नई दिल्ली: त्योहारी सीजन करीब आने के साथ उपभोक्ताओं को काबुली चना 100 रुपये प्रति किलोग्राम तक में खरीदना पड़ सकता है क्योंकि चना दल की सभी वैरायटी की कीमतें तेजी से चढ़ने के आसार हैं.
भारत में सबसे ज्यादा खपत वाली दालों में से एक चना दाल की कीमत खुले बाजार में जून में 4,000-4,500 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़कर सितंबर में 6,500 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई है. होटल, रेस्तरां और कैटरिंग (होरेका) सेक्टर में धीरे-धीरे अनलॉकिंग शुरू होने और अक्टूबर-नवंबर में आने वाले त्योहारी सीजन के साथ मांग और बढ़ने के आसार हैं, जिससे कीमतें 8,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच सकती हैं.
त्योहारी सीजन के लिए चना दाल और इसके प्रसंस्कृत वैरिएंट की मांग, जो अगस्त में ही बढ़ना शुरू हो गई थी, भी कीमतों को चढ़ा रही है. और इसके अलावा महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भारी बारिश के कारण खरीफ सीजन में दाल की फसल की स्थिति को लेकर भी आशंकाएं बनी हुई हैं क्योंकि दलहन के उत्पादन वाले प्रमुख क्षेत्र बाढ़ में डूब गए थे.
काबुली चना का उत्पादन 2019 में 3.95 लाख मीट्रिक टन की तुलना में घटकर इस साल 2.73 एलएमटी ही रह गया है, जिससे इसकी कीमत 100 रुपये प्रति किलो से ऊपर पहुंच जाने के आसार हैं.
जैसा कि दिप्रिंट ने पहले ही बताया था मूल्यवृद्धि के पीछे एक अन्य बड़ा कारण है रबी सीजन में सरकारी नोडल एजेंसी नेशनल एग्रीकल्चरल कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया (नेफेड) द्वारा बड़े पैमाने पर चने की खरीद करना, जिसने आपूर्ति को सीमित कर दिया है. नेफेड ने आगामी नवंबर तक प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) के तहत प्रत्येक राशन कार्ड-धारक परिवार को एक किलो मुफ्त दलहन देने के उद्देश्य से पिछले साल की तुलना में तीन गुना अधिक चना दाल की खरीद की है.
नेफेड के अतिरिक्त प्रबंध निदेशक एस.के. सिंह ने दिप्रिंट को बताया, ‘तीन माह पहले 3,800-4,000 रुपये प्रति क्विंटल की तुलना में नेफेड अभी खुले बाजार में 4,350-4,500 रुपये प्रति क्विंटल में चना बेच रहा है. हमारा कुल स्टॉक करीब 35.5 एलएमटी है, जिनमें से 15 एलएमटी को पीएमजीकेवाई कार्यक्रम के तहत वितरित किया जाएगा, लगभग 30 प्रतिशत संस्थागत आपूर्ति के तहत और बाकी खुले बाजार में जाएगा.’
यह भी पढ़ें: मेडिकल ऑक्सीजन क्या है जो कि कोविड रोगियों की प्रमुख जरूरत है- भारत में इसकी कितनी कमी है और क्यों हो रही है
विशेषज्ञ आशंकित
मार्केट रिसर्च फर्म आइग्रेन इंडिया में एग्रो कमोडिटी एक्सपर्ट राहुल चौहान ने दिप्रिंट को बताया कि कीमतों में तेजी आने की संभावना क्यों है.
चौहान ने कहा, ‘देसी मटर के कमजोर उत्पादन और आपूर्ति के कारण चना दाल की मांग और खपत बढ़ी है. त्योहारी सीजन के दौरान बेसन की मांग बढ़ेगी इसलिए मिल वाले चना दाल की अधिक खरीद की कोशिश करेंगे, जिससे कीमतों में और बढ़ोतरी होगी.’
उन्होंने कहा, ‘देश भर में आर्थिक और सामाजिक गतिविधियां बहाल होने के साथ पिछले महीने से ही काबुली चना की कीमतों में करीब 10-20 फीसदी की वृद्धि होने लगी थी. उत्सव संबंधी गतिविधियों और स्ट्रीट वेंडर के बीच इससे काबुली चना की मांग बढ़ने से इसके 100 रुपये प्रति किलो से ऊपर पहुंच जाने के आसार हैं.’
कुल मिलाकर, भारत दलहन की कमी वाला देश है जिसका कुल घरेलू उत्पादन खपत से कम है. यही कारण है कि सरकार की व्यापक खरीद के साथ देशभर में दालों और प्रोसेस्ड फूड की खपत बढ़ने से चना दाल की कीमतें चढ़ रही हैं.
भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. एन.पी. सिंह ने भी इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन एसोसिएशन की तरफ से आयोजित एक वेबिनार में बदले हुए परिदृश्य के बारे में जानकारी दी.
उन्होंने कहा, ‘हमारा मानना है कि आने वाले समय में दालों की मांग बढ़ने वाली है. मौजूदा समय में आवश्यकता लगभग 280 एलएमटी है, जबकि उत्पादन 240 एलएमटी है और 20 एलएमटी के बफर स्टॉक के बावजूद ऐसा लगता है कि अगले साल 25 से 50 एलएमटी के बीच कमी होगी.’
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: चीन सीमा के साथ मोदी सरकार का इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा- दो नई सड़कें, दौलत बेग ओल्डी का नया वैकल्पिक रास्ता