रायपुर: श्रमिकों का पलायन और मजदूरों की तस्करी छत्तीसगढ़ के लिए एक अभिशाप रहा है लेकिन सरकार के स्तर पर ऐसी कोई कवायद कभी नही हुई जिससे इन श्रमिको को यहां से चोरी छिपे लेकर जाने वाले दलालों या बिचौलियों के बारे में जानकारी हासिल कर उनके खिलाफ कार्यवाही की जा सके. प्रदेश में कोरोना लॉकडाउन अकस्मात ही राज्य सरकार के लिए ऐसा अवसर लेकर आया है जिसके तहत श्रम विभाग ने अबतक श्रमिकों के अवैधानिक पलायन के लिए जिम्मेदार करीब 300 बिचौलियों का पता लगाया है और उनकी मजदूरों के यहां से पलायन करवाने की संलिप्तता और अन्य गतिविधियों की जानकारी भी एकत्रित की जा रही है.
दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार श्रम विभाग के अधिकारियों को इन बिचौलियों के बारे में यह जानकारी अकस्मात दूसरे प्रदेशों में फंसे छत्तीसगढ़ के श्रमिकों के पता लगाने के दौरान मिली. विभाग के अधिकारियों का कहना है कि इन बिचैलियों के बारे में पूरी विस्तृत जानकारी लेकर भविष्य में उनके गतिविधियों को राडार पर रखा जाएगा.
दिप्रिंट द्वारा इस संबंध में जानकारी मांगे जाने पर राज्य श्रम विभाग के प्रमुख सचिव सोनमणि बोरा ने बताया, ‘दूसरे राज्यों में फंसे हुए छत्तीसगढ़ के श्रमिकों के बारे में पता लगाने के दौरान कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं. अबतक हमें करीब 300 ऐसे लोगों के बारे में पता चला है जो प्रदेश से श्रमिकों को सरकार की बिना अनुमति के अन्य प्रदेशों में मजदूरी करने के लिए लेकर जाते रहे हैं.
बोरा आगे कहते हैं, ‘ये लोग बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनियों या फिर ठेकेदारों के लिए एजेंट का कार्य कर रहें हैं. इस काम में प्रदेश के बाहर और स्थानीय लोगों का हाथ है लेकिन सरकार जानकारी मिलने के बाद अब इनपर पूरी तरह से निगरानी रखेगी.’
प्रमुख सचिव के अनुसार ‘लॉकडाउन इस दौर में हमने कई ठेकेदारों को उनके द्वारा ले गए मजदूर जो अन्य राज्यों में फंसे हुए हैं की पूरी मदद करने का आदेश दिया है और साथ में चेतावनी भी दी है की ऐसा नहीं करने पर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी.’
ज्ञात हो कि छत्तीसगढ़ से मजदूरों का हर साल मानसून के बाद फसली सीजन में भारी संख्या में पलायन होता है जिसका मुख्य माध्यम यही बिचौलिए और एजेंट होते हैं जो बड़े शहरों के ठेकेदारों के लिए श्रमिक मुहैया कराने का काम करते हैं. इनके माध्यम से हर साल राज्य से बाहर हजारों श्रमिक पलायन कर जाते हैं.
श्रम विभाग के एक अधिकारी का कहना है कि प्रदेश भर में ठेकेदारों और एजेंटों का एक बहुत बड़ा सिंडिकेट कार्यरत है जो श्रमिकों के पलायन का काम निरंतर करता हैं. सिंडिकेट का जाल पूरे प्रदेश में फैला है. इस नेटवर्क में स्थानीय छोटे एजेंट पहले मजदूरों को ग्रामीण अंचलों से अच्छी कमाई का लालच देकर मनाने का काम करते है. फिर अलग अलग क्षेत्रों से श्रमिकों के समूह बनाकर शहरीय क्षेत्रों में उन्हें वहां से रेल या सड़क मार्ग से लेकर जाने वाले एजेंटों के हवाले कर देते हैं.
इस अधिकारी का कहना है कि बिचौलिए इस कार्य को इतनी सफाई से अंजाम देते हैं कि मज़दूरों का यह पलायन आम समझ से हमेशा परे रहता है. यहां तक कि श्रमिकों को इस प्रकार से समझाया जाता है कि वे किसी से भी यह जानकारी साझा नही करते कि उन्हें कौन लेकर जा रहा है.
बना रहा है पलायन करनेवाले श्रमिकों का डाटा
बोरा ने यह साफ किया कि श्रम कानून के अनुसार ठेकेदारों द्वारा श्रमिकों को लेकर जाने की जानकारी विभाग को देना अनिवार्य है. बोरा कहते हैं ‘दूसरे राज्यों में जाने वाले श्रमिकों और उनको वहां लेकर जाने वाले ठेकेदारों का श्रम विभाग में पंजीयन अनिवार्य है लेकिन ये एजेंट्स अपने विषय में सरकार को कोई जानकारी नहीं देते जिससे पलायन करने वाले श्रमिकों का राज्य में आज तक कोई रिकॉर्ड नही बन पाया है.’
हालांकि लॉकडाउन के कारण श्रमिकों के बारे में जो जानकारी प्राप्त हो रही है उससे राज्य सरकार के लिए पहली बार एक बड़ा डेटा बेस भी तैयार हो रहा है जो आगे चलकर श्रम सबंधित कानून या फिर नीति निर्धारण में मदद करेगा.’
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प्रमुख सचिव के अनुसार विभाग ने राज्य से पलायन करने वाले करीब एक लाख से ज्यादा श्रमिकों का डेटा तैयार कर लिया है. उनके अनुसार यह प्रक्रिया लॉकडाउन के पहले दिन से लेकर 100 दिनों तक चलेगी जिससे राज्य से पलायन करने वाले मज़दूरों की पूरी जानकारी मिल सके.