ रहे हैं. जगह बनाने के लिए हम कुछ क़ैदियों को जेएंडके से बाहर भी भेज सकते हैं.

सूत्रों ने बताया कि कुछ ज़्यादा पुराने पत्थरबाज़ों को पहले ही जेएंडके से बाहर की जेलों में भेजा जा चुका है, ताकि वो सिस्टम से बचकर न निकल सकें.

‘जेल के अंदर एक मिलीभगत काम करती है जिसके ज़रिए वो सिस्टम को चकमा देने में कामयाब हो जाते हैं. अगर उन्हें जेएंडके से बाहर की जेलों में रखा जाता है, तो उनकी स्थानीय निवासियों या अपनी पहचान के उन लोगों तक पहुंच नहीं हो पाती, जो उनकी मदद कर सकते हों. यही कारण है कि अधिकतर पुराने पत्थरबाज़ों को, जो आदी अपराधी हैं, जेएंडके से बाहर की जेलों में रखा गया है’.

जेएंडके जेल विभाग के अधिकारियों के अनुसार, जहां श्रीनगर की सेंट्रल जेल में तक़रीबन 500 क़ैदियों को रखने की क्षमता है, वहीं कोट भलवाल में क़रीब 800 क़ैदियों को रखा जा सकता है, जबकि घाटी के दूसरे ज़िलों की छोटी जेलों की क्षमता 60 से 300 तक है. घाटी के अंदर 14 जेलें हैं जिनकी कुल क्षमता क़रीब 3,600 क़ैदियों की है.

जेल विभाग के एक सूत्र ने दिप्रिंट से कहा, ‘जगह की तंगी है. जेलें भरी हुई हैं लेकिन हम कुछ और गुंजाइश कर सकते हैं. सरकार ने पहले ही कुछ क़ैदियों को बाहर भेजने का फैसला कर लिया है’.

पीएसए के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को मुक़दमा चलाए बिना दो साल हिरासत में रखा जा सकता है- बशर्ते कि हर 6 महीने पर समीक्षा होती रहे- ‘अगर उन लोगों को उस तरह के कार्यों में लिप्त पाया जाए, जो राज्य की सुरक्षा के लिए हानिकारक हों’. इसके अलावा ‘किसी भी व्यक्ति को जो ऐसे कार्यों में लिप्त पाए जाते हैं जो सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने में हानिकारक हों’, एक साल तक की प्रशासनिक हिरासत में रखा जा सकता है.

पीएसए के तहत हिरासत के आदेश किसी डिवीज़नल कमिश्नर या ज़िला मजिस्ट्रेट की ओर से जारी किए जा सकते हैं. इसके अलावा एक्ट के अंतर्गत किसी व्यक्ति को हिरासत में रखने के लिए, अथॉरिटी को उसकी हिरासत का कारण बताने की ज़रूरत नहीं है.

अमल न किए गए वॉरंट्स का ज़िक्र करते हुए सुरक्षा सूत्र ने कहा, ‘हमने लोगों पर मुक़दमा किया है, लेकिन उन वॉरंट्स पर अमल नहीं किया है, क्योंकि जेलों में जगह नहीं बची है. जैसे ही जगह बनेगी उन लोगों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. ये काम प्राथमिकता पर किया जा रहा है’.

पत्थरबाज़ी की घटनाओं में कमी के बावजूद इस कार्रवाई के पीछे का कारण पूछने पर सूत्र ने कहा कि ‘क़ानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए ऐसा करना ज़रूरी था’.

सूत्र ने आगे कहा, ‘ये गिरफ्तारियां ऐसे अपराधों को रोकने के लिए हैं, जो शांति भंग करने से जुड़े होते हैं, और जो राज्य की सुरक्षा तथा सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए हानिकारक होते हैं’.


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‘हालात अच्छे नहीं, लेकिन क़ाबू में हैं’

श्रीनगर शहर के कुछ निवासी, जहां से पीएसए के तहत सबसे अधिक संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया गया है, महसूस करते हैं कि पुलिस के ‘लोगों को उठाकर ले जाने’ से हालात क़ाबू में आए हैं.

लेकिन, दूसरों का कहना था कि एक्ट के तहत कई बेगुनाह लोगों को भी गिरफ्तार किया गया है.

एक निवासी ने जो नाम नहीं बताना चाहता था दिप्रिंट को बताया, ‘यहां पर लोग अपनी आवाज़ उठाने से डरते हैं. अगर हम कुछ कहते हैं या किसी चीज़ के खिलाफ प्रदर्शन करते हैं तो पुलिस हमारे खिलाफ पीएसए लगाकर हमें सलाख़ों के पीछे डाल देगी. उसके बाद दो साल तक कोई सुनवाई नहीं होगी. कोई ऐसा नहीं चाहता, और यही वजह है कि हर कोई ख़ामोश है. हालात अच्छे नहीं हैं, लेकिन क़ाबू में हैं’.

श्रीनगर शहर के एक और निवासी ने, जिसके एक रिश्तेदार को 2019 में लिंचिंग के एक मामले में गिरफ्तार किया गया था, ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि पीएसए के जिन अभियुक्तों को गिरफ्तारी के खिलाफ अपील के बाद अदालतों से रिहा कर दिया जाता है, उन्हें दूसरे मामलों में फिर गिरफ्तार कर लिया जाता है.

उसने दावा किया, ‘पुलिस कह सकती है कि हर पीएसए केस की समीक्षा की जाती है और अगर वो व्यक्ति दोषी नहीं पाया जाता तो उसे छोड़ दिया जाता है, लेकिन सच्चाई यह है कि अगर कोर्ट पीएसए हटाकर उन्हें रिहा कर भी देती है, तो लोगों को दूसरे मामलों में पीएसए के तहत फिर से गिरफ्तार कर लिया जाता है. पुलिस सुनिश्चित करती है कि वो जेल से बाहर न आने पाएं’.

उसने ये भी आरोप लगाया, ‘मेरा रिश्तेदार पिछले तीन साल से जेल में है. उसे उस मामले में ज़मानत मिल गई, लेकिन इससे पहले कि वो घर आ पाता, पुलिस ने एक दूसरे मामले में उसपर पीएसए लगा दिया और उसे जेल के अंदर ही रखा. ऐसा ये सुनिश्चित करने के लिए किया गया जिससे वो ज़मानत मिलने के बाद भी घर वापस न आ सके.’

लेकिन एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने आरोपों से इनकार किया और कहा कि पीएसए मामलों की तत्परता के साथ समीक्षा की जाती है और जो लोग निर्दोष पाए जाते हैं उन्हें छोड़ दिया जाता है.

अधिकारी ने कहा, ‘एक-एक मामले की नियमित रूप से समीक्षा की जाती है और उसी हिसाब से फील्ड एजेंसियों की रिपोर्ट्स तथा ज़मीनी स्थिति के आधार पर हिरासत को बढ़ाने या वापस लेने का फैसला किया जाता है. अगर आप उन मामलों की ओर इशारा कर रहे हैं जहां ज़मानत मिलने के बाद लोगों को फिर से गिरफ्तार किया गया, तो वह उन लोगों के हैं जो आदी अपराधी हैं या जिन्हें जघन्य अपराधों में गिरफ्तार किया गया है’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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