नई दिल्ली : नरेंद्र मोदी सरकार इस साल प्रायोगिक सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) शुरू करने के लिए पूरी तरह तैयार है. 2011 के निष्कर्षों को अपडेट करना है और यह संकेत भी है कि दस वर्षीय जनगणना की तरह एक नियमित अभ्यास होने की संभावना है.
दिप्रिंट को पता चला है कि 2 अक्टूबर से शुरू होने वाली यह प्रायोगिक योजना विवादास्पद जातिगत पहलू को छोड़कर, केवल एक सामाजिक-आर्थिक जनगणना होगी.
ग्रामीण विकास मंत्रालय (जो ग्रामीण क्षेत्रों में जनगणना का संचालन करता है) में उच्च पद पर आसीन एक सूत्र के अनुसार जनगणना अगले साल पूरा करने के लिए है, अक्टूबर में होने वाली जनगणना सिर्फ एक प्रायोगिक योजना है.
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, हम सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) के निष्कर्षों को अपडेट करेंगे. एक सीमित पैमाने पर प्रायोगिक 2 अक्टूबर से शुरू होगा, यह केवल सामाजिक-आर्थिक मापदंडों को मापेगा, न कि जाति को. इसके बाद हम 2020 तक पूर्ण अभ्यास करने की उम्मीद करते हैं.
अभ्यास
एसईसीसी 2011 का अभ्यास अपने आप में अलग अभ्यास था. जो कि घरेलू स्तर पर कई मापदंडों का उपयोग करके गरीबी की पहचान करना चाहता था. जैसे कि व्यवसाय, शिक्षा, विकलांगता, संपत्ति का अधिकार, घर का स्वामित्व, अनुसूचित जाति /अनुसूचित जनजाति की स्थिति और रोज़गार.
इसने कुल आय वर्ग के 24.49 करोड़ परिवारों को कवर किया और एक डोर-टू-डोर अभ्यास के माध्यम से आयोजित किया गया था.
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जबकि, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ग्रामीण क्षेत्रों में जनगणना का संचालन किया था. शहरी भारत में आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय ( बदला हुआ नाम आवास और शहरी मामलों का मंत्रालय) इस जनगणना लिए जिम्मेदार था.
जाति की जनगणना 1931 के बाद पहली बार आयोजित की गई थी. यह गृह मंत्रालय, भारत के रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई) और भारत के जनगणना आयुक्त के अधिकार क्षेत्र के तहत किया गया था. लेकिन इसके निष्कर्ष कभी भी सामने नहीं आए.
ग्रामीण क्षेत्रों में एसईसीसी के निष्कर्ष सबसे महत्वपूर्ण हो गए. जिसमें मुख्य सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों की पहचान का आधार पीएम मोदी की प्रमुख ग्रामीण आवास परियोजना शामिल है.
बहु-आयामी और संपूर्ण सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) डेटा पारंपरिक गरीबी रेखा माप से आगे जा रहा है, और ग्रामीण भारत में सरकारी कल्याण कार्यक्रमों का आधार बन गया.
सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना के तहत आने वाले 24.49 करोड़ परिवारों में से 17.97 करोड़ ग्रामीण इलाकों में थे.
ग्रामीण विकास मंत्रालय अब घरों की सूची में समता सुनिश्चित करने के लिए समग्र जनगणना के साथ प्रक्रिया को श्रेणीबद्ध करना चाहता है.
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मंत्रालय के अधिकारी ने कहा, ‘हम जनगणना के साथ प्रक्रिया को इस हद तक श्रेणीबद्ध करना चाहते हैं कि एक बार जिन घरों की लिस्टिंग हो जाए, हम उसी डेटा का उपयोग करते हैं, इसलिए हम किसी को छोड़ना नहीं चाहते हैं.’
जबकि जनगणना 2021 में होने वाली है. मंत्रालय को उम्मीद है कि एसईसीसी अगले साल ही समाप्त हो जाएगी. जब घरों की लिस्टिंग पूरी हो जाएगी.
विवादास्पद जातिगत पहलू
2011 एसईसीसी का सबसे विवादित हिस्सा यह था कि जब ग्रामीण और शहरी सामाजिक-आर्थिक डेटा 2015 के मध्य में जारी किया गया था. छोटे से छोटे विवरण को सार्वजनिक किया गया था. जाति का हिस्सा कभी सामने नहीं लाया गया था.
कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा जिसने यह अभ्यास किया था,और एनडीए ने भी भी जातिगत निष्कर्षों को गुप्त रखा था और साथ ही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने बाद में डेटा जारी किया था और इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया.
राजनीतिक निहितार्थ और साथ ही मुद्दे की संवेदनशीलता के कारण सरकार ने इस डेटा का पूरी तरह से प्रसंस्करण नहीं किया है. सरकार के सूत्रों का यह भी कहना है कि ‘आरजीआई विधि और निष्कर्ष दोनों के संदर्भ में वे डेटा संग्रह से पूरी तरह से संतुष्ट नहीं है.’
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