रायपुर: कोरोना काल में बेबसी और कष्ट झेलकर अन्य राज्यों से वापस लौटे करीब 7 लाख प्रवासी मजदूरों को स्थायी रोजगार मुहैया कराने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने एक नया मॉड्यूल तैयार किया है.
इस मॉड्यूल के तहत राज्य सरकार स्वयं श्रमिकों का ‘स्किल मैपिंग’ और उसका प्रमाणन कर उनके लिए सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के माध्यम से स्थाई रोजगार की व्यवस्था करेगी. इस दिशा में सरकार केंद्र की सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) और नेशनल बिल्डिंग्स कंस्ट्रक्शन कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एनबीबीसी) से जल्द एमओयू साइन करेगी.
श्रम विभाग के अधिकारियों के अनुसार वापस लौटकर आए करीब 2.5 लाख मजदूरों का डाटा तैयार हो गया है और बचे हुए इतने ही श्रमिकों को और सूचीबद्ध किया जा रहा है. ये पांच लाख वे मजदूर हैं जो कोरोना काल में बाहर से लौटकर आए हैं और क्वारेंटाइन की अवधि पूरी कर चुके हैं या फिर आने वाले दिनों में कर लेंगे. इसके अलावा 2 लाख के करीब वे श्रमिक हैं जो सरकार की मदद के बिना स्वयं ही लौटे हैं जिसके कारण उनके बारे में अलग से पता लगाया जा रहा है.
दिप्रिंट ने जब राज्य वापस लौटे मजदूरों से बात की तो पता चला कि उन्हें फोन कर के बताया जा रहा है कि ‘कहां काम है और कहां जाना है.’ ऐसे ही एक नागपुर रायगढ़ जिले के सराईपाली गांव के नित्यानंद मालाकर जो हल्दीराम में काम करते थे, ने बताया कि उन्हें सरकार की तरफ से फोन आया था और बताया गया है कि रायपुर जाना है लेकिन अभी कोरोना की वजह से जा नहीं पाए हैं.
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स्किल के अनुसार बनाई कैटेगरी
इन श्रमिकों को उनके कौशल के अनुसार अलग अलग कैटेगरी में बांटा गया है ताकि आवश्यकता अनुसार इन श्रमिकों के स्किल या कौशल विकास पर भी ध्यान दिया जा सके. राज्य श्रम विभाग के सचिव सोनमणि बोरा जिनकी निगरानी में पूरी कवायद की जा रही है, वो कहते है, ‘स्किल मैपिंग का मुख्य उद्देश्य राज्य के श्रमिकों का एक विधिवित आंकड़ा तैयार करने के साथ-साथ उनके कौशल विकास पर काम करना और फिर उसका प्रमाणन करना भी है. इसके लिए सरकार को बहुत ज्यादा कुछ नहीं करना है.’
दिप्रिंट से विभाग के अधिकारी ने यह भी कहा, ‘श्रमिक पहले ही अपने क्षेत्र में कौशल हासिल कर चुके हैं. सरकार उनका एक छोटा रिफ्रेशर कोर्स कराकर प्रमाण पत्र जारी करेगी ताकि उनके कौशल को एक पहचान मिल सके और रोजगार पाने में सुविधा हो.’
बोरा कहते हैं, ‘अभी तक की गई स्किल मैपिंग में करीब 50 प्रतिशत श्रमिक निर्माण कार्यों से जुड़े हैं, 30 प्रतिशत ईटभट्टों में और बाकी 20 प्रतिशत कृषि, मोटर मैकेनिक, बिजली का काम, गारमेंट्स उद्योग, होटल व्यवसाय, स्वास्थ्य, सुरक्षागार्ड, लॉजिस्टिक्स और मशीनों के निर्माण कार्यों में काम करने वाले हैं. पहली बार राज्य में श्रमिकों का कोई डाटा बेस तैयार हुआ है. इससे श्रमिकों की पूरी जानकारी सरकार के पास स्थाई तौर पर रहेगी और उन्हें रोजगार दिलाने के अलावा उनसे कभी भी संपर्क किया जा सकेगा. भविष्य में इसे सिर्फ अपडेट करना पड़ेगा.’
सरकार द्वारा श्रमिकों का मैपिंग किए जाने से छत्तीसगढ़ के मजदूरों में खुशी है. वह कहते हैं कि अगर ऐसा हो और हमें अपना परिवार और घर छोड़कर न जाना पड़े तो हमारे लिए इससे ज्यादा खुशी की बात क्या हो सकती है. हमें भी परिवार के पालन पोषण के लिए घर बार-बच्चे परिवार छोड़ कर जाना पड़ता है.
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मैपिंग के बाद श्रमिकों को आए फोन
तेलंगाना के ईस्ट गोदावरी क्षेत्र से अपने घर वापस लौटे मटनार गांव दंतेवाड़ा के मनोज भास्कर और उनके भाई विनोद भास्कर ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘यदि सरकार हमारे रोजगार के लिए कोई व्यवस्था बनाती है तो हम जरूर उसका लाभ उठाएंगे. हम तीन भाई बहन तेलंगाना मिर्च तोड़ने जाते हैं ताकि घर के लिए कुछ पैसे मिल जाए. यदि सरकार रोजगार देगी तो इससे अच्छी बात क्या हो सकती है.’
वही बेरोजगार हो चुके नागपुर रायगढ़ जिले के सराईपाली गांव के नित्यानंद मालाकर भी अपने जिले या राज्य में काम मिल जाए तो बाहर जाने से तौबा कर लेंगे. नागपुर की हल्दीराम कंपनी में काम करने वाले 25 वर्षीय नित्यानंद कहते है, ‘दस हजार के लिए घर से दूर जाना हमें भी अच्छा नहीं लगता लेकिन मजबूरी में जाना पड़ता है. यदि सरकार हमारे रोजगार के लिए कुछ करती है तो इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता.
नित्यानंद कहते हैं, ‘मैं अपने माता-पिता और बहन के साथ यहीं रह पाऊंगा. हालांकि मुझे सरकार की तरफ से फोन आया था, उन्होंने रायगढ़ में किसी कंपनी का नंबर भी दिया है लेकिन कोरोना के कारण नहीं जा पाया हूं.’
हैदराबाद में राजमिस्त्री का काम करने वाले हल्बा-कचौरा गांव दंतेवाड़ा के बलराम साहू ने भी बताया, ‘मुझे किसी साहब ने फोन किया था कि काम यहीं मिल जाएगा. सरकार यदि कोई रोजगार देगी तो मुझे अपना परिवार पालने के लिए दोबारा हैदराबाद नहीं जाना पड़ेगा. बहुत कष्ट सहकर वापस आये हैं, अब नहीं जाना चाहते. भले पैसा कम मिले लेकिन अपने क्षेत्र में काम कर लेंगे.’
बोरा ने बताया की कोरोनाकाल में वापस लौटे मजदूरों के लिए मनरेगा त्वरित रोजगार के रूप में एक व्यवस्था जरूर बनी है लेकिन यह स्थाई नहीं हो सकता क्योंकि इसकी समय सीमा तय है.
बता दें कि प्रदेश में इस वर्ष मनरेगा के माध्यम से कोरोना लॉकडाउन में ढील के बाद करीब 27 लाख श्रमिकों, जिसमें प्रवासी भी शामिल हैं, को काम मिला है.
सरकार बीआरओ और एनबीसीसी इंडिया से करेगी एमओयू
दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार राज्य सरकार जल्द कुछ चुनिंदा केंद्र सरकार और गैर सरकारी संस्थानों के साथ एमओयू भी साइन करेगी ताकि इन उपक्रमों में राज्य से पलायन करने वाले प्रवासी श्रमिकों को रोजगार और अन्य सुविधाएं प्राथमिकता के आधार पर मिल सकें.
राज्य श्रम विभाग के सचिव सोनमणि बोरा ने दिप्रिंट को बताया, ‘लॉकडाउन के अनुभव के बाद सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि मजदूरों को उचित वातावरण और सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा मिले.’
वह आगे कहते हैं, ‘इसके लिए सरकार एक नई पहल के तहत राज्य के श्रमिकों के लिए बॉर्डर रोड आर्गेनाईजेशन (बीआरओ) और एनबीसीसी इंडिया लिमिटेड से विधिवत एमओयू करने जा रही हैं. इसके अलावा भारत सरकार के नेशनल हाईवे विभाग को भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाएगा.’
श्रमिकों की भर्ती मानसून के बाद होगी क्योकि अभी ज्यादातर श्रमिक खेती के कार्य में लगे हुए हैं. राज्य सरकार द्वारा सरकारी एजेंसियों से श्रमिकों को जोड़ने का कार्य और भी बढ़ाया जाएगा.
राज्य सरकार अपने विभागों और उपक्रमों को देगी निर्देश
प्रदेश के श्रमिकों को अधिक से अधिक काम राज्य में ही मिले इसके लिए सरकार अपने सभी विभागों को इस संबंध में जल्द आदेश जारी करेगी.
बोरा ने बताया, ‘सरकार के विभाग जैसे, लोक निर्माण विभाग, सिंचाई, परिवहन एवं अन्य श्रमिक बाहुल्य इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं वाले विभागों के अलावा प्रदेश के सभी उपक्रमों को सरकार द्वारा जल्द आदेश जारी किया जाएगा कि वे अपनी परियोजनाओं में स्थानीय श्रमिक को काम देने में प्राथमिकता दें.’
श्रम सचिव के अनुसार उनके विभाग द्वारा तैयार किए गए स्थानीय श्रमिकों के लिए रोजगार के इस मॉड्यूल के माध्यम से 60 प्रतिशत से ज्यादा पलायन करने वाले मजदूरों को प्रदेश में रोजगार दिया जा सकता है.
श्रम विभाग के एक अन्य अधिकारी के अनुसार सरकारी विभागों और उपक्रमों द्वारा ऐसा न करने पर कानूनी कार्यवाई के लिए प्रावधान बनाने की तैयारी चल रही है. इस अधिकारी के अनुसार श्रम कानून और प्रवासी श्रमिक अधिनियम 1979 के प्रावधानों का श्रमिकों की बेहतरी ले लिए और कड़ाई से पालन किया जाएगा.
श्रमिकों के लिए होगी भर्ती रैली, उद्योग घरानों को शामिल किया जाएगा
श्रम सचिव का कहना है कि स्किल मैपिंग की प्रक्रिया के माध्यम से चिन्हित, मनरेगा और अन्य क्षेत्रों में कार्यरत श्रमिकों के लिए उनके जिलों में भर्ती रैली भी जल्द शुरू की जाएगी.
बोरा कहते हैं, ‘सभी जिला अधिकारियों को स्किल मैपिंग द्वारा तैयार सूची की जानकारी दे दी गयी है. इसके अलावा सभी जिलों ने अपनी सूची भी बनाई है. सरकार भर्ती रैली की प्रक्रिया मानसून के बाद चालू करेगी. इस बाबत उद्योग विभाग से कहा गया है कि राज्य के उद्योग घरानों से मिलकर संबंधित जिलाधिकारी स्थानीय श्रमिकों के लिए उनके कौशल के हिसाब से अपने यहां भर्ती रैली कराएं.
राज्य के श्रमिकों को रोजगार देने के लिए सरकार द्वारा की जा रही कवायद में उद्योग जगत पूरी तरह से सहयोग करेगा.
उरला इंडस्ट्रीज एसोसिएशन रायपुर के अध्यक्ष अश्विन गर्ग ने दिप्रिंट से कहा, ‘एसोसिएशन की यह मंशा हमेशा से रही है कि स्थानीय श्रमिकों को प्रदेश की उद्योग इकाईयों में रोजगार की प्राथमिकता हो. यदि राज्य सरकार श्रमिकों के लिए भर्ती जैसी कोई योजना लाएगी तो हम उसमें जरूर भाग लेंगे और प्रयास करेंगे की स्थानीय लोगों को ज्यादा रोजगार मिले.’