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Saturday, 2 November, 2024
होमदेशआस्था और श्रद्धा ही काफी नहीं, आर्थिक फायदा होगा तभी गाय रखेंगे किसान : कामधेनु आयोग अध्यक्ष

आस्था और श्रद्धा ही काफी नहीं, आर्थिक फायदा होगा तभी गाय रखेंगे किसान : कामधेनु आयोग अध्यक्ष

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष डॉ. वल्लभ भाई कथीरिया ने बताया कि आयोग अब गौशालाओं से गायों, बछड़ों और बैल को किसानों को देने की दिशा पर विचार कर रहा है.

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नई दिल्ली: राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष डॉ. वल्लभ भाई कथीरिया का मानना है कि देश में आवारा पशुओं और गौशलाओं में बढ़ती हुई गायों की संख्याओं से निपटने के लिए श्रद्धा और आस्था के साथ-साथ लोगों को पशुपालन के फायदे और आर्थिक लाभ से अवगत कराना पड़ेगा.

उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय कामधेनु आयोग का गठन भारत में गायों के संरक्षण, विकास के लिए किया गया है. यह आयोग भारत में पशु विकास के कार्यक्रमों को दिशा देने का काम भी करता है.

कामधेनु आयोग अब गौशालाओं को गायों, बछड़ों और बैल को किसानों को देने की दिशा पर विचार कर रहा है. इस तरह का प्रयोग वे गुजरात में भी कर चुके है.

नरेंद्र मोदी सरकार 2.0 में बने आयोग के पहले कथीरिया गुजरात राज्य गौसेवा का नेतृत्व कर चुके है. इस आयोग का मुख्य उद्देश्य देश में आवारा पशुओं की समस्याओं का निदान करना है. खासतौर पर आवारा पशु उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के लिए बड़ा सिर दर्द बन गए हैं.

स्वस्थ्य गाय किसानों और आम व्यक्तियों को ​दी जाएगी

गुजरात से पूर्व भाजपा सांसद रहे कथीरिया ने कहा कि किसान गायों के दूध, मूत्र और गोबर को बेचकर अच्छा खासा लाभ प्राप्त कर सकते है. इस तरह से उनकी आय में भी सुधार होगा.

उन्होंने कहा कि जो स्वस्थ्य गाय है वह किसानों और आम व्यक्तियों को दी जाएगी. इसके अलावा जो बैल बीमार है या जिनकी उम्र बढ़ रही है उनकी चिकित्सा पर विशेष ध्यान रखा जाएगा. इन्हें गौशाला में रखा जाएगा. आयोग के प्रस्तावित योजना के मुताबिक गौशाला के संचालक, राज्य सरकार और उद्योग से परामर्श के बाद ही निर्णय लिया जाएगा कि किस तरह की गायों को किसानों और आम व्यक्तियों को सौंपना है.

उन्होंने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, किसानों को आवारा गायों को घर ले जाने के लिए केवल श्रद्धा और आस्था ही पर्याप्त नहीं हैं. उन्हें इसके लाभ के बारे में समझाना होगा. उदाहरण के लिए गोमूत्र और गोबर का उपयोग जैव-कीटनाशकों और उर्वरकों के रूप में किया जा सकता है. मवेशी शून्य-बजट या कम-बजट खेती का हिस्सा बन सकता है. हम इसके लिए दिशा-निर्देश तैयार कर रहे हैं और राज्य अपने अनुसार इसे लागू कर सकते हैं.

गायों के रखरखाव के लिए राशि देने पर विचार

कथीरिया ने कहा  कि देसी गाय ए टू गुणवत्ता वाले दूध देती हैं, जो बाजार में 100-120 रुपये के बीच बेचा जाता है और अगर कोई किसान ऐसी गाय रखकर 50-60 रुपये भी प्राप्त कर सकता है, तो यह समस्या को हल करने में मदद कर सकता है.

उत्तर प्रदेश सरकार के उदाहरण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सीएम योगी आदित्यनाथ सरकार एक योजना लागू कर रही है, जिसमें किसानों को सरकार द्वारा संचालित आश्रयों से मवेशी गायों के रखरखाव के लिए पैसा दिया जाता है. योजना के तहत, व्यक्ति को प्रतिदिन प्रति जानवर 30 रुपये का भुगतान किया जाता है. यह भी सुनिश्चित करेंगे कि इन गायों का स्लाटर हाउस नहीं ले जाया जाए. गायों के रखखाव के लिए राशि प्रदान करने पर भी विचार किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि न केवल किसानों, विशेष रूप से आम व्यक्तियों को जागरूक करके और प्रक्रिया को सरल बनाकर गायों को रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. उन्हें दूध, गाय के गोबर और मूत्र के उपयोग से होने वाले कई लाभों के बारे में बताया जाना चाहिए.

सड़क पर घुमने वाली गाय भी गोद देने पर विचार

कथीरिया का कहना हैं कि जो गांए और सांड सड़कों पर घूमते हैं. जो दूध देने लायक नहीं होते है. उन्हें गौशालाओं में रखा जाता है. नई योजना के तहत ऐसे पशुओं के स्वास्थ्य में सुधार होने के बाद उन्हें गोद देने के बारे में भी विचार विमर्श किया जा रहा है. वहीं अगर किसानों द्वारा राखी गई गायों की उम्र भी ज्यादा हो जाती है या बीमार हो जाती है, तो उसे एक बार फिर आश्रय घरों में वापस लाया जा सकेगा.

उन्होंने बताया कि आयोग इस पर भी विचार कर रहा है कि जब किसान आश्रय घरों से मवेशियों को गोद लेते हैं, तो उन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण प्रदान किया जाए. हमें लोगों की मानसिकता (आश्रयों को चलाने वाले) को बदलने की ज़रूरत है, जो श्रद्धा से बाहर हैं, वे गायों के दूध का उपयोग करने में विश्वास नहीं करते हैं जो वे रखते हैं या उप-उत्पादों को बेचना नहीं चाहते हैं. हमें इसे बदलने की जरूरत है.

आयोग ग्वालियर में निर्मित गौशाला (गौशाला) के सामान एक गौशाला स्थापित करने की योजना पर भी काम कर रहा है, जो पीपीपी मॉडल पर काम करती है. फिनाइल का उत्पादन करती है, जिसमें गोबर और मूत्र का उपयोग कर कीटनाशक का उत्पादन किया जाता है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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