नई दिल्ली: नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टाराई ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि पिछले कुछ सालों में नेपाल में चीन का प्रभाव बढ़ा है लेकिन भारत को इससे ‘चिंतित’ होने की जरूरत नहीं है क्योंकि नई दिल्ली और काठमांडू के बीच मजबूत ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रिश्ते हैं.
भट्टाराई ने जहां चिंता का कोई कारण न होने पर जोर दिया, वहीं काठमांडू और नई दिल्ली के बीच उच्च-स्तरीय राजनीतिक वार्ता और दोनों देशों के बीच पीपुल टू पीपुल और मीडिया स्तर पर अधिक से अधिक संवाद का आह्वान भी किया.
उन्होंने कहा, ‘मैं यह गलत धारणा दूर करना चाहूंगा कि नेपाल में चीन का प्रभाव हद से ज्यादा बढ़ गया है. बेशक, एक उभरती ताकत, एक पड़ोसी देश चीन का प्रभाव बढ़ा है लेकिन इस हद तक नहीं कि भारत को चिंता में डाल दे.’
2011 से 2013 तक नेपाल के प्रधानमंत्री रहे भट्टाराई ने कहा, ‘नेपाल के भारत के साथ ऐतिहासिक, भौगोलिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संबंध रहे हैं और इसलिए बीजिंग ‘कभी भी वो जगह नहीं ले सकता’ जो दिल्ली की रही है.’
उन्होंने जोर देकर कहा, ‘हम भारत के साथ ऐतिहासिक संबंध, नजदीकी आर्थिक संपर्क, सांस्कृतिक और सामाजिक जुड़ाव रखते हैं, भौगोलिक स्थिति के कारण हमारे लोगों का चीन की तुलना में भारत आना-जाना ज्यादा है. तो, इस मायने में देखा जाए तो चीन कभी भी नेपाल के लिए भारत की जगह नहीं ले सकता है. भारत को यह बात सही ढंग से समझनी चाहिए. नेपाल हमेशा ही भारत के साथ अपने संबंध अच्छे रखेगा.’
उन्होंने कहा, ‘बेशक, एक संप्रभु देश के नाते हम चीन और अन्य देशों के साथ अपने रिश्ते कायम करने का हक रखते हैं. लेकिन भारत और नेपाल के बीच ऐतिहासिक संबंधों के मूल आधार और बुनियादी मूल्यों की कीमत पर कतई नहीं.’
मौजूदा समय में नेपाल की जनता समाजबादी पार्टी की संघीय परिषद के अध्यक्ष भट्टाराई ने इस बात का उल्लेख भी किया कि यह हिमालयी देश ‘कुछ समय से संरचनात्मक संकट से गुजर रहा है’ और 2015 में संविधान लागू होने के बावजूद राजनीतिक स्थिरता नदारद है.
उन्होंने नेपाल की कई आंतरिक चुनौतियों के बारे में बात की, जिन्हें केवल कोई एक पक्ष हल नहीं कर सकता है.
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भारत-नेपाल सीमा मुद्दा जल्द हल करने की जरूरत
दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से शिक्षा हासिल करने वाले भट्टाराई का मानना है कि भारत और नेपाल को बाकी बचा सीमा विवाद उच्च स्तरीय राजनीतिक वार्ता के जरिये हल करना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘सीमा विवाद के मुद्दे को उच्च-स्तरीय राजनीतिक तंत्र के जरिये हल किया जाना चाहिए था, जो पहले से बना हुआ है. उन्होंने यह सब समय पर नहीं किया… विवाद पिछले 200 सालों से जारी है. इसलिए इसे बातचीत के जरिये हल किया जाना चाहिए था और मुझे लगता है कि उच्च स्तरीय राजनीतिक वार्ता करने और इसे सुलझाने के अलावा कोई अन्य समाधान नहीं है.’
भट्टाराई ने कहा कि सीमा मुद्दा ब्रिटिशकाल में ही पीछे छोड़ दिया गया था जब दोनों पक्षों ने 1815-16 की सुगौली संधि पर हस्ताक्षर किए थे, जिसने काली नदी को ब्रिटिशकालीन भारत और नेपाल के बीच सीमा बना दिया था.
इसे अब बातचीत के जरिये सुलझाने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा, ‘लेकिन काली नदी की उद्गम का कोई उल्लेख नहीं किया गया था और एक-दूसरे को नक्शे भी नहीं सौंपे गए थे.’
गौरतलब है कि मई 2020 में नेपाल ने कालापानी, लिपुलेख और लिम्पियाधुरा के विवादित क्षेत्र अपने हिस्से में होने का दावा करते हुए एक नया राजनीतिक मानचित्र जारी किया था. भारत ने इस नक्शे को खारिज कर दिया था.
भारत-नेपाल संबंध उच्च स्तर पर पहुंचाने की जरूरत
भट्टाराई ने कहा कि भारत, चीन और अमेरिका के रणनीतिक हित तेजी से बदल रहे हैं और इस क्षेत्र की भू-राजनीति को काफी हद तक प्रभावित कर रहे हैं.
उन्होंने कहा, ‘हिमालयी क्षेत्र में भूराजनीतिक स्थिति तेजी से बदल रही है. इस क्षेत्र में अमेरिका, चीन, भारत और अन्य देशों के रणनीतिक हित टकरा रहे हैं. इस बात को ध्यान में रखकर हमें अपने पारंपरिक रिश्तों पर फिर विचार करना चाहिए और जरूरत पड़ने पर इसमें बदलाव भी करने चाहिए.’
उन्होंने यह भी कहा कि भारत और नेपाल के बीच निकटतम संबंध हैं, दोनों पक्षों को ‘साथ बैठकर इस पर फिर से बातचीत करनी चाहिए.’
उन्होंने कहा, ‘मेरा मानना है कि यदि भारत के लिए सुरक्षा हित सबसे बड़ी चिंता हैं तो उन्हें इसे ठीक से परिभाषित करना चाहिए और नेपाल को इसका ध्यान रखने के लिए राजी करना चाहिए. नेपाल की बात करें तो हमारे लिए आर्थिक विकास मुख्य मुद्दा है. हम अब भी दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक हैं…इसलिए नेपाल के आर्थिक पुनर्विकास के लिए हमें भारत की ओर से व्यापार, निवेश और पर्यटन प्रवाह की जरूरत है.’
उन्होंने कहा, ‘इस तरह से हमारी विकास संबंधी आकांक्षाओं और भारत की सुरक्षा चिंताओं पर चर्चा की जा सकती है और हमारे संबंधों को उच्च स्तर तक पहुंचाया जा सकता है.’
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नेपाल संकट कोई एक पार्टी हल नहीं कर सकती
भट्टाराई के मुताबिक, नेपाल कई आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिसे किसी भी एक पार्टी द्वारा हल नहीं किया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि माओवादियों के साथ शांति प्रक्रिया, ट्रुथ एंड रिकंसीलिएशन कमीशन, जो नेपाल में गृहयुद्ध के दौरान हुए अपराधों और अत्याचारों से संबंधित मामले सुलझाने के लिए है, जैसे मुद्दे अब भी लंबित हैं.
उन्होंने कहा कि नेपाल के कुछ लोग, विशेष रूप से मधेशी, जनजातीय और देश के अन्य देशज समूह 2015 में लागू संविधान से खुश नहीं हैं.
उन्होंने आगे कहा कि इसके अलावा आर्थिक संकट गहरा रहा है और भ्रष्टाचार भी बढ़ा है, वहीं भारत के साथ ‘रिश्ते पिछले कुछ सालों में काफी निचले स्तर पर पहुंच गए हैं.’
उन्होंने कहा, ‘इसलिए इतने सारे बड़े मुद्दों को हल करना किसी एक पार्टी के लिए संभव नहीं है. प्रमुख दलों को हाथ मिलाकर वैकल्पिक सरकार देनी चाहिए और तमाम मुद्दों को हल करना चाहिए…’
उन्होंने आगे बताया, ‘कम्युनिस्ट पार्टी का अभी औपचारिक तौर पर विभाजन नहीं हुआ है. जब तक ऐसा नहीं होता तब तक हम किसी गुट से बात नहीं कर सकते, इसका कोई मतलब भी नहीं है. पार्टी जब औपचारिक रूप से विभाजित हो जाए तभी अगली सरकार बनाने का सवाल आता है और तब हम स्थिति का आकलन करेंगे और उसके आधार पर ही आगे बढ़ेंगे.’
उन्होंने कहा कि नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी के दो गुटों में बंटने के बाद देश में आंतरिक राजनीतिक संकट इतना गहरा गया है कि यहां तक कि निकटतम पड़ोसी भारत भी इस पर ‘असमंजस में नज़र आ रहा’ है कि द्विपक्षीय मुद्दों पर उसके प्रति क्या रुख अपनाया जाए.’
उन्होंने कहा, ‘भारत की सरकार और पूरा राजनीतिक समुदाय नेपाल को लेकर भ्रम की स्थिति में नज़र आ रहा है. मैंने अनौपचारिक रूप से कुछ मुद्दों पर संदेह मिटाने की कोशिश की है. लेकिन मेरा मानना है कि नेपाल और भारत के बीच उच्चस्तरीय राजनीतिक वार्ता होनी चाहिए और लोगों के बीच परस्पर और मीडिया स्तर पर अधिक संवाद होना चाहिए.’
भट्टाराई ने कहा, ‘मुझे लगता है कि दोनों देशों के बीच एक-दूसरे को समझ पाने में एक बड़ी खाई बनी हुई है. यह गंभीर मसला है और ऐसा नहीं होना चाहिए.’
दिसंबर 2020 में नेपाली प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली ने संसद को भंग करने की घोषणा कर दी थी, इसके साथ ही सत्तारूढ़ एनसीपी अनौपचारिक रूप से दो-फाड़ हो गई थी— एक का नेतृत्व वह कर रहे हैं और दूसरे की कमान माधव नेपाल और पुष्प कमल दहल प्रचंड, दोनों नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री हैं, के हाथों में है.
भट्टाराई ने कहा, ‘एनसीपी की सरकार अपने ही कारणों से गिरी है. यह वस्तुतः दो गुटों में बंट चुकी है. इसे जल्द ही औपचारिक रूप दिया जाएगा. इसके बाद हमारे पास संसद में चार प्रमुख दल होंगे. उनमें से किसी के भी पास बहुमत की स्थिति नहीं है. इसलिए, अगले चुनावों से पहले हमें या तो गठबंधन सरकार बनानी होगी या फिर राष्ट्रीय सहमति वाली सरकार का विकल्प अपनाना होगा.’
उन्होंने कहा, ‘हम कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी को एक लोकतांत्रिक विकल्प देने की कोशिश कर रहे हैं. मुझे लगता है कि आने वाले दिनों में यह पार्टी देश के अंदर और भारत-नेपाल संबंधों को सुधारने की दिशा में एक बड़ी भूमिका निभा सकती है.’
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