देहरादून: उत्तराखंड के एक सरकारी स्कूल में ‘भोजन माता (मिड डे मील रसोइया)’ पद से हटाई गई एक दलित महिला को फिर से बहाल किए जाने की संभावना है. चंपावत जिले के सरकारी स्कूल में अगड़ी जाति के कुछ छात्रों ने इस दलित महिला का बनाया खाना खाने से इनकार कर दिया था. बाद में इन्हें नौकरी से हटा दिया गया. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने शुक्रवार को दलित महिला रसोइया को निकाले जाने के मामले की जांच के आदेश दिए हैं.
धामी ने कुमाऊं के पुलिस उप महानिरीक्षक (डीआईजी) नीलेश आनंद भरने से सुखीढांग स्थित स्कूल का दौरा करने और घटना की जांच करके दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने को कहा है. हालांकि, चंपावत जिला शिक्षा अधिकारियों का दावा है कि सुनीता देवी इस पद के लिए पात्र थीं. लेकिन उन्हें उच्च जाति के छात्रों के बहिष्कार के कारण नहीं हटाया गया, बल्कि इसलिए हटाया गया क्योंकि उनकी नियुक्ति मानदंडों के अनुरूप नहीं थी.
चंपावत के मुख्य शिक्षा अधिकारी (सीईओ) आर.एस. पुरोहित ने कहा कि स्कूल के प्रिंसिपल प्रेम सिंह ने सुनीता देवी को काम पर रखा था. इसके लिए उन्होंने पूर्व में खुद अपने स्तर पर नियुक्त की जा रही एक उच्च जाति की कुक पुष्पा भट्ट की नियुक्ति को खारिज कर दिया था. पुरोहित ने दावा किया कि पुष्पा भट्ट को नियुक्ति पत्र जारी नहीं किया गया था और पूरी चयन प्रक्रिया को प्रिंसिपल ने खुद रद्द कर दिया था.
सीईओ ने कहा, ‘फिलहाल तो वह निष्कासित हैं, लेकिन सुनीता देवी को फिर से नियुक्त किए जाने की संभावना है क्योंकि अन्य सबकी तुलना में वही जरूरी अर्हताएं पूरी करने वाली एकमात्र आवेदक हैं. हालांकि, इस मामले में जांच जारी है और आवश्यक आदेश के बाद एक नई चयन प्रक्रिया शुरू होगी.’
मामले की जांच चंपावत के उप शिक्षा अधिकारी (डीईओ) अंशुल बिष्ट कर रहे हैं.
इस मामले पर टिप्पणी के लिए दिप्रिंट की तरफ से की गई कॉल पर चंपावत के जिला मजिस्ट्रेट विनीत कुमार तोमर ने कोई जवाब नहीं दिया.
स्थानीय विधायक कैलाश चंद घाटोरी ने कहा कि सुनीता देवी का मामला ‘जाति के आधार पर निष्कासन’ का नहीं है लेकिन उन्हें नौकरी से निकाला जाना ‘स्वीकार्य नहीं’ है.
भाजपा विधायक ने कहा, ‘मैं पड़ताल करूंगा कि उन्हें क्यों हटाया गया. यह स्वीकार्य नहीं है. जो बताया जा रहा है मामला उससे कहीं अधिक है…मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि उनकी बहाली हो जाए.’
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क्या है पूरा मामला
सुनीता देवी को 13 दिसंबर को चंपावत जिले के सुखीढांग राजकीय इंटर कॉलेज में कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों के लिए मध्याह्न भोजन बनाने के काम पर रखा गया था.
अगले दिन उच्च जाति के कुछ छात्रों ने कथित तौर पर उसका पकाया खाना खाने से मना कर दिया. पुरोहित ने कहा, ‘इस घटना के मद्देनजर स्कूल प्रबंधन समिति (एसएमसी)—जिसमें अभिभावक और स्कूल कर्मचारी दोनों शामिल हैं—ने उसे नौकरी से निकालने का दबाव बनाया.’
सुनीता देवी ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि गांवों का एक समूह स्कूल में ‘भोजन माता’ के तौर पर उनकी नियुक्ति का विरोध कर रहा था.
उन्होंने बताया, ‘14 दिसंबर को लगभग 25-26 अभिभावक स्कूल आए और शिक्षकों और रसोई में काम करने वालों पर चीखने-चिल्लाने लगे. उनका कहना था कि उनके बच्चों को निचली जाति की महिला द्वारा तैयार खाना खाने को मजबूर किया जाता है. स्कूल के शिक्षकों ने इस सबका विरोध किया, जबकि वे भी सवर्ण जाति के ही थे. लेकिन पीटीए (अभिभावक शिक्षक संघ) के सदस्यों ने मुझे नौकरी से हटाने की धमकी दी.’
सुनीता देवी ने बताया कि उसने एक सप्ताह स्कूल में काम किया था और 21 दिसंबर को तीन दिन की छुट्टी ली थी, लेकिन उसके बाद फिर स्कूल में कदम रखने की अनुमति नहीं दी गई.
सुनीता देवी ने आगे कहा, ‘मैं डरी हुई हूं क्योंकि ग्रामीणों ने मुझसे बात तक करना बंद कर दिया है. जब हम वहां से गुजरते हैं तो वे मेरी जाति और परिवार के खिलाफ टिप्पणी करते हैं. मेरे दोनों बच्चे उसी स्कूल में पढ़ते हैं और पति एक मजदूर हैं जिसके पास कमाई का कोई नियमित साधन नहीं है.
नियुक्ति पर विवाद
उत्तराखंड के हर एक उच्च माध्यमिक विद्यालय में दो अभिभावक संघ हैं—कक्षा 6 से 8 के लिए एसएमसी और उच्च कक्षाओं के लिए पीटीए.
पुरोहित ने बताया कि ‘भोजन माता’ की नियुक्ति स्कूल के प्रिंसिपल द्वारा एसएमसी अध्यक्ष के परामर्श से की जाती है क्योंकि मध्याह्न भोजन योजना कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों के लिए होता है.
उन्होंने कहा, ‘हालांकि, सुखीढांग स्कूल के प्रिंसिपल ने पूर्व में स्कूल की तरफ से एक अधिसूचना जारी किए जाने के बाद पीटीए से परामर्श लेकर दिसंबर की शुरुआत में उच्च जाति की महिला पुष्पा भट्ट को नियुक्त किया था. भट्ट को नौकरी के लिए आवेदन करने वाली छह उम्मीदवारों में से चुना गया था. नियमों के मुताबिक, प्रिंसिपल को भोजन माता की नियुक्ति के लिए पीटीए के बजाय एसएमसी से संपर्क करना चाहिए था.’
सीईओ ने आगे कहा कि प्रिंसिपल प्रेम सिंह ने बाद में भट्ट की नियुक्ति को रद्द कर दिया और स्कूल के रसोइये के चयन के लिए नई तारीखों के साथ एक और अधिसूचना जारी कर दी.
उन्होंने बताया, ‘इस बार, सुनीता देवी ने एक नए उम्मीदवार के तौर पर आवेदन किया और उन्हें चयनित करके बिना किसी औपचारिक नियुक्ति पत्र के काम पर रख लिया गया. यहां तक कि भट्ट को भी कोई औपचारिक नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया. एसएमसी की तरफ से एक बार नाम को अंतिम रूप दिए जाने के बाद डीईओ द्वारा इसकी पुष्टि की जानी थी. लेकिन दोनों ही मामलों में ऐसा नहीं किया गया.’
पुरोहित ने कहा कि यह तो ‘प्राचार्य की कार्यशैली थी जिसने उच्च जाति के छात्रों के अभिभावकों को भड़का दिया’, जिन्होंने अपने बच्चों से सुनीता देवी के पकाए भोजन का बहिष्कार करने को कहा.’
उन्होंने कहा, ‘वे चयन प्रक्रिया का विरोध कर रहे थे, रसोइए का नहीं. पीटीए सदस्यों का सवाल था कि जब भट्ट को पहले ही नियुक्त किया जा चुका था तो प्रिंसिपल ने नए आवेदन क्यों मांगे.’
सीईओ के मुताबिक, मध्याह्न भोजन रसोइयों की नियुक्ति में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और सामान्य वर्ग के क्रम में उम्मीदवारों के चयन को प्राथमिकता दी जाती है, बशर्ते आवेदक का कम से कम एक बच्चा कक्षा 6, 7 या 8 में पढ़ता हो.
पुरोहित ने कहा, ‘मामले में जांच जारी है और हम जल्द ही एक नया रसोइये की नियुक्ति के लिए नए आवेदन आमंत्रित करेंगे. नियमों के तहत सुनीता देवी की फिर से नियुक्ति की पूरी संभावना है. हालांकि, इस बार पहले की तरह प्रक्रिया का पूरी तरह पालन किया जाएगा.’
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