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Sunday, 3 November, 2024
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बायोडायवर्सिटी के नुकसान को ‘रोकने और पलटने’ के समझौते पर सहमत होने वाले 190 देशों में भारत भी शामिल

‘कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क’ नामक इस समझौते में प्रकृति की रक्षा के लिए 23 लक्ष्य शामिल किए गए हैं.

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नई दिल्ली: दो सप्ताह की तीखी बहस के बाद, भारत सहित 190 से अधिक देशों ने जैव विविधता में होने वाले नुकसान को ‘रोकने और उलटने’ के लिए सोमवार को एक ऐतिहासिक समझौता किया. गौरतलब है कि जानवरों और पौधों की 10 लाख प्रजातियां विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं.

‘कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क’ नामक इस समझौते में प्रकृति की रक्षा के लिए 23 लक्ष्य शामिल किए गए हैं. इस समझौते को जैविक विविधता पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के पक्षकारों के 15वें सम्मेलन में पारित किया गया है, जो सोमवार को संपन्न हुआ. लक्ष्यों का उद्देश्य जैव विविधता के लिए नुकसानदेह मानी जाने वाली सब्सिडी में प्रति वर्ष 500 बिलियन डॉलर की कटौती करना, विदेशी आक्रामक प्रजातियों की शुरुआत को 50 प्रतिशत तक कम करना और 2030 तक ‘उच्च पारिस्थितिक अखंडता के पारिस्थितिक तंत्र सहित उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्रों के नुकसान को शून्य के करीब लाना है.’

समझौते का लक्ष्य 2030 तक कम से कम 30 फीसदी भूमि, अंतर्देशीय जल क्षेत्र और तटीय व समुद्री क्षेत्रों की जैव विविधता के संरक्षण और प्रबंधन को सुनिश्चित करना है.

COP15 जैव विविधता शिखर सम्मेलन 6 से 19 दिसंबर के बीच मॉन्ट्रियल में आयोजित किया गया था.

समझौते पर आम सहमति बनाना आसान नहीं था. कम से कम चार अफ्रीकी देशों ने इसे लेकर अपनी असहमति जताई थी. खासकर जैव विविधता समझौते के लिए किए गए वित्तीय व्यवस्था के संबंध में सभी देश एकजुट नहीं थे.

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए जैव विविधता के नुकसान को रोकना और बिगड़े हुए पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना महत्वपूर्ण माना जाता है. जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर हाल ही में अंतर सरकारी साइंस-पॉलिसी प्लेटफार्म (IPBES) ने ‘जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं पर वैश्विक मूल्यांकन रिपोर्ट’ जारी की थी. रिपोर्ट के आकलन में कहा गया है कि जानवरों और पौधों की 10 लाख प्रजातियां विलुप्त होने के खतरे का सामना कर रही हैं. इसमें चेतावनी दी गई है कि विलुप्त होने की वर्तमान दर पिछले 10 मिलियन सालों में औसत से कम से कम दसियों से सैकड़ों गुना अधिक है.’

संयुक्त राष्ट्र की संस्था ‘जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल’ ने कहा है, ‘वन संरक्षण के बिना ग्लोबल वार्मिंग को सीमित करना संभव नहीं होगा. ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क की तुलना जलवायु परिवर्तन के 2015 के पेरिस समझौते से की जा रही है और इसका उद्देश्य ‘सतत विकास और इसके सतत विकास लक्ष्यों के लिए 2030 एजेंडा के अनुरूप, 2030 तक जैव विविधता के साथ हमारे समाज के संबंधों में बदलाव लाने के लिए व्यापक आधार वाली कार्रवाई को लागू करना है.’

सोमवार देर रात एक ब्लॉग पोस्ट में भारत के केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा, ‘सभी लक्ष्यों और उद्देश्यों को विश्व स्तर पर रखने के भारत के सुझावों को अन्य प्रस्तावों के साथ स्वीकार किया गया है. LiFE के लिए भारत की पिच को अलग-अलग जिम्मेदारियों और संबंधित क्षमताओं के साथ GBF में सहमति मिली है.’

भारत ने विश्व स्तर पर स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस साल की शुरुआत में LiFE मिशन लॉन्च किया था. 2030 तक एक समान तरीके से खपत और अपशिष्ट उत्पादन के वैश्विक पद चिह्न को कम करने के उद्देश्य से समझौते के लक्ष्यों में से एक ‘लोगों को प्रोत्साहित करना और स्थायी खपत विकल्प बनाने में सक्षम बनाना’ है.

समझौते से 2050 तक प्रजातियों की विलुप्त होने की दर और जोखिम को 10 गुना कम करने की उम्मीद है. इसके साथ-साथ प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र के क्षेत्र में वृद्धि होती रहेगी.


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जैव विविधता फंडिंग

14 पन्नों का फ्रेमवर्क दस्तावेज़ आनुवंशिक संसाधनों के समान बंटवारे, संरक्षित क्षेत्रों पर स्वदेशी अधिकारों की सुरक्षा के साथ-साथ जैव विविधता संरक्षण के लिए वित्त अंतर को भरने की आवश्यकता के लक्ष्य तक फैला हुआ है.

फ्रेमवर्क का उद्देश्य 2030 तक भूमि और समुद्र के इस्तेमाल से होने वाले परिवर्तन से उत्पन्न उच्च जैव विविधता वाले क्षेत्रों के नुकसान को ‘शून्य के करीब’ लाना है.

एक अन्य लक्ष्य में जैव विविधता के लिए प्रदूषण के जोखिम को कम करके उस स्तर तक लाना हैं जहां वह जैव विविधता के लिए ‘हानिकारक नहीं’ रहेगा. उदाहरण के लिए 2030 तक कीटनाशकों और अत्यधिक खतरनाक रसायनों से होने वाले जोखिमों को कम से कम आधा करना.

वार्ता के दौरान इनमें से कुछ लक्ष्यों को भारत सहित विकासशील देशों ने चुनौती दी थी. उन्होंने कहा था कि ‘वन साइज फिट ऑल’ वाला उनका नजरिया स्वीकार्य नहीं है.

रविवार को यादव ने वार्ता समाप्त होने से एक दिन पहले एक स्टॉकटेकिंग प्लेनरी मीटिंग में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि विकासशील देशों के लिए, कृषि ग्रामीण समुदायों के लिए सबसे बड़ा रोजगार है. और इन क्षेत्रों को दी जाने वाली महत्वपूर्ण सहायता को पुनर्निर्देशित नहीं किया जा सकता है.’

उन्होंने प्लेनरी सत्र में कहा था, ‘जब विकासशील देशों के लिए खाद्य सुरक्षा सर्वोपरि है, तो कीटनाशकों में कमी के लिए संख्यात्मक लक्ष्य निर्धारित करना अनावश्यक है और इसे राष्ट्रीय परिस्थितियों, प्राथमिकताओं और क्षमताओं के आधार पर तय करने के लिए देशों पर छोड़ देना चाहिए.’

जैव विविधता के लिए फंडिंग को लेकर भी बातचीत तनावपूर्ण हो गई थी. वार्ता समाप्त होने के कुछ दिन पहले भारत सहित विकासशील देशों ने फाइनेंस पर बातचीत के दौरान वॉकआउट किया था. उन्होंने दावा किया कि अमीर देश एक मजबूत पैकेज देने को तैयार नहीं हैं.

विकासशील देशों ने फ्रेमवर्क को लागू करने के लिए समर्पित एक नए कोष की मांग की थी, लेकिन विकसित देश इसका विरोध कर रहे थे. उनके मुताबिक, मौजूदा तंत्र के जरिए ही वित्त पोषण जारी रखा जाना चाहिए.

अब तक ग्लोबल एनवायरनमेंट फैसिलिटी ही जैव विविधता के लिए एकमात्र कोष है. यह यूएन क्लाइमेट कन्वेंशन जैसे अन्य सम्मेलनों की भी जरूरतों को पूरा करती है.

कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क के अनुसार, प्रति वर्ष 700 बिलियन डॉलर का बायोडायवर्सिटी फाइनेंस अंतर है और यह मौजूदा तंत्रों के माध्यम से एक वर्ष में जैव विविधता वित्त पोषण में 200 बिलियन डॉलर जुटाने का प्रयास करता है. यह भविष्य के सम्मेलनों में अलग-अलग फंडिंग पर चर्चा करने के रास्ते भी खोलता है.

दस्तावेज़ के अनुसार, फ्रेमवर्क समझौता योजना और निगरानी के अधीन काम करेगा. देशों से अपेक्षा की जाती है कि वे राष्ट्रीय जैव विविधता रणनीतियों और रूपरेखा के अनुरूप कार्य योजनाओं के साथ आगे आएं और उनका पालन करें.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्या | संपादन: अलमिना खातून)


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