नई दिल्ली: वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीनी आक्रमण का मुकाबला करने के लिए, केंद्र सरकार अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे का विकास कर रही है.
‘प्रोजेक्ट वर्तक’ के चीफ इंजीनियर बृज रमन कुमार ने बताया कि सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) पश्चिमी असम और पश्चिमी अरुणाचल प्रदेश के प्रमुख सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़क नेटवर्क का विकास और रखरखाव कर रहा है. उन्होंने कहा, ‘हमारे पास नेशनल हाईवे, सिंगल-लेन रोड, डबल-लेन रोड और अन्य प्रकार की सड़कें भी हैं. हम तवांग जिले के दूर-दराज के इलाकों को भी जोड़ना चाहते हैं और इस क्षेत्र के सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान देना चाहते हैं.’
उन्होंने आगे बताया कि दो सुरंगें – सेला सुरंग और नेचिपु सुरंग – निर्माणाधीन हैं क्योंकि सर्दियों के दौरान भारी बर्फबारी के कारण वाहनों की आवाजाही मुश्किल हो जाती है.
कुमार ने कहा, ‘सेला सुरंग निर्माणाधीन है और सेला दर्रे से 400 मीटर नीचे है. एक बार सुरंग पूरी हो जाने के बाद, लोग सर्दियों में भी इससे गुजर सकेंगे. हम नेचिपु दर्रे के पास नेचिपु सुरंग पर भी काम कर रहे हैं. एक बार जब वे पूरे हो जाते हैं, तो सैन्य और साथ ही नागरिक वाहनों की आवाजाही बहुत अधिक जाएगी. यह न सिर्फ क्षेत्र में बुनियादी ढांचे बल्कि पर्यटन को भी बढ़ावा देगा.’
रोड नेटवर्क और अन्य बुनियादी ढांचे के विकास कार्यों के अलावा, सरकार तवांग और अरुणाचल प्रदेश के अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में मोबाइल कनेक्टिविटी को मजबूत करने के लिए काम कर रही है.
एलएसी के साथ तवांग और इसके अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में अधिक मोबाइल टावर लगाए गए हैं.
इंटरनेट कनेक्टिविटी पर, एक निवासी ने कहा, ‘मोबाइल और इंटरनेट कनेक्टिविटी में सुधार हुआ है लेकिन अभी भी यह बेहतर नहीं है. इसमें बहुत सारी गड़बड़ी हैं.’
एक अन्य निवासी ने कहा, ‘अगर हम पहले से तुलना करें तो कनेक्टिविटी में काफी सुधार हुआ है. पहले हम इंटरनेट का उपयोग नहीं कर पाते थे लेकिन अब हम फेसबुक और व्हाट्सएप का भी उपयोग कर सकते हैं.’
13 दिसंबर को, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने राज्यसभा को सूचित किया कि चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश में तवांग सेक्टर के यांग्त्से क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा को पार करने और यथास्थिति को एकतरफा बदलने की कोशिश की, लेकिन उन्हें पीछे हटने को मजबूर होना पड़ा. भारतीय सैनिकों के समय पर हस्तक्षेप के कारण उन्हें पीछे हटना पड़ा.
रक्षा मंत्री ने उच्च सदन को आश्वासन दिया था कि ‘हमारी सेनाएं हमारी क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं और यथास्थिति को बदलने के लिए किए गए किसी भी प्रयास को विफल करना जारी रखेंगी.’
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