श्रीनगर: जब लाल ईंटों से बने शहर-ए-खास से गुजरते हुए आप श्रीनगर में प्रवेश करते हैं तो लाल और काले रंग से लिखे भित्ति चित्र आपका ध्यान आकर्षित करते हैं.
लगभग हर दुकान, दीवार पर ‘गो इंडिया गो बैक’, ‘बुरहान टाउन’, ‘वी वांट फ्रीडम’, ‘सेव कश्मीर’ जैसे संदेश लिखे हुए दिख जाएंगे. श्रीनगर में आने के लिए एक बार और आपका स्वागत है.
70 इलाकों में बंटे डाउनटाउन में प्रसिद्ध जामा मस्जिद, कई बाज़ार, फैक्ट्रियां, ड्राई फ्रूट, फूडग्रैन, शॉल, कार्पेट, सोना, कॉपर के होलसेल दुकानें हैं. यह शहर का सबसे व्यस्त और आबादी वाला क्षेत्र है जहां इस शहर के 60 फीसदी लोग रहते हैं.
शहर का डाउनटाउन इलाका यहां का व्यवसायिक क्षेत्र है. यहां रात में भी व्यस्तता रहती है. लेकिन कश्मीर में ऐसा नहीं है.
सरकार की तरफ से लगे प्रतिबंध और अलगाववादी नेताओं की तरफ से स्ट्राइक करने के आदेश ने यहां के व्यवसाय पर असर डाला है. इस क्षेत्र के लोग आज़ाद कश्मीर की मांग को लेकर प्रदर्शन भी कर रहे हैं. हुर्रियत के नेता अपने कश्मीर बंद की उपलब्धि को इसी क्षेत्र में देख रहे हैं.
इस क्षेत्र में पहले से ही पत्थरबाज़ी की घटनाएं सामने आती रही हैं. ऐसे में यह इलाका बाहर से घूमने आए लोगों के लिए घूमने लायक नहीं है. खासकर अनुच्छेद-370 के हटाए जाने के बाद जो स्थिति बनी है वैसे में तो यहां आना ठीक नहीं है.
दुकानों के बंद शटर, खाली पड़ी सड़के, कंसर्टीना तारों से बंद पड़े रास्ते, हर 100 मीटर की दूरी पर पड़े पत्थर, जवानों की तैनाती कुछ ऐसे दृश्य हैं जो यहां आम बात हो चली है. 8 अगस्त को पहली बार यहां के सौरा में अनुच्छेद-370 के हटाए जाने के खिलाफ लोगों ने प्रदर्शन किया था. 5 अगस्त को यह फैसला लिया गया था जिसके बाद यहां 8 अगस्त की शक्रवार को प्रदर्शन किया गया था.
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जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा खत्म किए हुए 50 दिन से ज्यादा हो गए हैं लेकिन अभी भी घाटी के कई इलाकों में प्रतिबंध लगे हुए हैं.
श्रीनगर में जहां सभी सराकरी अधिकारियों का घर है, सचिव का घर है, हाई कोर्ट है, वहां कुछ दुकानें, स्कूल और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स खुले हैं. लेकिन डाउनटाउन इलाके में अभी भी हालात सामान्य नहीं है.
शहर का सूबसे पुराना हिस्सा
जम्मू-कश्मीर टाउन प्लानिंग विभाग के अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘डाउनटाउन को मुख्य शहर माना जाता है. बाकी के इलाके जैसे राज बाग और जवाहर बाग को शहर का बाहरी हिस्सा कहा जाता है.
डाउनटाउन के सबसे अच्छे इलाकों में रेनावारी, नौहट्टा( जहां जामा मस्जिद है), महाराजगंज, खनियार, अंचर, सौरा, हवाल और सफाकदल है.
श्रीनगर के ज्यादातर शिक्षण संस्थान जैसे कि महिला कॉलेज, इस्लामिक युनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नालॉजी, गांधी मेमोरियल कॉलेज डाउनटाउन क्षेत्र में ही स्थित है. राज्य के दो सबसे बड़े सरकारी अस्पताल शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस और श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल भी इसी क्षेत्र में है.
इस इलाके में सबसे ज्यादा मकबरे और मस्जिदें भी हैं. शहर की सबसे बड़ी मस्जिद जामा मस्जिद भी स्थित है. यहीं से अलगाववादी नेता मीरवाइज़ उमर फारुक अपना धार्मिक संदेश देता था.
अधिकारी ने बताया कि यह सबसे पुराना शहर है. अपटाउन तो काफी बाद में बसा है. उन्होंने बताया कि डाउनटाउन इलाका इस शहर की धड़कन है. यहां कई फैक्ट्रियां है लेकिन ज्यादातर समय इस इलाके में हालात सामान्य ने रहने से यहां दिक्कत होती है. या तो अलगाववादी नेता हड़ताल बुला लेते हैं या यहां के लोग सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते हैं.
एक स्थानीय दुकानदार ने बताया कि डाउनटाउन की जो वर्तमान छवि बनी हुई है उसके पीछे यहां कि पुलिस और नेताओं का हाथ है.
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दुकानदार ने बताया कि यहां के नेताओं ने इस क्षेत्र की छवि को खराब किया है. डाउनटाउन कश्मीर का शैक्षणिक केंद्र रहा है. यह कोई पिछड़ा इलाका नहीं है. राज्य के सभी प्रसिद्ध शैक्षणिक संस्था यहीं स्थित है.
तनावग्रस्त इलाका
2008 में (कश्मीर में शेख अब्दुल अज़ीज़ के मारे जान के बाद प्रदर्शन हुआ था), 2010 में (एक एनकाउंटर में तीन कश्मीरियों के मारे जाने के बाद भी प्रोटेस्ट हुआ था), 2016 में( हिज़्बुल मुजाहिद्दीन के कमांडर बुरहान वानी के एनकाउंटर) और 2019 में, कई बार डाउनटाउन क्षेत्र प्रदर्शनों और कर्फ्यू का गवाह रहा है.
नौहट्टा पत्थरबाज़ी का मुख्य केंद्र रहा है. दूसरे दुकानदार ने बताया, ‘इस क्षेत्र में एक बार में लगभग 2500 लोग नमाज़ पढ़ते हैं. इसलिए जब युवा यहां प्रार्थना करने आते हैं तब वो पुलिस बलों पर पत्थरबाज़ी करते हैं. जिसके बाद वो इधर-उधर गायब हो जाते हैं.’
जब से अनुच्छेद-370 को राज्य से हटाया गया है तब से जामा मस्जिद को नमाज़ पढ़ने के लिए नहीं खोला गया है. खासकर शुक्रवार को होने वाली प्रार्थना के लिए.
जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक अधिकारी ने बताया, ‘जब भी हम पेट्रोलिंग के लिए इस क्षेत्र में जाते हैं यहां के युवक हम पर एक साथ मिलकर पत्थरबाज़ी करते हैं. इस वजह से हमारे कई जवान घायल भी हुए हैं.
अधिकारी ने बताया कि पत्थरबाज़ यहां के लोगों को दैनिक काम भी करने नहीं देते. कैब ड्राइवरों को डराने के लिए उन पर भी हमले किए जाते हैं.
लेकिन पुलिस अधिकारी द्वारा बताई गई बातों से इतर यहां के स्थानीय लोग कुछ और कहानी बताते हैं. उनका कहना है कि पुलिस वाले उनसे धन की उगाही करते हैं और उन्हें परेशान करते हैं.
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एक युवक ने कहा कि क्या हम पागल है कि किसी पर इस तरह पत्थर फेंके. यह पुलिस वाले हमसे पैसे वसूलते हैं. सर्च ऑपरेशन के बहाने ये लोग हमारे घरों में घुसते हैं और हमसे पैसे मांगते हैं. हमें धमकाया भी जाता है कि अगर हमने पैसे नहीं दिए तो नौजवानों को हिरासत में ले लिया जाएगा. हम उन्हें अपने घरों में क्यों घुसने दें. अगर उनके हाथों में गोलियां है तो हमारे हाथों में भी पत्थर है.
गहराती अलगाव की भावना
डाउनटाउन इलाके में रहने वाले लोगों का मानना है कि वो इन हालातों की वजह से वो प्रशासन और सरकार से अलगाव महसूस कर रहे हैं.
रेनावारी में रहने वाले एक 36 वर्षीय निवासी ने बताया कि यह इलाका सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए जाना जाता है. यहां सर्च ऑपरेशन और आर्मी के जवान ही नज़र आते हैं. न ही पीने का पानी, न बिजली, सिर्फ और सिर्फ सेना के जवान ही यहां नज़र आते हैं.
रेनावारी इलाके के निवासी ने बताया, ‘हमें पत्थरबाज़ के तौर पर प्रदर्शित किया जाता है. यह आम जनों में भी धारणा बन गई है. अगर पुलिस ने इस इलाके में रेड की है तो इसका मतलब है कि हम गलत है. कोई उनसे उनके अत्याचारों को लेकर सवाल नहीं करता है. पुलिस अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल कर रही है. सरकार समझती है कि हम सिर्फ गोलियों के हकदार हैं.
इस इलाके की छवि खराब होने से यहां के प्रोपर्टी के दामों में काफी गिरावट आई है. जिसकी वजह से अब लोग अपटाउन की तरफ रुख कर रहे हैं. नौजवान दूसरे शहर अपनी पढ़ाई के लिए जा रहे हैं.
जम्मू-कश्मीर सरकार के एक प्रशासनिक अधिकारी ने बताया, ‘ इस क्षेत्र की साक्षरता दर काफी कम है. युवा लोग पूरा दिन बैठे रहते हैं. या तो कैरम खेलते हैं या पत्थरबाज़ी के लिए योजना बनाते हैं.’
अधिकारी ने बताया, ‘बहुत सारे ऐसे बिज़नेस परिवार जो लगातार बंद रहने के कारण नुकसान झेल रहे थे उन्होंने इस क्षेत्र को छोड़कर जवाहर बाग और हैदरपोरा जाने का फैसला कर लिया है.
यहां के मुख्य बाज़ार (नालाहमार, गाड़ा बाज़ार, जैना कदल, मालारथा, गाड़ा कोछा, बोहरी कदल) के व्यापारी बंद रहने के कारण काफी नुकसान झेल रहे हैं.
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स्थानीय व्यापारी संगठन के एक सदस्य ने बताया, ‘ हमें काफी नुकसान झेलना पड़ रहा है. हम अपने लोगों को यहां से छोड़कर नहीं जाना चाहते हैं. हम इतने स्वार्थी नहीं हैं.’
कश्मीरियत की ही तो एक भावना है जो यहां के लोगों को एक बनाए हुए हैं.
यहां के लोग एकता में विश्वास करते हैं. 79 वर्षीय दुकानदार ने बताया कि यहां हर जगह आपको समुदायिक भावना देखने को मिलेगी. एक बोलता है तो सब सुनते हैं.
दुकानदार ने बताया कि सरकार सोचती है कि वो सुरक्षा बलों को तैनात करके हमें दबा देगी लेकिन वो नहीं जानती है कि इससे हमारी आज़ादी की प्रतिबद्धता और भी मज़बूत हो रही है.
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