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Saturday, 21 December, 2024
होमदेशकस्टडी की लड़ाई में मदद करेगी CBI? SC तीन साल के बच्चे से जुड़े इंटरनेशनल केस में क्यों चाहता है जांच एजेंसी की मदद

कस्टडी की लड़ाई में मदद करेगी CBI? SC तीन साल के बच्चे से जुड़े इंटरनेशनल केस में क्यों चाहता है जांच एजेंसी की मदद

सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को पुणे में जन्मे बच्चे और मिस्र मूल के उसके पिता का पता लगाने में मदद करने को कहा है, जो बच्चे की नानी और मौसी के साथ जारी कस्टडी की लड़ाई के बीच कथित तौर पर उसे लेकर विदेश भाग गया है. 2019 में बच्चे की मां की मौत हो गई थी.

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नई दिल्ली: तीन वर्षीय बच्चे को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जारी कस्टडी की लड़ाई में एक असामान्य मोड़ आ गया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया है कि वह बच्चे का पता लगाने में मदद करे.

बच्चे की भारतीय मां की उसके जन्म के कुछ महीनों बाद ही मौत हो गई थी, लेकिन उसकी मौसी और नानी उसकी कस्टडी को लेकर मिस्र के नागरिक उसके पिता के साथ कानूनी लड़ाई लड़ रही हैं और उनका आरोप है कि उसने बच्चे को कहीं ‘गायब’ कर दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सीबीआई को निर्देश दिया कि बच्चे के साथ-साथ उसके पिता का भी पता लगाने के लिए उपयुक्त नोटिस जारी करे, जिसके बारे में कहा जा रहा है कि वह अपने बेटे को लेकर मिस्र भाग गया है. जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने कहा है कि सीबीआई इस निर्देश पर अमल के लिए अंतरराष्ट्रीय पुलिस संगठन इंटरपोल का सहयोग ले सकती है.

सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भट्टी ने कहा कि ‘उनके स्थान का पता लगाने’ के उद्देश्य से पिता के लिए एक ब्लू नोटिस और बच्चे के लिए एक यलो नोटिस जारी किया जा सकता है.

ब्लू नोटिस ‘किसी व्यक्ति की पहचान, स्थान या अपराध संबंधी गतिविधियों के बारे में अतिरिक्त जानकारी जुटाने’ के लिए जारी किया जाता है, जबकि एक यलो नोटिस ‘लापता लोगों, आम तौर पर नाबालिगों का पता लगाने में मदद’ के लिए जारी होता है.
भट्टी ने पीठ से यह भी कहा कि एक बार पिता-पुत्र का पता चल जाने पर बच्चे को भारत वापस लाने के लिए ‘डिप्लोमैटिक चैनल’ का सहारा लिया जा सकता है.

रेड-कॉर्नर नोटिस को लेकर कोर्ट के सवाल पर भट्टी ने कहा कि यह जारी करना संभव नहीं होगा क्योंकि ऐसा लुक-आउट ऑर्डर केवल तभी जारी किया जाता है जब किसी फरार आरोपी को या तो न्यूनतम छह महीने की जेल की सजा सुनाई जा चुकी दी गई हो या उसे ऐसे किसी अपराध के मामले में आरोपों का सामना करना पड़ रहा हो, जिसमें दो साल की ज्यादा की सजा संभव हो. भट्टी ने कहा, मौजूदा मामला इन दोनों ही श्रेणियों में नहीं आता है.

बच्चे की मौसी और नानी ने बांबे हाईकोर्ट के जनवरी 2020 के एक फैसले—जिसमें बच्चे की कस्टडी पिता को दी गई थी—के खिलाफ 29 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. इसमें आरोप लगाया था कि बच्चे का पिता उसके पिता दुर्व्यवहार करता है और उसने बच्चे की मौसी के साथ मारपीट की कोशिश भी की थी.

इस मामले में सीबीआई को शामिल करने की आवश्यकता तब पड़ी जब बच्चे का पिता और उनके वकील सुप्रीम कोर्ट के नोटिस और पिछले दो सालों में जारी जमानती वारंट का जवाब देने के लिए कोर्ट में पेश नहीं हुए.


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मां की मौत के बाद शुरू हुई अदालती लड़ाई

अदालती दस्तावेजों के मुताबिक, मिस्र का एक मुस्लिम नागरिक पुणे में किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करता था, जब 2007 में उसकी मुलाकात एक हिंदू युवती से हुई. वह भी उसी कंपनी में काम करती थी. 2014 में म्यांमार में मिस्र के दूतावास में शादी होने तक दोनों के बीच लंबे प्रेम संबंध चले और इस दौरान कई बार वह एक-दूसरे से काफी दूर रहे.

याचिका में कहा गया है कि बच्चे का जन्म फरवरी 2019 में पुणे में हुआ था और इसलिए वह एक भारतीय मुस्लिम है.

बच्चे के जन्म के करीब दो महीने बाद पुणे में इंट्राक्रैनील हेमरेज के कारण मां की मृत्यु हो गई. कुछ महीनों तक बच्चा पुणे में नानी और मौसी के साथ रहा और बाद में पिता उसे काहिरा ले गया. इस दौरान मौसी भी उसके साथ गई.

हालांकि, बच्चे की मौसी का आरोप है कि बच्चे के पिता ने न केवल उसके साथ मारपीट की कोशिश की, बल्कि बच्चे का भी ठीक से ख्याल नहीं रखा. इसलिए, सितंबर 2019 में जब वीजा रिन्यू कराने के लिए वह बच्चे के साथ पुणे लौटी, तो फिर काहिरा वापस न जाने का फैसला किया.

इसके बाद, पिता ने बच्चे की नानी और मौसी पर अपने बच्चे की गैर-कानूनी तरीके से अपने पास रखने का आरोप लगाते हुए उसकी कस्टडी के लिए बांबे हाई कोर्ट का रुख किया.

दिसंबर 2019 में, हाई कोर्ट ने पिता को अंतरिम कस्टडी दी, जिसे जनवरी 2020 में पूर्ण कस्टडी में बदल दिया गया. अपने निर्णय में हाई कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि पिता बच्चे को साल में चार बार भारत लेकर आएगा और हर बार 15 दिन यहीं पर व्यतीत करेगा.

यद्यपि हाई कोर्ट ने पिता को 27 मार्च 2020 तक पुणे में ही रहने का निर्देश दिया था, लेकिन वह 16 फरवरी 2020 को बच्चे को लेकर चला गया.

सुप्रीम कोर्ट में याचिका और सीबीआई के दखल की जरूरत

बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ बच्चे की मौसी और नानी ने 29 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.

याचिका में उन्होंने आरोप लगाया कि पिता का व्यवहार ठीक नहीं है और वह बच्चे के साथ भी ठीक से पेश नहीं आता है, साथ ही उसकी ‘अप्राकृतिक प्रवृत्ति’ को लेकर भी गंभीर आरोप लगाए.

शीर्ष कोर्ट ने 18 मार्च 2020 को याचिका पर जवाब देने के लिए पिता को नोटिस जारी किया, लेकिन वह ऐसा करने में विफल रहा. एक साल बाद 5 मार्च 2021 को कोर्ट ने एक जमानती वारंट जारी करने का आदेश दिया, जिसके तहत उसे 5 अप्रैल 2021 को कोर्ट में हाजिर होना जरूरी था. वारंट भारतीय दूतावास के माध्यम से काहिरा के साथ-साथ अबू धाबी में भी तामील किया जाना था, जहां पिता तब काम कर रहे थे.

जुलाई 2021 में पिता के वकील ने इस मामले से अलग होने की मांग की क्योंकि मिस्र के नागरिक उसके मुवक्किल ने उसके साथ संवाद करना बंद कर दिया था.

अगस्त 2021 में कोर्ट को सूचित किया गया कि काहिरा स्थित भारतीय दूतावास से संपर्क किया गया है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पिता को वारंट तामील हो जाए, और केंद्र सरकार ने इसके लिए छह सप्ताह का समय मांगा था.

फरवरी 2022 में यह जानकारी दिए जाने के बाद कोर्ट ने एक नया जमानती वारंट जारी किया कि पहले वाले की समयसीमा समाप्त हो गई थी और इसलिए वह पिता को तामील नहीं किया जा सकता.

पिता के लगातार अनुपस्थिति रहने को देखते हुए शीर्ष कोर्ट ने सीबीआई को एक पक्ष के तौर पर शामिल करने का फैसला किया और उसकी हाजिरी सुनिश्चित करने का निर्देश जारी किया.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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